"सफ़लता-एक रहस्य" और ज़िंदगी

"सफ़लता-एक रहस्य" और ज़िंदगी  ,एक ऐसा विषय जो हर व्यक्ति से जुड़ा हुआ है।  जब आप छोटे होते है, उस समय सफ़लता का मतलब होता है कक्षा में अच्छे नंबरों से पास होना। दसवीं-बारहवीं आते -आते सफ़लता की एक नई परिभाषा बता दी जाती है और वो होती है देश के नामी संस्थान में एड्मिशन प्राप्त करने की।  ग्रेजुएशन करने के दौरान आपको ये एहसास कराया जाता है कि अभी तो आपके सफ़ल होने की कहानी शुरू ही हुई है और फ़िर आप भिड़ जाते हो भिन्न -भिन्न क्षेत्रों में नौकरी पाने की तलाश में।  प्रोफेशनल लाइफ शुरू करते ही आपको लगेगा कि आप सफ़ल हो गये। लेकिन ये आपको शुरू के दो -तीन साल ही लगेंगे।  उसके बाद एक जंग शुरू होती है छल, कपट , धोखा , विरोध से लड़ते हुए अपने अस्तित्व को बचाने की और आगे बढने की।  ज़िंदगी की असली जंग अब शुरू होती है। कभी आपको लगेगा कि आप सफ़ल हो गये, कभी लगेगा विफ़ल हो गये। कुछ दिन सफ़लता का सुख भोगने के बाद आपको लगेगा,आपकी मंज़िल ये नही है। फ़िर आपको लगेगा कही मै विफ़ल तो नही हो गया ? और इसी बीच आप सामाजिक और पारीवारिक जिम्मेदारीयों के बोझ तले अपने आप को दबा हुआ पायेगे।  और यहाँ फ़िर से सफ़लता की एक नई रेखा खिची जायेगी। और फ़िर आप निकल पड़ोगे कभी ना खतम होने वाली यात्रा पर। हर मोड़ पर आपको एक नई लकीर खींचनी होगी और उसे पाने की कोशिश करनी होगी। यही ज़िंदगी है। 
        इसीलिए मैने शीर्षक "सफ़लता-एक रहस्य"और ज़िंदगी रखा क्योंकि मुझे लगता है कि सफ़लता की परिभाषा जीवन के हर मोड़ पर अलग - अलग होता है और ये ऐसी अंतहीन यात्रा है जो जीवनपर्यन्त चलती रहती है। 




कुछ पंक्तियां ज़िंदगी के नाम:

ज़ि लो दोस्त थोडा अपने लिये भी,
ये तो रोज़ चलने वाली यात्रा है ,
क्यों इतना भाग रहे हो ?
थोडा आराम भी कर लो यार ,

बचपन से ही कुछ तलाश में हो ,
क्या पाना चाहते हो ?
क्या कभी सोचा तूने,
कितनों को खो दिया इस होड़ में ?

जब भी तुम कुछ पाते हो,
साथ में कुछ खोतें भी हो,
क्या कभी गौर किया तूने ?
तूने खुद को ही खो दिया कहीं,

आ जाओ फ़िर से मिला दूँ ,
तुझे तुम्ही से,
एक बार फ़िर ,
अपने लिये भी
जीना सिखा दूँ तुझे ,

जीवन के हर मोड़ पर ,
खींचनी होगी,
एक नई लक़िर,
यही दस्तुर है हमारा,

थोडा खुश होकर ,
फ़िर अगली मंज़िल की तरफ़,
चलना होगा,
यही तो ज़िंदगी है,

चलते रहना है लगातार ,
बीच-बीच में 
अपने लिये भी जीना है,
खुद से खुद को,
मिलाते रहना है,

जीवन में हमेशा एक नई,
इबारत लिखते रहना है,
थोड़ा रुक कर , 
फिर चलना है
यही तो ज़िंदगी है,



आपका,
meranazriya.blogspot.com
meranazriyablogspotcom.wordpress.com

No comments:

Post a Comment

बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...