अभी कल की तो बात है

अभी कल की ही तो बात है,
कितना ख़ुश थे हम,
जब पहली बार डरे सहमे,
प्लांट में आये थे,
अनजान जगह , अनजान लोग,
कैसे करेंगे काम,
मन में थे कई सवाल,
थोड़ा झिझकते, थोड़ा डरते,
लोगों से मिलते गए,
जो भी मिलता गया काम,
मन लगाकर सिखते गये,
काम करते गये,
बस कुछ दिन में ही ,
सबके चहेते बन गये,
प्लांट में कुछ पुराने लोग ,
करना है कैसे काम,
अंदर की बात बताने लगे,
लगा ये तो कुछ नया है,
शुरू में नहीं बताया था,
धीरे-धीरे सबकी सुनता गया,
और हां जहां जरूरत थी,
सुनाता भी गया,
समय बीतता गया,
कब कैसे इतना अनुभवी हो गया,
पता ही नहीं चला,
कुछ दिनों बाद फिर से,
नये चेहरे आने लगे,
उनमें अपना अक्स देखने लगा,
मैं भी उन्हें समझाने लगा,
क्या ठीक है ,क्या नहीं
बताने लगा,
धीरे-धीरे समय बीतता गया,
और मैं समय के साथ,
और जवान होता गया,
पर पहले जैसा अब,
ऊर्जा ना रहा,
मेरी कोशिश कम ना थी,
ज़माने के साथ चलने की,
पर कमबख्त ये शरीर,
धोखा देने लगा,
और आज तो हद ही हो गया,
वो लेटर भी गया,
जिसकी तलाश तो सब करते हैं,
पर चाहता कोई नहीं,
अब प्लांट से,
जाने का समय है,
खुश हूं बहुत मैं,
मुझे ये अवसर मिला क्योंकि,
देखा है मैंने बीच मझधार,
नैया डुबते हुए,
आज तो मेरे पास सब कुछ है,
ये इसी टाटा की बदौलत तो है,
बहुत सम्मान है मन में टाटा के लिए,
ये टाटा ना होता शायद,
मेरे पास कुछ भी ना होता,
नासमझी में मैंने भी,बोला होगा बहुत कुछ,
पर आज ऐसा लगता है,
इससे बढीया जगह दुनिया में ना होगी,
ग़र मिलेगा मौका फिर एक बार,
कर देंगे जीवन न्यौछार,
आप सभी को मेरा नमस्कार,
और प्रणाम ,
और इस उम्मीद के साथ की,
बना रहेगा आप सबका प्यार,

आपका,
मेरा नज़रिया

कभी याद करके देखिए उन्हें

कभी याद करके देखिए उन्हें,
फिर वही एहसास होगा,
अरसा बीत गया पर,
खयाल वही होगा,
यकीन ना हो तो,
आजमाकर देखिए,
थोड़ा रुक कर ,
ठहर कर को खो जाइए,
सपनों में एक बार बह जाइए,

आपका,
मेरा नज़रिया

संतृप्ति : एक मिशन

                      संतृप्ति : एक मिशन
                    Santripti : A Mission

      संतृप्ति शब्द संस्कृत से लिया गया है । इसका मतलब होता है 'पुर्णत: तृप्त होने का भाव'। संतृप्ति: एक मिशन जैसा की नाम से ही प्रतित हो रहा है, हम वही काम करेंगे जिससे हमारी अंतरात्मा को संतुष्टि मिलती है। समाज सेवा का कोई भी काम चाहे वो किसी रूप में हो हम एक मिशन के रूप में करेंगे और ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए हम सब प्रेरणास्रोत बनें ऐसा हमारा प्रयास होगा।

          एक छोटी टीम के साथ मिलकर आइए हम सब इस नेक काम में जुड़ते हैं और लोगों को अपने कार्य और कर्मठता से जितने का प्रयास करते हैं।

अभी वाट्सप ग्रुप के माध्यम से जुड़कर हम सब समाज सेवा के इस नेक कार्य में जुड़ेंगे। भविष्य में हम सब इसे और आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहेंगे।

वाट्सप ग्रुप सम्बंधी नियम:
1. ये ग्रुप official नहीं होगा, इसमें कोई सदस्य जो समाज सेवा का भाव रखता हो जुड़ सकता है।
2. हमारा उद्देश्य सिर्फ समाज सेवा है।
3. टीम में किसी को जोड़ने से पहले उनका सहमति लेना अनिवार्य है।
4. ग्रुप में किसी भी तरह की सांप्रदायिक बातें और राजनीतिक बातें नहीं होगी।
5. कोई भी कापी - पेस्ट (copy-paste) पूर्णत: वर्जित होगा।
6. समाज सेवा से संबंधित कोई भी सुझावों का हमेशा स्वागत होगा।
7. इस ग्रुप से संबंधित कोई भी कार्य करने से पहले टीम में चर्चा करनी होगी।

Mission :
"समाज में व्याप्त उपेक्षित और वंचितों के लिए आशा की किरण बनने का प्रयास करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।"
Our main objective is to try to become a ray of hope for neglected and deprived people in the society.

Vision:
" एक समाजसेवी टीम के तौर पर अगले दो साल में हम समाज में अपनी छाप छोड़े , और लोग हमें टीम संतृप्ति से पहचाने।"
"As a social worker team, we leave our mark in the society in the next two years, and people recognize us by team Santripti."

हमारा कार्य क्षेत्र:
1. Tata motors रिटायर्ड कर्मी जिसका कोई सहारा ना हो उन्हें सहारा देना।
2. एकाकी जीवन जी रहे बुजुर्गों की सेवा करना।
3. दिव्यांग और बेसहारा बच्चों की पहचान और उनकी मदद करना।
4. शिक्षा के क्षेत्र में जूनियर क्लास तक बच्चों को कापी,किताब और पेंसिल बाक्स इत्यादि का सपोर्ट करना।
5. अनाथालय, लेप्रोसी होम, वृद्धाश्रम में समय -समय पर जाना और उनके चेहरों पर मुस्कान लाना।
6. समाज में लोगों के लिए एक माध्यम बनना , जो समाज के वंचित लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं।
7. नशे के शिकार बच्चों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना।
8. अपने सहकर्मियों हर छोटी-बड़ी खुशी को सेलिब्रेट करना।
9. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए जरूरतमंद बच्चों की हर संभव मदद करना।
10. शिक्षा में पढाई के नाम पर छोटे बच्चों के मानसिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाना।

बदलाव..

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