हे भगवान इतनी गरीबी क्यो देता है तू?

एक छ: साल के बच्चे द्वारा अपने साल भर के बहन के लिए जमीन पर गिरे हुए खाने को लेकर भागना और उस बच्ची को खिलाते हुए उस बच्चे के आंखों में आंसू की बूंदें कलेजा हिला कर रख देता है। ये तस्वीर देखकर भगवान से मेरी शिकायत है। प्रस्तुत कविता भगवान से मेरी शिकायत का सार है।

हे भगवान,
आज शिकायत है तुझसे,
क्यो देता है इतनी गरीबी तू,
तन पे कपड़ा नहीं,
मुंह में निवाला नहीं,
कितना तरसाता है तू,
क्या बिगाड़ा है ये तेरा,
अभी ठीक से बड़ा भी नहीं हुआ,
इतना बोझ कंधे पे दे दिया तुमने,
ये कैसे पालेगा,
इस नन्ही जान को?
ये ख़ुद कैसे खायेगा,
कभी सोचा है?
तू बड़ा ही निष्ठुर है,

इसके आंसू तुझ रूलाते ते ही होंगे,
फ़िर क्यो इतनी कड़ी परीक्षा?
कुछ सोचा तो होगा,
मुझे मालूम है,
ये ऐसे रहेगा नहीं,
तू कुछ बताना चाहता है,
इस समाज को,
कर्म ही पूजा है ,
बतला रहा है तू,
किसी और की सज़ा,
किसी और को दे रहा तू,

इस नन्हे से आंखों में ,
आंसू अच्छे नहीं लगते,
बड़ा कठोर है भगवान तू,
कर दे ऐसा कुछ,
हे भगवान,
ना हो कोई भूखा इस धरा पर,
हो हरा-भरा चहुं ओर,
ना हो भूख की चित्कार,
सबका हो सत्कार,
बस ऐसा कर दे एक बार,
हे भगवान।


आपका,
मेरा नज़रीया

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