आजकल देशभक्ती भी मिनट -मिनट
बदलती रहती है ,
जीत गये तो ज़िंदाबाद और हार गये तो $&%#@
ये देशभक्ति है..की वडापाव समझ
नही आता।
बदलती रहती है ,
जीत गये तो ज़िंदाबाद और हार गये तो $&%#@
ये देशभक्ति है..की वडापाव समझ
नही आता।
खेल को खेल ही रहने दो यार , खेल से मत खेलो
नही तो खेल जिस दिन अपना खेल दिखायेगा , बस
खेलते रह जाओगे .
मैच शुरू होने के 2-3 दिन पहले से ही देश में हिंदी और अंग्रेजी चैनलों में देशभक्ती साबित करने की होड़ मच जाती है। न्यूज चैनलों में आर -पार की लडाई का माहौल तैयार किया जाता है। ऐसा दिखाया जाता है मानो यही आखिरी मौका है इसके बाद शायद दुनिया खत्म हो जायेगी। हद तो तब हो जाती है जब ज़िंदगी में कभी बैट -बाल ना पकड़ने वाले एंकर क्रिकेट की बारिकियो को समझाने लगता और तथाकथीत एक्सपर्ट से तकनिकी सवाल करने लग जाता है। ये सब पसों का मायाज़ाल है। ये सब जानते है कि हम भारतिय इमोशनल होते है और यही उनके लिये कमाई का ज़रिया है। वो हमारी भावनाओ से खेलते है और पैसे बनाते है। आज कोई भी न्यूज बिना सनसनी के पेश नही होती है। असल में न्यूज चैनल अब entertainment चैनल हो गये है। पहले न्यूज बताया जाता था और अब न्यूज बनाया जाता है।
इसलिए थोडा न्यूज देखना कम करिये और भावनाओ में मत बहिये। आज डिजीटल मिडिया का एक भयानक दौर चल रहा है जो कही से भी देशहित में नही है। मैच हारने के बाद जिस तरह से खिलाडीयों की गलतियाँ ढूढने की होड़ मच जाती और फ़ेक इमोशन दिखाए जाते जो कुछ पेड कलाकारों द्वारा किया जाता है वो कही से भी ठीक नही है।
मेरा मानना ये है कि कम से कम न्यूज चैनलों को हमारी भावनाओ से खेलने का कोई हक़ नही है। आप अपना एक मानक बनाईए और उस पर टिके रहीये बार -बार पाला बदलने से आप अविश्वनिय हो जायेगे और फ़िर TRP का कोई मतलब नही रह जायेगा।
आपका ,
meranazriya.blogspot.com
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