सही या गलत कुछ नही होता है ये बस "state of mind" है। आप कभी भी किसी भी मुद्दे के बारे में सोचें तो आपको यह एहसास होगा की ज़रूरी नही है कि किसी मुद्दे पर जो आपका विचार सही हो दूसरों की नज़र में भी वो सही ही होगा, हो सकता है कि दूसरा व्यक्ति ठीक आपके उलट सोच रहा हो , या ये भी हो सकता है कि जो विचार आज आप रखते है कुछ दिनों बाद आप स्वयं भी इत्तेफाक़ ना रखे। तो आखिर क्यों हम सब कभी ना कभी किसी ना किसी को 'सही और गलत' की तराजू में तौलते है ? हम मौका,परिस्थिति,समय देखकर और लाभ -हानि का आकलन करके ही किसी मुद्दे पर अपनी राय बनाते है। और ये कठोर सत्य है।
सार्वभौमिक सही होना अपने आप में एक तपस्या है। आप अपने आस -पास ये पाएंगे कि हर व्यक्ति किसी ना किसी बात से दुखी है। और हर आदमी को अपने दुःख का कारण और उसके निदान के बारे में लगभग जानकारी होती है। परन्तु फिर भी वो जीवन के इन झंझावातों में मगन रहता है। जब कोई बात उसके पक्ष में होती है तो हर्ष की कोई सीमा नहीं होती और जब उसके पक्ष में नहीं होती है तो उस दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। और ये प्रक्रिया चलती रहती है।
सारांश ये है कि आप अपने कर्म अपने दिल की आवाज़ सुनकर निष्ठां से करें सही या गलत के बारे में ज़्यादा ना सोचें। क्यों ? क्योंकि सही या गलत कुछ नही होता है ये बस "state of mind" (मन का वहम ) है।
आपका ,
meranazriya.blogspot.com
No comments:
Post a Comment