और 50 दिनों बाद...

          31 Dec 2016 की शाम का देश की आम और खास जनता को बहुत बेसब्री से इंतज़ार था. एक तरफ़ यूपी में मुलायम परिवार का आपस में वर्चस्व की लड़ाई का दौर चल रहा था तो दूसरी तरफ़ देश के प्रधानमंत्री मोदी जी का देश के नाम संदेश का प्रसारण होंने वाला था. TRP के इस दौर में TV चैनलों पर जबर्दस्त माहौल बनाया गया .इसका असर ये हुआ कि लोगों ने साल की आखिरी रात का जश्न बाहर कहीं मनाने के बजाये घर में ही दुबके रहना उचित समझा. Wattsup और दूसरे सोशल साइट पर मज़ाको का दौर शुरू हो गया . जाने क्या आज मोदी जी घोषणा कर दे .
           उत्सुकता की पराकाश्ठा हो रही थी और  इसी बीच घडी में सात बजा प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपना संदेश आरंभ किया शुरू के 15-20मिनट देश के लोगो को उनके धैर्य और साहस की तारीफ़ किये और धन्यवाद दिया .नोटबंदी के बाद हुए फ़ायदे का लाभ आम लोगो को देने के लिये सरकारी खजाने से लोगो को उनके अपने घर बनाने के सपने दिखाये, ये काबिले तारीफ़ था. बुजुर्गों और प्रसुती महिलाओं के लिये कुछ अच्छी योजनाओ का शुभारम्भ किया.
          एक बार फ़िर मोदी जी देश को चौकया,और ये बता दिया की फ्री का कुछ भी नही मिलेगा और जो मिलेगा उसे नकार नही सकते . आज 50 दिन बाद क्या हाल है देश का एक overview आपको देता हूँ :-

1) राहुल गांधी का नोटबंदी का विरोध बंद और विदेश यात्रा शुरू
2) बैंको से लाइन लगभग खत्म , रिजर्व बैंको मे भिड़ बढी
3) ममता और केजरिवाल जैसे लोगो का सुर में अचानक बदलाव , दोनो अपने अपने कार्यो में लगे
4) IT डिपार्टमेंट के छापा में बढोत्तरी ,बहुत सारे गद्दारों का पर्दाफाश शुरू
5) मुलायम परिवार का अन्तर्कलह अभी भी ज़ारी
6) TV पर नोटबंदी की चर्चा में भारी गिरवाट, expert लोग अर्थव्यवस्था में हो रहे बदलाव का गहन अध्ययन में जूटे.
7) देश में 5राज्यो में चुनाव की तारिखों कीघोषणा , एग्जिट पोल का दौर शुरू
8) intollerance और सर्जीकल स्ट्राइक शब्द मार्केट से धीरे -धीरे गायब होता हुआ , नये साल में कोई नया शब्द की तलाश में भारतीय मिडिया
9) नोटबंदी का फ़ायदा और नुकसान का बारीकी से अध्ययन करता हुआ आम आदमी
10) बजट 2017-18 में अपने लिये कुछ टैक्स में राहत की उम्मीद में बैठा हुआ आम आदमी.

आपका,
meranazriya.blogspot.in

मेरी बेटियाँ

मेरी बेटियाँ ही ,मेरी जान है
जब वो हँसती हैं ,तो ऐसा लगता है जैसे जहाँ मिल गया ,
जब वो रोती है तो लगता है कि सब कुछ खो गया,
जब वो जिद करती है तो गुस्सा दिखाना पड़ता है ,
जब वो रुठ जाये तो मनाना भी पड़ता है।

मै उन्हे सब कुछ दे दूँ , ऐसी कामना है मेरी,
वो जो भी मांगे उसे दिला दूँ ,
उन्हे खुश कर दूँ ,
उसकी मुस्कान को देखकर जहाँ जीतना है,
क्योकि ये बेटियाँ ही, मेरी जहाँ है।

मै कठोर दिखने की कोशिश करता हूँ ,
इनकी गलतीयो को बताता रहता हूँ ,
इन्हें  दिक्कत ना हो बचाता रहता हूँ  ,
थोडा ज्यादा सेन्सटिव हूँ मै , इसिलिये
गलतीयो से सीखने के बजाये, इन्हे सिखाता रहता हूँ,
क्योकि मेरी बेटियाँ ही मेरा अहसास है

मुझे जिम्मेदारी का एहसास मेरी बेटियों ने ही कराया है ,
मुझे इतना बडा इन्होंने ही बनाया है ,
अब थोडा ज्यादा परिपक्व हो गया हूँ मै ,
पहले से ज्यादा ,जिम्मेदार हो गया हूँ ,
अब मुझे इन्हे ही आगे बढाना है ,चांद तक ले जाना है ,
क्योकि मेरी बेटियाँ ही मेरा प्राण है , मेरी जान है।

और हाँ मैने सिखा है एक अच्छा पापा बनना अपने पापा से, 
उनके जैसा बन पाऊ ये कोशिश है मेरी.
उनके जैसा त्याग ,अनकंडीशनल प्यार ,
हमेशा साथ होने का एहसास ,
कठिन दौर में भी मुस्कुराने की कला ,
थोड़ा -थोड़ा सीख़ रहा हूँ ,
मुझे वो सब करना है जो मेरे पापा ने मेरे लिए किया ,
आख़िर मेरी बेटियाँ ही तो हैं मेरा सब कुछ,
मेरी बेटियाँ ही ,मेरी जान है

आपका ,
meranazriya.blogspot.com 

सोचता हूँ

   ये कविता उन हजारों-लाखों निष्ठावान युवाओ की सोच को दर्शाता है जो अपने घरो से दूर कोरोपोरट घरानो मे काम करते है .और ये वो युवा है जिन्हे बचपन मे किताबी बातें ही सिखायी गयी. जब ये कठोर कोरोपोरट जीवन जीतें है तो उन्हे बहुत कठिनाई होती है . ये कविता उन्ही निष्ठावान युवाओ की कशमकश को दर्शाता है .

सोचता हूँ 


क्या गलत है और क्या सही,
सब नज़रिये की बात है ,सोचता हूँ .
ऐसा नही है , की मै गलत करता हूँ ,
पर जो करता हूँ वो सब सही हो ऐसा भी नही है,
ये कौन बताये की ये सही है और ये गलत,
बहुत कठीन है ये बताना ,सोचता हूँ .

ये ज़माना खराब है , लोग खराब है ,
कब ज़माना ठीक था और कब सारे लोग सही, सोचता हूँ .
ना वो दौर कभी था और ना कभी होगा ,
पहले भी ऐसे ही था और आज भी वैसा ही है ,
बस एक बदलाव ये कि मै पहले ऐसा नही था,
जैसा आज , थोडा मै भी तो बदला हूँ , सोचता हूँ .

दूसरो की गलती बताते-बताते ,
कब मै गलत हो गया, सोचता हूँ .
हमे खुद मे झांकना तो होगा ,आखिर दूसरो पे आरोप लगाना, कब तक चलेगा, सोचता हूँ .
क्यो ऐसा लगता है कि सब मेरे विरोधी है ,
सहमति बनाना और लोगो का भरोसा हासिल करना , 
ये भी तो मेरा ही काम है , सोचता हूँ .

अब बडा हो गया हूँ मै अब मुझे सहारे की नही है ज़रूरत, बस यही गलती कर बैठा, सोचता हूँ ,
किताबी ज्ञान से, सामाजिक ज्ञान होता है भिन्न, ये भाँप ना पाया, और इसे ही जीवन मे उतारा, ये आंक ना पाया , थोडा मुझे भी तो बदलना तो होगा , सोचता हूँ .

मै बदल दूँगा अपने आपको, ऐसा हुआ है क्या कभी ? क्या कभी किसी ने खुद को बदला है सोचता हूँ ,
समय और परिस्थिति बदली है या वो खुद बदला है ,
या खुद को बदलकर परिस्थिति और समय को बदला है , सोचता हूँ ,
बहुत कठिन है ये रास्ता , आसान कैसे बनाऊ ?

क्या भूल जाऊ वो सारी किताबी बातें, 
बडे-बुजुर्गों की हिदायतें, क्या वो सारी बातें थी गलत ? कुछ समझ नही आता , कोई रास्ता नही सूझाता, क्या करू ,कैसे करू, कोई तो होगा बताने वाला , सोचता हूँ .
ये कहना आसान है खुद को बदलो ,पर क्या ये आसान है उतना? सोचता हूँ .





आपका,
meranazriya.blogspot.com

बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...