क्षेत्रवाद

      क्षेत्रवाद     

बहुत दिनों से सोच रहा था कि "क्षेत्रवाद" भी कोई मुद्दा है जिस पर कुछ लिखा जाये. काफ़ी रिसर्च के बाद मुझे ये एहसास हुआ की "क्षेत्रवाद" एक बहुत बडा मुद्दा ही नही समस्या भी है . आजादी के बाद राज्यों का गठन वहाँ के भौगोलिक परिद्रिश्य, भाषा, रहन -सहन , वेश-भुषा, खान-पान को ध्यान में रखकर किया गया . और साथ ही साथ संवीधान में ये प्रावधान किया गया कि सभी राज्यों को मिलाकर भारत एक अखन्ड़ राष्ट्र है जो की एक धर्म निर्पेक्ष राष्ट्र है . यहाँ पर धर्म , जाति,खान-पान, पहनावे में ढेर सारी भिन्न्ता होते हुए , संविधान सभी को एक बराबर अधिकार देता है .
          आजादी के 70 सालों बाद भी हमारे समाज में बहुत सारे अलिखित नियम और कानून है , जिसकी इजाजत हमें हमारा संविधान नही देता  लेकिन फ़िर भी हम इसे मानते है . कुछ ज्वलन्त मुद्दे जो आजकल हमारे समाज में हावी है उनमें   से कुछ मै यहाँ शेयर करता हूँ :-
1) राजनीति मे क्षेत्रवाद का हावी होना
2) सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियों मे क्षेत्रवाद का हावी होना
3) नक्सलवाद
4) दक्षिण भारत में राष्ट्रीय भाषा का उचित सम्मान ना होना
5) क्षेत्र के हिसाब से अच्छा या बुरा का पर्सेप्शन बना लेना
       
         आज अक्सर ये सुनने के मिलता है महाराष्ट्र में बिहारियों पे हमले ,देश की राजधानी में पूर्वी भारत के लोगो पर हमले ,दक्षिण भारत में उत्तर भारतीयों का उचित सम्मान ना मिलना ,आसाम में बाहरी लोगों पर हमले और जम्मू और कश्मीर में आये दिन हमले , ये दर्शाता है कि आजादी के इतने सालों बाद भी हम कितने कुंठित विचार धारा रखते है। और इन सब के पीछे हमारी गन्दी राजनीती ही है जो सत्ता में आने के लिए लोगो को भावनाओ के साथ खेला जाता है।  

राजनीति मे क्षेत्रवाद का हावी होना
          आज की राजनीती में क्षेत्रवाद एक प्रमुख मुद्दा हो गया। बिना इसके कुछ राजनीतिक पार्टियां ऐसा मानती है कि उनका कोई अस्तित्व ही नहीं। मैं यहा बताना चाहता हूँ की क्षेत्र के विकास के लिए किये जाने वाले कोई कार्य की मै सराहना करता हूँ ,परन्तु क्षेत्रवाद को मुद्दा बनाकर सत्ता में आने और सत्ता सुख पाने के लोभी लोगो के मै सख्त खिलाफ हूँ।  आज जैसे महाराष्ट्र , आसाम ,बंगाल ,दक्षिण भारत के सभी राज्य ,जम्मू कश्मीर ,उत्तर प्रदेश ,बिहार और लगभग सारे राज्यों में ये मुद्दा चुनाव के दौरान ज़ोर शोर से उठाया जाता है। जिस उद्देश्य को पाने के लिये इन राजनीतिक पार्टियों पर लोगो ने भरोशा दिखाया कही ना कही कुछ दलों ने लोगो को धोखा दिया I आज उसी का असर है कि लोगो का क्षेत्रिय दलों से भरोशा उठ गया है I राजनीतिक दलों को ये समझना होगा की अब समय बदल चुका है  पारम्परिक राजनीति अब नही चलने वालीI अब जो विकास की बात करेगा वो सत्ता में होगा और उसे प्रमाणित करना होगा I इसका प्रमाण पिछले 2-3 सालों में देखने को मिला है I 

सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियों मे क्षेत्रवाद का हावी होना
             सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियो में लोगो को नौकरी तो योग्यता से मिल जाती है परंतु सर्विस के दौरान प्रोन्नती में फ़िर से वही क्षेत्रवाद हावी हो ही जाता हैI अमुक आदमी कहाँ का निवासी है प्रोन्नती से पहले  इस बात की पुरी जानकारी कर ली जाती है, उसके पश्चात ये तय होता है की व्यक्ति को प्रमोशन देना है की नही।  इसका नतीजा ये होता है कि जो व्यक्ति कार्यकुशल है और जो प्रमोशन को डिजर्व करता है उसे ना देकर अपने क्षेत्र वाले व्यक्ति को प्रमोट कर दिया जाता है I और ये सरासर गलत है I मेरा मानना ये है कि कार्य में कोई भी भेदभाव नही होना चाहिये, जो व्यक्ति लायक  है चाहे वो कही का भी हो  ये मायने नही रखता उसे उसकी योग्यता के अनुसार रिवार्ड मिलना चाहिये। मै ये नहीं कहता कि देश में रहने वाले सभी ऐसा करते हैं पर जो भी करते है वो गलत है। 

नक्सलवाद
            नक्सलवाद अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है जो आज़ाद भारत के लिए एक अभिशाप है। इस समस्या के जड़ देखगे  तो आपको 'क्षेत्रवाद' ही नज़र आएगा। घनघोर पिछड़े क्षेत्र में वहां के लोगो को अच्छे सपने दिखाकर उनका ही शोषण किया जाता है। आज कुछ प्रदेशों में ये समस्या बहुत बुरी तरीके से पैर पसार चुकी है जैसे झारखण्ड ,बिहार ,छत्तीसगढ़ ,आसाम ,नागालैंड ,उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से। वहां की सरकारें इस समस्या को ख़तम करने के लिए प्रयासरत तो है पर इच्छा शक्ति की कमी और अपने राजनीतिक फायदे के लिए पुरज़ोर तरीके से काम नहीं हो रहा है।

दक्षिण भारत में राष्ट्रीय भाषा का उचित सम्मान ना होना
          आज़ादी के ७० सालों बाद भी हिंदी को राष्ट्रिय भाषा स्वीकार करने में लोग पहरेज करते है। इसकी बानगी दक्षिण भारत के किसी राज्य जाने से आपको महसूस होगा। मैं ये नहीं कहता कि लोगो को अपनी मातृ भाषा को भूलकर सिर्फ हिंदी में बात करना चाहिए बल्कि मेरा ये मानना है कि यदि कोई व्यक्ति गैर हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी में बात करे तो उसे ऐसा महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि वह किसी और ग्रह का प्राणी है। जो सम्मान हिंदी को पुरे देश में मिलना चाहिए वो नहीं मिला है खास तौर पर दक्षिण भारत में। यहाँ भी आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि "क्षेत्रवाद " ही इसकी जड़ में है।

क्षेत्र के हिसाब से अच्छा या बुरा का पर्सेप्शन बना लेना
             आप अपने आस पास अक्सर लोगों को कहते हुए सुनते होंगे की फलां राज्य के लोग ऐसे होते वैसे होते है। किसी राज्य के अच्छे और बुरे होने का परसेप्शन हम अपने हिसाब से बना लेते है। इसका कोई थम्ब रूल नहीं है की किस आधार पर किसी राज्य को अच्छा बुरा कहा जाये। हर व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर ये तय कर लेता है कौन सा क्षेत्र कैसा है। 

          अंत में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि आप अपने क्षेत्र की प्रशंशा करिये इसमें कोई बुराई नहीं है, पर साथ में आपके दिल में देश पहले आना चाहिए ना कि क्षेत्र। 

आपका ,
meranazriya.blog.spot.com 

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