उदासी का कारण मैने पत्नि से साझा किया। लगभग 6 बज रहें होगें, दिन क २-३ घंटे की गहरी नींद के बाद। उठते ही मोबाइल देखते हुए सन्न रह गया। मेरे बचपन के मित्र (जो अब दुनिया में नहीं है) के पिता जी के आकस्मिक निधन का दुखद पोस्ट शेयर किया गया था। अचानक मै अपने बचपन के दिनों में खो गया। सफेद धोती और कुर्ता में सदैव दिखने वाले पितातुल्य चाचा जी के साथ के दिनों की स्मृति आंखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगी। उनका चेहरा बार बार सामने आ रहा है। साथ में एक शुकुन की आज मेरा मित्र बहुत खुश होगा क्यूँकि आज उसके पिता जी उससे मिलने आ रहें हैं। और अगले ही पल गंभीर चिंता मन को हैरान और परेशान कर रही है।
आज गांव को छोड़े हुए लगभग २४-२५ साल होने को है। मेरे बचपन की कुल मिलाकर ६-७ सालों की स्मृतियाँ है जो लगभग १९९४-२००१ के बीच गुजरी है। उसके पहले १९८४ - १९९३ के बीच का समय कुछ याद भी नहीं है। समय कैसे तेजी से बित रहा है पिछे मुड़कर कर देखता हूं तो ऐसे लगता है धीरे धीरे उन पुराने लोगों का साथ छुटता जा रहा है।
देहावसान एक सच है। सच को स्वीकारना होगा। आज इनकी बारी कल किसी और की। यही सच है।
आपका,
मेरा नज़रिया
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