महफिल में मुस्कुराना मेरा मिजाज बन
गया,
तन्हाई में रोना भी एक राज बन गया,
दिल के जख्म को चेहरे से जाहिर न
होने दिया,
यही जिन्दगी में मेरे जीने का अंदाज
बन गया..
क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीर ये पंचतत्व से शरीर है इसी पंचतत्व की पूजा है (पानी मे रहकर आकाश की तरफ गर्दन किये हुए हाथ मे दीपक लेकर खुले ह...
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