आको बांको की बेहतरीन लाइनें मेरी नज़र में

नमस्कार,
आखिरकार आज मैंने आको-बाको किताब की पूरी कहानियां पढ़ ली। दिव्य प्रकाश दुबे जी की इस पुस्तक में कुल 16 कहानियां हैं और यकीन मानिए इन 16 कहानियों को पढ़ने के बाद आपको कुछ नए शब्द नई लाइनें ने आपके दिमाग में रह जाएगी।इन लाइनों का आप के दिमाग पर खास तरह का असर होगा मैंने कुछ लाइनों को संग्रहित करने के लिए इस ब्लॉग में कहानी के के दौरान लिखे हुए कुछ लाइनों को संग्रह किया है।आप भी कहानी के हिसाब से लाइनों को पढ़ें और समझने का प्रयास करें कि इन लाइनों का उस कहानी में मतलब क्या होगा। यह लाइनें ही आपको पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए मजबूर करेगी ऐसा मेरा मानना है।


सुपर मॉम
याद समंदर की लहर के जैसे आई और पुराने दिनों की उम्मीद वह आकर ले गई याद रात के तारों की तरह आई नींद उड़ा कर चले गए याद हर तरीके से आई बस अच्छे याद की तरह नहीं आई।

जिंदगी के बड़े फैसले आराम से बैठकर नहीं बेचैनी से फूट-फूट कर रोते हुए पलों में लिए जाते हैं।

आदमी बदलता है तो उसकी महक भी बदल जाती है।

मैडम सही रास्ता मिलने के बाद भी उस पर चलना इतना आसान नहीं होता लेकिन मैडम मैं थकी नहीं हूं।

मैं खुद ही अपनी प्रेरणा हूं प्रेरणा अपने अंदर होती है।

पेन फ्रेंड
जिंदगी बिस्तर की सिलवट जैसी हर सुबह उलझी हुई मिलती है इसीलिए उलझी हुई सिलवट को वापस ठीक करने की कवायद में लोग जिंदगी के चार सिरे से खींच कर रोज उसको  संवारते हैं। जिंदगी का काम है उलझाना और आदमी काम है सुलझाना और उस सुबह का इंतजार करते रहना जिस दिन सिलवट नहीं मिलेगी।

खिलौना
आंसू छंटाक भर है लेकिन भारी बहुत है इतना भारी कि इस धरती पर सबसे बड़े फैसलों के पीछे कहीं न कहीं इस पानी का हाथ है।

यादें खो जाए तो जिंदगी आसान हो जाती है हम अपनी यादों से परेशान लोग हैं दुनिया तो बहुत बाद में परेशान करती है।

संजीव कुमार
उसके ठप्पे लगाने में एक रिदम था एक संगीत था जैसे चिट्ठियों पर ठप्पे लगाना इस दुनिया का सबसे खूबसूरत काम है।

हां इस दुनिया में इतने किरदार हैं कि हम वह किरदार बनते रहते हैं एक वही तरीका है कि हम जिससे अपनी असलियत से भाग सकते हैं।

पहला पन्ना
पहला पन्ना उन सभी शायरों और लेखकों के नाम जो कुत्ते की मौत मरे और मरते रहेंगे।

इस दुनिया को समझने की कोशिश जब भी हुई हर खोज यहीं पर आकर रुकी है कि दुनिया रहने लायक नहीं है, यहां आदमी आदमी बनकर नहीं रह सकता।

तुम लोगों पर बातों का कोई असर थोड़े होगा कबीर, नानक, गांधी की बातों का असर नहीं हुआ तो मेरी बातों का क्या होगा।

इस बदसूरत दुनिया में खूबसूरती वही तलाश सकता है जो इस दुनिया को एक डीएसएलआर कैमरे की नजर से देखें जो झोपड़पट्टी, गरीब के पांव, नाले तक में खूबसूरती ढूंढ सके।

दुनिया को सच बोलने का वादा चाहिए सच नहीं।

इस दुनिया को बच्चों की नजर से ही झेला जा सकता है शायद!

हर लेखक कभी न कभी खाली होता है लेकिन मानना नहीं चाहता खाली हो जाना मौत जितना बड़ा ही सच है।

डैडी आई लव यू
नदी पार करने वाले तीन तरह के लोग होते हैं पहले वो जो पार हो जाते हैं और पलट कर नहीं देखते, दूसरे वो जो पार होने के बाद दूसरों को पार कराते हैं और तीसरे वो जो नदी हो जाते हैं।

कविता कहां से आती है
कहानियां असल में वही पड़ी होती हैं जहां हम उनको रख कर भूल चुके होते हैं किसी अलमारी में बिछे अखबारों की तहो के नीचे, किसी किताब के मुड़े हुए पन्ने पर, किसी भी बिस्तर के बेचैन करवटों पर, किसी के जाने के बाद में बची हुई खाली जगह में।

हाले-गम उनको सुनाते जाइए शर्त ये है मुस्कुराते जाइए।

इसीलिए शायद हमारी जिंदगी के कई जरूरी जवाब एक थकावट की पैदाइश है जवाब ढूंढना बंद कर देना एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब लोग सवाल बदल कर अपने आप को छोटा-मोटा धोखा देते रहते हैं।

कविता जब आती है तो खुशबू वाले फूल जैसे होती है और जब बनाई जाती है तो उस फूल की प्लास्टिक कॉपी जैसी लगती है।

भूतनी
कुछ आत्माएं इतनी शापीत होती हैं कि उनको भूत बनने के लिए मरने की जरूरत नहीं पड़ती। जिंदा आदमी भूत से परेशान होता है लेकिन हमने यह नहीं सुना कि भूत किसी जिंदा आदमी से परेशान होता हो।

शुगर डैडी
प्यार को अगर समय के स्केल पर रखकर बांट दे तो मिलने से पहले और बाद का स्केल मैटर नहीं करता। मेरे बाद भी कोई मेरे प्यार में रहे, मैं इतनी बड़ी सजा किसी को नहीं देना चाहता।

पहले से तय कर लेना कि अब सच्चा प्यार नहीं होगा इस जीवन की असीम संभावनाओं का अपमान है।

कमरा
उसने अपने मन में घाव बना लिया वह घाव जो हर कोई कभी ना कभी बना लेता है समय के साथ  घाव भरता रहा।

60 सेकंड
आपके जैसा रोज़ कोई आता है और थोड़ी सी जिंदगी मेरे कटोरे में रख देता है।

आदमी के 'बिसात' ही कुछ ऐसी है कि वह उम्मीद नहीं छोड़ता । उम्मीद नहीं होती तो लोग सुसाइड लेटर लिखकर नहीं जाते। धीरे से चुपचाप मर जाते गुमनाम मर पाना हमारे समय की सबसे बड़ी लग्जरी है।

गुमशुदा
हर आदमी तभी तक नॉर्मल है जब तक इस समाज उसे पागल घोषित नहीं कर देता।

विंडो सीट
उसने अपने चेहरे पर एक प्लास्टिक स्माइल में तरफ दी मैंने स्माइल से थोड़ा सा प्लास्टिक कम करके स्माइल से वापस कर दे।

सुपरस्टार
असल में हम उसे ही अपना भगवान बनना चाहते हैं जिसको हम देख और छू सकते हैं फिर वह चाहे पत्थर ही क्यों ना इसीलिए शायद ना छू पाना भगवान होने की पहली शर्त है।

जो लोग खुद लेट होते हैं वह दूसरों को समय से पहले पहुंचा देते हैं।

खुश रहो
बेटे ने अपने बाप को जीते जी माफ कर दिया था वरना इतिहास गवाह है बाप को माफी मरने के बाद ही मिलती है पिता को माफ करना अपने आप को माफ करना होता है।

द्रोपदी
क्योंकि वह अपने शक को शक बने रहने देना चाहते थी उसको सच होते हुए नहीं देखना चाहती थी।

जितना मन करें उतना देखना अब फुर्सत से पति हो परमेश्वर नहीं।

इस ब्लॉग को लिखते समय मेरे जेहन में इस बात का ख्याल जरूर है कि मैं कहानी की आत्मा को बचा के रखूं और आपको कहानी पढ़ने के लिए विवश करु। इस पुस्तक के लेखक श्री दिव्य प्रकाश दुबे जी को बहुत-बहुत बधाई। पुस्तक में लिखी हुई हर कहानी अपने आप में शानदार हैं एक नया अनुभव है और एक नए पाठक के लिए और नये लेखकों के लिए बहुत कुछ सीखने का भी है।

बहुत-बहुत आभार धन्यवाद।


आपका,
मेरा नज़रिया

पहला स्पर्श

   ये एक खुला पत्र है मेरे छोटे भाई के नाम,

Dear Sonu,

        शायद तुमको एहसास भी नहीं आज का दिन यानी 5 दिसंबर , कितना बड़ा और शुकुन देने वाला दिन है हमारे पूरे परिवार के लिए। आज से ठीक 30 साल पहले जब सर्दियां ज्यादा पड़ा करती थी। ना जाने कितनी मनौती और तपस्या के प्रभाव से तीन बहनों के बाद तुम्हारा जन्म हुआ था। मुझे वो दिन पूरी तरह से याद है । सुबह-सुबह लगभग 5 से 6 बजे के बीच का समय था। ठंडी का मौसम था। मैं लगभग 7-8 साल का था। घर में कुछ हलचल था सब लोग यहां वहां भाग रहे थे। पापा भी परेशान लग रहें थे। हमारे यहां हमारी मामी भी आई हुई थी। बड़े पापा अपने रेगुलर कार्य में व्यस्त थे। मैं भी अपने आदत के मुताबिक शांत रुम में बैठा हुआ था। तभी ज़ोर से थाली बजने आवाज़ आनी शुरू हो गई। बड़े पापा के मझले पुत्र जेपी भैय्या ज़ोर ज़ोर से लड़का हुआ है-लड़का हुआ है बोलकर, थाली बजाकर खुशी जाहिर कर रहे थे। मैं भी भागता हुआ आंगन में आ गया था। पूरे घर में एक गज़ब का पाज़िटिव एनर्जी का संचार हो रहा था। अचानक से सब लोग बहुत खुश हो रहे थे। दीदी मेरे पास भागते हुए आई और बोली बड़ी मां मुझे बुला रही है। मैं दीदी के साथ थोड़ा सहमते हुए उस कमरे में गया , कमरे में अंधेरा था। तभी बड़ी मां ने खाट पर बैठने के लिए बोला और कहां आओ तुम्हारे छोटे भाई का पीठ तुम्हारे पीठ से सहला देती हूं , जिससे तुम जीवन भर कभी लड़ाई नहीं करोगे, मिलजुल रहोगे और खुब तरक्की करोगे। मैं बहुत छोटा था इतना समझ नहीं पाया पर छोटे भाई का वो पहला स्पर्श और वो लाइन मुझे आज भी अच्छे से याद है। मैं भी बहुत खुश था अब मेरा भी छोटा भाई है।
           आज तुम तीस के साल के हो चुके हो। बहुत सारी कहानियां है तुम्हारी। बचपन में शायद तुम सबसे जिद्दी थे और वो ज़िद आज भी बरकरार है। परिवार में शुरूआती दिनों के संघर्ष के दौरान तुम एक दिन बाज़ार में घर के खेलते हुए रास्ता भटक गए थे, तब तुम लगभग तीन साल के रहे होगे। पापा पागलों की तरह तुमको ढुढने के लिए निकल पड़े थे। और शाम ढलने से पहले तुम पापा के गोद में थे। कितना अमुल्य हो तुम, इसका एक झलक मैंने उस समय महसूस किया था। बहनों के लिए तुम्हारा प्यार आज़ का नहीं है। एक बार वंदना या शायद रेखा का कान छेदने के दौरान जो हस्र तुमने कान छेदने वाले का किया था आज सोचते हैं तो हंसी छूट जाती है। थोड़ा सा भी दर्द नहीं बर्दाश्त कर सकते तो तुम अपनों के लिए। और बहनों से वो लगाव समय के साथ और बढ़ा है। पढ़ाई-लिखाई को लेकर पापा शुरू से ही हम सबको समझाते रहते थे और कभी भी हम सबको अपने पारिवारिक कार्यों से अलग ही रखते थे, जिससे हमारी पढ़ाई में बांधा ना पड़े। शायद तुम्हारा पांचवां जन्मदिन था या होली का त्यौहार पापा तुम्हारे लिए बहुत बढ़िया टी-शर्ट और जींस का फूल पैंट का पूरा सेट लेकर आए थे। और मैं अभी तक हाफ पैंट में ही काम चला रहा था। तब भी मुझे लगा पापा तुमको कितना मानते थे। तभी जब मैं कक्षा छ: में था , सैनिक स्कूल की तैयारी के लिए मुझे हास्टल में भेज दिया गया। और पहली बार घर और घरवालों से दूर मैं अपनी पढ़ाई कर रहा था। एक छोटे बक्से में दो-चार कपड़े और घर के अचार और चूड़ा और चना के भुजा के साथ घर से दूर मैं रह रहा था और तुम ये सब देख और सिख रहे थे। बचपन में तुम्हारे ज़िद के सामने सब नतमस्तक थे , एक और किस्सा याद आ रहा है। अम्मा तुमको लेकर मेरे हास्टल में आई हुई थी और हाल ही तुम्हारा जंघे के पास एक छोटा आपरेशन हुआ था। आपरेशन से पहले डाक्टर साहब का क्या हाल तुमने किया था अम्मा बता रही थी। और डाक्टर साहब आज भी तुमको उसी जिद्दी बच्चे की तरह जानते है। इसी दौरान तुम स्कूल जाना शुरू कर दिए थे।
         शुरुआती स्कूल के दौरान मैं तुम्हारे साथ नहीं था और जब हास्टल से वापस आया तो अपनी पढ़ाई में लगा रहता था। तुम बाज़ार में बहुत पापुलर थे। एक तरफ मैं बहुत ही कम बोलने वाला , बहुत कम दोस्ती, कम घुमना फिरना  और दूसरी तरफ तुम बहुत पापुलर, सबके चहेते थे। मुझे शायद ही याद है हम लोग एक साथ बैठकर पढ़ाई किए हों। मैं सुबह-सुबह उठ कर कोचिंग और फिर स्कूल और शाम को पढ़ाई यही दिनचर्या था। और तुम इस दौरान ये सब होते हुए देख रहे थे और सीख भी रहे थे। घर में जब भी चर्चा होती हम सब पढ़ाई की ही बात करते थे। इसका असर कहीं ना कहीं तुम्हारे दिमाग में तो हो ही रहा था, आज इस बात को अच्छे से समझ सकता हूं। जब मैं हाईस्कूल में प्रथम डिविजन से पास किया था तब अपने गांव के इतिहास में मैं पापा के बाद दूसरा छात्र था और इसकी चर्चा भी खुब हुई थी हमारे घर और गांव में। कुछ दिनों बाद मैं कानपुर चला गया और फ़िर घर से और ज्यादा कट गया, लेकिन तुम्हारी परवरिश में पापा का त्याग पूरा छलकता है। कुछ सालों बाद जब तुम हाईस्कूल की परीक्षा देकर मेरे पास आए हुए थे। हाईस्कूल का रिजल्ट मैंने ही देखा तुम्हारे साथ और रिजल्ट देखकर मैं अतिउत्साह से भर गया। जहां लोग एक सब्जेक्ट में डिक्टेंशन लेकर पागल हो जाते थे , तुम्हारे हर सब्जेक्ट के आग D  लिखा था, शायद एक को छोड़कर। और तुम हमारे गांव के इतिहास में सबसे ज्यादा पर्सेंट से पास होने वाले छात्र बनकर उभरे थे। घर पे पढ़ाई की बातों का क्या असर होता है उसका तुम बहुत बड़ा उदाहरण बनकर उभरे। यही वो क्षण था जब मुझे लगा कि तुम कुछ बड़ा करोगे। पढ़ाई में इतना लगनशील, सिरियस,सेल्फ मोटिवेटेड, शार्प माइंडेड इत्यादि तुममें वो सब कुछ था जो मेरे में बहुत कम था। इसके बाद इंटरमीडिएट की परीक्षा में और बड़ी सफलता ने आगे के सभी रास्ते खोल दिए।

Tough, Hard & Bold decisions

   इंटरमीडिएट अपियरिंग में तुमने पालिटेक्निक, IERT और इंजीनियरिंग की परीक्षा भी दिया था। पालिटेक्निक में तुम्हारा रैंक प्रदेश स्तर पर सौ के नीचे था, IERT में भी तुम्हारा रैंक बहुत अच्छा था। पर राष्ट्रीय और प्रदेश इंजिनियरिंग कॉलेज में रैंक बहुत अच्छा नहीं जिससे की सरकारी कालेज मिल सके। यहां डिसिजन की बारी थी। कम रिस्क लेने की आदत और फाइनेंशियल कारण की वज़ह से मैं और पापा ने तुम्हें IERT में एडमिशन के लिए सुझाव दिया। और तुमने इच्छा के विरुद्ध एडमिशन ले भी लिया, ये सोचकर चलो अगले साल फिर से यूपिसिट के लिए प्रयास किया जायेगा। एडमिशन के एक महीने में ही कालेज के माहौल और बच्चों के टैलेंट का लेवल देखकर तुम बहुत उदास हो गये थे। तुम्हारी बातों से ऐसा लग रहा था कि तुम एकदम खुश नहीं हो। फोन पर तुम्हारी बातों से लगता था ग़लत डिसिजन ले लिया है।एक साल तैयारी करके सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा ऐसा विश्वास तुम्हारी बातों से हो रहा था। ये देखकर फाइनली तुमने IERT छोड़ने का फैसला कर लिया। ये तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा, रिस्की और अहम निर्णय था। उसके बाद तुमने अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए कितना परिश्रम किया और वो भी अपने बल बूते पर मुझसे और पापा से ज़्यादा शायद ही कोई जानता है। तुमने पढ़ाई में अपने आप झोंक दिया था। तुम्हारी उस लगन से लगता था कोई भी मंजिल तुम पा सकते हो। और मुझे आज भी लगता है तुम अपने पोटेंशियल का बहुत कम प्रयोग कर पा रहे हों। तुमने अपने दम सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज लखनऊ में एडमिशन लिया और साबित किया कि अपने पर भरोसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। इंजिनियरिंग की पढ़ाई के दौरान शुरुआती संघर्ष में तुम बताते थे कैसे बड़े बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सामने , कक्षा में बोलने में तुम्हारा आत्मविश्वास हिल जाता था। लेकिन कुछ ही समय में तुम क्लास सबसे अच्छे स्टूडेंट्स में गिने जाने लगे थे। और मैं और पापा तुम्हें मोटीवेट करने की भरसक प्रयास करते रहते थे। बी-टेक के दौरान गेट के लिए कोचिंग करने का डिसीजन भी एक बड़े निर्णय में से एक था। पापा और मेरा का काम सिर्फ यही था कि तुम जो भी निर्णय लो पूरी तन्मयता से तुम्हें सपोर्ट और मोटिवेट करना है। बी-टेक के बाद क्या? एक समय ऐसा आया जब तुम बहुत तनाव में रहने लगे थे। आखिर बी-टेक के बाद क्या होगा। कैंपस हो नहीं रहा था। गेट में अच्छा रैंक के बाद फार्म तो हर जगह भरने के एलिजिबिलिटी थी पर सिट बहुत कम था। तुमने लगभग सभी जगह फार्म भर रखा था। और परीक्षा की तैयारी में लगे रहते थे। इसी दौरान भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई में इंटरव्यू देने का मौका मिला। मैं बहुत गौरवान्वित महसूस करता था और लोगों को बताया करता था। सेल, रेलवे,NPCL,NTPC और ना जाने क्या क्या। हर जगह से रिजल्ट का इंतज़ार और परिणाम से तुम तनाव में रहने लगे। इसी दौरान तुम मेरे यहां आए । तुम बहुत ज्यादा टेंशन में थे। और तुम्हें मोटीवेट करने का बहुत प्रयास करता था। जब कहीं से कन्फरमेशन नहीं आ रहा था तब हमलोग बैठकर बात किए और आगे Mtech किया जाए, निर्णय लिया गया। यह निर्णय भी तुम्हारा इच्छा के विरुद्ध था और मजबूरी में लिया गया फैसला था। गेट के रैंक के आधार पर IIT गुवाहाटी और तेलंगाना के टाप इंजिनियरिंग कॉलेज में एडमिशन का आफर मिला। हमलोग तेलंगाना में एमटेक में एडमिशन लेने के लिए निकल पड़े। रास्ते में चर्चा के दौरान इतना तो मैं समझ गया कि तुमने बहुत मेहनत किया है और किसी भी हाल में किसी ना किसी सरकारी विभाग में तुमको ज्वाइन करना है। एमटेक केवल टाइम काटने का जरिया था। तुम्हारा मन कहीं से एमटेक करने का नहीं था। शाम लगभग पांच बज रहे होंगे मैं और तुम एन आई टी तेलंगाना के एडमिशन हाल में लाइन लगा लिए थे और हमारे आग 5-6 लोग लगे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बातचीत के क्रम में एक लड़के ने बताया यहां ओरिजनल डाक्यूमेंट जमा करा लेते हैं और जरूरत पड़ने पर देंने में समस्या करते हैं। ये बातें सुनकर हमलोग फिर तनाव में आ गए , और सोचने लगे अब क्या करें। और हम तुम वहां के हास्टल में और स्टूडेंट्स से बातचीत की और अगले दिन एडमिशन ना लेने का एक और बड़ा निर्णय लिया। और इस बड़े डिसीजन के बाद चलो एक साल फिर तैयारी करेंगे तुम वापस लखनऊ चलें  गये। ये जुलाई का महीना था और अगले महीने UPPCL की परीक्षा थी। ये आखिरी परीक्षा देकर अगले सत्र की गेट के लिए तैयारी शुरू करना था। और आखिरी परीक्षा ने तुम्हारे जीवन को बदल के रख दिया।

        तुमने अभी तक के सफ़र में जो भी किया है वो अद्भुत है। तुम्हारी सोच काफ़ी उच्च स्तर की है। ग़रीबी तुमसे देखा नहीं जाता है। तुम बहुत भावुक इंसान हो दूसरों का कष्ट तुमसे देखा नहीं जाता है और अपने स्तर पर तुम बहुत कुछ करते रहते हों। ऐसे कई मौके आए जब हम लोग किसी बात पर विपरीत राय रखते हों, पर हमारी सोच एक ही है। पढ़ाई को लेकर तुम बहुत ही ज्यादा संवेदनशील हो और हमारी सबसे ज़्यादा बात एजुकेशन पर ही होती है। तुम बहुत कुछ करना चाहते हों  उनके लिए जो जरुरतमंद है और बहुत कुछ कर भी रहे हो तुम। बचपन में जो ज़िद तुम्हारी कमजोरी थी आज वो तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है। तुमने हमेशा अपने दिल की सुनी और सफल भी हुए। एक बड़े भाई होने के नाते मैं और पापा और पूरा परिवार तुम्हारे हर निर्णय के साथ था और आगे भी रहेंगे।

तुम्हारे जन्मदिन पर आज सुबह से थोड़ा ज्यादा ही भावुक हो गया हूं, मैं चाहता हूं कि तुम जीवन में हर वो मुकाम हासिल करो जो तुम चाहते हो। मैं, पापा और पूरा परिवार तुम्हारे साथ उस पहले स्पर्श की तरह हमेशा चट्टान की तरह खड़ा रहेगा। 

खुश रहो...


तुम्हारा भैय्या,
रवीन्द्र नाथ जायसवाल

आको बाको : निष्पक्ष समीक्षा

   वाह बहुत सुंदर। क्या खुब डिजाइन है इस बुक की। जैसे ही किताब मेरे हाथों में आई , एक बार तो मैं देखता रह गया। किताब के उपर बने हुए डिजाइन आपको आकर्षित करते हैं। कहीं मां के बच्चा भागता हुआ दिखता है तो कहीं जानवर से बात करता हुआ इंसान, कोई आफिस जा रहा है, तो कोई स्कूल, खेत में दवा का छिड़काव भी आपको दिखेगा। जीवन का हर रंग एक सफेद और सादे पेज पर  सादगी से उकेरने की कोशिश की गई है। बधाई दूबे जी और हिंदी युग्म।
 
  अभी किताब कल ही हाथ लगी है। सोलह कहानियों का संग्रह है यह किताब। पहली कहानी 'सुपर माम' अभी मैंने पढ़ी है। पहली ही कहानी में दूबे जी अपना रंग दिखा देते  हैं । कुछ लाइनें दिल को छू जाती है। सामान्य मीडिल क्लास की मां के संघर्ष को पढ़ते हुए कई  बार गला रूंध जाता है। बहुत अच्छी कहानी है आप कहीं खो से जायेंगे। 
सभी पाठकों से आग्रह है जरूर पढिए और लोगों पढ़ने के लिए प्रोत्साहित जरूर करिए। आपको नहीं पता कौन सी लाइन किसके जीवन में क्या परिवर्तन ला दे।

मुझे जो लाइनें बहुत अच्छी लगी है उनका जिक्र जरूर करूंगा :

१) याद समंदर की लहर के जैसे आई और पुराने दिनों की उम्मीद बहाकर ले गई। याद रात के तारे की तरह आई और नींद उड़ाकर चली गई। याद हर तरीके से आई, बस अच्छी याद की तरह नहीं आई।

२) "जिंदगी के बड़े फैसले आराम से बैठकर नहीं, बेचैनी से फूट-फूटकर रोते हुए पलों में लिए जाते हैं।

३) आदमी बदलता है तो उसकी महक भी बदल जाती है।

४) मैडम, सही रास्ता मिलने के बाद भी उस पर चलना इतना आसान नहीं होता, लेकिन मैडम मैं थकी नहीं हूं।

५) "मैं खुद ही अपनी प्रेरणा हूं, प्रेरणा अपने अंदर होती है।"

ये लाइनें काफी कुछ कहती हैं। और आपको प्रोत्साहित करती है। कुछ कर गुजरने की।

दूबे जी बहुत सुंदर लिखा है आपने। आपके बारे में जैसा सुना था, जैसा देखता हूं और जैसा सोचा था वैसे ही हैं आप। आपको बहुत बहुत बधाई और भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं।

https://youtu.be/aC7VDaFAtig





आपका,
रवीन्द्र नाथ जायसवाल
मेरा नज़रिया (ब्लागर)

 BIS Open the door for explore my carrier.


जब  बंद थे सारे रास्ते 

उम्मीदों  का द्वार खुला 

 हमें हमारा राह मिला 

जो सोचे थे वो करा दिया

ग्रेजुएट हमें बना दिया  

मुझे मौकों से मिला दिया 

अब उड़ना है खुले आसमां में 

बिट्स ने हमें सिखा दिया 

@ मेरा नज़रिया        

छठ पर्व स्मृति : २०२१ भाग-२

    पिछले खंड में हमने देखा कैसे छठ की तैयारी में घर के बड़े-बुजुर्गों, बच्चें, सास-बहूओं का कितना बड़ा रोल होता है। जैसा की मैंने बताया हाथापाई की संभावना को दूर करके पापा और बेटे की जोड़ी फलों की खरीदारी करने के लिए बाज़ार पहुंच चुके है। बाज़ार में पहुंचते ही बाप और बेटे की बाज़ार को देखने नज़रिया बिल्कुल अलग था। बाज़ार खचाखच भरा पड़ा है। छठ पर्व के विशेष रूप से मंगाए गए फलों का अंबार है। अनरसा,बुदनी, गागर निंबू,गन्ना,सिंघाड़ा आदि फलों के साथ-साथ पारंपरिक सूप और दउरा का भी भरमार है। इधर पिता जी फलों की गुणवत्ता और पैसे का मोल तोल कर रहे थे, उधर इनके सुपुत्र बगल में लगे पटाखों की दुकान में दुकानदार से अपना अनुभव साझा करने में व्यस्त है। बेटा दुकानदार से बोलता है भैय्या दीवाली वाला पटाखा बढ़िया नहीं था। आपने दाम भी ज्यादा लिया ग्रीन पटाखों के नाम पर और फोड़ने पर आवाज़ नहीं था। अनार बढ़िया था , बहुत देर तक रोशनी निकल रहा था। मुझे वहीं वाला अनार और दे दीजिए और ज़ोरदार आवाज वाला बम भी दे दीजिएगा और हां पापा को मत बताइएगा। पिग्गी बैंक तोड़कर पैसा निकाले हैं। इधर पिताजी का फलों के बढ़े हुए दाम से हल्की हल्की ठंडी में भी पसीने आ रहा है। पिताजी के कुछ पुराने मित्र भी मिल गये , ज़ोरदार 'जय श्री राम' बोलकर एक दूसरे का कुशल क्षेम पुछा जाता है। दो-चार मिनट की चर्चा के दौरान दोनों बाज़ार में महंगाई से हुई मानसिक तनाव को खुब छुपाने की कोशिश करते हैं। पर कर नहीं पाते आखिर मोदी जी सलाह देते हुए, सब तो ठीक कर रहे हैं पर महंगाई पर एकदम लगाम नहीं है। आम आदमी की कमर टूट चुकी है। मोदी जी सबका ध्यान दें रहे हैं पर सब कुछ आम मीडिल क्लास से लेकर। अब आम मीडिल क्लास का हाल ये है कि ना थूके बन रहा है और ना ही निगलने। खैर ये तो रही राजनीति की बात , एक दूसरे को छठ की शुभकामनाएं देकर दोनों मित्र आगे बढ़ गये। पारंपरिक फलों से झोला और बोरी दोनों भर चुका था। सामान को एक साथ रखकर दोनों पिता पुत्र घर जाने की तैयारी में थे। सामान का अंबार देखकर बेटा बोला इतना सामान बाइक पर कैसे जाएगा? यहां पिताजी ने अपने अनुभव का सदुपयोग करते हुए सामान को गांव जा रहे ठेले वाले को दे दिया और साथ में खरना के दिन घर आने का न्योता भी दे दिया। बिना देर किए हुए सारा सामान ठेले पर रख दिया गया और पिता पुत्र आराम से घर वापस आ गए।

   घर आने में शाम हो गया है। घर में चहल-पहल है। अगले दिन सुबह खरना की तैयारी करना है और शाम को खीर और रोटी का प्रसाद लोगों को खिलाया जायेगा। अपने खास लोगों को घर बुलाकर प्रसाद खिलाने की परंपरा है। घर के मुखिया सबको फोन करके खरना का प्रसाद खाने का न्यौता देने में लग गए। इधर सास और बहू में घर आए सामान को लेकर बहस शुरू हो गई। ये नहीं आया तो वो नहीं आया , शुरू हो गया था। तभी बीच बचाव करने घर के वरिष्ठ दादा जी प्रवेश होता है, अचानक सारे घर में सन्नाटा छा गया। 'अरे जो सामान रह गया है पास वाली दुकान से लेकर आ जाओ । इतना घबराने वाली बात नहीं है। सब कुछ मिल जाएगा' । इतना सुनकर माहौल सामान्य हो गया। फिर से सब लोग अपने काम पर लग गए। बच्चों में अलग तरह जोश दिख रहा है। घर में शारदा सिन्हा का मधुर संगीत बज रहा है, बीच-बीच में खेसारीलाल और पवन सिंह भी बज रहे हैं। अरे इस बार तो गज़बे हो गया पिछे से लखनऊ में पढ़ाई करने वाली बेटी का आवाज़ गुंजा। लोगों ने पूछा क्या हुआ ? अरे इस बार बालिवुड के महान गीतकार सोनू निगम और पवन सिंह की जोड़ी छठ पर्व का गीत लेकर आ रहे हैं। कल ही यू-ट्यूब पर रिलीज हुआ है। बहुत सुंदर गाना है। इसको बजाते हैं , गाना बजते सब बड़े ध्यान से सुनते हैं। आज भोजपुरी जगत का नाम कितना ऊंचा हो गया है देखो बड़े बड़े लोग इस भाषा से जुड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं। पिताजी ने अनुसार गाना अच्छा है पर शारदा सिन्हा वाली बात कहां? इधर सोशल मीडिया की नशा में चूर चाचा के सुपुत्र आ गये है । इनके अनुसार ये भाषा-वासा कुछ नहीं बाज़ार है अंकल जी । ई जो सोनू निगमवा को लाया गया है ना पैसा कमाने के लिए। सब जानते ही है हमारी जनसंख्या कितनी है ,यू-ट्यूब में लाइक और शेयर से ही लाखों कमा लेते हैं। कापी राइट से कमाई होगी सो अलग। भतिजे की ये बातें चाचा आत्ममुग्ध होकर सुन रहे थे। इसको साइड में ले जाकर चाचू ने कान खींचा और बोला " इ का दिनभर मोबाइल लेकर टीपिर टीपिर करते रहते हो" ? थोड़ा पढ़ भी लिया करो। चाचा की डांट सुनकर भतिजा निकल लिया और किसी और को ज्ञान देने। धीरे धीरे रात हो गई सब सो गए।

        सुबह सबसे पहले दादी उठती है। एक हुंकार में ही सबको उठा देती है। इतना सारा काम पड़ा है और लोगों को सोने से फुर्सत नहीं है। आज से ४८ घंटों का कठीन व्रत शुरू हो जाएगा। आज शाम को खरना की तैयारी है। घर के मुखिया अपने करीबी लोगों को फोन करके शाम को खरना का प्रसाद खाने के लिए न्यौता दे रहे हैं। घर में एक अलग ही लेवल की सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है। इस ऊर्जा को समझने के लिए आपको बहुत नज़दीक से किसी छठ व्रती के घर को देखना होगा। धीरे धीरे शाम हो गया। छठ व्रती अपने हाथों से खीर और रोटी (विशेष प्रकार का) बनाकर पूजा अर्चना करतीं हैं। और घर उपस्थित सभी सुहागन महिलाओं को सिंदूर का लंबा टीका लगाया जाता है। सिंदूर का ये लंबा टीका ही छठ की महत्ता और भारतीय संस्कृति का परिचायक है। घरों में बुजुर्ग लोग लोगों के आने का प्रतिक्षा में हैं और छठ के पारंपरिक गानों का लुत्फ उठा रहे हैं।

      इधर शाम होते ही पूरे गांव,शहर,कस्बा में लोगों का मुवमेंट बढ़ने लगता है। चुंकि एक व्यक्ति को कई परिवारों के यहां जाना होता है , थोड़ी जल्दबाजी रहती है। खरना का प्रसाद खाने का इतना बड़ा चलन है कि लोग बड़े मन एक दूसरे के यहां जाते हैं और प्रसाद का लुत्फ उठाते हैं। चारों तरफ धुप और धुएं की अद्भुत खुशबू आ रही है और वातावरण शुद्ध महसूस हो रहा है।

छठ घाट की तरफ प्रस्थान और शाम का अर्घ्य

    खरना के बाद अगले दिन सुबह गज़ब का उत्साह देखा जा रहा है। आज शाम छठ घाट जाना है , घरों में इसकी तैयारी चल रही है। अलग अलग उम्र के लोगों में भिन्न-भिन्न प्रकार का उत्साह है। युवतियों के सामने एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाता है कि "आज शाम को क्या पहना जाए", इसके लिए भाभी और चाची लोगों का सलाह बहुत काम का होता है और इन भाभी और चाची लोगों को इन युवतियों का मार्डन फैशन का ज्ञान मिल जाता है। इधर दादी के घुटने का दर्द बढ़ गया है , शाम को घाट जाना है , इसकी चिंता भी है । कैसे पार होगा आज, घाट की पथरीली जमीन थका देगी। अब तो छठ मैय्या ही पार लगायेंगी। बच्चों में घाट पर पटाखा फोड़ने उत्साह दिखने लगा है,  बीच-बीच में इसका परिचय दिया जा रहा है। माहौल में थोड़ा धुम - धड़ाका है। अब छठ घाट जाने के लिए दउरा में फलों और अन्य पूजा के सामान को भरने की तैयारी शुरू हो चुकी है। अचानक छठ व्रती को कुछ फल मिसिंग होने का अंदेशा होता है। पतिदेव को बुलाकर गंभीर मुद्रा में समझाया जाता है और बाज़ार से जल्दी फल लाने का फ़रमान जारी किया जाता है। अकबकाए हुए पतिदेव बिना देर किए बाज़ार के लिए निकल जाते हैं और बिजली की रफ्तार में सारा सामान लेकर आ जाते हैं। और आते एक भिक्षुक की भांति दुबारा बाज़ार ना भेजने का आग्रह करते हैं। और जल्दी जल्दी दउरा सजाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया गया। 'दउरा में सामान भरना और सही तरीके से भरना' ये दोनों में बहुत अंतर है , पिछे से गंभीर आवाज में घर के वरिष्ठ दादा जी का स्वर सुनाई दिया। इस कटाक्ष को सुनकर दउरा बाध रहे महानुभाव के चेहरे का भाव देखते ही बन रहा था। हल्की हल्की ठंडी में उनके चेहरे पर पसीने की बूंदें उन महानुभाव के भाव को बताने के लिए काफी था। चेहरे का भाव देखकर दादा जी अपने मन में धीरे धीरे बुद-बुदाते हुए "जैसे करना करो , मुझे क्या"  अपने रास्ते हो लिए। अब दोपहर के एक बज चुके थे। जैसा कि आज के प्लान के तहत दो बजे तक घाट केेेे लिए रवाना हो जाना है। सब फाइनल तैयारी में लगे हैं। कुछ गलियों से बैंड बाजा के स्वर सुनाई देने लगा है।ठीक समय से एक घंटा देर से धीरे धीरे परिवार के लोग बाहर निकलने लगे। माथे पर दउरा लिए पतिदेव शोभायमान हो रहें हैं। इधर युवतियां भी तैयार होकर छठ व्रती के साथ हो लेती है। पूरा माहौल खुशनुमा है और छठ पर्व का मनमोहक दृश्य को मोबाइल में कैद करने की जिम्मेदारी कुछ युवा लोगों पहले ही दे दिया गया था। अब सेल्फी लेने की बारी थी , युवा लोग अपनी जिम्मेदारी को पूरे प्रोफेशनल तरीके से निभा रहे हैं। फोटोग्राफी में थोड़ा विलंब होने लगा, इधर दादा जी हुंकार हुआ सारा फोटो यही लेना है क्या। कुछ घाट के लिए भी बचा के रखो। रास्ते में बहुत भीड़ होगा, जाम की संभावना है। जल्दी करो सब लोग। ये सुनते सब लोग गाड़ी में सवार हो गए। इसी बीच घर की सबसे चुलबुली बच्ची ने आकर दादा जी के साथ सेल्फी लेने का आग्रह किया। दादा सकुचाते हुए, नकली मुस्कान लिए कैमरे में देखने लगे। बच्ची ने कहा 'क्या दादा जी ठीक से खड़े होइए ना, अब मुस्कुराइए , हां....अब ठीक है।' बच्ची के ज़िद के दादा जी बेबस है। दादा जी अपने उम्र के मित्र से कहते हैं बताइए क्या टेक्नोलॉजी आ गया है। छोटे छोटे बच्चे भी माहीर हो गये है। इसी बीच सब गाड़ी में सवार हो गए और घाट की ओर बढ़ चले।

     कुछ दूर जाते ही ऐसा लगा पूरा शहर का मुवमेंट नदी की तरफ़ मुड़ गया है। पूरा रास्ता गाड़ियों से खचाखच भरा हुआ था। गाड़ी के अंदर भी छठ के गाने बज रहे हैं। कुछ चिंता भी जताई जा रही है जाम बहुत लंबी है समय से पहुंच पाएंगे या नहीं। रास्ते में पुलिस वाले अपनी भूमिका पूरे मन से निभा रहे हैं। पुलिस वालों का साथ कुछ वालेंटियर भी दे रहे हैं। गले में वालेंटियर का माला टांगें हुए युवाओं में आक्रामक जोश है । वे किसी भी कीमत पर जाम ना लगे इसके लिए प्रयासरत है। बीच-बीच में गाड़ियों पर डंडे का प्रहार करके ये युवा वालेंटियर अपना जोश और जुनून का परिचय भी दे रहे हैं। कुछ ही समय में नदी का ढलान शुरू हो जाता है और हमारी गाड़ी भी घाट के नजदीक बना पार्किंग में रुक जाता है। सब लोग गाड़ी से बाहर निकल आए हैं और नदी के आसपास के अद्भुत दृश्य को देखकर सभी लोग अभिभूत है। क्या अविस्मरणीय छठा है चारों ओर लोग ही लोग और उनके सिरों पर दउरा अत्यंत सुशोभित हो रहे हैं। धीरे धीरे सभी के कदम घाट की तरफ़ बढ़ चला। इतनी भीड़ में इतना अनुशासन बहुत कम ही देखने को मिलता है। अचानक किनारे कुछ लोग पुरुष और महिलाएं जमीन पर लेट कर छठ घाट की तरफ बढ़ रहें हैं। पथरीली जमीन पर इस तरह लेटकर चलना, अंदर तक हिला कर रख दिया। इसे देखकर यूं कह सकते है कि यही आस्था है जो सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही मिल सकता है।

थोड़ी ही देर में कल कल करती हुई नदी का स्वर कान में गुंजने लगा और दिखाई भी देने लगा। आज नदी भी अपने रौ में बह रही है। दादी मां के घुटने का दर्द छुमंतर हो चुका था। छठ घाट के चारों तरफ़ लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। नदी जल का स्तर में थोड़ी कमी आ गई थी। थोड़ी देर के लिए पहले से बनाई गई बेदी में कन्फ्यूजन हो गया था, जल्दी ही सुलझा लिया गया। छठ व्रती बेदी पर पूजा के सामान रखकर पूरे विधि-विधान से पूजा शुरू कर दिए हैं। युवाओं और युवतियों में सेल्फी और फोटो का गज़ब का क्रेज दिख रहा है। दादी और कुछ बुजुर्ग महिलाएं घाट के पास चटाई बिछाकर आसन ग्रहण कर लीं हैं। दादा जी अगर बगल मुआयना कर रहे हैं। छोटे बच्चे पटाखा फोड़ने की शुरुआत कर चुके हैं, साथ में कुछ अंकल भी साथ दे रहे हैं। पतिदेव पूजा में पूरी सहायता में लगे हैं। कुछ लोग नदी में सूर्य के अस्त होने की प्रतिक्षा में घुटने तक पैंट को मोड़कर नदी में खड़े हैं। पूरे घाट पर माइक से स्वागत किया जा रहा है और तेज़ आवाज़ में खेसारीलाल, पवनसिंह,अक्षरा, शारदा सिन्हा,कलुवा,रितेश पांडे के डीजे वाला छठ के गाने बजाएं जा रहें हैं। पूरा माहौल  छठमय हो गया है। दो-ढाई घंटे में सूर्य की लालिमा नदी में दिखाई देने लगी। छठ व्रती हाथ जोड़कर नदी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी में है। थोड़ी देर में अर्घ्य देने का सिलसिला शुरू हो गया। बारी बारी से सब लोग अर्घ्य देने लगे। सबसे छोटा वाला टिंकू पटाखा फोड़ने में व्यस्त था। उसे बुलाया जाता है और फाइनल अर्घ्य की परंपरा का समापन हो गया और फिर घर-वापसी की तैयारी।
अब थोड़ी जल्दबाजी है, सभी लोग जल्द घर वापस आना चाहते हैं। फिर से वही भीड़ और रास्ता जाम। खैर कुछ घंटों में सब लोग घर वापस आ गये हैं। सबके चेहरे पर थकान आसानी से देखा जा सकता है। अब सुबह जल्दी उठकर स्नान कर फिर घाट चलना है। यही सोचकर छठ व्रती और कुछ लोगों को छोड़कर सारे लोग सोने की तैयारी में चलें गये।

कोसी भरना और सुबह का अर्घ्य

   शाम को वापस आने के बाद कुछ छठ व्रती जिनकी मन्नत पूरी हुई हो या परिवार में कोई बड़ा काम हुआ हो, उन्हें कोसी भरने की परंपरा है। घर के आंगन में या छत पर अथवा पूजा स्थल पर इस परंपरा को निभाया जाता है। सभी सुहागन महिलाएं और भी घर के लोग बैठकर पूजा अर्चना करते हैं। दीपक जलाएं जातें हैं और छठ मैय्या की स्तुति की जाती है। 

     अगले दिन भोर में ही लोग उठकर पुनः नदी घाट पहुंच जाते हैं। भोर में ठंडी हवा चल रही है , लोगों ने सर्दी के कपड़े निकाल लिए है। भोर में नदी का किनारा बहुत मनोरम दिख रहा है। नदी में टिमटीमाते हुए दीयों से अद्भुत दृश्य उत्पन्न हो रहा है। छठ व्रती संध्या की भांति ही दुबारा पूजा अर्चना कर रहे हैं। नदी में खड़े होकर भगवान भास्कर की प्रतिक्षा शुरू हो जाती है। इधर माइक से फ्री में दूध, दातून, आम का लकड़ी, चाय और गर्म खीर खाने की घोषणा की जा रही है। लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। सूर्य की अवतरण की प्रतिक्षा लंबी होती जा रही है। लोग घड़ी में बार बार समय चेक रहें हैं। परंतु भगवान सूर्य का बारी था। आसमान साफ दिखाई दे लगा पर भगवान भास्कर का कुछ अता-पता नहीं दिख रहा है। धीरे धीरे पूर्व दिशा की ओर से  सूर्य की लालिमा नदी में आने लगी और लोगों भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए उत्साह बढ़ गया। बारी बारी से परिवार के सारे लोग अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य के बाद हवन और प्रसाद देने की परंपरा है। सभी छठ व्रती इसका निर्वहन करते हैं। और छठ घाट पर सभी सुहागन महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती है। और प्रसाद का आदान-प्रदान करते हैं। तीन दिनों के इस कठीन तपस्या का यह अंतिम पड़ाव है। प्रसाद वितरण के बाद अब घर वापस आने की तैयारी है और मन में अद्भुत शुकुन की छठ मैय्या इस कठीन व्रत को पार लगा दिया है।

   इस प्रकार से छठ महापर्व की पूजा समापन होता है। उम्मीद है आपको इस लेख के माध्यम से पुरे छठ का माहौल समझने में आनंद आया होगा। मेरे लिए छठ सिर्फ एक त्योहार ही नहीं है एक प्राकृतिक आनंद है जिसे मैं हर साल जीने की कोशिश करता हूं और पूरा लुत्फ उठाता हूं। आप सभी के जीवन में छठ मैय्या खुशियां लाए, इसी कामना के साथ इस संस्करण का समापन करता हूं।

बहुत बहुत धन्यवाद।

आपका,
मेरा नज़रिया



"छठ" की तैयारी : एक स्मृति २०२१

         पूरे साल की दीवाली का इंतजार खत्म हुआ। साफ-सफाई और प्रकाश का ये पर्व पूरे तामझाम और धुम धड़ाकों के साथ सम्पन्न हुआ। मौसम ने भी करवट बदलना शुरू कर दिया। हल्की हल्की ठंडी हवाएं अपने विकराल स्वरूप में आने का संदेश देने लगी है। बाज़ारों में भीड़ थोड़ी छट गई है। दुकानदारों में आनलाइन मार्केटिंग से हुए नफा नुकसान की चर्चाओं का बाजार गर्म है। साथ में राहत भरी सांस भी है, क्योंकि पिछले साल कोरोना महामारी ने पूरा धंधा ही चौपट कर दिया था। बाज़ार में इलेक्ट्रॉनिक दुकानों में बिकने से रह गई लड़ियां भी कुछ कहना चाहती है, कुम्हार के दीए के मन में भी ना बिक पाने टीस है। वो अपने मालिक की मायूसी को अच्छे से समझ सकतीं है। कहीं दूर से शारदा सिन्हा की मधुर आवाज़ कानों में एक सुकुन का अनुभव देेेे रही है। बाज़ार में आगे बढ़ते ही बड़े बड़े बैनर पर हाथ जोड़े हर लेवल के नेताओं की मुस्कुराती तस्वीरें एक साथ सभी त्योहारों की शुभकामनाएं देने को आतुर है। 

     छोटे गांव मुहल्ले के उभरते हुए बड़े नेताओं का का लोड बढ़ गया है। आसपास के लोगों में इस बात का सर्वे किया जा रहा है कि इस साल छठ कहां मनाया जाएगा। कोरोनावायरस की घटती रफ्तार और सर्वे के परिणाम से कि इस साल छठ , छठघाट पर ही मनाया जायेगा, युवाओं में एक खास तरह की उर्जा का संचार कर रहा है। शहरों में फैक्ट्रीयों में काम करने वाले कमासुत लोग जो दीवाली में काम के बोझ और छुट्टी ना मिल पाने से मायूस थे, अब घर जाने की तैयारी में इनके चेहरे खिले हुए। भले ही टिकट कन्फर्म नहीं हुआ, कोई बात नहीं, इस बार जनरल में ही जायेंगे। पर घर जाने का सुकुन है।

गांवों में बुजुर्ग महिलाओं का समूह शिवचर्चा के बहाने इस साल के छठ मनाने पर चर्चा की जा रही है। घरों में सास बहू छठ के बारे डिटेलिंग और विधि विधान के ज्ञान के चर्चा के दौरान एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है। इसी बीच सास को लगता है कि छठ की महत्ता और इसके विधि-विधान को ये नये जमाने के लोग क्या जाने। विस्तार में समझाने के लिए अपनी सासत्व का परिचय देते हुए पूरे परिवार के सामने एक व्यख्यान प्रस्तुत किया जाता है। और परिवार में सबको अपने बुजुर्ग मां और दादी के सामने दंडवत होकर इन विधि-विधान और संस्कार को मानने की शपथ ली जाती है।

         इधर युवाओं में छठ घाट पर बेदी बनाने को लेकर अतिउत्साह है। मुहल्ले में घर घर घूमकर छठ पूजन करने वाले परिवारों की लिस्ट बनाई जा रही। छठ घाट पर जाकर बेदी बनाने की जगह घेरने की जल्दी है। इस बार बहुत भीड़ होगा, इस हिसाब से बड़ा जगह घेरना होगा। कुछ शहरों में रहने वाले कमासुत लोग गांव आ गये है। नया नया फैशन वाला कपड़ा पहनकर गांव के युवाओं में भौकाल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। दिनभर ढेठ भोजपुरी में बतियाने वाला टिंकुआ अब अंग्रेजी में बोलकर लोगों को शहर का बड़ा चौड़ा रोड और साफ सफाई के बारे बता रहा है। और साथ में ये भी बोल रहा है कि गांव के लोग समझते ही नहीं है, इतना भयानक महामारी चल रहा है कोई मास्क पहनता ही नहीं है, बताइए सारा काम सरकार का है? आपको भी तो अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। चार पांच छुटके-छुटकी, भैय्या की बात बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। साथ वाले दोस्त एक दूसरे से कानाफूसी कर रहे हैं 'बहुत बड़का तेज हो गये है , दू साल पहले लोटा लेकर झाड़ा फिरने दूसरा के खेत में जाते थे और आज इहा आकर ज्ञान पेल रहे हैं।' इधर दूर से बाबा का आवाज़ आता है 'अरे यही बतियाते रहोगे की फरसा कुदाल लेकर घाट जाकर बेदी भी बनेगा?' बाबा के हूंकार के बाद सभी युवा घाट की तरफ कूच कर देते हैं। और विधिवत जमीन कब्जा करके बेदी बनाकर शाम को वापस आ गये।

        देखते देखते दीवाली बीते हुए तीन दिन हो गए। मां और दादी लोग छत पे गेहूं सुखा रही है। पूरे घर में साफ सफाई अपने चरम पर है। आज बाज़ार जाना है फल फूल लाने के लिए, भाभी जी अपने ए जी को सुनाते हुए देवर जी को बोल रही है। घर के छोटे-छोटे बच्चे बीच-बीच में दीवाली के बचे हुए पटाखों से माहौल में गरमी पैदा कर रहे हैं। एक विद्वान की भूमिका में कुछ मित्र पटाखों को बचा कर रखने और बाद में छठ घाट पर फोड़ने का सलाह देते हैं। मौसम खुशनुमा है, बाबा नहा धोकर हल्की धूप में सरसों तेल लगाकर अद्भुत आराम की मुद्रा में हैं। कुछ चार-पांच अधेड़ लोग चौकी पर बैठकर महंगाई की चर्चा कर रहे हैं। "बताइए इस साल सरसों तेल २०० रूपये को क्रास कर गया और पेट्रोल-डिजल तो पूछिए मत दोनों के दाम १०० के पार । इस बार तो छठ में फल फूल भी बहुत महंगा होने की संभावना है।" कुछ विशेषज्ञ टाइप के लोगों कहना है पेट्रोलियम पदार्थों की दामों में बढ़ोतरी में पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान का नाम आते ही चर्चा में गर्माहट आ जाती है और देखते ही देखते देश की सारी समस्याओं के पिछे पाकिस्तान का हाथ दिखने लगता है। फिर इसी बीच एक अवतार पुरुष की चर्चा शुरू होती है , हमारे देश के प्रधानमंत्री। "इनकी वजह से देश कहां से कहां चला गया , बताइए? विदेशी सरजमीं पर हमारे प्रधानमंत्री की जय जयकार हो रही है। ऐसा पिछले सत्तर सालों में कभी हुआ है बताइए? देश विकास की पराकाष्ठा पर है । अब क्या चाहिए।" चर्चा का अंत हिंदू मुसलमान पर जाकर खत्म हुआ, हाथा पाई की नौबत आ गई थी। त्यौहारों की दुहाई देकर हाथापाई को रोका गया। अब बाजार जाने की तैयारी है।

      पापा अपनी स्प्लेंडर निकाल लिए है। सेल्फ स्टार्ट करके बेटे को दो बोरी और झोला लेकर आने को बोलते हैं। जैसे तैसे बोरी और झोले का जुगाड़ करके पापा के साथ बाइक पर बच्चा बैठ जाता है। बाज़ार की तरफ जाने वाली उबड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए बच्चा बाजार पहुंच गया।

बाज़ार और छठ महापर्व की पूरी स्मृति अब अगले संस्करण में बताएंगे।


आपका,
मेरा नज़रिया

टीम संतृप्ति: एक मिशन 1 st Day

वाह....अद्भूत , अविश्वसनीय, अकल्पनीय किसी मिशन का पहला दिन और ऐसा जोश और भागीदारी , विश्वास नहीं होता, परन्तु ये बिल्कुल सही है। जी हां मैं बात कर रहा हूं "टीम संतृप्ति: एक मिशन" के बारे में। आज हमारी टीम अपने पहले मिशन पर थी , मकसद था जरूरतमंदो के बीच गर्म कपड़े वितरित करने का । टीम संतृप्ति के सदस्यों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और देखते ही देखते 6 बैग गरम कपड़ों से भर गया। हम सब स्टेशन के आसपास रहने वाले जरूरतमंद लोगों के पास पहुंचे और ख़ास तौर पर बच्चों के बीच गर्म कपड़ों का वितरण किया।
           इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में बच्चों के बीच गर्म कपड़े वितरित करके जो टीम के सदस्यों शुकून मिला शायद वो और किसी काम ना मिलता। हमारी टीम आगे भी ऐसे लोगों के लिए काम करती रहेंगी, क्योंकि हमारी टीम का एक ही उद्देश्य है "करो कुछ ऐसा जिससे आत्मिक ख़ुशी मिले"

टीम संतृप्ति: एक मिशन

पत्तों की जोर आजमाइश

ये जोर से चलती बयार है,
सब उड़ा ले जाने को आतुर,
पर चल रही है,
जोर-आजमाइश इन पत्तों की,
ना हार मानने की हिम्मत,
ना हारेंगे.. ये जज्बात भी,
ना जाने कितने बार,
हवा का ये झोंका,
रोकने की कोशिश करता है,
पर ये इन पत्तों की साख है,
जो टिका रहता है,
और हार मानकर हवा,
रुख मोड़ लेती है,
ये सलाम है,
और उम्मीद भी... की
ग़र हो दिलों में ख्वाइशें,
ना रोक सकता है कोई,
बस झंझावतों से लड़ने की बात है।

© मेरा नज़रिया

‘Einstein Classes’


              आइन्स्टाईन  क्लासेज 

'आइन्स्टाईन' नाम ही क्यों ?

जैसा की नाम से स्पष्ट है ये एक महान वैज्ञानिक का नाम है ,जिसे फिजिक्स के जनक के तौर जाना जाता है। 

इन्होने सापेक्षता के  सिद्धांत का आविष्कार  था।  

 

हमारा उद्देश्य :

१.  हमारे गांव के आस पास के बच्चों को शिक्षा के लिए बड़े शहरों जैसी सुविधाएं मिले।

२.  आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह पढ़ सके। 

३. आधुनिक तकनिकी का प्रयोग करके बच्चॉ के आत्मविश्वास को बढ़ाना। 

४. बच्चों को क्लास ८ से ही उनके कैरियर  के  लिए उचित सलाह देना। 

५. शिक्षा के लिए बच्चों के साथ साथ उनके माता पिता को भी प्रोत्साहित करना। 

६. बच्चों के टैलेंट को देखते हुए उन्हें पढाई के सही क्षेत्र का चुनाव करवाना जैसे : आर्मी , इंजीनियरिंग ,मेडिकल , डिफेन्स , इत्यादि। 

७. बच्चों में स्वस्थ प्रतिष्पर्धा का निर्माण करना।  


मुख्य आकर्षण : 

सप्ताह के सभी छः दिन नियमित  कक्षाएं। 

१०वीं  और १२वीं कक्षा के सभी विषयों के पढ़ाई। 

हर दूसरे रविवार को टेस्ट। 

हर महीने टेस्ट में प्राप्तांक के आधार पर टॉप -३  बच्चों के फ़ीस माफ़। 

एक कक्षा में अधिकतम ३० बच्चों का का बैच साइज़। 

अथिति अध्यापक के द्वारा परामर्श और मोटिवेशनल कक्षा। 

प्रतियोगी परीक्षाएं जैसे रेलवे , सेना , डिप्लोमा , इंजीनियरिंग , मेडिकल ,एसएससी , इत्यादि की निःशुल्क तैयारी 

बच्चो संपूर्ण शारीरिक विकास और सेना  भर्ती से सम्बंधित एक्सपर्ट द्वारा फिजिकल ट्रेनिंग। 


आप सभी से विनम्र निवेदन है आप हमारे साथ जुड़िये और हम आप मिलकर अपने सपने को है। 

किसी ने सच ही कहा है :

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों...


आपका,
मेरा नज़रिया



 

 

 

 

         

ये कैसा हठ है..

रास्ते में कांटे बिछाना ये पुरानी रीति है यारों,
अभी तो नुकिले कीलें बिछाने का दौर है।

नियत ठीक है पर करतूत ग़लत है,
ये कैसा दौर, अपनों से ही लगने लगा है डर,

लोगों को रोकने का इतना प्रबंध,
कुछ तो होगा सरकार से इनका संबंध,

लोग तो  ऐसे ही रुक जाएं शायद,
विचारों को कैसे रोक पाओगे?

ये कैसा हठ है ?


आपका,
मेरा नज़रिया

बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...