मन की बात- यदि मै उपायुक्त होता

यदि मै उपायुक्त होता तो मेरी प्राथमिकता शहरों में रह रहे घरविहीन लोगों को घर दिलाना और उन्हें मुख्य धारा में लाने की पूरी कोशिश करता। शहर और गांव में साफ-सफाई के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता, और इस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वालों को सम्मानित करता। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को संविधान सम्मत उनके सही जगह ज़रूर भिजवाता । और हर आम-ओ-खास लोगों में कानूनी सुरक्षा भाव का एहसास कराता। बुजुर्गो लोगों के लिए एक खुला विचारशाला खुलवाने की कोशिश करता जहां आकर शहर के रिटायर्ड लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करते।सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए इनके विचारों को ज़मीनी स्तर पर लाने की कोशिश करता। शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कोई कमी ना हो इसके लिए कार्य करता, जिससे हमारे बच्चों का भविष्य ख़राब ना हो। शहर की गलियों और बाजारों में किसी भी तरह का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करता। समाज के हर तबके का लोग मुझसे सीधे संपर्क कर सके इसके लिए एक तंत्र विकसित करता जिससे इनकी समस्याओं को दूर किया जा सके। सरकारी विभागों में कार्यरत सभी सदस्य अपने कार्य ईमानदारी से करें और ज्यादा से ज्यादा समय का प्रयोग वो सभी अपने-अपने कार्यों का करने में बिताए, इसके लिए उन्हें प्रेरित करता। और अच्छे परिणाम देने वाले कर्मियों को पब्लिक प्लेटफार्म पर उन्हें सम्मानित करवाता।

आपका,
मेरा नज़रीया

*बढ़ते हुए पेट्रोल और डीज़ल के दाम पर आम आदमी और नेताओं की चुप्पी और सरकार के रवैए पर, 'मेरा नज़रीया'*

*बढ़ते हुए पेट्रोल और डीज़ल के दाम पर आम आदमी और नेताओं की चुप्पी और सरकार के रवैए पर, 'मेरा नज़रीया'*

अत्यंत दु:खद है। पर मैं आपको एक बात दावे के साथ कह सकता हूं , लोकतंत्र में वोट का बहुत महत्व है। जनता को सब समझ आ रहा है। जनता भले ही अभी चुप है , डर से मीडिया बोल नहीं रहा, पर मुझे विश्वास है यही जनता और मीडिया की चुप्पी सरकार की बखिया उधेड़ देगी अगले चुनाव में। और इसकी शुरुआत आप राज्यों के चुनाव में देखेंगे। जनता की चुप्पी सरकार के लिए काल साबित होगी। कितनों को डराओगे और कब तक डराओगे? आज हर आम आदमी व्यथित हैं, ठगा हुआ महसूस कर रहा है,। चुप है , कैसे आवाज उठाये, सहमा हुआ है, इतने बड़े विश्वासघात की उम्मीद उसे ना थी। सरकार से इतना उम्मीद था कि शुरुआती दिनों जो लोग आपस में सरकार के लिए लड़ जाते थे आज वो कैसे शांत हो गया है? उसे समझ नहीं आ रहा है अब वो किस मुंह से सरकार के खिलाफ कुछ बोले। ये सारी बातें हर उस आम आदमी के मन में ज्वाला की तरह धधक रही है । अब यही आम आदमी आने वाले चुनावों में चुपके से बोलेगा और इसकी गूंज दूर तक जायेगी, ऐसा मुझे विश्वास है।



फोटो : गूगल से लिया गया है।

आपका,
मेरा नज़रीया

बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...