MERA NAZRIYA: रक्तदान (Blood Donation)

MERA NAZRIYA: रक्तदान (Blood Donation):  रक्तदान "रक्तदान - महादान" सुना तो हमने सब  होगा  पर क्या हमने कभी इसके फायदे पे गौर किया है। आइये आप सबको "रक्तदान &quo...

रक्तदान (Blood Donation)

 रक्तदान

"रक्तदान - महादान" सुना तो हमने सब  होगा  पर क्या हमने कभी इसके फायदे पे गौर किया है। आइये आप सबको "रक्तदान " के कुछ फायदों से अवगत कराता हूँ : 

1. मनुष्य के शरीर में रक्त बनने
की प्रक्रिया हमेशा
चलती रहती है, और
रक्तदान से कोई भी नुकसान
नहीं होता है।

2. एक बार में 350 मिलीग्राम रक्त
दिया जाता है, उसकी पूर्ति
शरीर में चौबीस घण्टे
के अन्दर हो जाती है, और
गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के
भीतर हो जाती है।

3. जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें
हृदयसम्बन्धी बीमारियां
होने का खतरा कम रहता हैं।

4. हमारे रक्त की संरचना
ऐसी है कि उसमें समाहित रेड
ब्लड सेल तीन माह में स्वयं
ही मर जाते हैं,लिहाज़ा प्रत्येक
स्वस्थ्य व्यक्ति तीन माह में एक
बार रक्तदान कर सकता है।

5. आधा लीटर ख़ून तीन
लोगों की जान बचा सकता है।


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क्षेत्रवाद

      क्षेत्रवाद     

बहुत दिनों से सोच रहा था कि "क्षेत्रवाद" भी कोई मुद्दा है जिस पर कुछ लिखा जाये. काफ़ी रिसर्च के बाद मुझे ये एहसास हुआ की "क्षेत्रवाद" एक बहुत बडा मुद्दा ही नही समस्या भी है . आजादी के बाद राज्यों का गठन वहाँ के भौगोलिक परिद्रिश्य, भाषा, रहन -सहन , वेश-भुषा, खान-पान को ध्यान में रखकर किया गया . और साथ ही साथ संवीधान में ये प्रावधान किया गया कि सभी राज्यों को मिलाकर भारत एक अखन्ड़ राष्ट्र है जो की एक धर्म निर्पेक्ष राष्ट्र है . यहाँ पर धर्म , जाति,खान-पान, पहनावे में ढेर सारी भिन्न्ता होते हुए , संविधान सभी को एक बराबर अधिकार देता है .
          आजादी के 70 सालों बाद भी हमारे समाज में बहुत सारे अलिखित नियम और कानून है , जिसकी इजाजत हमें हमारा संविधान नही देता  लेकिन फ़िर भी हम इसे मानते है . कुछ ज्वलन्त मुद्दे जो आजकल हमारे समाज में हावी है उनमें   से कुछ मै यहाँ शेयर करता हूँ :-
1) राजनीति मे क्षेत्रवाद का हावी होना
2) सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियों मे क्षेत्रवाद का हावी होना
3) नक्सलवाद
4) दक्षिण भारत में राष्ट्रीय भाषा का उचित सम्मान ना होना
5) क्षेत्र के हिसाब से अच्छा या बुरा का पर्सेप्शन बना लेना
       
         आज अक्सर ये सुनने के मिलता है महाराष्ट्र में बिहारियों पे हमले ,देश की राजधानी में पूर्वी भारत के लोगो पर हमले ,दक्षिण भारत में उत्तर भारतीयों का उचित सम्मान ना मिलना ,आसाम में बाहरी लोगों पर हमले और जम्मू और कश्मीर में आये दिन हमले , ये दर्शाता है कि आजादी के इतने सालों बाद भी हम कितने कुंठित विचार धारा रखते है। और इन सब के पीछे हमारी गन्दी राजनीती ही है जो सत्ता में आने के लिए लोगो को भावनाओ के साथ खेला जाता है।  

राजनीति मे क्षेत्रवाद का हावी होना
          आज की राजनीती में क्षेत्रवाद एक प्रमुख मुद्दा हो गया। बिना इसके कुछ राजनीतिक पार्टियां ऐसा मानती है कि उनका कोई अस्तित्व ही नहीं। मैं यहा बताना चाहता हूँ की क्षेत्र के विकास के लिए किये जाने वाले कोई कार्य की मै सराहना करता हूँ ,परन्तु क्षेत्रवाद को मुद्दा बनाकर सत्ता में आने और सत्ता सुख पाने के लोभी लोगो के मै सख्त खिलाफ हूँ।  आज जैसे महाराष्ट्र , आसाम ,बंगाल ,दक्षिण भारत के सभी राज्य ,जम्मू कश्मीर ,उत्तर प्रदेश ,बिहार और लगभग सारे राज्यों में ये मुद्दा चुनाव के दौरान ज़ोर शोर से उठाया जाता है। जिस उद्देश्य को पाने के लिये इन राजनीतिक पार्टियों पर लोगो ने भरोशा दिखाया कही ना कही कुछ दलों ने लोगो को धोखा दिया I आज उसी का असर है कि लोगो का क्षेत्रिय दलों से भरोशा उठ गया है I राजनीतिक दलों को ये समझना होगा की अब समय बदल चुका है  पारम्परिक राजनीति अब नही चलने वालीI अब जो विकास की बात करेगा वो सत्ता में होगा और उसे प्रमाणित करना होगा I इसका प्रमाण पिछले 2-3 सालों में देखने को मिला है I 

सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियों मे क्षेत्रवाद का हावी होना
             सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियो में लोगो को नौकरी तो योग्यता से मिल जाती है परंतु सर्विस के दौरान प्रोन्नती में फ़िर से वही क्षेत्रवाद हावी हो ही जाता हैI अमुक आदमी कहाँ का निवासी है प्रोन्नती से पहले  इस बात की पुरी जानकारी कर ली जाती है, उसके पश्चात ये तय होता है की व्यक्ति को प्रमोशन देना है की नही।  इसका नतीजा ये होता है कि जो व्यक्ति कार्यकुशल है और जो प्रमोशन को डिजर्व करता है उसे ना देकर अपने क्षेत्र वाले व्यक्ति को प्रमोट कर दिया जाता है I और ये सरासर गलत है I मेरा मानना ये है कि कार्य में कोई भी भेदभाव नही होना चाहिये, जो व्यक्ति लायक  है चाहे वो कही का भी हो  ये मायने नही रखता उसे उसकी योग्यता के अनुसार रिवार्ड मिलना चाहिये। मै ये नहीं कहता कि देश में रहने वाले सभी ऐसा करते हैं पर जो भी करते है वो गलत है। 

नक्सलवाद
            नक्सलवाद अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है जो आज़ाद भारत के लिए एक अभिशाप है। इस समस्या के जड़ देखगे  तो आपको 'क्षेत्रवाद' ही नज़र आएगा। घनघोर पिछड़े क्षेत्र में वहां के लोगो को अच्छे सपने दिखाकर उनका ही शोषण किया जाता है। आज कुछ प्रदेशों में ये समस्या बहुत बुरी तरीके से पैर पसार चुकी है जैसे झारखण्ड ,बिहार ,छत्तीसगढ़ ,आसाम ,नागालैंड ,उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से। वहां की सरकारें इस समस्या को ख़तम करने के लिए प्रयासरत तो है पर इच्छा शक्ति की कमी और अपने राजनीतिक फायदे के लिए पुरज़ोर तरीके से काम नहीं हो रहा है।

दक्षिण भारत में राष्ट्रीय भाषा का उचित सम्मान ना होना
          आज़ादी के ७० सालों बाद भी हिंदी को राष्ट्रिय भाषा स्वीकार करने में लोग पहरेज करते है। इसकी बानगी दक्षिण भारत के किसी राज्य जाने से आपको महसूस होगा। मैं ये नहीं कहता कि लोगो को अपनी मातृ भाषा को भूलकर सिर्फ हिंदी में बात करना चाहिए बल्कि मेरा ये मानना है कि यदि कोई व्यक्ति गैर हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी में बात करे तो उसे ऐसा महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि वह किसी और ग्रह का प्राणी है। जो सम्मान हिंदी को पुरे देश में मिलना चाहिए वो नहीं मिला है खास तौर पर दक्षिण भारत में। यहाँ भी आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि "क्षेत्रवाद " ही इसकी जड़ में है।

क्षेत्र के हिसाब से अच्छा या बुरा का पर्सेप्शन बना लेना
             आप अपने आस पास अक्सर लोगों को कहते हुए सुनते होंगे की फलां राज्य के लोग ऐसे होते वैसे होते है। किसी राज्य के अच्छे और बुरे होने का परसेप्शन हम अपने हिसाब से बना लेते है। इसका कोई थम्ब रूल नहीं है की किस आधार पर किसी राज्य को अच्छा बुरा कहा जाये। हर व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर ये तय कर लेता है कौन सा क्षेत्र कैसा है। 

          अंत में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि आप अपने क्षेत्र की प्रशंशा करिये इसमें कोई बुराई नहीं है, पर साथ में आपके दिल में देश पहले आना चाहिए ना कि क्षेत्र। 

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भीड़तंत्र

ना जाने कब ये शब्द मुझे झकझोर कर रख दिया कि मुझे इस भीड़तंत्र पर लिखने को सुझाI बात अभी दो -तीन महीने पहले की है जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ की सरकार बनी  I सरकार बनने बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकर्ताओ को विनम्र रहने की सलाह दी और साथ में जिम्मेदारी का अहसास भी कराया I सरकार बनने के एक हफ्ता के भीतर ही मुख्यमंत्री योगी ने अपने अनोखे अंदाज़ में लोगो को अपने होने का परिचय दे दिया I इसका असर ये हुआ कि प्रदेश में कुछ उत्साही कार्यकर्ता केसरिया और योगी पर अपना पर्सनल अधिकार समझते हुए कई जगह मारपिट और सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया और यहा तक की महिला कर्मियों से भी दुर्वव्य्हार किया I आये दिन केसरिया गमछा लिये कुछ लोग आम आदमी और सरकारी कर्मियों को निशाना बनाने लगे I हद तो तब हो गयी जब जब लोगों के सुरक्षा में लगी पुलिस पर इन उत्पाती लोगों का हमला शुरू हो गया I 
        आये दिन देश-प्रदेश कही ना कही ये खबरे आती रहती है कि भिड़ ने स्वयं निर्यण लेते हुए लोगो को अपना शिकार बना रही है I कुछ दिन पहले की बात है कुछ महिलाओ ने मिलकर शराब के दुकान पर हमला बोल दिया और आग लगा दिया I जब मै ये लेख रहा हुँ ठीक एक हफ्ता पहले झारखंड में बच्चा चोरी (अफ़वाह) के नाम पर 8 लोगों की निर्मम हत्या कर दी जाती है I ये क्या हो रहा देश में ?
लोकतंत्र में कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार किसी को नही है I फ़िर भी समाज में ये मानसिकता क्यो पनप रही है ? क्या लोगों के मन में कानून के प्रति कोई सम्मान नही है या लोगों का भरोशा उठ रहा है कानून और संवीधान से ? ये वो कठिन सवाल है जो देश का एक आम नागरिक सत्ता में बैठे हुए अपने नेताओं से करना चाहता है I देश और प्रदेश की सरकारों को आपसी सामंजस्य से कानून व्यवस्था को बना के रखना होगा I सरकारें अब ये कह कर नही बच सकती की ये मामले राज्य और केन्द्र की है I जनता में कानून का डर होना ही चाहिये , नही तो देश में अराजकता का माहौल बनने में देर नही लगेगा I

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कैरियर काउन्सलिंग

             कैरियर काउन्सलिंग

      हमारे देश के परिवारों में शिक्षा को लेकर काफ़ी असमंजस की स्थिति रहती है  I आजकल बच्चे जैसे थोडे बडे होते है उनके माता-पिता अपने अनुभव के आधार  उन्हे कैरियर चुनने की सलाह देते है I क्या आपने कभी गौर किया है कि अपने बच्चों को कैरियर चुनने में कितना सहयोग करते है और कैसे करते है ? हम भारतीय पैदाइशी अपने आपको एक्स्पर्ट मानते है I मुद्दा चाहे कोई भी हो आपको राह चलते एक्स्पर्ट लोगो की राय बिल्कुल फ्री में मिलती रहती है I शिक्षा के मामले में भी हम इन्ही तथाकथीत एक्स्पर्ट पर निर्भर रहते है I बिना सोचे समझे हम अपने बच्चों को अँधेरे में धकेल देते जब तक आपको इसकी जानकारी तब तक बहुत लेट हो चुका होता है I
         आपको आये दिन समाचार पत्रों , टीवी न्यूज में ये सुनने को मिलता है परीक्षा में फ़ेल होने से डिप्रेशन में कई छात्रों ने सुसाईड कर लिया I आजकल जिस तरह से स्कूल से बच्चों में जो प्रेशर क्रियेट किया जा रहा वो कही से जस्टिफ़ाईड नही है I बच्चो के माता -पिता ये समझ नही पा रहे है आखिर वो बच्चों से क्या कराना चाहते है I
      ये कठिन विषय को मै चुन तो लिया  लेकिन इसके बारे सोच कर मै अंदर से हिल जा रहा हुँ I कभी कभी मै सोचता हुँ  आजकल लोगों में इतनी हड़बडी क्यो है , क्यो इतना लोग सबकुछ जल्दी पा लेने की ज़िद में है , आखिर कहाँ जाना चाहते है लोग ? आजकल बच्चे के जन्म लेने पहले ही उसके कैरियर की चिंता में लोग लग जाते है I ऐसा भी क्या हड़बडी है भाई ? इसके जड़ में जब मै सोचता हुँ तो हमे ऐसा महसूस होता है कि माता-पिता बच्चो की  शिक्षा को लेकर बहुत ज्यादा अलर्ट है और असुरक्षित महसूस करते है I और इसके चक्कर में वो अपने बच्चों के उज्वल भविश्य को लेकर ज्यादा आशंकित रहते और उन्हे कोई भी सलाह देता अपने विवेकनुसार मान लेते है I
          इन्ही सब मुद्दों को ध्यान में रखते हुए आजकल "कैरियर काउन्सलिंग" एक नया कैरियर के रुप अपना पैर भारत में पसार रहा है I इस फिल्ड में एक्स्पर्ट वैज्ञानीक तरिके से विश्लेशण करके बच्चों को उसकी च्वाइस के अनुसार कैरियर बनाने की सलाह देता है I
         भारत में इसका प्रचलन अभी ज्यादा नही है I अभी भी हम बच्चों का कैरियर चुनने के लिये निम्न्लिखित पर निर्भर रहते है :
1) माता-पिता का अपना ज्ञान और अनुभव 2) स्कूल टीचर्स का फीड बैक के आधार पर
3) अपने आस -पास के सक्सेस स्टोरी सूनकर
4) अपने पड़ोशियों और रिश्तेदारों से चर्चा के आधार पर
5) थोडा बहुत बच्चों के इच्छा के आधार पर
             आज के इस आधुनिक युग में यदि हम इन्ही पारम्परिक तरिको पर निर्भर रहेगे तो ये बच्चों के हित में नही होगा I हम ऐसे बहुत सारे वैज्ञानीक तरिके उपलब्ध है जिनसे हम ये जान सकते है कि आपके बच्चे का IQ लेवल क्या है और उसे किस फिल्ड में रुचि है I हमे इन तरिकों का इस्तेमाल करना चाहिये और बच्चों को उनके रुचि के हिसाब से आगे बढने के लिये प्रेरीत करना चाहिये I

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सरकारी कर्मियों में दहशत का माहौल कितना सही ?

सरकारी कर्मियों में दहशत का माहौल कितना सही ?

                     आजकल आये दिन न्यूज़ पेपर पे पढ़ने को मिल रहा कि जबसे उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आयी है सरकारी कर्मचारियों में जबरदस्त दहशत का माहौल है। योगी जी का प्रशासन को चुस्त दुरुस्त करने के लिए कठोर शब्दों का चयन ठीक है परन्तु उनकी कठोरता का आड़ लेकर बहुत सारे असामाजिक तत्व सरकारी कर्मियों को निशाना बना रहे है। और ये बिलकुल ठीक नहीं है। आये दिन पुलिस वालों पर हमला , बिजली विभाग के कर्मचारियों पर हमला ,सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों पर हमला क्या ये ठीक है ? आज कर्मचारियों में  जबरदस्त असुरक्षा का माहौल है।
                    सरकार को ये सोचना होगा कि सरकारी कर्मचारियों का मनोबल बढ़ा रहे उन्हें अहसास दिलाये की सरकार उन सभी ईमानदार कर्मियों के साथ है जो अपने काम को पूरी तन्मयता के साथ करते है ।  कोई भी लोकल नेता भाजपा का नाम लेकर किसी भी सरकारी कर्मचारी के साथ दुर्व्यहार करता है तो उसके ख़िलाफ़ प्रशासन को सख्त कदम उठाना चाहिए। सरकार के इस भरोसे से कर्मचारियों के मन सरकार के प्रति एक सम्मान होगा और वो शत प्रतिशत अपना काम में मन लगा पाएंगे।
                सरकार को ये समझना होगा की सभी सरकारी  कर्मचारी चोर नहीं होते , हाँ मैं मानता हूँ कि बहुत से कर्मचारी अपने काम को ठीक से नहीं करते। उनको पहचान कर कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए। और हाँ कार्यवाही का अधिकार सिर्फ सरक़ार का है ना की आम जनता का। कोई भी आम जनता को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है और यदि कोई ऐसा करता है तो इन पर कठोर क़ानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।
                किसी भी सरकारी विभाग में यदि कोई कार्य ठीक से नहीं  से नहीं हो रहा , इसके कारण का उचित विश्लेशण किया जाये तो आप निम्नलिखित कारण पाएंगे :
  1. क़ानूनी अड़चने 
  2. सम्बंधित विभाग के अपने नियम 
  3. उपयुक्त संशाधनों व उपकरणों की कमी 
  4. कर्मचारियों का अभाव 
  5. राजनितिक बाधाये   
  6. कार्य का बोझ 
  7. राजनितिक अश्थिरता 
  8. भ्र्ष्टाचार 
  9. सत्ताधारी दल का ज्यादा प्रभाव 
  10. आम लोगों में सब कुछ जल्दी कराने की चाह               
             जब तक उपर्युक्त बाधाओं पर सख्ती से काम नहीं होगा तब तक सरकारी कर्मियों को डरा-धमका कर काम नहीं कराया जा सकता है।
              आज उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारी खास तौर पर वें जिनकी पब्लिक डीलिंग है (जैसे पुलिस ,डॉक्टर ,बिजली विभाग ,सिचाई विभाग ,समाज कल्याण ) वो भयानक प्रेशर में है। कोई भी लोकल नेता जिनकी सत्ता है ,आकर सरेआम धमकी देकर चला जाता है और ना केवल धमकी , मारपीट कर चला जाता है। और प्रशासन इन गुंडों पर कोई कार्यवाही नहीं करती यहाँ तक सत्ताधारी नेताओं के दबाव में FIR  तक नहीं लिखी जा रही है। जिस प्रदेश में सरकारी आदमी की नहीं सुनी जा रही है वहाँ कर्मचारी किस मनोबल स्तिथि में काम करेंगे ? सारे कानून यदि सरकारी कर्मचारियों पर ही लागू होंगे और आम नागरिक का  जो मन में आएगा वो करेंगे और उन पर कोई कार्यवाही भी नहीं होगी तो कर्मचारी कैसे काम करेंगे।
             यहाँ मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि यदि सरकारी कर्मचारी सही मायने में अपना काम ईमानदारी से करने लगे तो लोगों की शामत आ जाएगी। कुछ उदाहरण मैं आपको बताता हूँ :

  1. टेस्ट दिए बिना ड्राइविंग लाइसेंस ना देना 
  2. सड़क के सारे नियमों को कठोरता से लागु कर देना 
  3. बिजली चोरी पर सख्ती (बिजली काट देना )
  4. सरकारी अस्पतालों में बिना किसी फैसिलिटी के सारे टेस्ट करवाना 
  5. थाने में हर घटना का FIR लॉज कर देना 
मै ये नहीं कहता की सरकारी कर्मचारी अपना काम ईमानदारी से ना करें बल्कि मेरा ये कहना है की बिना सपोर्ट सिस्टम के कोई भी कर्मचारी कैसे अपना काम ठीक से करेगा। कुछ उदाहरण मै आपको बताता हूँ की सरकार और आम नागरिक का सरकारी कर्मचारियों से क्या उम्मीद करते है :
  1. बिना बिजली उत्पादन के सबको बिजली फ्री में मिले 
  2. दो - चार पुलिस वाले लाखो लोगो को सड़क के नियम का पालन कराये 
  3. बिना किसी उपकरण और दवाइयों  के डॉक्टर सारे मरीजों को ठीक कर दे 
  4. थानेदार के एरिया में कोई घटना ना हो  और हो भी तो सत्ताधारी लोगों के खिलाफ FIR भी न हो 
  5. बिना कोई टेस्ट दिए सबको लाइसेंस मिल जाये 
अंत में मै योगी सरकार से ये कहना चाहता हूँ कि बड़ी उम्मीद से जनता ने आपको मुख्यमंत्री बनाया है। ये उम्मीदों का पहाड़ है, बहुत तेज़ चलेंगे तो गिर जायेगे। अपने उन्मादी कार्यकर्त्ताओ को सपा वाले गुंडे बनने से बचाइए तथा अपने और अपने सरकारी तंत्र को भरोषा दिलाइये की आप अच्छा करो सरकार आप के साथ है। तब जाकर कही आप मोदी जी और आम लोगों के सपनों को साकार करने में कामयाब होंगे। समस्याओं की जड़ में सिर्फ सरकारी कर्मचारी ही दोषी नहीं  है बल्कि नेताओं  का भी बहुत बड़ा हाथ है। सुधरना सबको पड़ेगा ,जिम्मेदारी सबकी है और हाँ अब बारी आपकी है। जिस दिन आपकी सरकार ने अपने टीम पर पूरा भरोषा दिखा दिया और ये एहसास करा दिया कि अच्छे काम करने वाले उनके विज़न का हिस्सा बनगे , प्रदेश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। 




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बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...