शिक्षा और पैसा (Education & Money)

            आज हमारे देश में दो तरह की दुनिया है एक वो जिनके पास बहुत पैसा है और दूसरा वो जिनके पास कुछ भी नहीं है। जिनके पास पैसा है उनके पास ज्ञान की कमी है और जिनके पास नहीं है वो बहुत कुछ कर सकते है। पैसे वाले परिवारों को लगता है वो पैसे से कुछ भी पा सकते हैं यहाँ तक ज्ञान भी। परन्तु ऐसा नहीं है, हर साल आपको हज़ारों उदाहरण मिल जायेंगे जो बिना पैसों  के भी लाइफ़ में सफल हुए हैं । बहुत ज़रूरत है तो एक सही मार्गदर्शन की ,जो हमारे इसी समाज बहुत से लोग हैं जो इस काम को बखूबी निभा रहे है और जिनके जीवन का सिर्फ़ एक मकसद है 'समाज सेवा'.
             आजकल शिक्षा-अर्जन को पैसे से जोड़ दिया गया है। पर क्या कभी शिक्षा पैसों से खरीदी जा सकती है ? पर ये भी सच है की शिक्षा से पैसा बहुत कमाया जा सकता है इसमें  कोई शक़ नही है।  ऐसे देश में ढेरों उदाहरण मिल जायेगे जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाया और सफ़ल हुए है। अभी हाल ही में IIT और UPSC के  परिणाम घोषित हुआ। पूरे देश से ढेरों कहानियाँ सामने आयी जैसे कि कैसे एक सामान्य घर का लड़का या लड़की ने अपने दम पर देश की सबसे कठिन परीक्षा को पास किया। कैसे एक गाँव में रहने वाला किसान, मज़दूर ,रिक्शा वाला ,मिस्त्री के बच्चों ने अपना अलग मुकाम बनाया।  ये बातें साबित करती है कि शिक्षा किसी खाश सूख-सुविधाओं की मोहताज़ नही होती। जो भी बच्चे देश के इन कठिन परीक्षाओं में पास हुए है चाहे वो अमीर हो या गरीब ,ख़ास हो या आम,एक बात दोनों में कामन होगी वो है "कठिन परिश्रम और लगन", बिना मेहनत और लगन के कोई ये कहे कि शिक्षा पैसों से खरीदी जा सकती है तो वो सरासर झूठ बोल रहा है और अपने आप और समाज दोनों को धोखा दे रहा है। जैसा कि आजकल प्रचारीत किया जा रहा है यदि आप फलाँ कोचिंग में जायेगे तो निश्चित रुप से सफलता आपके कदम चूम लेगी। पर हक़िकत में ऐसा नही है। मै यहाँ कोचिंग का विरोध नही कर रहा हूँ  मेरा विरोध धोखा देंने वाले मार्केटिंग टैगलाईन से है। जो शिक्षक इन बडे संस्थाओं में पढा रहे है वो काफ़ी जानकार हैं  और वो कभी भी सफलता का कोई शोर्ट आपको नही बतायेगे क्योंकि उन्हे भी इस पढाई का मर्म पता है। 
          आज देश में प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने के लिए बहुत सारे कोचिंग संस्थाए खुल चुकी हैं और वो कारगर भी साबित हो रही है। इन संस्थाओ ने वैज्ञानिक तरीके से अपने कोर्स को तैयार किया है जो कि प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत लाभकारी सिद्ध हो रही है। आज युवा और अनुभवी अध्यापकों का एक मिला -जूला प्रयोग कोचिंग  संस्थाओ में दिख रहा है। एक तरफ युवा तकनिकी का सहारा लेकर नित नए प्रयोग कर रहे हैं वही दूसरी ओर अनुभवी अध्यापक पारम्परिक तरीके से ज्ञान देने में लगे है। 
        "शिक्षा और पैसा" ये शीर्षक जो मैंने लिया है इसके पीछे ये साबित करना है कि शिक्षा ही एक ऐसा मंत्र है जो बिना इन्वेस्टमेंट के आपको ज़मीन से आसमान पे पहुँचा सकती है। शर्त यही है कि आपको "कठिन परिश्रम और लगन"करना होगा। 

"शिक्षा पैसों से नहीं खरीदी जा सकती , पर शिक्षा से पैसा बहुत कमाया जा सकता है "

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RAM Vs MIRA (Mr. PRESIDENT ) - महामहिम राष्ट्रपति

        वाह गज़ब का जंग है ये। प्रधानमंत्री मोदी ने सबको चौकते हुए राम नाथ कोविंद का नाम राष्ट्रपति पद के लिए लेकर सारे विपक्ष को चारों खाने चित्त कर दिया है। और यही खासियत है मोदी-शाह की जोड़ी में। जो आपको पहले मालूम हो जाये, तो राजनीती किस बात की। आनन -फानन में विपक्ष ने भी मीरा कुमार का नाम आगे करके नहले पर दहला मार दिया। अब ये चुनाव सिर्फ़ राष्ट्रपति का नहीं रह गया है। ये जातिगत राजनीती की पराकाष्ठा है। दलित वोटों को साधने की सीधी तैयारी है सभी दलों में। आकड़ो का खेल देखें तो  परिणाम राम नाथ कोविंद के पक्ष में जाता हुआ दिख रहा है। परन्तु चुनाव में कुछ दिन और है आगे -आगे देखते है होता है क्या ?

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INTERNATIONAL 'YOGA DAY' अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21st June

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 

           आज विश्व 'योग दिवस ' है। आज शाम होते-होते सारे सोशल मिडिया को योग दिवस के विहंगम दृश्यों. से पाट दिया जायेगा। यदि आप लेट उठने वालों में से है तो आपको लगेगा कि आज आपने कुछ खो दिया है। पर आप निराश मत हो ,आपने सही मायने में कुछ नहीं खोया है। आज यही सोचकर मै सुबह -सुबह ही मैदान में पहुंच गया। वहाँ पहुंचकर मैंने देखा की योग दिवस को लेकर वहां कोई भी उत्साह नहीं है। सब अपने में व्य्स्त है कुछ भी नया नहीं हो रहा है। और घर आकर टीवी ऑन किया तो ऐसा लगा मानों पूरा देश सिर्फ़ योग ही कर रहा है। 
     भारत के शहरी भूभाग पर शायद ही कोई हो जिन्हे योग के फ़ायदे और नुकसान के बारे में जानकारी ना हो। इसके बावजूद भी कितने लोग योग करते है? और हाँ यदि उनको योग पर ज्ञान देना हुआ शायद कोई ऐसा फायदा बचे जो योग से ना होता हो जैसे : शारीरिक ,आध्यात्मिक ,सात्विक ,बौद्धिक,मानसिक ,सामाजिक ,आत्मिक ,पुरुषार्थ और ना जाने क्या -क्या। ये वो लोग होते है जो कभी योग नहीं करते है। इनका काम फ्री में ज्ञान बाटना होता है। और आज तो कुछ लोग योग सिर्फ़ इसलिए नहीं करेंगे क्यों की वो तो प्रतिपक्ष में है। और योग तो बीजेपी का कार्यक्रम है। ये कुछ व्यग्य थे जो मैंने आपको शेयर किया ,आइये अब कुछ सीरियस चर्चा करते है। 
         आज योग विश्व में जिस लोकप्रियता की असीम ऊचाई पर है निश्चित रूप से भारत का इसमें मुख्य योगदान है। योग हमारी ऋषि -मुनियों द्वारा दिया गया एक अद्भुत विधा है जो स्वस्थ रहने की परंपरा को विकसित करता है। आज हमारे प्रधानमंत्री लखनऊ में हजारों लोगों के साथ योग किये और देशवाशियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने बताया की जैसे बिना नमक के खाने का कोई स्वाद नहीं होता वैसे ही अपने दिनचर्या में योग का स्थान बनाना चाहिए। जीरो इन्वेस्टमेंट से लाइफ टाइम हेल्थ इन्शुरेंस आपको योग ही दिला सकता है। आज पुरे में विश्व योग टीचर के रूप में नया जॉब का सृजन हुआ है और इसका सबसे ज्यादा फायदा भारतीय लोगों को ही मिल रहा है। दुनिया के 176 देशों में आज योग दिवस मनाया जा रहा है,अद्भुत ये परम्परा जो पुरे विश्व को एक साथ एक सूत्र में बांध दिया है। और यही भारत की शक्ति है "वसुधैव कुटुंबकम" 
           योग को राजनैतिक और धार्मिक चश्मे से ना देखें ये जीवन जीने की एक कला है। योग पर ना जाने कितने रिसर्च हुए है और ना जाने कितने पेटेंट लोगों ने कराये है और सबने योग को अद्भुत बताया है। अब तो योग के बहुत सारे स्वरुप भी सृजित किये जा रहे है कितना सही या गलत ये रिसर्च का विषय है। आप सामान्य योग करिये जो आधार है और लोगों को जागरूक भी करिये । योग के लिए ज्यादा ताम -झाम की जरुरत नहीं है आप अपने घर ,पार्क ,ऑफिस ,कही भी साफ़ सुथरी जगह पर कर सकते है। कम से कम नियम और ज्यादा से ज्यादा योग करने में भरोशा  करिये तो आप योग अपने दिनचर्या में शामिल कर सकते है। 

         योग करें -निरोग रहें !






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इंजीनियरिंग के बाद क्या ? (After Engineering Degree What ?)

             किसी भी फाइनल ईयर इंजीनियरिंग स्टूडेंट से ये सवाल करना कि डिग्री बाद क्या ? उसके ऊपर परमाणु बम  जैसे हमले से कम नहीं होता है। खाश तौर पर उनसे जो थोड़े सीरियस टाइप के स्टूडेंट हों। विश्वास  ना हो तो कभी आज़मा के देखिएगा। आज के दौर में इंजिनियरिंग की डिग्री लेना गोलगप्पे खाने से भी आसान है।  भारत में दो ही कैरियर सबसे ज्यादा प्रचलन में है एक डाक्टर और दूसरा इंजिनियर बनना।  इसी का फ़ायदा उठाते हुए देश के कुछ महान कालाधन कमाने वालों ने एक नये  तरह की बिजनेस को इज़ात किया और चोरी का एक  नया फील्ड क्रीयेट किया नाम रखा गया "शिक्षा माफिया"।
         हमारा देश एक बहुत विशाल क्षेत्र में फैला हुआ देश है।  यहाँ कुल 29 राज्य 7 केन्द्रशासीत प्रदेश है और भारत की जनसंख्या 1.25 अरब है । पूरे देश में एक रिसर्च के मुताबिक सरकारी और प्राइवेट मिलाकर कुल 8000 इंजिनियरिंग कालेज है और हर साल औसतन 25,00,000-30,00,000 छात्र पास आउट होते है।  कभी आपने सोचा है कि इतने सारे इंजिनियर जाते कहाँ है ? कितनों को जौब मिलता है और कितने अपने लाइफ में सही मायने में इंजिनियर बन पाते है ? जब आप इन सवालों के जवाब खोजेगे तो आप पायेगे बमुश्किल 5-10 % बच्चे ही अपना कैरीयर इंजिनियर के रुप में शुरू कर पाते है बाकी बचे बेरोज़गार होते है ।  जो ये 5-10 % बच्चे अपने कैरियर में जो सफलता पाते है, सही मायने में वे ही असली इंजिनियर होने के हक़दार होते है । बाकी 90-95% अपने आपको और अपने परिवार  धोखा देते रहते है ।  
       इन सबका जिम्मेदार कौन है , क्या ये सरकार की नज़र में नही आता है ? मुझे लगता है कि ये समस्या जिस तबके की है  कही से भी सरकार पर कोई फर्क नही डालती है और इसिलिये सरकार का इस ओर कोई ध्यान नही जाता ।  
      आज जो औसत छात्र बी -टेक की डिग्री के फाइनल ईअर में होता है उसके दिमाग में क्या चलता है इसका थोडा सा ओवरव्यू आपको देता हूँ :
1) इस साल कैम्पस होगा या नही
2) गेट परीक्षा की तैयारी कहाँ से और कैसे  करे
3) PSU के परीक्षा की तैयारी कैसे की जाये 
4) घर वाले पूछेगे तो क्या बोलेगे कि अब क्या करना है 
5) अपना स्टार्ट्प शुरू करेगे
6) पुरा डिग्री खत्म होने वाला है और जानकारी कुछ भी नही है 
7) सिनियर से सेटिंग करके जाब ढूढ लेंगे (जो कभी नही मिलता है )
8) MBA या और हायर एजुकेशन के लिये एंट्रेन्स परीक्षा देंगे 
9) M-टेक के बाद रिसर्च और उसके बाद  Phd और फ़िर बाद में प्रोफ़ेसर बनेंगे 
10) अपना फैमली बिजनेस करेंगे 
          उपर्युक्त बातें वो बच्चे सोचते है जो कुछ अच्छे सरकारी या प्राइवेट कालेज से होते है ।  वो बच्चे जो बिना किसी एंट्रेन्स के डायरेक्ट एड्मिशन में भरोशा करते है या जो कालेज बस यू ही खोल दिये गये हों (जिनका फोकस सिर्फ सरकारी योजनाओ का मिसयूज करना होता है ) वो तो ये सब सोचने की हिम्मत ही नही कर सकते है । 
        आज IIT और कुछ नामी NIT या अच्छे राज्य स्तरिय सरकारी कालेज को छोड दिया जाये तो बाकी बचे कालेजो का कोई स्तर ही नही है । जबसे शिक्षा का बाज़ारीकरण हुआ है ज्ञान ख़त्म होने लगा । आज हर साल इंजिनियरिंग कालेज धड़ल्ले से खुल रहे है ये जाने बिना की उसका स्तर क्या है। इंजीनियरिंग की डिग्री का इतना बुरा हाल जितना इन ५-६ सालों में हुआ है शायद ही इतिहास में पहले कभी हुआ हो। कॉलेजो को सर्टिफिकेट देने वाली संस्थान क्या सही मायने में मानकों का सही मूल्यांकन करके ही सर्टिफिकेट प्रदान करती है या यहाँ भी ले दे काम हो जाता है। इसकी जाँच होनी चाहिए।


       
                




























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खेल को खेल ही रहने दो यार

आजकल देशभक्ती  भी मिनट -मिनट
बदलती रहती है ,
जीत गये तो ज़िंदाबाद और हार गये तो $&%#@
ये देशभक्ति है..की वडापाव समझ
नही आता। 

खेल को खेल ही रहने दो यार , खेल से मत खेलो
नही तो खेल जिस दिन अपना खेल दिखायेगा , बस
खेलते रह जाओगे .

          मैच शुरू होने के 2-3 दिन पहले से ही देश में हिंदी और अंग्रेजी चैनलों में देशभक्ती साबित करने की होड़ मच जाती है।  न्यूज चैनलों में आर -पार की लडाई का माहौल तैयार किया जाता है।  ऐसा दिखाया जाता है मानो यही आखिरी मौका है इसके बाद शायद दुनिया खत्म हो जायेगी।  हद तो तब हो जाती है जब ज़िंदगी में कभी बैट -बाल ना पकड़ने वाले एंकर क्रिकेट की बारिकियो को समझाने लगता और तथाकथीत एक्सपर्ट से तकनिकी सवाल करने लग जाता है।  ये सब पसों का मायाज़ाल है।  ये सब जानते है कि हम भारतिय इमोशनल होते है और यही उनके लिये कमाई का ज़रिया है।  वो हमारी भावनाओ से खेलते है और पैसे बनाते है।  आज कोई भी न्यूज बिना सनसनी के पेश नही होती है।  असल में न्यूज चैनल अब entertainment चैनल हो गये है।  पहले न्यूज बताया जाता था और अब न्यूज बनाया जाता है।
          इसलिए थोडा न्यूज देखना कम करिये और भावनाओ में मत बहिये।  आज डिजीटल मिडिया का एक भयानक दौर चल रहा है जो कही से भी देशहित में नही है।  मैच हारने के बाद जिस तरह से खिलाडीयों की गलतियाँ ढूढने की होड़ मच जाती और फ़ेक इमोशन दिखाए जाते जो कुछ पेड  कलाकारों द्वारा किया जाता है वो कही से भी ठीक नही है।
            मेरा मानना ये है कि कम से कम न्यूज चैनलों को हमारी भावनाओ से खेलने का कोई हक़ नही है।  आप अपना एक मानक बनाईए और उस पर टिके रहीये बार -बार पाला बदलने से आप अविश्वनिय हो जायेगे और फ़िर TRP का कोई मतलब नही रह जायेगा। 


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पितृ दिवस (18th June)

    आज 'पितृ दिवस' है , और मुझे पुरा विश्वास है आज सारे सोशल मिडिया पर अपने पिताजी के साथ फोटो की बारिश होने वाली है I आप पूछोगे के इसमे गलत क्या है ? इसमे गलती कुछ भी नही है ,पर मेरा मानना ये है कि हम और आप भारतीय होने के नाते अपने माता-पिता को सम्मान देने के लिये किसी खाश दिन का इंतज़ार ना करें जो पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित है I
विदेशों में 60 साल के बाद आदमी को यूसलेस मान लिया जाता है और उन्हे ओल्ड एज होम में भेज दिया जाता है। धीरे -धीरे भारत के बडे शहरों में भी ये संस्कृति अपना पैर पसार रही है। आज के दिन हमें ये प्रण लेना होगा की अब भारत में किसी को भी ओल्ड एज होम जाने की जरुरत ना हो।  हमे अपने माता-पिता का सम्मान अपने दैनिक व्यवहार में करना होगा ना की किसी विशेष दिन। 
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सोशल मिडिया का ज्ञान और हम

सोशल मिडिया का ज्ञान और हम 


अक्सर आप फेसबुक , ट्विटर , वॉट्सप इत्यादि पर बहुत सी ज्ञान की बातें सुनते,देखते और पढ़ते है पर क्या आपने गौर किया है कि ज्ञान की बात शेयर करने वाला भी क्या उस ज्ञान पर अमल करता है। अगर सोशल मिडिया पर शेयर होने वाले ज्ञान का एक प्रतिशत भी अमल में आ जाये तो यक़ीन मानिये लोगों में सकारत्मकता की बयार बहने लगेगी। परन्तु हक़ीक़त ये नहीं है।  आज लाइक ,शेयर और कॉपी पेस्ट का ज़माना है। कुछ भी अच्छा हो ,खराब हो ,समझ में आये या ना आये बस लाइक और शेयर करने की होड़ मची है। 
            कोई ठहराव नहीं है ज़िंदगी में बस कुछ कर गुजरना चाहते है लोग।  कभी आपने गौर किया ऐसा क्यों हो रहा है। जहाँ तक मुझे समझ में आता है, आज लोग दुसरों में अपने आप को ढूढ़ रहे है। लोग अपने आप और अपने लोगों से इतने दूर होते जा रहे है कि अब वो ख़ुद को भी सोशल मिडिया में ढूढ़ रहे है।


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क्या सही क्या गलत - एक सोच

सही या गलत कुछ नही होता है ये बस "state of mind" है।  आप कभी भी किसी भी मुद्दे के बारे में सोचें तो आपको यह एहसास होगा की ज़रूरी नही है  कि किसी मुद्दे पर जो आपका विचार सही हो दूसरों की नज़र में भी वो सही ही होगा, हो सकता है कि  दूसरा व्यक्ति ठीक आपके उलट सोच रहा हो , या ये भी हो सकता है कि  जो विचार आज आप रखते है कुछ दिनों बाद आप स्वयं भी इत्तेफाक़ ना रखे।  तो आखिर क्यों  हम सब कभी ना कभी किसी ना किसी को 'सही और गलत' की तराजू में तौलते है ? हम मौका,परिस्थिति,समय देखकर और लाभ -हानि का आकलन करके ही किसी मुद्दे पर अपनी राय बनाते है। और ये कठोर सत्य है। 
             सार्वभौमिक सही होना अपने आप में एक तपस्या है। आप अपने आस -पास ये पाएंगे कि हर व्यक्ति किसी ना किसी बात से दुखी है। और हर आदमी को अपने दुःख का कारण और उसके निदान के बारे में लगभग जानकारी होती है। परन्तु फिर भी वो जीवन के इन झंझावातों में मगन रहता है। जब कोई बात उसके पक्ष में होती है तो हर्ष की कोई सीमा नहीं होती और जब उसके पक्ष में नहीं होती है तो उस दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। और ये प्रक्रिया चलती रहती है।  
            सारांश ये है कि आप अपने कर्म  अपने दिल की आवाज़ सुनकर निष्ठां से करें सही या गलत के बारे में ज़्यादा ना सोचें। क्यों ? क्योंकि सही या गलत कुछ नही होता है ये बस "state of mind" (मन का वहम ) है।



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बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...