डिजिटल डिपेंडेंसी और डिजिटल लिटरेसी

       आज  फोन लेने का एक भयानक अनुभव हुआ। मैं अपने आपको एक डिजिटल साक्षर आदमी मानता हूं। अक्सर जितना हो सके डिजिटल मीडियम ही प्रयोग करता हूं। फिर भी आज का अनुभव बहुत कुछ सीखा गया। सुबह एक नामी मोबाइल शाप पर गया और दुकानदार से जियो मोबाइल दिखाने का आग्रह किया। मेरी जरूरत सिर्फ बात करने और सबसे सस्ता फोन की है मैंने दुकानदार से बोला। मुझे 1600 रूपए में एक कीपैड वाला एक मोबाइल दिखाया,  थोड़ा पुछताछ करके मैंने उसे एक्टिवेट करने के लिए बोल दिया। दुकानदार लड़के ने बोला आधार कार्ड लायें है ?, मैंने पर्स में देखा और संयोग से नही था। मैंने  कहा ड्राइविंग लाइसेंस है इससे हो जायेगा? लड़के ने बोला हो जायेगा देखते हैं। करीब 15 मिनट तक कुछ किया और बोला सिस्टम नहीं ले रहा है। आपको आधार देना होगा। मैं घर वापस जाकर लौटने को लेकर असमंजस में था । मैंने लड़के से कहा m aadhar   से आधार कार्ड डाउनलोड कर देता हूं, इससे हो जायेगा? लड़के ने बोला हमें ओरीजनल वाला चाहिए। मैंने बोला ये मोबाइल वाला ओरीजनल ही है । वो बोला ये चलेगा नहीं। मैंने काफी समझाने की कोशिश और बोला भाई ये सर्वमान्य है। इसमें कोई दिक्कत भी नहीं। वो बोला भैय्या जी नहीं चलेगा आपको प्रिंट लेकर आना होगा तभी हो पायेगा। मैं नजदीक में ही साइबर कैफे से प्रिंट लेकर आ गया। वापस जाकर फिर फोन चालू करने को बोले। दुकानदार लड़के फिर मना कर दिया ,बोला इसमें QR code  स्कैन नहीं होगा, आपको कलर प्रिंट लेकर आना तभी संभव है। मैंने m aadhar से QR कोड दिखाकर स्कैन करने को बोला, लड़का अड़ नहीं होगा भैय्या जी। मैं झक मारकर फिर उसी साइबर में गया और कलर प्रिंट करके लेमिनेशन करके देने को कहा। पूरी प्रक्रिया में अब तक दो घंटे हो चुके थे। धीरे-धीरे दिमागी पारा भी उपर चढ़ रहा था।मन में आ रहा था इतना डिजिटल होने का क्या फायदा सब कुछ तो हार्ड में ही चल रहा है तो? डिजिटल साक्षरता को लेकर भी मन में सवाल उठता रहा।हम देख पा रहे थे कितना गैप है टीवी की दुनिया और हकीकत की दुनिया में। खैर ये सब चल ही रहा था कि साइबर वाले ने मुझे एक नया आधार कार्ड बनाकर मुझे दे दिया। बदले में कुछ पैसे लिए जो की थोड़ा ज्यादा ही था। मैंने मन मारकर कार्ड लिया और मोबाइल शाप में दुबारा आ गया। लड़के से बोला भाई अब तो हो जायेगा? लड़के ने बोला हो जायेगा। उसने जियो के अपने आफिसीयल पेज डिटेल्स भरने लगा। लगभग 15-20 मिनट बाद मेरा फोटो लेने के लिए मुझे एक साइड आने को कहा। आंख स्कैन करने के लिए मुझे दो तीन अलग-अलग हिस्सों में खड़ा किया । बहुत ही इरीटेटींग था। फाइनली 10 मिनट में सारा फार्म भर , फोटो अपलोड कर दिया। फार्म भरने के दौरान उसने मुझे अलर्टनेट मोबाइल नंबर देने की बात बोली जो जियो का नहीं होना चाहिए, उस नंबर पे ओ टी पी आयेगा। संयोग से मेरे पास दूसरा नंबर भी जियो का ही था। अब एक और समस्या अब क्या किया जाए? अजीब दुविधा है जियो फोन के लिए आपके पास जियो के अलावा एक अलर्टनेट नंबर होना चाहिए। ये कैसी मार्केटिंग है? सोचिए किसी के पास मोबाइल फोन ही ना हो वो क्या करेगा? खैर मेरे पास एयरटेल का आफिसीयल नंबर था, मैंने उसे लिखने को बोला। पूरी प्रक्रिया में अब तक ढाई घंटे हो चुके थे। मैंने भी ठान रखा था आज फोन लेकर ही जाऊंगा। लड़के ने सब-कुछ करके बोला आपका काम हो गया। नया नंबर का डिटेल्स आपके अलर्टनेट नंबर पे आ गया होगा। मैंने बोला ठीक है भाई अब मैं इस नंबर से बात कर सकता हूं ना? लड़के ने बोला अभी नहीं? ये सुनकर मेरी दिमाग खराब हो चुका था। लड़के ने बोला एक दो घंटे में आपके दुसरे नंबर पर एक ओ टी पी आयेगा उसे लिखकर 1977 पर फोन करके टेलिभेरीफाई करना होगा तब जाकर आपका फोन चालू होगा। फोन चालू होने के बाद आप मेरे पास फिर आइयेगा । मैंने पूछा क्यों भाई? वो बोला साफ्टवेयर अपडेट करने के लिए, तभी आपका नया वाला काम करेगा। मैंने झक मारकर बोला ठीक है भाई । क्या मैं अब फोन घर ले जा सकता हूं, मैंने गुस्से में पूछा? लड़के बड़े आराम से बोला हां हां क्यों नहीं, 1600 रूपए जमा करके ले जाइए। मैंने कहा ठीक है। आदत के मुताबिक मैंने कार्ड से पैसे देने की बात कही। ये सुनकर उसके कान खड़े हो गए और वो अपने मालिक पूछा ये कार्ड से पेमेंट करेंगे , क्या करना है? मालिक ने बोला कोई बात नही 32 रुपए ज्यादा लगेंगे, उनसे बोल दो। मैंने सोचा चलो दो घंटे के बाद आना ही है, ए टी एम से निकाल कर आते समय पैसे भी दे देंगे और फोन भी चालू करा लेंगे। मैंने लड़के से कहा ठीक है तुम मोबाइल अपने पास ही रखो , मैं दो घंटे में आता हूं। सोचिए लगातार ढाई से तीन घंटे लगातार प्रयास के बाद भी फोन मेरे हाथ में नहीं था। मैं दुकान से बाहर आ गया , और घर जाने के बजाय मैंने सोचा चलो थोड़ा मार्केट में घूम कर टाइम पास कर लेते हैं और ए टी एम से पैसे भी निकाल लेंगे। ए टी एम गये पासवर्ड डालने के दौरान गड़ बड़ी हो गई , और फिर ए टी एम ब्लाक हो गया। अब एक और मुसीबत अब क्या करें? पर्स में पूरे पैसे नहीं और कार्ड ब्लाक हो गया। मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। लेकिन असहाय था। इसी बीच मैंने अपना फोन चेक किया , देखा ओ टी पी आ गया था। लगभग एक घंटे के बाद मैं उस दुकान में फिर गया और मेसेज के बारे में दुकान के मालिक को बताया। दुकानदार ने बताया लड़का घर चला गया है , ये सारे काम वही लड़का करेगा , आप पैसा जमा करके चले जाइए और शाम को आकर फोन चालू करवा लिजियेगा। मैंने दुकानदार से कहा आप अकाउंट नंबर दीजिए मैं नेट बैंकिंग से पैसा भेज देता हूं। वो बड़ा ही अजीब सा मुंह बनाते हुए कार्ड या कैश से पैसा जमा करने को बोला। मैंने उसको थोड़ा तेवर दिखाते हुए बोला भाई मेरा कार्ड ब्लाक हो गया है और पर्स में पूरे पैसे नहीं हैं। मेरे पास केवल यही माध्यम है पैसे जमा करने का। ये सुनकर बेमन से उसने अकाउंट नंबर दिया और मैंने पैसे भेज दिया। दुकानदार इस बात से टेंशन में था कि उसके मोबाइल में मेसेज नहीं आया था। वो बार-बार शक की निगाह से मुझे देख रहा था। मैंने  दुकानदार को बोला ठीक है भाई कभी-कभी मेसेज नहीं आता है , अपना अकाउंट चेक कर लेना। और मेरा मोबाइल नंबर लिख लो पैसा ना आया हो तो मुझे फोन कर लेना। तब जाकर दुकानदार आस्वस्त हुआ।  पैसा भेजकर काफी राहत महसूस कर रहा था चलो अब फोन तो घर ले जा सकता हूं। फाइनली फोन लेकर घर आ गया और फोन को चालू कर दिया। फोन चालू होने के बाद मैंने सोचा अब तो सब ठीक-ठाक है। फोन से बात हो रहा है और फोन आ भी रहा है , शाम को फिर उस दुकान पर जा ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन मैं ग़लत था शाम को उस लड़के ने दुबारा फोन करके फोन और बाक्स साथ लेकर आने को कहा, साफ्टवेयर अपडेट करने के लिए। मैं बेमन से फिर शाम को उस दुकान पर गया और साफ्टवेयर अपडेट कराया, और घर वापस का गया।
            इस पूरी कहानी ने मुझे इतना जरूर सिखा दिया कि आप चाहें कितने भी मार्डन हो जाये, जानकार हो जाये, डिजिटल हो जाये, पर काम हमेशा देसी भारतीय स्टाइल में ही होगा। भारत सरकार को भी इस बात को समझ लेना चाहिए कि आपने सब कुछ आसान करने के चक्कर में लोगों को उलझा भी दिया है। सुप्रीम कोर्ट बोलता आधार अनिवार्य नहीं है पर जमीनी हकीकत ये है कि बिना आधार आपका कोई भी नहीं होगा। अंगुलियों के निशान और ओ टी पी के चक्कर में लोगों को राशन नहीं मिल रहा है। इंटरनेट की गति धीमी होने से गांव में किसानों को यूरीया भी नहीं मिल पा रहा है। गांव के बुज़ुर्ग महिलाओ और पुरुषों के लिए तो ये डिजिटल दुनिया आफत बनकर आया है , वो बैंको में जमा अपने पैसा को नहीं निकाल पा रहे है क्योंकि उनकी उंगलिया घिस गई है और सिस्टम उनको स्कैन नहीं कर पा है। सरकार कैशलेस का ख्वाब देख रही है और दुकानदार सरचार्ज की वजह से कार्ड के प्रयोग से आम लोगों से ज्यादा पैसे ले रहे हैं। छोटे दुकानदारों के लिए GST एक सिरदर्द के अलावा और कुछ भी नहीं है। GST फाइल करने के लिए CA को अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा देना पड़ रहा है जबकि सरकार के पास बहुत कम पैसा जा रहा है। किसान बिमा योजना का लाभ बड़े और दबंग टाइप के किसान उठा ले रहे है और वो भी बिना फसल ख़राब हुए।  और छोटे किसान मुँह देखते रह जा रहे है।
सरकार की सारी नीतियां अच्छी होते हुए भी अच्छे परिणाम नहीं आ रहे हैं। इसका कारण सिर्फ ये है कि सारी नीतियां इस आधार पर बनी है कि भारत की सभी जनता डिजिटल साक्षर है । पर हक़ीक़त ठीक इससे उलट है। आपने मान लिया है कि भारत का हर आदमी मोबाइल को अच्छे से समझ गया पर हक़ीक़त ऐसा नहीं है । आज जमीनी हकीकत ये है कि 40 साल से ऊपर के व्यक्ति ओ टी पी, पासवर्ड, मोबाइल बैंकिंग से डरता है, ठीक से मोबाइल भी आपरेट नहीं कर सकता है। अगर विश्वास ना हो तो अपने घरों में माता-पिता से बात करके, आप चेक कर लिजिए। जब शहर का एक जानकार आदमी एक मोबाइल खरीदने के चक्कर में इतना परेशान हो सकता तो गांव में जहां डिजिटल साक्षरता भी बहुत कम है, वहां कैसे लोगों को मूर्ख बनाकर पैसे ऐंठे जाते होंगे। यही सच्चाई है सरकार की नीतियां गलत नहीं है पर जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है। मुझे बता है एकदम से सब ठीक-ठाक नहीं होगा पर इस चक्कर में यदि आपकी सरकार चली जाये तो ये कहीं से भी देश के हित में नहीं होगा। डिजिटल साक्षरता की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, तब जाकर ही सही मायने में विकास और विश्वास दोनों हासिल होगा।

(नोट : भारत के आज के स्थिति को देखते हुए)

"डिजिटल लिटरेसी ज़रुरी पर डिजिटल डिपेंडेंसी नहीं"

फोटो सोर्स : गूगल 
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काशी प्रसाद जायसवाल - एक संक्षिप्त परिचय

काशी प्रसाद जायसवाल (जन्म- 27 नवम्बर, 1881, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 4 अगस्त, 1937) भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार एवं साहित्यकार थे। ये इतिहास तथा पुरातत्त्व के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान थे। काशी प्रसाद जायसवाल 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' के उपमंत्री भी बने थे। इन्होंने 'बिहार रिसर्च जनरल' तथा 'पाटलीपुत्र' नामक पत्रों का सम्पादन भी किया था। 'पटना संग्रहालय' की स्थापना में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। इतिहास और मुद्रा विषयक अनेक सम्मेलनों की अध्यक्षता काशी प्रसाद जी ने की थी।
परिचय:
काशी प्रसाद जायसवाल का जन्म 27 नवम्बर, 1881 ई. में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। उन्होंने मिर्जापुर के 'लंदन मिशन स्कूल' से प्रवेश की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इसके उपरान्त उच्च शिक्षा के लिये वे 'ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी' चले गये. जहाँ से इतिहास में एम. ए. किया। काशी प्रसाद जायसवाल ने 'बार' के लिये परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की। भारत लौटने पर काशी प्रसाद जायसवाल ने 'कोलकाता विश्वविद्यालय' में प्रवक्ता बनने की कोशिश की, किन्तु राजनैतिक आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। अन्तत: उन्होंने वकालत करने का निश्चय किया और सन 1911 में कोलकाता में वकालत आरम्भ की। कुछ वर्ष बाद 1914 में वे 'पटना उच्च न्यायालय' में आ गये और फिर यहीं पर वकालत करने लगे।
वे 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' के उपमंत्री भी बनाये गए थे। काशी प्रसाद जायसवाल के शोधपरक लेख 'कौशाम्बी', 'लॉर्ड कर्ज़न की वक्तृता' और 'बक्सर' आदि लेख 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' में छपे। इनके द्वारा लिखित प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
हिन्दू पॉलिसी
एन इंपीरियल हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया
ए क्रोनोलॉजी एण्ड हिस्ट्री ऑफ़ नेपाल
अंधकार युगीन भारत
शुक्लजी के समकालीन
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के 'सरस्वती' का सम्पादक बनते ही सन 1903 में काशी प्रसाद जायसवाल के चार लेख, एक कविता और 'उपन्यास' नाम से एक सचित्र व्यंग्य सरस्वती में छपे। काशी प्रसाद जी आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के समकालीन थे। दोनों कभी सहपाठी और मित्र भी रहे थे, किन्तु बाद में दोनों में किंचिद कारणवश अमैत्री पनप गयी थी।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सहयोग से काशी प्रसाद जायसवाल ने 'इतिहास परिषद' की स्थापना की थी।
'पटना संग्रहालय' की स्थापना में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
भारत के इस प्रसिद्ध इतिहासकार का निधन 4 अगस्त, 1937 को हुआ।


लेख सौजन्य: शिक्षा भारती नेटवर्क
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कहां जा रहे हैं हम?

ये कैसी दौड़ है,
जहां सिर्फ भाग रहे हैं सब,
क्या पाना है, क्यों पाना है,
क्या जाना है सब?
ये अंध दौड़,
कहां ले जाएगी,
क्या किसी ने सोचा है?
बस भाग रहे- बस भाग रहे,
भागम भाग मचा रहे,
एक बार ठहर जा,
थोड़ा रुक कर,
पुछ ना इंसान खुद से,
कितने तो छुट गये,
और कितनों को छोड़ेगा तू?
क्या यही पाने के लिए,
दौड़ रहा तू?
ज़रा गौर से देख,
कहां निकल गया है तू,
कहीं तू अकेला ही तो
नहीं खड़ा है मंजिल पे,
खुश तो बहुत होगा,
पर खुशियां बांट ना सकेगा तू,
तू जब मंजिल पर होगा,
तूझे याद आयेंगे वो लोग,
जिनको तुमने,
छोड़ दिया था बीच राह,
ये वही लोग थे ,
जिनके साथ होने से,
खुश बहुत रहता था,
तू सोच रहा होगा
क्यो दौड़ रहा था अब तक,
अब पछता रहा होगा,
क्यो दौड़ रहा था अब तक,

आपका,
मेरा नज़रिया

टीवी डिबेट का गिरता स्तर

        आज शाम (20th Nov'18) को एक खाश न्यूज़ चैनल में जिस तरह डिबेट के दौरान देश की दो  मुख्य  राष्ट्रिय पार्टी के प्रवक्ताओं ने जिस घटिया स्तर की चर्चा की देखकर काफी हैरानी हुई। कैमरा के सामने बिना किसी के डर के आम जनता को या यूं कहिए अपने कार्यकर्ताओं को भड़का रहे हैं। दोनों तरफ से जिन्दाबाद मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं। महीलाओं को आगे आकर स्टेज पर आने के लिए ललकारा जाता है और उन्हें आक्रामक होने के लिए उकसाया जा रहा है और सब कुछ कैमरा के सामने। सवालों के जबाव जब आपके नहीं होते हैं तो शोरगुल का सहारा लेते हैं। ये दृश्य देखकर मुझे एक बात तो समझ आ गई अब वो दिन दूर नही जब आते दिन टीवी स्टूडियो में मारपीट भी होगी , इसका प्रमाण पिछले कुछ महीनों में देखा गया है। पिछले कुछ सालों में चुनावों में जैसे मीडिया मैनेजमेंट करके उसका फ़ायदा अपने वोट बैंक बढ़ाने में किया ये उसका विकृत स्वरूप सामने आ रहा है। जबरदस्ती अपनी बात मनवाने का जो दौर चला है मीडिया पर आतंकवादी हमला के समान है। 
               हर डिबेट में आम जनता अपने सवालों के जवाब का इंतजार करती रह जाती है और ठगा हुआ महसूस करती रह जाती है। और कार्यकर्त्ता भाई लोग ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद करके अपनी जिम्मेदारियों का भरपूर निर्वहन करने में ही अपनी शान समझते हैं। जिस टीवी मीडिया ने राजनीतिक पार्टियों के मुंह में चुनावी जीत का ख़ून लगा दिया है अब वो खुद भी इनके शिकार होने से नही बच सकते हैं। आज वो कुंठीत है ,व्यथित हैं वो चाह कर भी कुछ बोल नहीं सकता है। जो हाव - भाव मैंने एंकर का देखा उसे देख कर तो ऐसा ही लग रहा था। 
           आम आदमी असहाय,  नेताओं की नौटंकी देखने रहा है सोच रहा है क्या इन्हें इसीलिए चूना था। 
लोकतंत्र को डराकर धमकाकर जो चुनाव जीतने का जो दौर चला है ये ज़्यादा दिन चलेगा नहीं। 

आपका,
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Statue of Unity : एकता की मूर्ति

नि:संदेह  सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा पूरे विश्व में ना केवल अपनी ऊंचाई के लिए जाना जाएगा अपितु सरदार पटेल के ऊंचे विचारों से भी लोगों को अवगत करायेगा। यहां तक ठीक है । पर क्या सही में सरकार की नियत सरदार पटेल की मूर्ति और विचारों को माध्यम बनाकर प्रतिको राजनीति में नहीं है? यदि ऐसा नहीं होता तो,भारत के हर कोने से आये लोग आज नर्मदा के किनारे जय जयकार लगा रहे होते।

चौकीदार उवाच

'अब अन्नदाता बनेगा ऊर्जादाता' - कब?

'अब खेतों में फसलों के अलावा बिजली भी पैदा होगा' - कैसे?

'अपनी जरूरतें पूरी करने के बाद किसान बिजली बेच भी सकेगा' - ओके

'बीज से बाजार तक व्यवस्था में सुधार' - कब?

'बिजली पंप नहीं अब सोलर पंप' - कब से?

'हरित क्रांति के बाद अब सफेद व नीली क्रांति से आगे मीठी क्रांति की ओर बढ़ता क़दम'- बाप रे बाप इतनी क्रांति हो गई

'खेती मे कोई भी चीज निकम्मी नहीं होती' - बिल्कुल नई बात है सर

'कचरा से कंचन' - गज़ब का तुकबंदी है भाई

वाह .............जी वाह।

आपका,
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पंजाब : दशहरा दुर्घटना

बहुत ही दुःखद घटना । नवरात्रि की सारी खुशियां एकदम से ग़म में बदल गया। लोगों के चित्कार , करूण क्रंदन से लोगों का कलेजा फट गया। ऐसा जान पड़ा मानो हर किसी के घर से कोई  न कोई गया हो। अब दुर्घटना के बाद पोस्टमार्टम शुरू हो गया है। किसकी गलती है, ऐसा क्यों था, वैसा कैसे सम्भव है, शासन -प्रशासन की ग़लतियां निकाली जा रही है।

इस दु:खद क्षण में मैं कुछ सवाल उठाना चाहता हूं:

१) क्या आयोजनकर्ता इसकी जिम्मेदारी लेंगे?
२) क्या देश की ये इस तरह की पहली घटना है?
३) क्या पिछली घटनाओं से हमने सीख लिया है?
४) क्या प्रशासन से ऐसे आयोजन की अनुमति थी?
५) और अनुमति थी भी तो क्या सारे प्रावधानों का पालन किया गया था?
६) क्या रेलवे की तरफ से कोई रोक लगाई गई थी?
७) क्या इस जगह पर इससे पहले भी कोई घटना हुई थी?

ये तो शासन-प्रशासन की बात। अब हमारी बातें जो थोड़ी कड़वी तो है पर सच है,

१) देश भर में ना जाने कितने आयोजन ऐसे होते हैं जिनके लिए कोई अनुमति नहीं ली जाती है।
२) हम स्वयं भी कितना गंभीर है , दुर्घटनाओं के प्रति।
३) शासन-प्रशासन की सुझाई बातों का कितना हम अनुकरण करते हैं?
४) हम रेलवे ट्रैक पर खड़े होकर ये बोल रहे हैं कि जिम्मेदारी रेलवे की है।
५) हर जगह बाजारों में अतिक्रमण करके बैठे हुए लोग बोलते हैं सब प्रशासन की गलती है।
६) जो नियम बनाए गए हैं उन्हें तोड़ने में अपनी शान समझते हैं।
७) चलती हुई ट्रेन के छत पर खड़े होकर सेल्फी लेने वाले बोलेंगे सरकार कहां है।
८) हम कभी अपने नेताओं से नहीं पुछेंगे की वो अपने कार्यकाल में आम जनता की सुरक्षा के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं।

हमारी संस्कृति में ही कुछ कमियां हैं जो हमेशा दुर्घटना के बाद पोस्टमार्टम करती है। Proactive approach नहीं है हमारी संस्कृति में। और यदि कोई कुछ लोग कहने की कोशिश भी करता है तो उसे कोई सुनता नहीं। प्रशासन को आपकी सुरक्षा के लिए हेलमेट , सीट बेल्ट आदि के लिए कानून बनाना पड़ता है। ये दुर्भाग्यपूर्ण है।

मैं तो ये मानता हूं कि कुछ ना कुछ दैवीय शक्तियां हैं इस देश में क्योकि इतने सारे कमीयों के बावजूद हम सब सुरक्षित है। यकीन ना हो तो कभी शहरों के जाम में फंसे और विष्लेषण करें आप पायेंगे यकीनन दैवीय शक्तियां हैं। कोई भी कुछ भी करता है , सबको जल्दी है। सब नियम ताक पे रखकर निकल जाना चाहता है। ऐसा नहीं है कि कुछ ख़ास वर्ग के लोग ऐसा करते हैं । हर वर्ग के लोग पढ़ा-लिखा , अनपढ़ सब एक ही ढर्रे पर होते हैं। रेलवे में बेतहाशा भिड़ में सीट के लिए मारामारी, टिकट लेने के लिए मारामारी, रेलवे क्रासिंग पर बाइक को टेढ़ा करके निकालने की कला सिर्फ़ हम ही जानते हैं, क्षमता से दुगुनी सवारी ढोने वाली हमारी रेलवे के बारे में क्या कहने। सरकारों द्वारा दिये गये facility का बैंड तो हम एक हफ्ते में बजा देते हैं, उदाहरण आये दिन मिलता रहता है। जहां मन में आया थूक दिया , पेशाब कर दिए , सड़क पर कुंडों का अंबार लगा देंगे। और बोलेंगे जिम्मेदारी सरकार की बनती है। हम पुरी तरह से पाक-साफ है।
        हम हमारी जिम्मेदारी क्यो नही लेते? ये बहुत बड़ा सवाल भी है और सुझाव भी। हर घटना के लिए सरकार, शासन-प्रशासन को दोष देने से अच्छा है आत्ममंथन करें और देंखे आप पायेंगे हममे से ही कोई न कोई दोषी होगा।

पंजाब: दशहरा दुर्घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
ॐ शांति।।

आपका,
मेरा नज़रिया

गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हमला-एक प्रतिक्रिया

अतुल बाबू द्वारा दिए वक्तव्य पर मेरी प्रतिक्रिया

एक तरफा हकीकत बा अतुल बाबू,
जो
जे आपन घर-बार छोड़ के दिल्ली, मुंबई , गुजरात और चेन्नई में काम कर..ता , ओकरा कंपनी खोले के हैसियत ना होला।
केतना लोग कंपनी खोली और के - के नौकरी देई ऊ। तोहरा के जमीनी हकीकत मालूम होखे के चाही अतुल बाबू।
पूरा देश के हर कोना में हमनी UP और बिहार के लोग जाइल जाई , जरूरत के हिसाब से नौकरी भी कईल जाई और नौकरी देहल भी जाई। केहू के बपौती ना ह गुजरात, मुंबई, चेन्नई , दिल्ली।
रहल बात हमनी UP, Bihar में राजनीतिक हालात के , सबके मालूम ही बा केतना होनहार लोग राज करत आ रहल बा पिछला कई सालों से। उद्दोग , कल कारखाना खोले खातिर राजनीतिक इच्छाशक्ति चाही। सब त जाति - धर्म में बरगालावता ,सब ओ..ही में घुम्मता । आज पूरा मेट्रो शहरों-कस्बों का लाइफ लाइन हई हमनी UP -Bihar के लोग। एकरा कौनो सबुत का ज़रूरत नइखे आज।
आज जवन गुजरात में होता, दु:खद बा , एंकर इ मतलब ना भइल की हमनी के केहु के रहमो करम पे बानी जा। योग्यता बा और जागरूकता बा तब जा इहा टिकल बानी जा।
कुल मिलाकर इहे कहब अपना योग्यता के दम पर हम हर जगह (पूरे भारत ही नहीं पूरे विश्व भर में) काम करेंगे भी और काम देंगे।

आपका,
मेरा नज़रीया

मन की बात- यदि मै उपायुक्त होता

यदि मै उपायुक्त होता तो मेरी प्राथमिकता शहरों में रह रहे घरविहीन लोगों को घर दिलाना और उन्हें मुख्य धारा में लाने की पूरी कोशिश करता। शहर और गांव में साफ-सफाई के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता, और इस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वालों को सम्मानित करता। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को संविधान सम्मत उनके सही जगह ज़रूर भिजवाता । और हर आम-ओ-खास लोगों में कानूनी सुरक्षा भाव का एहसास कराता। बुजुर्गो लोगों के लिए एक खुला विचारशाला खुलवाने की कोशिश करता जहां आकर शहर के रिटायर्ड लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करते।सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए इनके विचारों को ज़मीनी स्तर पर लाने की कोशिश करता। शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कोई कमी ना हो इसके लिए कार्य करता, जिससे हमारे बच्चों का भविष्य ख़राब ना हो। शहर की गलियों और बाजारों में किसी भी तरह का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करता। समाज के हर तबके का लोग मुझसे सीधे संपर्क कर सके इसके लिए एक तंत्र विकसित करता जिससे इनकी समस्याओं को दूर किया जा सके। सरकारी विभागों में कार्यरत सभी सदस्य अपने कार्य ईमानदारी से करें और ज्यादा से ज्यादा समय का प्रयोग वो सभी अपने-अपने कार्यों का करने में बिताए, इसके लिए उन्हें प्रेरित करता। और अच्छे परिणाम देने वाले कर्मियों को पब्लिक प्लेटफार्म पर उन्हें सम्मानित करवाता।

आपका,
मेरा नज़रीया

*बढ़ते हुए पेट्रोल और डीज़ल के दाम पर आम आदमी और नेताओं की चुप्पी और सरकार के रवैए पर, 'मेरा नज़रीया'*

*बढ़ते हुए पेट्रोल और डीज़ल के दाम पर आम आदमी और नेताओं की चुप्पी और सरकार के रवैए पर, 'मेरा नज़रीया'*

अत्यंत दु:खद है। पर मैं आपको एक बात दावे के साथ कह सकता हूं , लोकतंत्र में वोट का बहुत महत्व है। जनता को सब समझ आ रहा है। जनता भले ही अभी चुप है , डर से मीडिया बोल नहीं रहा, पर मुझे विश्वास है यही जनता और मीडिया की चुप्पी सरकार की बखिया उधेड़ देगी अगले चुनाव में। और इसकी शुरुआत आप राज्यों के चुनाव में देखेंगे। जनता की चुप्पी सरकार के लिए काल साबित होगी। कितनों को डराओगे और कब तक डराओगे? आज हर आम आदमी व्यथित हैं, ठगा हुआ महसूस कर रहा है,। चुप है , कैसे आवाज उठाये, सहमा हुआ है, इतने बड़े विश्वासघात की उम्मीद उसे ना थी। सरकार से इतना उम्मीद था कि शुरुआती दिनों जो लोग आपस में सरकार के लिए लड़ जाते थे आज वो कैसे शांत हो गया है? उसे समझ नहीं आ रहा है अब वो किस मुंह से सरकार के खिलाफ कुछ बोले। ये सारी बातें हर उस आम आदमी के मन में ज्वाला की तरह धधक रही है । अब यही आम आदमी आने वाले चुनावों में चुपके से बोलेगा और इसकी गूंज दूर तक जायेगी, ऐसा मुझे विश्वास है।



फोटो : गूगल से लिया गया है।

आपका,
मेरा नज़रीया

हे भगवान इतनी गरीबी क्यो देता है तू?

एक छ: साल के बच्चे द्वारा अपने साल भर के बहन के लिए जमीन पर गिरे हुए खाने को लेकर भागना और उस बच्ची को खिलाते हुए उस बच्चे के आंखों में आंसू की बूंदें कलेजा हिला कर रख देता है। ये तस्वीर देखकर भगवान से मेरी शिकायत है। प्रस्तुत कविता भगवान से मेरी शिकायत का सार है।

हे भगवान,
आज शिकायत है तुझसे,
क्यो देता है इतनी गरीबी तू,
तन पे कपड़ा नहीं,
मुंह में निवाला नहीं,
कितना तरसाता है तू,
क्या बिगाड़ा है ये तेरा,
अभी ठीक से बड़ा भी नहीं हुआ,
इतना बोझ कंधे पे दे दिया तुमने,
ये कैसे पालेगा,
इस नन्ही जान को?
ये ख़ुद कैसे खायेगा,
कभी सोचा है?
तू बड़ा ही निष्ठुर है,

इसके आंसू तुझ रूलाते ते ही होंगे,
फ़िर क्यो इतनी कड़ी परीक्षा?
कुछ सोचा तो होगा,
मुझे मालूम है,
ये ऐसे रहेगा नहीं,
तू कुछ बताना चाहता है,
इस समाज को,
कर्म ही पूजा है ,
बतला रहा है तू,
किसी और की सज़ा,
किसी और को दे रहा तू,

इस नन्हे से आंखों में ,
आंसू अच्छे नहीं लगते,
बड़ा कठोर है भगवान तू,
कर दे ऐसा कुछ,
हे भगवान,
ना हो कोई भूखा इस धरा पर,
हो हरा-भरा चहुं ओर,
ना हो भूख की चित्कार,
सबका हो सत्कार,
बस ऐसा कर दे एक बार,
हे भगवान।


आपका,
मेरा नज़रीया

जायसवाल समाज- आम सभा

स्वागत : मंच पर आसीन समाज के वरिष्ठ नेतागण और हमारे समाज से आए हुए सभी सम्मानित भाईयों और बहनों, मैं रवीन्द्र नाथ जायसवाल टेल्को से आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन और स्वागत करता हूं।
श्री शम्भु नाथ जायसवाल जी को राष्ट्रीय महासचिव बनने की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए ये आशा करता हूं आने वाले समय में वो राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को भी सुशोभित करेंगे और समाज को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रयास करेंगें।
  अभिनन्दन समारोह में आदरणीय श्री शम्भु जी ने समाज के इतिहास के बारे में कुछ जानकारी शेयर किया और बताया की हमारी संख्याबल उतनी नहीं है कि हम इलेक्शन में जाए । इसके बजाय हम सेलेक्शन के माध्यम से अपने अध्यक्ष और महासचिव चुने ले।अभी की स्थिति को देखते हुए मैं इनकी बातों का समर्थन करता हूं। पर मेरे कुछ सवाल हैं जिसका जवाब मैं अपने वरिष्ठ नेताओं से जानना चाहता हूं :
१) सन 1980 से चल रही हमारे समाज में , आजीवन सदस्यों संख्या केवल 234 क्यों है? इसे बढ़ाने के लिए आपने क्या प्रयास किया?
२) समाज में प्रतिनिधित्व एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित क्यों रखा गया?
३) पिछले 10 सालों में समाज की क्या उपलब्धि है?
४) हर साल समाज का लेखा-जोखा सार्वजनिक क्यों नहीं होता है ?
५) और क्यों समाज के कुछ लोग समाज को अपना जागीर मान बैठे हैं?
     पिछले कुछ दिनों से समाज में जो कुछ  हो रहा है वो उचित नहीं है और मैं इसकी घोर निन्दा करता हूं। आज कुछ लोग पैसे के बल पर समाज का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं वो सरासर ग़लत है।
     क्या इस घटनाक्रम के लिए सिर्फ़ वही दोषी है? मुझे नहीं लगता। समाज में संवादहीनता इसकी जड़ है। हमारे बीच संवाद की कमी है इस बात को हम नकार नहीं सकते।
     
          मैं काफी सकारात्मक व्यक्ति हूं और मुझे समाज में आज हो रही  घटनाओं में भी कुछ सकारात्मकता दिख रही हैं। अब हमारा समाज पहले से ज्यादा अलर्ट रहेगा।
सुझाव : मेरे कुछ सुझाव है जो मैं शेयर करना चाहता हूं :
1) समाज में सदस्यता अभियान चला कर सब को जोड़ा जाए
२) क्षेत्रवार कमेटी बनाकर उनकी जवाबदेही तय किया जाए
३) महीने में कम से कम एक बार समाज की एक बैठक अवश्य हो
४) समाज में युवाओं की भागीदारी को बढ़ाया जाए या हो सके तो युवा मंच की स्थापना किया जाए
५) समाज के लोगों के छोटे-छोटे समस्याओं का बातचीत से निस्तारण
६) ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया का प्रयोग करके समाज के हर परिवार को जोड़ा जाए
७) समाज के कमजोर परिवारों के शादी-ब्याह में समाज के सभी लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाए
          आइए आज हम सब ये संकल्प लें हम अपनी व्यक्तिगत लाभ-हानी को छोड़कर समाज के उत्थान के लिए लगातार प्रयास करते रहेंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद!!

एक अनजान बच्चा

ट्रेन में सफर के दौरान एक बच्चा उम्र मुश्किल से 6-7 साल होगी में घूम-घूम कर कलाबाजियां दिखा रहा था। देखने में मासूम अपने काम में मशगूल था। बच्चे में टैलेंट की कोई कमी नहीं पर ऐसा क्या है कि वो इस काम में लगा हुआ है। मेरे से रहा नहीं गया मैंने बच्चे से जानने की कोशिश की वो स्कूल क्यो नही जाता है?, उसके पिता जी क्या करते हैं? वो कितना कमा लेता है? और क्या वो स्कूल जाना चाहता है?
बच्चे का जवाब था उसके पिता जी मज़दूरी करते हैं  और वो अपनी मां के साथ रहता है और वो दिन भर 300-400 रूपये तक कमा लेता है।और वो अपनी दिनभर की कमाई को अपनी मां को दे देता है। स्कूल जाने के नाम पर वो बोलता है उसे स्कूल नहीं जाना उसे यही काम अच्छा लगता है। ये सूनकर मैंने उस स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया और एक छोटी सी धनराशि उसे दिया और उसे बोला कि घर जाकर अपने पापा से बोले कि वो पढ़ना चाहता है। मुझे उम्मीद है उसके पिता जी शायद समझ जायेंगे और वो इस बच्चे के बचपन को ऐसे ही बर्बाद नहीं करेंगे।
                 मैं समाज के हर व्यक्ति से आग्रह करता हूं जितना हो सके बच्चों में शिक्षा के प्रति आकर्षण पैदा करें और समाज के उन गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाने में अपना योगदान दें। आपकी छोटी सी सलाह, मोटीवेशन ना जाने कितने बच्चों की जीवन संवार सकता है। मेरा ऐसा मानना है शिक्षा ही एक ऐसा मंत्र है जो आपको एक दूसरे से अलग करता है और आपको आगे बढ़ने में मददगार होता है।
आपका,
मेरा नज़रीया

Is Privetisation is the only solution for the Growth of Country

No,
Privataisation is not the only solution of the country growth.
Before discussion on Country Growth 1st you understand what is the growth means for an individual. lot of bench mark we have to set before starting of debate i.e. Per capita income, Country Growth data, Infrastructure development, etc.
There are nos of example of failed private industry which is not full fill the it's requirements & earned money.
1) Why government employee stop the file movement? Actually the employee is following the Govt. defined rule.
2) When you give some money, actually he bypass the rules & law bypass.
3) What actually private company do, which is not done by the Govt.
4) Why Govt. Not learn from private the company & implement in government organisation?
5) Rules & regulation made by the government not by the employee. In this case Govt pull back his hand & transfer the responsibility to 3rd Party.
6) Private Company is working for earn the money not for the society? But the government have the social responsibility also.
7) Govt has to be perform on not only basis vote they also change the culture.
Is management education necessary to succeed in business?
In my point view every body have inbuilt management thought.
If formal business study must need for success how Mr Ambani succeed?
Most of the business trick written after success of the individual.
DNA type thing is very nice line.
If want to go fast grow then you should have a basic knowledge of Management.

आपका ,
मेरा नज़रिया  




BITS Exam completion

    मैं रवीन्द्र नाथ जायसवाल Bits pilani 1st के पूरी टीम के तरफ से यहां उपस्थित सभी सम्मानित सर लोगों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूं।और साथ ही साथ हमारे गूरु श्री Dr. Arun Maity और हमारे Plant Head श्री संपत कुमार सर का तहे दिल से स्वागत करता हूं, जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर हम सबका मान बढ़ाया है। आज हम सब यहां हर सेमेस्टर में exam देने और हर संडे को क्लास करने से  मुक्त होने की खुशी मनाने एकत्रित हुए हैं। आप बोलेंगे इसमें कौन सी खुशी है इसे समझने के लिए आइए कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं : -

BITS Untold story:
1000 दिनों का अथक प्रयास
42 सप्ताहों का संघर्ष यानी लगभग 3.5 सालों की यात्रा
48 Exam
20 Subjects
Online labs
Nos of Assignment

हम सबने बड़ी मेहनत से अपने परिवार, प्लांट और Bosses के साथ समन्वय बनाकर इस यात्रा को इस मुकाम तक पहुंचाया है। घर में जब हमारे बेटे-बेटियां Sunday को कहीं बाहर चलने की जिद  करते तो हम बड़ी आसानी से फिर कभी चलेंगे बेटा कह कर क्लास करने निकल जाया करते थे। क्योंकि ये ज़िद हमारी थी कि "हमें ग्रेजुएट बनना है" । इसे पाने के लिए हमने अपने emotions अनेकों बार सम्भाला है,इन 3.5  सालों में ।
          Degree की अहमियत क्या होती है शायद अपने  Diploma के समय हमें इसका एहसास भी ना था। कुछ सालों के industrial अनुभव होने के बाद ही आपको एहसास हो जाता है कि "Degree होता तो अच्छा होता".

हमारे इस टीम में औसत उम्र 35-40 साल है और लगभग सभी लोगों का industrial experience minimum 12 सालों से ज्यादा का है। उम्र के इस पड़ाव पर ये Degree हमारे carrier growth के लिए वरदान साबित होगा ऐसा मेरा मानना है।

       इस पहले कि आप अभी अपने आपको ग्रेजुएट मान लें मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं  "पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त" । आज हम सब हर सेमेस्टर में exam देने और हर Sunday क्लास करने से मुक्त हुए " प्रोजेक्ट अभी बाकी है मेरे दोस्त" । जैसा कि सबको याद होगा हमारे Plant head श्री संपत कुमार सर ने हमें हमारी क्लास में बताया था कि The project activities closely monitored by him. & Our degree will be awarded only after successfully completion of the project.

सो बिना कोई break  लिए अगले 19 Aug से हम सबको Project work में लग जाना है। और मैं on behalf of Bits 1st batch team , Plant Head को Assure करता हूं कि हम सब अपने-अपने Project work सफलतापूर्वक पूरा करेंगे और आपके ही हाथों Graduation का certificate भी लेंगे।

बहुत  बहुत धन्यवाद।

छुपा हुआ टैलेंट

कभी-कभी समय आपको बहुत सोचने पर मजबुर कर देता है। प्रतिभा कभी भी संसाधनों का मोहताज नहीं होता है। आप अपने बच्चों को दुनिया के सारे संसाधन से भर दें , परन्तु ये कोई जरूरी नहीं कि आपका बच्चा प्रतिभावान हो जायेगा। प्रतिभा संसाधन से ज्यादा बच्चों में आन्तरिक होती है।

रविवार को झुग्गियों और मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने के क्रम में इस बात को और बल मिला। बच्चों में सिखने की जो ललक मैं वहां महसूस किया वो अद्भुत है। बच्चों को थोड़ा सा गाइड करने से बच्चे तेजी से सिखते है। संसाधनों का इतना अभाव है कि सामान्य लोगों के जीना मुश्किल हो जाये। पर इन बच्चों को इसका कोई रोना नहीं है।

मेरा एक छोटा सा प्रयास है इन बच्चों में छुपी हुई प्रतिभा को बाहर निकालने का। रविवार को इन बच्चों के लिए थोड़ा समय निकाल लेता हूं और इन्हें इनकी पढ़ाई में गाइड करता हूं। मेरा ये मानना है कि किसी भी परिवार के जीवन स्तर सुधारने शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। मैं चाहता हूं आप भी अपने आसपास ऐसे लोगों को देखें और उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उनका जीवन स्तर तो सुधरेगा ही और आप समाज को एक नई दिशा में आगे बढ़ने में भी मदद कर पायेंगे।

जमशेदपुर में “वाइस आफ ह्यूमिनिटी” एक ऐसी संस्था है जो मिशन साक्षर चलाती है।इस टीम का हिस्सा आप भी बने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें।

आपका,

मेरा नज़रीया

परीक्षा पर चर्चा

राजनीति से ऊपर उठकर एक बार इस सराहनीय प्रयास को देखिए। कैसे देश का प्रधानमंत्री बच्चों के मन परीक्षा के भय को दूर करता है। और ना केवल बच्चों की अपितु माता-पिता, गुरु और समाज के हर उस शख्स के बारे बातें करते हैं। निश्चित रूप से ये प्रयास फायदेमंद होगा। पूरा परिवार एक साथ इसे देखें और इसका अनुकरण करें।
इस विडियो को देखते समय बहुत बार मुझे अपने गुरु जी श्री समीउल्लाह सर की बातें याद आयी।

https://www.facebook.com/narendramodi/videos/10160080603730165/

कोई इनकी भी तो सुध ले

समाज की एक कड़वी सच्चाई ये है कि किसी के पास बहुत पैसा है तो किसी के पास अभाव की पराकाष्ठा। ये एक-एक दिन को बस काटते हैं । इनकी अपनी कोई इच्छा नहीं है बस किसी तरह खाने का जुगाड़ हो जाए बस इसी के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। इन्होंने गरीबी को अपना तकदीर मान लिया है। कर्ज में जन्म लेते हैं और कर्ज में ही मर जाते हैं।और फिर इनके बच्चों के साथ वही स्थिति दोहराई जाती है। कौन सुध लेगा इनके बच्चों का ? सरकारें बड़ी-बड़ी बातें तो बहुत करती हैं पर क्या हकीकत में इनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है? इन्हें तो अपने अधिकारों की भी जानकारी नहीं है , कैसे किसी से अपना हक़ मांगे ? और कौन सुनेगा इन गरीब परिवारों की परेशानियों को। बहुत सारी स्वयं सेवी संस्थाएं इनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए प्रयासरत और वो बधाई के पात्र हैं। ऐसे ही एक संस्था जमशेदपुर में कार्यरत हैं जिसका नाम है "Voice of humanity (VOH). मुझे भी इस टीम के साथ कार्य करने का मौका मिला । और मैंने अपने स्वभाव के अनुरूप इन गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया है। इन बच्चों के साथ VOH की टीम मिशन साक्षरता का एक कार्यक्रम चला रही है जिसमें हमारा Contribution एक शिक्षक के रूप बच्चों को ट्यूशन देने का है। मिशन सााक्षरता पूर्णतया फ्री सेवा है जिसमें कोई भी व्यक्ति स्वेच्क्षा से अपनी सेवा दे सकता है। ये वो बच्चे हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग ही सोचते हैं। मेरा नज़रीया ये है कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो आपके जीवन स्तर को सुधार सकती है। इसीलिए मैंने इन बच्चों के शिक्षा में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करने का फैसला किया है। समाज के भलाई के लिए मेरा हमेशा प्रयास रहेगा कैसे और लोग इस नेक काम में भागीदार बनें और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन करें।




आपका,
मेरा नज़रीया

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

        आखिर हमें बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के इस अभियान की जरूरत क्यों पड़ी जाहिर है इसके पीछे कन्या भ्रूण हत्या के कारण देश में तेजी से घटता लिंगानुपात है जिसके कारण अनेक सामाजिक समस्याएं समाज में उत्पन्न हो रही है आखिर कन्या भ्रूण हत्या क्यों की जाती है इसके पीछे छुपी मानसिकता क्या है इसके क्या खतरे हैं इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है तथा कैसे इस समस्या का निदान किया जा सकता|
मैं माताओं से पूछना चाहता हूं कि बेटी नहीं पैदा होगी तो बहू कहां से लाओगे हम जो चाहते हैं समाज भी वही चाहता है हम चाहते हैं कि बहु पढ़ी-लिखी मिले परन्तु बेटियों को पढ़ाने के लिए हम तैयार नहीं होते हैं आखिर यह दोहरापन कब तक चलेगा यदि हम बेटी को पढ़ा नहीं सकते तो शिक्षित बहू की उम्मीद करना भी बेमानी है जिस धरती पर मानवता का संदेश दिया गया हो वहां बेटियों की हत्या बहुत ही दुख देती है भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के जो 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत पर व्यक्त कर रहे थे यह अभियान केंद्र सरकार के महत्वकांक्षी कार्यक्रमों में से एक है|
कन्या भ्रूण हत्या लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न सामाजिक मूल्यों के कारण जान बुझकर की गई हत्या होती है कन्या भ्रूण हत्या उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहां के सांस्कृतिक मूल्य लड़के को करने की तुलना में अधिक महत्व देते हैं भारत में यह प्रथा कोई नहीं नहीं है मध्य काल से इस प्रथा के अस्तित्व में आने के प्रमाण मिले हैं जब मुस्लिम आक्रमण कार्य तथा शासक वर्ग के द्वारा लड़कियों का शोषण किया जाता था इनसे बचने के लिए कन्या शिशु को मारने की परंपरा तब से प्रारंभ हुई|
इसके अलावा विद्वानों ने इसे दहेज से जुड़कर भी देखा था ना कि प्राचीन काल में इस प्रकार नहीं मिले हैं वैदिक काल में तो कंन्याओं की शिक्षा दीक्षा का उचित प्रबंध किया जाता था। ऋग्वेद में सकता घोसा,अपाला आदि अनेक विदेशी स्त्रियों के नामों का उल्लेख किया गया है जिन्होंने ऋग्वेद के अनेक मंत्रों की रचना की है गाड़ी के नाम से भी हम परिचित हैं जिन्होंने गार्गी संहिता नामक प्रसिद्ध खगोल विज्ञान के ग्रंथ की रचना की तथा यज्ञ कर लिया जैसे विज्ञान विषयों को शास्त्रार्थ युद्ध में पराजित कर दिया था|
प्रसिद्धि स्मृति कार महर्षि मनु ने तो अपनी विश्वविख्यात कृति मनुस्मृति में लिखा है यत्र ना्यरस्तुपूज्यंते रमंते तत्र देवता अर्थात जहां नारी नारियों का सम्मान होता है वहां देवताओं का निवास होता है परंतु वर्तमान में इसकी एकदम विपरीत स्थिति हो रही है क्योंकि पहले तकनिक नहीं थी इसलिए कन्या शिशु को जन्म लेने के बाद मार दिया जाता था किंतु अब तकनीकी कारण कन्या भूर्ण को गर्भ में ही मार दिया जाता है|
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सुनियोजित लिंग भेद के कारण भारत की जनसंख्या से लगभग 5 करोड़ लड़कियां गायब है विश्व में अधिकतर देशों में प्रति पुरुषों पर लगभग 105 स्त्रियों का जन्म होता है जबकि भारत में सबसे ऊपर केवल 930 ही है संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2000 में अजन्मी कन्या की हत्या की जाती है| भारत में यह स्त्री विरोधी नजरिया समाज के सभी वर्गों में फैला है भारत में स्त्रियों को महत्व ना देने के कई कारण हैं जिन में आर्थिक उपयोगिता सामाजिक उपयोगिता तथा धार्मिक उपयोगिता प्रमुख है|

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या जनसंख्या से जुड़े संकट उत्पन्न कर सकती है वर्ष 1981 में 0 से 6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 962 जानू में घटकर 945 तथा 2001 में 9 से 27 अगस्त 2011 और अधिकतर हटकर 914 रह गया इसाई वर्ग में सर्वाधिक चिंताजनक स्थिति हरियाणा 830 पंजाब 846 जम्मू-कश्मीर 800 राजस्थान 888 तथा उत्तराखंड आज 890 रन घटते लिंगानुपात के कारण इन राज्यों में अविवाहित युवकों की संख्या बढ़ रही है हरियाणा एवं पंजाब में तो 9:00 बजे यहां एक ही विवाह के लिए लड़कियों को गरीब राज्य तथा आदिवासी क्षेत्रों से खरीद कर लाया जा रहा है हरियाणा में तो अनिकेत ऐसे हैं जहां एक ही स्त्री से एक से अधिक पुलिस विभाग कर रहे हैं|

यह तो सामाजिक प्रभाव है यदि हम एक दूसरे नजरिए से देखें तो कन्या भ्रूण हत्या से भारत की उस महिला शक्ति का विनाश हो रहा है जो वर्तमान में भारत को आर्थिक सामाजिक रुप से समृद्ध कर सकती है इसी कारण भारत सरकार लंबे समय से मीठे को बचाने के लिए प्रयत्नशील रही है इसको रीति को समाप्त यह तो सामाजिक प्रभाव है यदि हम एक दूसरे नजरिए से देखते तो कन्या भ्रूण हत्या से भारत की ओर से मेरा शक्ति का विनाश हो रहा है जो वर्तमान में भारत को आर्थिक सामाजिक रुप से समर्थन कर सकती है इसी कारण भारत सरकार लंबे समय बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के लिए प्रदर्शित रही है इसको टोक्यो को समाप्त करने तथा लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं सरकार द्वारा देश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए अपना ही गई बहु आयामी रणनीति इस में जागरूकता पैदा करने और विश्वविद्यालय वह उपाय करने के सांसद महिलाओं पर सामाजिक आर्थिक रुप से अधिकतर संपन्न बनाने के लिए कार्यक्रम शामिल हैं |
इनमें  से कुछ उपाय निम्नलिखित है:-
  • गर्भधारण करने से पहले और बाद में लिंग चयन रोकने और प्रसव पूर्व निदान तकनीक नियमित करने के लिए सरकार ने व्यापक कानून का पधानाचाय पूर्व और प्रसव पूर्व निदान लिंकन पर रोक कानून 1994 में लागू किया है इसमें वर्ष 2003 में संशोधन किया गया|
  • सरकारी कानून को प्रभावशाली तरीके से लागू करने में 30 जुलाई और उसने विभिन्न नियमों में संशोधन की है जिसमें गैर पंजीकृत मशीनों को सील करने और उन्हें जब तक करने तथा गैर पंजीकृत क्लीनिकों में दंडित करने का प्रावधान है वो टेबल अल्ट्रासाउंड उपकरण का इस्तेमाल का नियमन केवल पंजीकृत परिसर के भीतर अधिसूचित किया गया इस के तहत कोई भी मेडिकल प्रेक्टिशनर एक जिले के भीतर अधिकतम 2 अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ही अल्ट्रासोनोग्राफी कर सकता है साथ ही पंजीकरण शुल्क अभी बनाया गया|
  • स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों से आग्रह किया गया है कि वह अधिनियम को मजबूती से कार्यनीति करें और गैरकानूनी रूप से लिंग पता लगाने के तरीके को रोकने के लिए कदम उठाएं|
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत सभी राज्यों के मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वे लिंग अनुपात की प्रवृत्ति को लड़ते हैं और शिक्षा पर बालिकाओं की अनदेखी की प्रवृति पर रोक लगाएं|
  • स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों में कहा कि वह इस कानून को गंभीरता से लागू करने पर अधिकतम ध्यान दें|
  • पीएनडीटी कानून के अंतर्गत केंद्रीय निगरानी बोर्ड का गठन किया गया और इसकी नियमित बैठक कराई गई|
  • वेबसाइट ओपन लिंग चयन के विज्ञापन रोकने के लिए यह मामला संचार है उस सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के समक्ष उठाया गया हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सर्च इंजन गूगल को लिंग जांच से संबंधित सभी विज्ञापन हटाने का निर्देश दिया था|
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत राष्ट्र निरीक्षण और निगरानी समिति का पुनर्गठन किया गया और अल्ट्रासाउंड संबंधी सेवा समिति बिहार छत्तीसगढ़ दिल्ली हरियाणा मध्य प्रदेश पंजाब उत्तराखंड राजस्थान गुजरात और उत्तर प्रदेश में निगरानी का कार्य किया गया|
  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कानून के कार्यान्वयन के लिए सरकार सूचना शिक्षा और संचार अभियान के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता दे रही है|
  • राज्य को सलाह दी गई की कन्या भ्रूण हत्या के कारणों का पता लगाने के लिए कम लिंग अनुपात वाले जिले ब्लॉकों काम पर विशेष ध्यान दें उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन संपर्क अभियान तरह तैयार करें और पीसी एंड पीएनडीटी कानून के प्रावधानों को प्रभावशाली तरीके से लागू करें|
  • धार्मिक नेता और महिलाएं लिंग अनुपात और लड़कियों के साथ भेदभाव के खिलाफ चलाए जा रहे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में शामिल हो|
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ ही इस विषय को अधिक व्यापक बनाने के लिए से शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना आवश्यक है आने वाली पूरी पीढ़ी तभी शिष्य के प्रति संवेदनशील हो पाएगी जब बचपन से ही उसे यह शिक्षा दी ज
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के इस कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने लड़कियों को बचाने उनकी सुरक्षा करने और उन्हें शिक्षा देने के लिए निम्न बाल लिंग अनुपात वाले साउथ हीरो में इस पूरी रीती को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है यह कार्यक्रम महिला एवं बाल विकास मंत्रालय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संयुक्त पहल है |
इस कार्यक्रम के अंतर्गत निम्नलिखित क्रियाकलाप शामिल भी किए गए हैं :-
  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय आंगनवाड़ी केंद्रों पर गर्भावस्था के पंजीकरण को पद स्थापित करना भागीदारों को प्रशिक्षित करना समुदाय के लाभ लामबंदी और संविदा विकरण लैंगिक चैंपियन को शामिल करना अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं एवं संस्थानों को मान्यता और संस्कार देना
  • स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय गर्भधारण पूर्व जन्म पूर्व जांच तकनीकों का निगरानी 9394 अस्पतालों में प्रसव का पंजीकरण पटेल को मजबूत करना निगरानी समिति का गठन
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय लड़कियों को का संयोजन के पंजीकरण ड्रॉपआउट दर में कमी लाना विद्यालयों में लड़कियों की आवश्यकता अनुसार सुविधाएं उपलब्ध कराना शिक्षा के अधिकार अधिनियम का शक्ति से क्रियांवयन कर्नल लड़कियों के लिए शौचालयों का निर्माण करना
सरकार द्वारा चलाए गए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत बेटी को बचाना है उसे पढ़ा लिखा कर योग्य बनाने के लिए जब तक हम समझकर शील नहीं होंगे हम अपना ही नहीं आने वाली सदियों तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक भयानक संकट को निमंत्रण दे रहे। इतिहास साक्षी है कि जब भी स्त्रियों का अवसर मिले हैं उन्होंने अपनी उपलब्धियों के कीर्तिमान स्थापित किए हैं आज शिक्षा के क्षेत्र में सत्ता से 75% और चिकित्सा क्षेत्र में 7% से अधिकतर महिलाएं हैं

आपका ,
मेरा नज़रिया 

क्या ये सिर्फ राजनीति नहीं है?

पिछले कुछ सालों से एक दौर सामने आया है। किसी भावुक मुद्दे पर जबरदस्त विरोध करो, और इतना विरोध करो की मामला हिंसक ना हो जाए। चुकी मुद्दा भावुक होता है इसलिए जनसमर्थन मिल ही जाता है। हिंसा फैलते ही सारे न्यूज़ चैनलों , राष्ट्रीय समाचार पत्रों का हेडलाइन बन जाना और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनना अब ये आम बात है। और फिर यही से शुरू होती है नेता बनने की कहानी। जो भी संगठन इन सब विरोधों में शामिल  होती है उनमें कुछ अच्छे वक्ताओं की तलाश करती है और उन्हें न्यूज़ चैनलों की दुनिया में ढकेल देती हैं। कुछ युवाओं की टोली संगठन के विचारों को सोशल मीडिया पर वायरल करने में लग जाती है। सभी का सिर्फ एक मक़सद होता है कैसे मीडिया में चर्चा होती रहे। लोग ग़लत या सही इनकी बात करते रहे। अक्सर आप ग़ौर करेंगे तो पायेंगे जहां सबसे ज़्यादा विरोध हो रहा होगा वहां पे अगले कुछ महीनों में चुनाव होने वाले होते हैं। सारे कर्मठ कार्यकर्ताओं के मन में उन चुनावों में अपना भविष्य नज़र आने लगता है। न्यूज़ चैनलों में भी टी आर पी के होड़ मची रहती है इसके लिए ऐरे गेरे किसी को भी बुला कर उनके निहायत लो क्वालिटी डिबेट करते हैं। इन सब फ़ालतू के बहसों में दोनों जीत जाते हैं और वो मुद्दा हार जाती है। चुनाव होते हैं इनमें से बहुत से योद्धाओं की अलग-अलग पार्टीयों से टिकट मिल जाता है और उनकी नेतागिरी शुरू हो जाती है। और जिस भावुक मुद्दे को लेकर वो आगे बढ़े थे चुनाव जितते ही सब भुल जाते हैं।

       आप पिछले तीन-चार सालों की किसी भी बड़े घटनाओं को याद करिए सब में यही प्रक्रिया दोहराया गया है। आम जनता मुर्ख बने ये सब देखती रहती है। नेता बनने का ये नया  दौर चल रहा है । इन सब प्रक्रियाओं में लोगों का पत्रकारिता से भरोसा लगभग उठ गया है। अब लोग न्यूज़ चैनलों को अलग-अलग पार्टीयों से रिलेट बड़ी आसानी से कर लेते हैं।

आजकल पूरे देश में फिल्म के विरोध में जो भी चल रहा है वो सिर्फ राजनीति है और कुछ नहीं।
कुछ तस्वीरें शेयर करता हूं जिससे आप कुछ अंदाज़ा लगा पायेंगे।

नोट : तस्वीरें गूगल से ली गयी है।








आपका,
मेरा नज़रीया

बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...