बदलाव..


रिसोर्ट मे विवाह...
 नई सामाजिक बीमारी,
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है!
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ होने लगी हैं!
शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है।
आगंतुक और मेहमान सीधे वहीं आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं।
जिसके पास चार पहिया वाहन है वही जा पाएगा,
दोपहिया वाहन वाले नहीं जा पाएंगे। 
बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है।
और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है। 
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी हैं,
किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है !
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है !
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है!!
इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है!
सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है!!

महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं!

मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं
मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है लोअर केटेगरी का मानते हैं

फिर हल्दी की रस्म आती है 
इसमें भी सभी को पीला कुर्ता पाजामा पहनना अति आवश्यक है इसमें भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है ।
इसके बाद वर निकासी होती है 
इसमें अक्सर देखा जाता है जो पंडित को दक्षिणा देने में 1 घंटे डिस्कशन करते हैं 
वह बारात प्रोसेशन में 5 से 10 हजार नाच गाने पर उड़ा देते हैं ।
इसके बाद रिसेप्शन स्टार्ट होता है 
स्टेज पर वरमाला होती है पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला करवाते थे,,,,,, आजकल स्टेज पर  धुंए की धूनी छोड़ देते हैं 
 दूल्हा दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है 
बाकी सब को दूर भगा दिया जाता है 
और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं 
साथ ही नकली आतिशबाजी भी होती है ।

स्टेज के पास एक स्क्रीन लगा रहता है 
उसमें प्रीवेडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है 
जिसमें यह बताया जाता है की शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है और कितने अंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहन कर 
कहीं चट्टान पर 
कहीं बगीचे में 
कहीं कुएं पर 
कहीं बावड़ी में 
कहीं श्मशान में कहीं नकली फूलों के बीच अपने परिवार की इज्जत को नीलाम कर के आ गई है ।

प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं 
जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है!!
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं!
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!
रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं !
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं!
और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है !
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता !
वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है 
आपका पैसा है ,आपने कमाया है,
आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं,
पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं!

कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा!

जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है !

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए!

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

 धन्यवाद 🙏  
#फिजूलखर्ची #शादीसमारोह

वो तरसती आंखें....

प्रस्तुत कविता उस माँ की कहानी है जो भरे बाज़ार में सर्दी हो या गर्मी या बरसात हर मौसम में जमीन पर कुछ ताजे फल या सब्जी रखकर तरसती आंखों से ग्राहक का इंतजार करती है.
कभी कभी जरूरत ना भी हो तो खरीद लिया करो दोस्तों.. सुखद एहसास होगा... 

सर पर गठरी लादकर, 
निकल पड़ी है वो माँ, 
आंखों में उम्मीदें लेकर, 
दिलों में भरकर हसरतें, 
वो तरसती आंखें, 

सुबह की लालिमा से पहले, 
खेतों में खट कर , 
तैयार साग सब्ज़ी चुनती है वो माँ
पैरों में चुभते है कांटे, 
उफ ना करती है वो माँ 
है ये उस माँ की तरसती आंखें, 

कलयुगी कुपुतों ने छोड़ दिया उसे, 
बीच मझदार में, 
उन्होंने भी (पति) साथ छोड़ दिया, 
वो होते तो..हिम्मत होती, 
जो अब तक लड़ी थी ज़माने से, 
अब चित्कारती है वो माँ, 
उस माँ की तरसती आंखें, 

कुछ ना कहते हुए भी, 
बहुत कुछ कह जाती है, 
ऐ बेदर्द जमाना, 
ऐसा क्यों हो गया रे.. 
एक बार ही सही देख तो ले, 
ये तेरे लिए ही है..मान ले, 
इन तरसती आंखों के लिए

चेहरें पर पड़ी हुई झुर्रियों के बीच, 
ताकती वो तरसती आखें, 
कहती है...उसे जीना है, 
मत छोड़ उसे, 
जरूरत ना हो..तो भी ले ले, 
क्या फर्क पड़ेगा तुझे
एक पुण्य कमाने का मौका
मानकर, ना गवां इसे.. 

सहेजकर चार सिक्के, 
कमर में बांधकर रखती है वो माँ, 
सुनकर किलकारियां, 
खिल उठती है ं , 
वो तरसती आखें, 
सब कुछ लुटाना चाहती है, 
पर ऐसा कर ना पाती है वो माँ, 

भीगी पलकों से देखती है, 
वो तरसती आखें, 
कोई आए और कह दे, 
चल माँ, अब घर चल... 
सोचती है वो माँ.. 
वो तरसती आखें.. 


आपका, 
© मेरा नज़रीया

हवाओं का रुख बदला-बदला सा है

बदली हुई है हवाएं देश की, 
एक तरफ परिवारवाद की बाढ़ है
तो दुसरी तरफ़ पूरा देश ही, 
उसका परिवार है
इसे  साबित करें गलत कैसे, 
जनता का समर्थन और साथ, 
दोनों ही है इसके हाथ, 
कुछ बदला तो है ही, 
कैसे झुठलाए इसे, 
मंदिरों की विरासत हो, 
सड़कों का जाल हो
भगवा की बयार हो, 
मुछों पर ताव हो, 
दिख जाता है आजकल, 
अब तो आम आदमी के सवाल भी
कम हो गये हैं, 
पर ये ग़लत है, 
सवालों का कम होना, 
या कम होता हुआ दिखना, 
दोनों ही घातक है ं, 
मीडिया से भरोसा उठना,
सत्ता के बजाय विपक्ष से सवाल करना, 
कड़वी सच्चाई ना दिखाना
लोकतंत्र की हत्या के समान है, 
विपक्ष के हाथ काले इतने कि, 
बरसों लगेगें धोने में,
अब इनसे ना हो पायेगा, 
ये भी एक सच है, 
देशभक्ति का भाव जोड़ता है सबको, 
अब इसका बयार है, 
देश में हवाओं का रुख़ बदला-बदला सा है|

© मेरा नज़रिया


आको बांको की बेहतरीन लाइनें मेरी नज़र में

नमस्कार,
आखिरकार आज मैंने आको-बाको किताब की पूरी कहानियां पढ़ ली। दिव्य प्रकाश दुबे जी की इस पुस्तक में कुल 16 कहानियां हैं और यकीन मानिए इन 16 कहानियों को पढ़ने के बाद आपको कुछ नए शब्द नई लाइनें ने आपके दिमाग में रह जाएगी।इन लाइनों का आप के दिमाग पर खास तरह का असर होगा मैंने कुछ लाइनों को संग्रहित करने के लिए इस ब्लॉग में कहानी के के दौरान लिखे हुए कुछ लाइनों को संग्रह किया है।आप भी कहानी के हिसाब से लाइनों को पढ़ें और समझने का प्रयास करें कि इन लाइनों का उस कहानी में मतलब क्या होगा। यह लाइनें ही आपको पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए मजबूर करेगी ऐसा मेरा मानना है।


सुपर मॉम
याद समंदर की लहर के जैसे आई और पुराने दिनों की उम्मीद वह आकर ले गई याद रात के तारों की तरह आई नींद उड़ा कर चले गए याद हर तरीके से आई बस अच्छे याद की तरह नहीं आई।

जिंदगी के बड़े फैसले आराम से बैठकर नहीं बेचैनी से फूट-फूट कर रोते हुए पलों में लिए जाते हैं।

आदमी बदलता है तो उसकी महक भी बदल जाती है।

मैडम सही रास्ता मिलने के बाद भी उस पर चलना इतना आसान नहीं होता लेकिन मैडम मैं थकी नहीं हूं।

मैं खुद ही अपनी प्रेरणा हूं प्रेरणा अपने अंदर होती है।

पेन फ्रेंड
जिंदगी बिस्तर की सिलवट जैसी हर सुबह उलझी हुई मिलती है इसीलिए उलझी हुई सिलवट को वापस ठीक करने की कवायद में लोग जिंदगी के चार सिरे से खींच कर रोज उसको  संवारते हैं। जिंदगी का काम है उलझाना और आदमी काम है सुलझाना और उस सुबह का इंतजार करते रहना जिस दिन सिलवट नहीं मिलेगी।

खिलौना
आंसू छंटाक भर है लेकिन भारी बहुत है इतना भारी कि इस धरती पर सबसे बड़े फैसलों के पीछे कहीं न कहीं इस पानी का हाथ है।

यादें खो जाए तो जिंदगी आसान हो जाती है हम अपनी यादों से परेशान लोग हैं दुनिया तो बहुत बाद में परेशान करती है।

संजीव कुमार
उसके ठप्पे लगाने में एक रिदम था एक संगीत था जैसे चिट्ठियों पर ठप्पे लगाना इस दुनिया का सबसे खूबसूरत काम है।

हां इस दुनिया में इतने किरदार हैं कि हम वह किरदार बनते रहते हैं एक वही तरीका है कि हम जिससे अपनी असलियत से भाग सकते हैं।

पहला पन्ना
पहला पन्ना उन सभी शायरों और लेखकों के नाम जो कुत्ते की मौत मरे और मरते रहेंगे।

इस दुनिया को समझने की कोशिश जब भी हुई हर खोज यहीं पर आकर रुकी है कि दुनिया रहने लायक नहीं है, यहां आदमी आदमी बनकर नहीं रह सकता।

तुम लोगों पर बातों का कोई असर थोड़े होगा कबीर, नानक, गांधी की बातों का असर नहीं हुआ तो मेरी बातों का क्या होगा।

इस बदसूरत दुनिया में खूबसूरती वही तलाश सकता है जो इस दुनिया को एक डीएसएलआर कैमरे की नजर से देखें जो झोपड़पट्टी, गरीब के पांव, नाले तक में खूबसूरती ढूंढ सके।

दुनिया को सच बोलने का वादा चाहिए सच नहीं।

इस दुनिया को बच्चों की नजर से ही झेला जा सकता है शायद!

हर लेखक कभी न कभी खाली होता है लेकिन मानना नहीं चाहता खाली हो जाना मौत जितना बड़ा ही सच है।

डैडी आई लव यू
नदी पार करने वाले तीन तरह के लोग होते हैं पहले वो जो पार हो जाते हैं और पलट कर नहीं देखते, दूसरे वो जो पार होने के बाद दूसरों को पार कराते हैं और तीसरे वो जो नदी हो जाते हैं।

कविता कहां से आती है
कहानियां असल में वही पड़ी होती हैं जहां हम उनको रख कर भूल चुके होते हैं किसी अलमारी में बिछे अखबारों की तहो के नीचे, किसी किताब के मुड़े हुए पन्ने पर, किसी भी बिस्तर के बेचैन करवटों पर, किसी के जाने के बाद में बची हुई खाली जगह में।

हाले-गम उनको सुनाते जाइए शर्त ये है मुस्कुराते जाइए।

इसीलिए शायद हमारी जिंदगी के कई जरूरी जवाब एक थकावट की पैदाइश है जवाब ढूंढना बंद कर देना एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब लोग सवाल बदल कर अपने आप को छोटा-मोटा धोखा देते रहते हैं।

कविता जब आती है तो खुशबू वाले फूल जैसे होती है और जब बनाई जाती है तो उस फूल की प्लास्टिक कॉपी जैसी लगती है।

भूतनी
कुछ आत्माएं इतनी शापीत होती हैं कि उनको भूत बनने के लिए मरने की जरूरत नहीं पड़ती। जिंदा आदमी भूत से परेशान होता है लेकिन हमने यह नहीं सुना कि भूत किसी जिंदा आदमी से परेशान होता हो।

शुगर डैडी
प्यार को अगर समय के स्केल पर रखकर बांट दे तो मिलने से पहले और बाद का स्केल मैटर नहीं करता। मेरे बाद भी कोई मेरे प्यार में रहे, मैं इतनी बड़ी सजा किसी को नहीं देना चाहता।

पहले से तय कर लेना कि अब सच्चा प्यार नहीं होगा इस जीवन की असीम संभावनाओं का अपमान है।

कमरा
उसने अपने मन में घाव बना लिया वह घाव जो हर कोई कभी ना कभी बना लेता है समय के साथ  घाव भरता रहा।

60 सेकंड
आपके जैसा रोज़ कोई आता है और थोड़ी सी जिंदगी मेरे कटोरे में रख देता है।

आदमी के 'बिसात' ही कुछ ऐसी है कि वह उम्मीद नहीं छोड़ता । उम्मीद नहीं होती तो लोग सुसाइड लेटर लिखकर नहीं जाते। धीरे से चुपचाप मर जाते गुमनाम मर पाना हमारे समय की सबसे बड़ी लग्जरी है।

गुमशुदा
हर आदमी तभी तक नॉर्मल है जब तक इस समाज उसे पागल घोषित नहीं कर देता।

विंडो सीट
उसने अपने चेहरे पर एक प्लास्टिक स्माइल में तरफ दी मैंने स्माइल से थोड़ा सा प्लास्टिक कम करके स्माइल से वापस कर दे।

सुपरस्टार
असल में हम उसे ही अपना भगवान बनना चाहते हैं जिसको हम देख और छू सकते हैं फिर वह चाहे पत्थर ही क्यों ना इसीलिए शायद ना छू पाना भगवान होने की पहली शर्त है।

जो लोग खुद लेट होते हैं वह दूसरों को समय से पहले पहुंचा देते हैं।

खुश रहो
बेटे ने अपने बाप को जीते जी माफ कर दिया था वरना इतिहास गवाह है बाप को माफी मरने के बाद ही मिलती है पिता को माफ करना अपने आप को माफ करना होता है।

द्रोपदी
क्योंकि वह अपने शक को शक बने रहने देना चाहते थी उसको सच होते हुए नहीं देखना चाहती थी।

जितना मन करें उतना देखना अब फुर्सत से पति हो परमेश्वर नहीं।

इस ब्लॉग को लिखते समय मेरे जेहन में इस बात का ख्याल जरूर है कि मैं कहानी की आत्मा को बचा के रखूं और आपको कहानी पढ़ने के लिए विवश करु। इस पुस्तक के लेखक श्री दिव्य प्रकाश दुबे जी को बहुत-बहुत बधाई। पुस्तक में लिखी हुई हर कहानी अपने आप में शानदार हैं एक नया अनुभव है और एक नए पाठक के लिए और नये लेखकों के लिए बहुत कुछ सीखने का भी है।

बहुत-बहुत आभार धन्यवाद।


आपका,
मेरा नज़रिया

पहला स्पर्श

   ये एक खुला पत्र है मेरे छोटे भाई के नाम,

Dear Sonu,

        शायद तुमको एहसास भी नहीं आज का दिन यानी 5 दिसंबर , कितना बड़ा और शुकुन देने वाला दिन है हमारे पूरे परिवार के लिए। आज से ठीक 30 साल पहले जब सर्दियां ज्यादा पड़ा करती थी। ना जाने कितनी मनौती और तपस्या के प्रभाव से तीन बहनों के बाद तुम्हारा जन्म हुआ था। मुझे वो दिन पूरी तरह से याद है । सुबह-सुबह लगभग 5 से 6 बजे के बीच का समय था। ठंडी का मौसम था। मैं लगभग 7-8 साल का था। घर में कुछ हलचल था सब लोग यहां वहां भाग रहे थे। पापा भी परेशान लग रहें थे। हमारे यहां हमारी मामी भी आई हुई थी। बड़े पापा अपने रेगुलर कार्य में व्यस्त थे। मैं भी अपने आदत के मुताबिक शांत रुम में बैठा हुआ था। तभी ज़ोर से थाली बजने आवाज़ आनी शुरू हो गई। बड़े पापा के मझले पुत्र जेपी भैय्या ज़ोर ज़ोर से लड़का हुआ है-लड़का हुआ है बोलकर, थाली बजाकर खुशी जाहिर कर रहे थे। मैं भी भागता हुआ आंगन में आ गया था। पूरे घर में एक गज़ब का पाज़िटिव एनर्जी का संचार हो रहा था। अचानक से सब लोग बहुत खुश हो रहे थे। दीदी मेरे पास भागते हुए आई और बोली बड़ी मां मुझे बुला रही है। मैं दीदी के साथ थोड़ा सहमते हुए उस कमरे में गया , कमरे में अंधेरा था। तभी बड़ी मां ने खाट पर बैठने के लिए बोला और कहां आओ तुम्हारे छोटे भाई का पीठ तुम्हारे पीठ से सहला देती हूं , जिससे तुम जीवन भर कभी लड़ाई नहीं करोगे, मिलजुल रहोगे और खुब तरक्की करोगे। मैं बहुत छोटा था इतना समझ नहीं पाया पर छोटे भाई का वो पहला स्पर्श और वो लाइन मुझे आज भी अच्छे से याद है। मैं भी बहुत खुश था अब मेरा भी छोटा भाई है।
           आज तुम तीस के साल के हो चुके हो। बहुत सारी कहानियां है तुम्हारी। बचपन में शायद तुम सबसे जिद्दी थे और वो ज़िद आज भी बरकरार है। परिवार में शुरूआती दिनों के संघर्ष के दौरान तुम एक दिन बाज़ार में घर के खेलते हुए रास्ता भटक गए थे, तब तुम लगभग तीन साल के रहे होगे। पापा पागलों की तरह तुमको ढुढने के लिए निकल पड़े थे। और शाम ढलने से पहले तुम पापा के गोद में थे। कितना अमुल्य हो तुम, इसका एक झलक मैंने उस समय महसूस किया था। बहनों के लिए तुम्हारा प्यार आज़ का नहीं है। एक बार वंदना या शायद रेखा का कान छेदने के दौरान जो हस्र तुमने कान छेदने वाले का किया था आज सोचते हैं तो हंसी छूट जाती है। थोड़ा सा भी दर्द नहीं बर्दाश्त कर सकते तो तुम अपनों के लिए। और बहनों से वो लगाव समय के साथ और बढ़ा है। पढ़ाई-लिखाई को लेकर पापा शुरू से ही हम सबको समझाते रहते थे और कभी भी हम सबको अपने पारिवारिक कार्यों से अलग ही रखते थे, जिससे हमारी पढ़ाई में बांधा ना पड़े। शायद तुम्हारा पांचवां जन्मदिन था या होली का त्यौहार पापा तुम्हारे लिए बहुत बढ़िया टी-शर्ट और जींस का फूल पैंट का पूरा सेट लेकर आए थे। और मैं अभी तक हाफ पैंट में ही काम चला रहा था। तब भी मुझे लगा पापा तुमको कितना मानते थे। तभी जब मैं कक्षा छ: में था , सैनिक स्कूल की तैयारी के लिए मुझे हास्टल में भेज दिया गया। और पहली बार घर और घरवालों से दूर मैं अपनी पढ़ाई कर रहा था। एक छोटे बक्से में दो-चार कपड़े और घर के अचार और चूड़ा और चना के भुजा के साथ घर से दूर मैं रह रहा था और तुम ये सब देख और सिख रहे थे। बचपन में तुम्हारे ज़िद के सामने सब नतमस्तक थे , एक और किस्सा याद आ रहा है। अम्मा तुमको लेकर मेरे हास्टल में आई हुई थी और हाल ही तुम्हारा जंघे के पास एक छोटा आपरेशन हुआ था। आपरेशन से पहले डाक्टर साहब का क्या हाल तुमने किया था अम्मा बता रही थी। और डाक्टर साहब आज भी तुमको उसी जिद्दी बच्चे की तरह जानते है। इसी दौरान तुम स्कूल जाना शुरू कर दिए थे।
         शुरुआती स्कूल के दौरान मैं तुम्हारे साथ नहीं था और जब हास्टल से वापस आया तो अपनी पढ़ाई में लगा रहता था। तुम बाज़ार में बहुत पापुलर थे। एक तरफ मैं बहुत ही कम बोलने वाला , बहुत कम दोस्ती, कम घुमना फिरना  और दूसरी तरफ तुम बहुत पापुलर, सबके चहेते थे। मुझे शायद ही याद है हम लोग एक साथ बैठकर पढ़ाई किए हों। मैं सुबह-सुबह उठ कर कोचिंग और फिर स्कूल और शाम को पढ़ाई यही दिनचर्या था। और तुम इस दौरान ये सब होते हुए देख रहे थे और सीख भी रहे थे। घर में जब भी चर्चा होती हम सब पढ़ाई की ही बात करते थे। इसका असर कहीं ना कहीं तुम्हारे दिमाग में तो हो ही रहा था, आज इस बात को अच्छे से समझ सकता हूं। जब मैं हाईस्कूल में प्रथम डिविजन से पास किया था तब अपने गांव के इतिहास में मैं पापा के बाद दूसरा छात्र था और इसकी चर्चा भी खुब हुई थी हमारे घर और गांव में। कुछ दिनों बाद मैं कानपुर चला गया और फ़िर घर से और ज्यादा कट गया, लेकिन तुम्हारी परवरिश में पापा का त्याग पूरा छलकता है। कुछ सालों बाद जब तुम हाईस्कूल की परीक्षा देकर मेरे पास आए हुए थे। हाईस्कूल का रिजल्ट मैंने ही देखा तुम्हारे साथ और रिजल्ट देखकर मैं अतिउत्साह से भर गया। जहां लोग एक सब्जेक्ट में डिक्टेंशन लेकर पागल हो जाते थे , तुम्हारे हर सब्जेक्ट के आग D  लिखा था, शायद एक को छोड़कर। और तुम हमारे गांव के इतिहास में सबसे ज्यादा पर्सेंट से पास होने वाले छात्र बनकर उभरे थे। घर पे पढ़ाई की बातों का क्या असर होता है उसका तुम बहुत बड़ा उदाहरण बनकर उभरे। यही वो क्षण था जब मुझे लगा कि तुम कुछ बड़ा करोगे। पढ़ाई में इतना लगनशील, सिरियस,सेल्फ मोटिवेटेड, शार्प माइंडेड इत्यादि तुममें वो सब कुछ था जो मेरे में बहुत कम था। इसके बाद इंटरमीडिएट की परीक्षा में और बड़ी सफलता ने आगे के सभी रास्ते खोल दिए।

Tough, Hard & Bold decisions

   इंटरमीडिएट अपियरिंग में तुमने पालिटेक्निक, IERT और इंजीनियरिंग की परीक्षा भी दिया था। पालिटेक्निक में तुम्हारा रैंक प्रदेश स्तर पर सौ के नीचे था, IERT में भी तुम्हारा रैंक बहुत अच्छा था। पर राष्ट्रीय और प्रदेश इंजिनियरिंग कॉलेज में रैंक बहुत अच्छा नहीं जिससे की सरकारी कालेज मिल सके। यहां डिसिजन की बारी थी। कम रिस्क लेने की आदत और फाइनेंशियल कारण की वज़ह से मैं और पापा ने तुम्हें IERT में एडमिशन के लिए सुझाव दिया। और तुमने इच्छा के विरुद्ध एडमिशन ले भी लिया, ये सोचकर चलो अगले साल फिर से यूपिसिट के लिए प्रयास किया जायेगा। एडमिशन के एक महीने में ही कालेज के माहौल और बच्चों के टैलेंट का लेवल देखकर तुम बहुत उदास हो गये थे। तुम्हारी बातों से ऐसा लग रहा था कि तुम एकदम खुश नहीं हो। फोन पर तुम्हारी बातों से लगता था ग़लत डिसिजन ले लिया है।एक साल तैयारी करके सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा ऐसा विश्वास तुम्हारी बातों से हो रहा था। ये देखकर फाइनली तुमने IERT छोड़ने का फैसला कर लिया। ये तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा, रिस्की और अहम निर्णय था। उसके बाद तुमने अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए कितना परिश्रम किया और वो भी अपने बल बूते पर मुझसे और पापा से ज़्यादा शायद ही कोई जानता है। तुमने पढ़ाई में अपने आप झोंक दिया था। तुम्हारी उस लगन से लगता था कोई भी मंजिल तुम पा सकते हो। और मुझे आज भी लगता है तुम अपने पोटेंशियल का बहुत कम प्रयोग कर पा रहे हों। तुमने अपने दम सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज लखनऊ में एडमिशन लिया और साबित किया कि अपने पर भरोसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। इंजिनियरिंग की पढ़ाई के दौरान शुरुआती संघर्ष में तुम बताते थे कैसे बड़े बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सामने , कक्षा में बोलने में तुम्हारा आत्मविश्वास हिल जाता था। लेकिन कुछ ही समय में तुम क्लास सबसे अच्छे स्टूडेंट्स में गिने जाने लगे थे। और मैं और पापा तुम्हें मोटीवेट करने की भरसक प्रयास करते रहते थे। बी-टेक के दौरान गेट के लिए कोचिंग करने का डिसीजन भी एक बड़े निर्णय में से एक था। पापा और मेरा का काम सिर्फ यही था कि तुम जो भी निर्णय लो पूरी तन्मयता से तुम्हें सपोर्ट और मोटिवेट करना है। बी-टेक के बाद क्या? एक समय ऐसा आया जब तुम बहुत तनाव में रहने लगे थे। आखिर बी-टेक के बाद क्या होगा। कैंपस हो नहीं रहा था। गेट में अच्छा रैंक के बाद फार्म तो हर जगह भरने के एलिजिबिलिटी थी पर सिट बहुत कम था। तुमने लगभग सभी जगह फार्म भर रखा था। और परीक्षा की तैयारी में लगे रहते थे। इसी दौरान भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई में इंटरव्यू देने का मौका मिला। मैं बहुत गौरवान्वित महसूस करता था और लोगों को बताया करता था। सेल, रेलवे,NPCL,NTPC और ना जाने क्या क्या। हर जगह से रिजल्ट का इंतज़ार और परिणाम से तुम तनाव में रहने लगे। इसी दौरान तुम मेरे यहां आए । तुम बहुत ज्यादा टेंशन में थे। और तुम्हें मोटीवेट करने का बहुत प्रयास करता था। जब कहीं से कन्फरमेशन नहीं आ रहा था तब हमलोग बैठकर बात किए और आगे Mtech किया जाए, निर्णय लिया गया। यह निर्णय भी तुम्हारा इच्छा के विरुद्ध था और मजबूरी में लिया गया फैसला था। गेट के रैंक के आधार पर IIT गुवाहाटी और तेलंगाना के टाप इंजिनियरिंग कॉलेज में एडमिशन का आफर मिला। हमलोग तेलंगाना में एमटेक में एडमिशन लेने के लिए निकल पड़े। रास्ते में चर्चा के दौरान इतना तो मैं समझ गया कि तुमने बहुत मेहनत किया है और किसी भी हाल में किसी ना किसी सरकारी विभाग में तुमको ज्वाइन करना है। एमटेक केवल टाइम काटने का जरिया था। तुम्हारा मन कहीं से एमटेक करने का नहीं था। शाम लगभग पांच बज रहे होंगे मैं और तुम एन आई टी तेलंगाना के एडमिशन हाल में लाइन लगा लिए थे और हमारे आग 5-6 लोग लगे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बातचीत के क्रम में एक लड़के ने बताया यहां ओरिजनल डाक्यूमेंट जमा करा लेते हैं और जरूरत पड़ने पर देंने में समस्या करते हैं। ये बातें सुनकर हमलोग फिर तनाव में आ गए , और सोचने लगे अब क्या करें। और हम तुम वहां के हास्टल में और स्टूडेंट्स से बातचीत की और अगले दिन एडमिशन ना लेने का एक और बड़ा निर्णय लिया। और इस बड़े डिसीजन के बाद चलो एक साल फिर तैयारी करेंगे तुम वापस लखनऊ चलें  गये। ये जुलाई का महीना था और अगले महीने UPPCL की परीक्षा थी। ये आखिरी परीक्षा देकर अगले सत्र की गेट के लिए तैयारी शुरू करना था। और आखिरी परीक्षा ने तुम्हारे जीवन को बदल के रख दिया।

        तुमने अभी तक के सफ़र में जो भी किया है वो अद्भुत है। तुम्हारी सोच काफ़ी उच्च स्तर की है। ग़रीबी तुमसे देखा नहीं जाता है। तुम बहुत भावुक इंसान हो दूसरों का कष्ट तुमसे देखा नहीं जाता है और अपने स्तर पर तुम बहुत कुछ करते रहते हों। ऐसे कई मौके आए जब हम लोग किसी बात पर विपरीत राय रखते हों, पर हमारी सोच एक ही है। पढ़ाई को लेकर तुम बहुत ही ज्यादा संवेदनशील हो और हमारी सबसे ज़्यादा बात एजुकेशन पर ही होती है। तुम बहुत कुछ करना चाहते हों  उनके लिए जो जरुरतमंद है और बहुत कुछ कर भी रहे हो तुम। बचपन में जो ज़िद तुम्हारी कमजोरी थी आज वो तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है। तुमने हमेशा अपने दिल की सुनी और सफल भी हुए। एक बड़े भाई होने के नाते मैं और पापा और पूरा परिवार तुम्हारे हर निर्णय के साथ था और आगे भी रहेंगे।

तुम्हारे जन्मदिन पर आज सुबह से थोड़ा ज्यादा ही भावुक हो गया हूं, मैं चाहता हूं कि तुम जीवन में हर वो मुकाम हासिल करो जो तुम चाहते हो। मैं, पापा और पूरा परिवार तुम्हारे साथ उस पहले स्पर्श की तरह हमेशा चट्टान की तरह खड़ा रहेगा। 

खुश रहो...


तुम्हारा भैय्या,
रवीन्द्र नाथ जायसवाल

आको बाको : निष्पक्ष समीक्षा

   वाह बहुत सुंदर। क्या खुब डिजाइन है इस बुक की। जैसे ही किताब मेरे हाथों में आई , एक बार तो मैं देखता रह गया। किताब के उपर बने हुए डिजाइन आपको आकर्षित करते हैं। कहीं मां के बच्चा भागता हुआ दिखता है तो कहीं जानवर से बात करता हुआ इंसान, कोई आफिस जा रहा है, तो कोई स्कूल, खेत में दवा का छिड़काव भी आपको दिखेगा। जीवन का हर रंग एक सफेद और सादे पेज पर  सादगी से उकेरने की कोशिश की गई है। बधाई दूबे जी और हिंदी युग्म।
 
  अभी किताब कल ही हाथ लगी है। सोलह कहानियों का संग्रह है यह किताब। पहली कहानी 'सुपर माम' अभी मैंने पढ़ी है। पहली ही कहानी में दूबे जी अपना रंग दिखा देते  हैं । कुछ लाइनें दिल को छू जाती है। सामान्य मीडिल क्लास की मां के संघर्ष को पढ़ते हुए कई  बार गला रूंध जाता है। बहुत अच्छी कहानी है आप कहीं खो से जायेंगे। 
सभी पाठकों से आग्रह है जरूर पढिए और लोगों पढ़ने के लिए प्रोत्साहित जरूर करिए। आपको नहीं पता कौन सी लाइन किसके जीवन में क्या परिवर्तन ला दे।

मुझे जो लाइनें बहुत अच्छी लगी है उनका जिक्र जरूर करूंगा :

१) याद समंदर की लहर के जैसे आई और पुराने दिनों की उम्मीद बहाकर ले गई। याद रात के तारे की तरह आई और नींद उड़ाकर चली गई। याद हर तरीके से आई, बस अच्छी याद की तरह नहीं आई।

२) "जिंदगी के बड़े फैसले आराम से बैठकर नहीं, बेचैनी से फूट-फूटकर रोते हुए पलों में लिए जाते हैं।

३) आदमी बदलता है तो उसकी महक भी बदल जाती है।

४) मैडम, सही रास्ता मिलने के बाद भी उस पर चलना इतना आसान नहीं होता, लेकिन मैडम मैं थकी नहीं हूं।

५) "मैं खुद ही अपनी प्रेरणा हूं, प्रेरणा अपने अंदर होती है।"

ये लाइनें काफी कुछ कहती हैं। और आपको प्रोत्साहित करती है। कुछ कर गुजरने की।

दूबे जी बहुत सुंदर लिखा है आपने। आपके बारे में जैसा सुना था, जैसा देखता हूं और जैसा सोचा था वैसे ही हैं आप। आपको बहुत बहुत बधाई और भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं।

https://youtu.be/aC7VDaFAtig





आपका,
रवीन्द्र नाथ जायसवाल
मेरा नज़रिया (ब्लागर)

 BIS Open the door for explore my carrier.


जब  बंद थे सारे रास्ते 

उम्मीदों  का द्वार खुला 

 हमें हमारा राह मिला 

जो सोचे थे वो करा दिया

ग्रेजुएट हमें बना दिया  

मुझे मौकों से मिला दिया 

अब उड़ना है खुले आसमां में 

बिट्स ने हमें सिखा दिया 

@ मेरा नज़रिया        

बदलाव..

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