लोकप्रीयता Vs विश्वश्नियता (Popularity Vs Credibility)

लोकप्रीयता Vs विश्वश्नियता

       
          "जो लोकप्रिय है क्या वो विश्वश्निय है" , ये सवाल मेरे मन में  बहुत दिनों  से है. इस सवाल का जवाब मैने अपने आस -पास के परिद्रिश्य और अपने अनुभव के आधार पर ढूढने की कोशिश कर रहा हू . मेरे हिसाब से इसका जवाब है "कोई ज़रूरी नहीं "ये कोई जरुरी नही है जो लोकप्रिय हो वो विश्वश्निय हो .हो सकता है की मेरा अनुभव इस सवाल का जवाब ढूढने के लिये कम हो लेकिन मेरे अभी तक अनुभव के आधार पर ये जवाब है .
           कोई भी व्यक्ति अपने बोल -चाल के ढंग, व्यक्तित्व ,और कर्मों के आधार पर लोकप्रिय हो सकता है लेकिन इसका कत्तई ये मतलब नही है की वो जो भी कार्य करे वो उसमे सेवा भाव, जनहित की भावना और नी:स्वार्थ भाव भी शामिल हो.अक्सर ये देखने को मिलता है कि लोग अपनी लोकप्रियता का फ़ायदा उठाकर अपना स्वार्थ साधने मे लगे रहते है .
          लोकप्रिय होना भी एक कला है,और इसकी महारथ कुछ खास लोगों में ही होती है। वो समय ,जगह,लोग ,परिस्थिति को भांपकर उसके हिसाब से अपने आपको प्रस्तुत करते है और लोगो के दिलों में एक खास जगह बना लेते . और इस लोकप्रियता का उपयोग अपनी सुविधा के अनुसार अपना हित साधने में करते हैं। आजकल हर क्षेत्र में कोई ना कोई लोकप्रिय है जैसे राजनीती,फ़िल्म जगत ,कला ,मीडिया के ना जाने कितने। पर क्या वो सारे विश्वश्निय है ?
         विश्वश्नियता हासिल करने के लिए आपको निःस्वार्थ होना होगा। और ये दुनियां का सबसे कठिन काम है। लोग आपके ऊपर भरोशा करे ये पाने के लिए आपको सबसे पहले आदर्श जीवन जीना होगा। आपको अपने कार्यो में ,विचार में ,व्यक्तित्व में ,बोल-चाल में पारदर्शिता लानी होगी तब जाकर आप कही विश्वशनीय हो पायेगे।

एक छोटे समूह में लोकप्रिय होना और सार्वभौमिक विश्वशनीय होने में जमीन आसमान का अंतर है। हमें लोकप्रियता के बजाये विश्वश्नियता हासिल करने पर ज़ोर देना चाहिए। 

यदि आपने विश्वश्नियता हासिल कर ली , तो लोकप्रियता झक मारकर आपके के पीछे पीछे होगी। 





आपका,
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बस यूं ही...


                     नया कॉरोपोरेट कल्चर 

चापलूसी करने और करवाने का नया कॉरोपोरेट कल्चर 
ऑफिसियल वॉट्सअप पेज पर तारीफ़ -तारीफ़ खेलो 




   
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हार नही मानुंगा , रार नही ठानुंगा

हार नही मानुंगा , रार नही ठानुंगा


हार नहीं मानूंगा
रार नई ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.......
-अटल बिहारी वाजपेयी

भारतीय राजनीति के युगपुरुष भारत रत्न श्री अटल
बिहारी वाजपेई जी के जन्म दिवस पर हार्दिक
शुभकामनाये. ईश्वर उनको स्वस्थ रखे यही कामना
करता हू. आज उनके जन्मदिन पर एक बात कहना
चाहता हू की यदि आज वो सक्रिय राजनीति मे
होते तो प्रधानमंत्री मोदी जी की तारीफ़ जरुर
करते . जैसे मोदी जी ने भाजपा को एक नई उचाई पर
पहुचाया है अटल जी को उनपर गर्व होता .
हम लोग खुशनसीब है जो अटल जी के कार्यकाल को
करीब से देखा है , और अटल जी को पूरे रौ मे देखा है
जो आजकल की राजनीति मे कम ही देखने को
मिलती है . हमे गर्व है ऐसे राजनेता की जो सदियो
मे एक बार पैदा होते है . सदियो तक उन्हे याद
किया जायेगा.
जिस जमाने मे काँग्रेस का कोई विरोध नही था उस
जमाने मे अपनी सोच और विचारधारा से भारतीय
राजनीति को एक नई दिशा दिये. आज हम उन्हे
याद करते है और उनके दीर्घायु होने की कामना करते
है .

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"पर्सेप्शन (छवि)" बनाने की राजनीति

"पर्सेप्शन (छवि)" बनाने की राजनीति


       आजकल गजब का एक दौर चला हुआ सोशल मिडिया पर 'पर्सेप्शन' बनाने का. ये केवल भारतीय राजनीति मे ही नही बल्कि कोर्परेट जगत मे भी यही हाल है . आप यदि किसी को लाइक नही करते हो तो उसके खिलाफ़ घटिया मार्केटिंग करे, नकारात्मक बाते करे, किसी नये आदमी से और ज्यादा नकरात्मक बाते करे जिससे की उसका नज़रीया उस व्यक्ति के खिलाफ़ शुरू से ही शुरू हो जाये. ये कुछ हद तक कारगर होता है ,लेकिन लंबी अवधी के लिये ये ज्यादा कारगर नही है .
       मोदी का सत्ता मे आना उनकी अपनी मेहनत, गुजरात मे किये गये उनके विकास के कार्य,उनका व्यक्तित्व और सोशल मिडिया पर जबर्दस्त "पाजिटिव पर्सेप्शन" की उपस्थिति ने लोगो के बीच एक ऐसा माहौल बनाया कि यही वो शक्स है जो देश को बदलने का माद्दा रखता है. "पर्सेप्शन" का असर इस कदर हावी हुआ कि सुदुर गाव मे रहने वाला एक छोटा बच्चा भी "अबकी बार मोदी सरकार" का नारा लगाते हुए खेलता था.आज वो देश के प्रधामन्त्री है और अपनी छवि के मुताबिक आज वो विकास के कार्य मे लगे हुए है . ये सकरात्म्क 'पर्सेप्शन' का नतीजा है .
          नकारात्म्क पर्सेप्शन का असर ये होता है कि आज काँग्रेस के एक युवा नेता को 'पप्पू', दिल्ही मे 'खुजली' जैसे नामो की खूब चर्चा होती है . 
          काफ़ी हद तक पर्सेप्शन आदमी के अपने कार्यो से बनती है जो अमिट होता है . कुछ हद तक उसे बार-बार बोलकर मेनिपुलेट किया जा सकता है लेकिन वो क्षणिक होता है. 
           'पर्सेप्शन' बनाना कुछ हद तक सही भी है कुछ हद तक गलत.यदि पर्सेप्शन द्वेष की भावना से बनाया जाये तो वो गलत है और यदि देशहित या समाज हित मे हो तो वो सही.
            जो व्यक्ति पोपुलर होता है वो अच्छा और सच्चा होता है ये 'पर्सेप्शन' बनाया जाता है . ये जरुरी नही की जो पोपुलर हो वो सच्चा और अच्छा भी हो , ये उस व्यक्ति की कार्यशैली ऐसी है की वो हर स्थिति मे दूसरो को संतुष्ट कर पाता है.
            एक उदाहरण याद आ रहा है,एक क्लास मे कोई बच्चा पढने मे बहुत तेज़ होता है ,और कोई बच्चा बोलने मे .परीक्षा मे टोप, पढने वाला बच्चा करता है जबकि स्कूल के फंक्शन मे बेस्ट पर्फोर्मर का अवार्ड बोलने वाले बच्चे को मिलता है . बोलने वाला बच्चा ज्यादा 'पोपुलर' होता है , इसका मतलब कत्तई ये नही है की वो जानकार है लेकिन "पर्सेप्शन" ये बनता है कि वो सब जानता है जबकि सच्चाई कुछ और होती है. कौन सही है और कौन गलत ये फ़ैसला आप करिये ,लेकिन दोनो तरह के लोग समाज मे होते है ये सच्चाई है.
            Moral of the story ये है कि आप जो हो वही दिखो , अपने आप को दूसरो के नकारात्म्क 'पर्सेप्शन' के आधार पे ना बदलो .

आपका,
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ग़लत है तो बोले

आँखे बंदकर सरकार  के नीतियों का समर्थन करना
सरकार के विरोध की ही श्रेणी में आयेगा।

आँखे खोलकर ग़लत को ग़लत कहना भी
सरकार का दूरगामी समर्थन ही है।



आपका,

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हाँ मै कन्फ्यूज हो गया हू

हाँ मै कन्फ्यूज हो गया हू :
1) पिछले डेढ महीने से घंटो लाइन मे लगकर
2) अपनी बेटियो की शादी मे पैसो  के लिये दर- दर भटकर
3) लाइन मे लोगो को मरते हुए देखकर
4) बैंको मे घटते हुए ब्याज दर देखकर
5) नए नोटो की इतनी भारी मात्रा मे बरामदगी देखकर
6) अपने घर और गाडी का प्रिमियम कम ना होते हुए देखकर
7) अपनी गाढी कमाई PF पर ब्याज कम होते हुए देखकर
8) किसानो की मेहनत से उगाई गई सब्जियो का बहुत कम मूल्य देकर
9) कैशलेश लेन-देन मे ज्यादा पैसा देकर
10) कम होते हुए रोज़गार देखकर
11) राजनीतिक दलो को राहत (चंदे को लेकर)सुनकर
12) 50-50% काला धन की घोषणा सुनकर

## मै मोदी जी के नियत मे कोई शक नही करता और उनके हर निर्णय के साथ हू .लेकिन मेरे ये कुछ सवाल जिसका उत्तर ढूढ रहा हू .
नोटबंदी से राष्ट्र, सरकारी खजाने को बहुत फ़ायदा हुआ इसमे कोई शक नही .
मेरा सवाल आपको 'as a idivisual' Specific 'X' को क्या फ़ायदा हुआ ये जानना था , देश और राष्ट्र को छोड दिजिये.

मै ये जानता हू की आजकल सवाल उठाना किसी 'राष्ट्रद्रोह' से कम , मैने ये रिस्क लिया है .


एक सवाल

मैं एक मोदी समर्थक हूं। नोटबंदी के लगभग डेढ़ महीने बाद मैं ये नहीं समझ पा रहा हू कि इससे आम आदमी को क्या फायदा हुआ है या होने वाला है। आपको क्या लगता है ?



 आपका ,
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मोदी के खिलाफ़ बदलता हुआ माहौल

##मोदी के खिलाफ़ बदलता हुआ माहौल##

8th Nov को नोटबंदी की  घोषणा बाद जो उत्साह लोगो मे दिखा, आज 45वे दिन वो उत्साह  ठोडा ठंडा होते हुए दिखने लगा है . बैंको मे रोजना बदलते हुए नियम, ATM मे रुपयो की कमी,लंबी लंबी लाइन का कम ना होना और हर दिन नये नोटो की बरामदगी से लोगो का धैर्य जवाब दे रहा है . ऐसे देश की 70-80% आम जनता अपने आपको को ठगा हुआ महसूस कर रही है . अब ये तय है की 30 Dec'16 के बाद भी हालत मे सुधार की गुंजाइस कम ही है , धीरे -धीरे हालात सामान्य होंगे.
मोदी विरोधीयो के लिये ये सबसे उपयुक्त समय है , अपनी राजनीति गर्माने का ,और वो पुरी ईमानदारी से अपना काम कर रहे है .
ऐसे मे मोदी सरकार को क्या करना चाहिये ? क्या सरकार की ये जिम्मेदारी नही है की लोगो के मन मे बैठ रहे इन नकरात्म्क छवि को दुर किया जाये? बहुत जरूरी है . यदि ऐसा नही किया गया तो जिस महान कार्य के लिये मोदी सरकार ने ये कठिन निर्णय लिया है वो पुरा करने के लिये ये सरकार सत्ता मे ना होगी और ऐसा देश के लिये ठिक नही होगा .
हमे देश उन करोडो लोगो का धन्यवाद देना होगा जो इतनी परेशानियो के बाद भी ये कहते हुए सुने जाते है कि "सरकार ने जो किया वो ठिक है , हम सरकार के साथ है ". ये भरोशा है उन करोडो लोगो की और ये भरोशा टूटनी नही चाहिये.
सरकार आम लोगो के हित मे काम कर रही है ये सिर्फ बोलने से काम नही चलेगा धरातल पर ये देखना होगा की क्या वाकई ऐसा है . सरकार के कुछ ऐसे निर्णय लिये है जो ठिक नही है :-
1) संसाधन के इंतज़ाम किये बिना कैशलेश एकोनोमी की तरफ़ बढना
2) बिना पर्याप्त कैश के नोटबंदी लागू करना
3) बैंको पर पुरी तरह भरोशा करना (की ये पुरी तरह से ईमानदार है )
4) 50-50% काला धन को सफ़ेद करना
5) किसानो के कर्ज माफ़ी के बजाये उद्योगघरानो के कर्ज माफ़ करना
6) अद्योगिक घरानो को ज्यादा सहुलियत देना , ये चेक किये बिना की इससे कितने रोज़गार बढे है
7) सरकारी नौकरियो  मे ठेकेदारी प्रथा की शुरूवात करना
8) बैंको मे FD पर ब्याज दरो को कम करना
9) टैक्स paiyer की गाढी कमाई PF पर ब्याज दरो मे कमी करना
10) अतिपिछडे क्षेत्रो की अनदेखी करना (जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र, north east इत्यादि)

आज का दौर TV डिबेट और सोशल networking का दौर है . आज हम अपना point of view इन्ही से बनाते. हमे सही मायने मे कुछ भी पता नही होता. हम मार्केट मे पर्सेप्शन के आधार पर अपना विचार रखते है. क्या ये ठिक है जो मिडिया दिल्ली से दुर जाती नही है और वो भी कुछ धडो मे बट गयी हो , उसके आधार पर हम अपनी सोच बनाये? सरकार को ऐसा मेकनिज्म ढूढना होगा जो उसकी नितियो को जमीनी स्तर पे ले जाये और आम जनता को ये भरोशा दिलाए की सरकार ने जो कार्य किये है वो उनकी भलाई के लिये है .

आपका,
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एक सवाल मोदी जी से..

एक सवाल


एक सवाल मोदी जी से,
आम आदमी को क्या मिला नोटबंदी से??
जवाब देकर जनता को संतुष्ट करना होगा .नही तो UP चुनाव आप हार रहे हो .
ये हमारी भविष्यवाडी है .
फाइनेन्स के जानकार और बुद्धजीवि वर्ग तो समझ रहे है ,इसका फ़ायदा .
विपक्षी दल आम लोगो की परेशनियो को भुनाने मे लगी है , हो सकता है इसमे वो कामयाब भी हो जाये.
सरकार को उनसे आगे निकल कर उनका मूह बंद करना होगा ,अपने ज़ोरदार एक्शन प्लान से.

Yours,
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"मेरा देश बदल रहा है "

मित्रो धैर्य रखे , जितना हम सोच रहे है उससे कही ज्यादा  बहुत बडा निर्यण है.
"मेरा देश बदल रहा है "  हम इस बदलाव के भागी बने ,इस दिशा मे काम करे.

विरोधी हमेशा रहे है , और आज भी है .इससे चिंतित होने के जरुरत नही है . यदि आज हम प्रधानमंत्री जी का साथ नही देते है ,तो हम अगली जेनरेशन हमे माफ़ नही करेगी .
इसी सकारात्मक सोच के साथ हमारा भविश्य उज्ज्वल होगा. साथ बनाये रखे.

एक व्यक्ति 350 सांसदों को
लेकर आपके सामने आँशु बहाकर समर्थन माँग रहा और किस बात के लिये कालाधन खत्म करने के लिये ??
विश्व की तमाम राजधानी मे जाकर भारतवंशियों से सहायता माँग रहा??
20 घँटे काम कर रहा , होली , दीपावली , ईद सैनिकों के बीच मना रहा हैं ,
3 सालो से हर रविवार आपकी छोटी - छोटी बातो पर बात कर रहा हैं".
जिसकी माँ 8×10 कमरे और भाई किराना की दुकान चलता हो ,
क्या चाहते हैं आप??
किस पैगम्बर की तलाश है??

एक बात जान लीजिये यदि मोदी आंतकवाद ,
काला धन , भरष्टाचार नही खत्म कर पाये तो
कोई  माई का लाल कर भी नही पायेगा , वहीँ जंतर मन्तर पर कैंडिल लेके चक्कर काटोगे ,,



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे जीवट वाले व्यक्ति ने जिस अंदाज़ में सार्वजनिक मंच से कहा है....*
कि "*ये लोग मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे..."*
इससे यह स्पष्ट हो गया है कि स्थिति बहुत भयंकर और असहनीय रूप ले चुकी है..

एक अकेला व्यक्ति 125 करोड़ हिंदुस्तानियों के हिस्से का ज़हर "नीलकण्ठ" महादेव बनकर पी रहा है...
.
एक अकेला व्यक्ति देश के अंदर मौजूद सारे राक्षसों के साथ-साथ अनगिनत विदेशी दुश्मनों (पाकिस्तान सरकार, पाकिस्तान की सेना, आई एस आई, दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद, चीन......) के निशाने पर है......
क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार किसी अकेले आदमी ने इतने सारे दुश्मनों की एक साथ नींद हराम कर दी है...

ये अच्छाई और बुराई का महासंग्राम है, हमको तैयार रहना है और अपने प्रधान मंत्री का साथ देना है, क्योंकि अगर इन सभी राक्षसों ने प्रधान मंत्री को अगर अपने चक्रव्यूह में फंसा लिया तो फिर सदियों तक कोई दूसरा ऐसा नेता पैदा नहीं होगा...

मैं हमारे प्रधानमंत्रीजी के साथ हूँ, क्या आप हो ?

Yours,
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नोटबंदी -एक रिस्की निर्णय

नोटबंदी -एक रिस्की निर्णय 


                     नोटबंदी  के 15 दिन होने  को है। देश के विभिन्न शहरों से बहुत सारी प्रतिक्रियाये सुनने और देखने को मिली। कुछ ख़ुशी देने वाली और कुछ दुःख देने वाली भी। और ये स्वभाविक था। हमें ख़ुशी है की हम एक ऐसी ऐतिहासिक घटना के प्रत्यक्षदर्शी है जो आने वाले समय में बहुत लंबे समय तक याद किया जायेगा। 
                     मैं यहाँ एक बात कहना चाहता हू कि इस निर्णय से आम जनता को क्या मिला ? क्या आम आदमी को परेशानी के अलावा और कुछ मिला ? उनके पास जो पैसा था वो आज भी है ,लेकिन अपने पैसे को पाने के लिए तंग जरूर होना पड़ा। इस एक्शन से आम आदमी को फायदा तो नहीं हुआ लेकिन खास लोगो का नुकसान ज़रूर हुआ है इसमें कोई शक़ नहीं है। 
                    इतने बड़े और कठोर निर्णय के बाद जनता ने जितनी ईमानदारी से मोदी सरकार का साथ दिया उतनी ही ईमानदारी से सरकार को भी कुछ ऐसे फैसले लेने होंगे जो ना केवल सीधे आम आदमी के हित में  बल्कि बहुत जल्दी हों। ज्यादा देर होने से जो आम आदमी मोदी सरकार के पूर्ण समर्थन में है अभी , विरोध करने में ज्यादा देर नहीं लगाएगी । 
                    मोदी सरकार के लिए 30 दिसम्बर के बाद बहुत बड़ी  चुनौती है आम आदमी को ये भरोसा दिलाना की नोटबंदी के फैसले के बाद जो भी पैसा सरकार के ख़जाने में आये है उसका पाई -पाई जनता की सेवा में खर्च किया जायेगा। मुझे प्रधानमंत्री  मोदी जी के विज़न में कोई संदेह नहीं है ,लेकिन समय बहुत तेजी से गुजर रहा है। समय रहते सरकार को हमें भरोसा देना होगा कि "ये निर्णय जनहित में था ". इसीलिए मैं कहता हूँ "नोटबंदी-एक रिस्की निर्णय " . 

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MERA NAZRIYA: काले धन पर कठोर कार्रवाई

MERA NAZRIYA: काले धन पर कठोर कार्रवाई: काले धन पर कठोर कार्रवाई                                ८ नवम्बर  भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरो में लिखा जायेगा। इस दिन प्रधानमंत्...

काले धन पर कठोर कार्रवाई

काले धन पर कठोर कार्रवाई 


                              ८ नवम्बर  भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरो में लिखा जायेगा। इस दिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने रात ८ बजे अपने राष्ट्र के नाम सन्देश में काले धन पे कठोर निर्णय लेते हुए ५०० और १००० के नोट को कानूनन अवैध घोषित कर दिया। और पुराने नोटों को बैंको में जमा करने के लिए ५० दिनों की मोहलत दी , जिससे ईमानदारी से कमाए हुए धन को बैंको में जमा करा के ५०० और २००० के नए नोट प्राप्त कर सके। 
                             मोदी जी के इस निर्णय को मैं भूरी भूरी प्रसंशा करता हू। एक ऐसा निर्णय जो काला धन को एक झटके में कागज का एक टुकड़ा बना दिया। मोदी जी के इस कड़े कदम के बाद कुछ राजनितिक पार्टीयो ने विरोध शुरू कर दिये , इसके पीछे की सच्चाई सबको पता है। ये निर्णय लेते समय प्रधानमंत्री को ये एहसास था की विरोधियो के साथ साथ अपने ही दल के लोग इसमें साथ नहीं देंगे इसके बावजूद भी उन्होंने ये रिस्क लिया , ये  प्रधानमंत्री जी की ढृढ़ इच्छा शक्ति को दर्शता है।

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MERA NAZRIYA: #SANDESH 2 SOLDIERS

MERA NAZRIYA: #SANDESH 2 SOLDIERS: #SANDESH 2 SOLDIERS                     प्रधानमंत्री आज बनारस में थे , उन्होंने "विकसित पूर्वांचल" की आधारशिला रखी। अपने भ...

#SANDESH 2 SOLDIERS

#SANDESH 2 SOLDIERS



                    प्रधानमंत्री आज बनारस में थे , उन्होंने "विकसित पूर्वांचल" की आधारशिला रखी। अपने भाषण की शुरुवात में ही उन्होंने देश के उन हज़ारो सैनिको और सुरक्षाकर्मियों का दिल जीत लिया।  उन्होंने कहा की आप इस दिवाली एक सन्देश अपने देश के उन सैनिको और सुरक्षाकर्मियों को भेजें जो अपने घर से बहुत दूर हमारी और आपकी सुरक्षा के लिए बॉर्डर में खड़े हैं। 
                   प्रधानमंत्री ने एक प्लेटफ़ॉर्म दिया है "#SANDESH 2 SOLDIERS"जहाँ आप अपना सन्देश सीधे उन जवानों तक पंहुचा सकते हैं। 
                   इसके लिए आप 1922  पे मिस कॉल करके "Narendra Modi app " को डाउनलोड करें और "SANDESH 2 SOLDIERS" icon पर जाकर अपने सन्देश भेज सकते हैं। 


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जीने का अंदाज



महफिल में मुस्कुराना मेरा मिजाज बन गया,
तन्हाई में रोना भी एक राज बन गया,
दिल के जख्म को चेहरे से जाहिर न होने दिया,

यही जिन्दगी में मेरे जीने का अंदाज बन गया..

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स्वच्छता - एक विचार

 स्वच्छता - एक विचार 


                       साफ़ -सफाई एक कार्य नहीं एक विचार है। गंदगी कहा से होती है इसे खोजा जाये तो आप पायेंगे कि इसके जड़  हम ही है। हम अपना घर तो साफ करते है लेकिन सार्वजनिक जगहों पे हम उतना ध्यान नहीं देते। सफाई के लिए  सरकार हमें उपयुक्त साजो सामान दे सकती है लेकिन गंदगी ना इसके लिए हमें ही आगे आना होगा। 

                      आज किसी भी कॉलोनी के सीढ़ियों पे,सरकारी आफिसों में ,बस स्टैंड ,रेलवे स्टेशनों पर पान का पीक दिखाई देना आम बात है। क्या इसके लिए सरकार दोषी है या हम ? सफाई के लिए मेरा एक मंत्र है कि गन्दा ही ना करो ,और हमेशा इसकी शुरुआत अपने आस -पड़ोस से करोऔर अपने बच्चो को इसके लिए प्रेरित करो। 

                    जबसे हमारे प्रधानमंत्री ने २ अक्टूबर को लोगो को सफाई के लिए "स्वच्छाग्रह" का ऐलान किया है  इसमें कोई संदेह नहीं कि लोगों में जागरूकता आयी है। बहुत सारे स्वयंसेवी संस्थाए ,मीडिया ,विशिष्ट व्यक्ति ,राजनेता गण ,आम लोग सफाई के लिए आगे आये है। और ये सुखद बदलाव है। हमें ध्यान रखना होगा कि ये जोश सिर्फ दिन विशेष का न बनकर रह जाये। स्वच्छता को हमें आत्मसात करना होगा और अपने व्यवहार कमें बदलाव लाना होगा, तब जाकर हमारे प्रधानमंत्री का स्वच्छ भारत का सपना साकार होगा। 

सफाई के लिए आम आदमी  क्या करें :

  • घर का कचड़ा निर्धारित जगह पर ही  फेंके 
  • पान गुटका का सेवन ना करें  
  • सार्वजनिक स्थलों पर कचड़ा बॉक्स का प्रयोग करे 
  • खुले  शौच ना करें , शौचालय का प्रयोग करें 
  • अपने घरो में सबको जागरूक करें 
  • कोई भी गंदगी फैलाते हुए दिखे तो उसे विनम्रता से रोके 

सफाई के लिए सरकार क्या करें :

  • कचड़ा प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीका अपनाये 
  • सार्वजनिक स्थलों पर उचित मात्रा में डस्टबीन रखे 
  • सफाई लिए गाइड लाइन डिस्प्ले करे ,और ना मानने वालों से जुर्माना वसूल करे 
  • प्लास्टिक बैग के उत्पादन पर बैन लगाए 
  • तम्बाकू और गुटके को पूरी तरह से बैन करे 

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जायसवाल "नज़रिया "
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MERA NAZRIYA: भारतीय मीडिया - पल पल बदलता सोच

MERA NAZRIYA: भारतीय मीडिया - पल पल बदलता सोच: भारतीय मीडिया - पल पल बदलता सोच                                            आज का भारतीय टीवी न्यूज़ चैनल, क्या वैसा ही है जैसा  १० साल ...

भारतीय मीडिया - पल पल बदलता सोच

भारतीय मीडिया - पल पल बदलता सोच 

                  
                       आज का भारतीय टीवी न्यूज़ चैनल, क्या वैसा ही है जैसा  १० साल पहले ? समाचार और उसके विश्लेषण का तरीका क्या वैसा ही है ? क्या आज न्यूज़ बनाई जाती है ? क्या मीडिया स्वतंत्र है आज ? क्या लोगो के इंटरेस्ट के  हिसाब से न्यूज़ दिखाई जाती है ? ऐसे  सवाल है हम सबके मन में है , इनका सभी सवालों  का जवाब है नहीं। तो क्या न्यूज़ एक बिज़नेस का ज़रिया है ? क्या न्यूज़ केवल टी आर पी का खेल है ? पहले नंबर पे आने की  होड़ में कही आज  पत्रकारिता खो सी गयी है। 

                    आज टीवी आन करते ही जबरदस्त लड़ाई का दौर शुरू हो जाता है , एंकर और तथाकथित विशेषज्ञ पुरे लय अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे होते है और इन सबके बीच मुख्य मुद्दा कही खो जाता है। आज के तारीख में १०० से ज्यादा न्यूज़ चैनल है , कौन पहले नंबर पे है सब अपने ही बता देते है हम और केवल हम ही नंबर एक पर है। देखकर हँसी भी आती है और दुःख भी होता है। 

                   हर दूसरे दिन  एक नया मुद्दा , पिछले मुद्दे का क्या हुआ किसी को कोई मतलब नहीं है। कोई भी न्यूज़ चैनल ये नहीं बताता की, निर्मल बाबा का क्या हुआ , राधे माँ क्या कर रही है आजकल , कुछ ज्वलंत मुद्दे जैसे ओडिशा के मांझी का क्या हुआ। मुझे लगता है मीडिया का एक दौर होता है जैसे बाबाओ पे आक्रमण , बलात्कार की घटनाए  ,ओडिशा के मांझी की घटना की तरह पूरे  देश से वीडियो और फोटो लाने का दौर,और आजकल देशभक्ति का दौर। और कुछ नहीं मिलता तो नेताओ की एक लाइन पकड़के घंटो टाइम पास करना। 

अपने आप को नेशनल टीवी न्यूज़ चैनल बताने वाले लोगो को ये समझना होगा की नेशनल का मतलब सिर्फ देल्ही नहीं होता और न्यूज़ का मतलब सिर्फ राजनितिक कमेंट नहीं होता। हमारा देश बहुत बड़ा है कभी जाके केरला ,त्रिपुरा ,सिक्किम ,आसाम ,ओडिशा ,नागालैंड ,मणिपुर ,चेन्नई के उन आम लोगो का न्यूज़ दिखाओ जो हमसे कटे हुए है। 

              आज का माहौल ऐसा है कि किसी दिन बलात्कार के नाम पर पूरे  देश में रोष होता तो अगले ही दिन क्रिकेट मैच जीतकर खुशियां मनाने हम रोड पे होते हैं , ओडिशा के मांझी की घटना देखकर हम दुखी हो जाते है और अगले ही पल हाथी घोड़ा पालकी जय कनैहया लाल की शुरू हो जाता है। मुझे ये नहीं समझ आता की कौन सा  इमोशन कितनी देर साथ रखू। 

           अभी आजकल सारे न्यूज़ चैंनल देश में देशभक्ति जगाने के काम पे लगे हुए कुछ दिन चलेगा ये सब जब तक की कोई और मुद्दा नहीं मिल जाता। मैं ये नहीं कहता की ये सब गलत है लेकिन एक जिम्मेदार न्यूज़ चैनल की तरह किसी मुद्दे को उसके अंजाम तक पहुचाने की कोशिश तो करो बताओ तो सही जिन मुद्दों के बारे सरकार ने जो वादा किया वो पूरा किया की नहीं। 


आपका ,
जायसवाल "नज़रिया "
meranazriya.blogspot.com 
jais_ravi29@rediffmail.com
jaiswalravindra29@gmail.com


"क्या भारत पाकिस्तान का युद्ध होना चाहिये या नहीं "

मेरा नज़रिया 

नमस्कार  संसार ,
                  आज पहली बार मुझे  लगा की दुनिया में होने  वाली दैनिक घटनाओं  के बारे में मेरा अपना  क्या विचार है दुनिया को बताया जाये।  इसी बात को  ध्यान  में रखते  मैंने अपना ब्लॉग "मेरा नज़रिया " क्रिएट किया है।  

आज का विषय है "क्या भारत पाकिस्तान का युद्ध होना चाहिये या नहीं "


            युद्ध शब्द आते ही खून खराबा और मौत का भयानक चेहरा सामने आता है। एक सामान्य आम आदमी क्या ये चाहता है की उसके सामने ये  सब हो ? मेरा मानना है नहीं।  हम  जोश में होश में खोने की बात कर रहे हैं । आज पाक के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन हमारे पास  बहूत कुछ है।  युद्ध होने से भले ही हम जीत जाएं लेकिन मानवता हार जायेगी। 

          मैं ये नहीं कहता की कश्मीर में जो हो रहा है वो सही है , उसका समाधान होना चाहिए लेकिन युद्ध  रास्ते नहीं। समाधान विकास के रास्ते होना चाहिये। 

         क्या हमारे राजनितिक पंडितो में ये चुनौती स्वीकार करने का साहस है की जम्मू  और कश्मीर में बेरोज़गारी ,भुखमरी, अशिक्षा ,और गरीबी को आने वाले सालो में समाप्त कर देंगे। 

धन्यवाद। 

आपका 
जायसवाल "नज़रिया"


बदलाव..

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