डिजिटल डिपेंडेंसी और डिजिटल लिटरेसी

       आज  फोन लेने का एक भयानक अनुभव हुआ। मैं अपने आपको एक डिजिटल साक्षर आदमी मानता हूं। अक्सर जितना हो सके डिजिटल मीडियम ही प्रयोग करता हूं। फिर भी आज का अनुभव बहुत कुछ सीखा गया। सुबह एक नामी मोबाइल शाप पर गया और दुकानदार से जियो मोबाइल दिखाने का आग्रह किया। मेरी जरूरत सिर्फ बात करने और सबसे सस्ता फोन की है मैंने दुकानदार से बोला। मुझे 1600 रूपए में एक कीपैड वाला एक मोबाइल दिखाया,  थोड़ा पुछताछ करके मैंने उसे एक्टिवेट करने के लिए बोल दिया। दुकानदार लड़के ने बोला आधार कार्ड लायें है ?, मैंने पर्स में देखा और संयोग से नही था। मैंने  कहा ड्राइविंग लाइसेंस है इससे हो जायेगा? लड़के ने बोला हो जायेगा देखते हैं। करीब 15 मिनट तक कुछ किया और बोला सिस्टम नहीं ले रहा है। आपको आधार देना होगा। मैं घर वापस जाकर लौटने को लेकर असमंजस में था । मैंने लड़के से कहा m aadhar   से आधार कार्ड डाउनलोड कर देता हूं, इससे हो जायेगा? लड़के ने बोला हमें ओरीजनल वाला चाहिए। मैंने बोला ये मोबाइल वाला ओरीजनल ही है । वो बोला ये चलेगा नहीं। मैंने काफी समझाने की कोशिश और बोला भाई ये सर्वमान्य है। इसमें कोई दिक्कत भी नहीं। वो बोला भैय्या जी नहीं चलेगा आपको प्रिंट लेकर आना होगा तभी हो पायेगा। मैं नजदीक में ही साइबर कैफे से प्रिंट लेकर आ गया। वापस जाकर फिर फोन चालू करने को बोले। दुकानदार लड़के फिर मना कर दिया ,बोला इसमें QR code  स्कैन नहीं होगा, आपको कलर प्रिंट लेकर आना तभी संभव है। मैंने m aadhar से QR कोड दिखाकर स्कैन करने को बोला, लड़का अड़ नहीं होगा भैय्या जी। मैं झक मारकर फिर उसी साइबर में गया और कलर प्रिंट करके लेमिनेशन करके देने को कहा। पूरी प्रक्रिया में अब तक दो घंटे हो चुके थे। धीरे-धीरे दिमागी पारा भी उपर चढ़ रहा था।मन में आ रहा था इतना डिजिटल होने का क्या फायदा सब कुछ तो हार्ड में ही चल रहा है तो? डिजिटल साक्षरता को लेकर भी मन में सवाल उठता रहा।हम देख पा रहे थे कितना गैप है टीवी की दुनिया और हकीकत की दुनिया में। खैर ये सब चल ही रहा था कि साइबर वाले ने मुझे एक नया आधार कार्ड बनाकर मुझे दे दिया। बदले में कुछ पैसे लिए जो की थोड़ा ज्यादा ही था। मैंने मन मारकर कार्ड लिया और मोबाइल शाप में दुबारा आ गया। लड़के से बोला भाई अब तो हो जायेगा? लड़के ने बोला हो जायेगा। उसने जियो के अपने आफिसीयल पेज डिटेल्स भरने लगा। लगभग 15-20 मिनट बाद मेरा फोटो लेने के लिए मुझे एक साइड आने को कहा। आंख स्कैन करने के लिए मुझे दो तीन अलग-अलग हिस्सों में खड़ा किया । बहुत ही इरीटेटींग था। फाइनली 10 मिनट में सारा फार्म भर , फोटो अपलोड कर दिया। फार्म भरने के दौरान उसने मुझे अलर्टनेट मोबाइल नंबर देने की बात बोली जो जियो का नहीं होना चाहिए, उस नंबर पे ओ टी पी आयेगा। संयोग से मेरे पास दूसरा नंबर भी जियो का ही था। अब एक और समस्या अब क्या किया जाए? अजीब दुविधा है जियो फोन के लिए आपके पास जियो के अलावा एक अलर्टनेट नंबर होना चाहिए। ये कैसी मार्केटिंग है? सोचिए किसी के पास मोबाइल फोन ही ना हो वो क्या करेगा? खैर मेरे पास एयरटेल का आफिसीयल नंबर था, मैंने उसे लिखने को बोला। पूरी प्रक्रिया में अब तक ढाई घंटे हो चुके थे। मैंने भी ठान रखा था आज फोन लेकर ही जाऊंगा। लड़के ने सब-कुछ करके बोला आपका काम हो गया। नया नंबर का डिटेल्स आपके अलर्टनेट नंबर पे आ गया होगा। मैंने बोला ठीक है भाई अब मैं इस नंबर से बात कर सकता हूं ना? लड़के ने बोला अभी नहीं? ये सुनकर मेरी दिमाग खराब हो चुका था। लड़के ने बोला एक दो घंटे में आपके दुसरे नंबर पर एक ओ टी पी आयेगा उसे लिखकर 1977 पर फोन करके टेलिभेरीफाई करना होगा तब जाकर आपका फोन चालू होगा। फोन चालू होने के बाद आप मेरे पास फिर आइयेगा । मैंने पूछा क्यों भाई? वो बोला साफ्टवेयर अपडेट करने के लिए, तभी आपका नया वाला काम करेगा। मैंने झक मारकर बोला ठीक है भाई । क्या मैं अब फोन घर ले जा सकता हूं, मैंने गुस्से में पूछा? लड़के बड़े आराम से बोला हां हां क्यों नहीं, 1600 रूपए जमा करके ले जाइए। मैंने कहा ठीक है। आदत के मुताबिक मैंने कार्ड से पैसे देने की बात कही। ये सुनकर उसके कान खड़े हो गए और वो अपने मालिक पूछा ये कार्ड से पेमेंट करेंगे , क्या करना है? मालिक ने बोला कोई बात नही 32 रुपए ज्यादा लगेंगे, उनसे बोल दो। मैंने सोचा चलो दो घंटे के बाद आना ही है, ए टी एम से निकाल कर आते समय पैसे भी दे देंगे और फोन भी चालू करा लेंगे। मैंने लड़के से कहा ठीक है तुम मोबाइल अपने पास ही रखो , मैं दो घंटे में आता हूं। सोचिए लगातार ढाई से तीन घंटे लगातार प्रयास के बाद भी फोन मेरे हाथ में नहीं था। मैं दुकान से बाहर आ गया , और घर जाने के बजाय मैंने सोचा चलो थोड़ा मार्केट में घूम कर टाइम पास कर लेते हैं और ए टी एम से पैसे भी निकाल लेंगे। ए टी एम गये पासवर्ड डालने के दौरान गड़ बड़ी हो गई , और फिर ए टी एम ब्लाक हो गया। अब एक और मुसीबत अब क्या करें? पर्स में पूरे पैसे नहीं और कार्ड ब्लाक हो गया। मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। लेकिन असहाय था। इसी बीच मैंने अपना फोन चेक किया , देखा ओ टी पी आ गया था। लगभग एक घंटे के बाद मैं उस दुकान में फिर गया और मेसेज के बारे में दुकान के मालिक को बताया। दुकानदार ने बताया लड़का घर चला गया है , ये सारे काम वही लड़का करेगा , आप पैसा जमा करके चले जाइए और शाम को आकर फोन चालू करवा लिजियेगा। मैंने दुकानदार से कहा आप अकाउंट नंबर दीजिए मैं नेट बैंकिंग से पैसा भेज देता हूं। वो बड़ा ही अजीब सा मुंह बनाते हुए कार्ड या कैश से पैसा जमा करने को बोला। मैंने उसको थोड़ा तेवर दिखाते हुए बोला भाई मेरा कार्ड ब्लाक हो गया है और पर्स में पूरे पैसे नहीं हैं। मेरे पास केवल यही माध्यम है पैसे जमा करने का। ये सुनकर बेमन से उसने अकाउंट नंबर दिया और मैंने पैसे भेज दिया। दुकानदार इस बात से टेंशन में था कि उसके मोबाइल में मेसेज नहीं आया था। वो बार-बार शक की निगाह से मुझे देख रहा था। मैंने  दुकानदार को बोला ठीक है भाई कभी-कभी मेसेज नहीं आता है , अपना अकाउंट चेक कर लेना। और मेरा मोबाइल नंबर लिख लो पैसा ना आया हो तो मुझे फोन कर लेना। तब जाकर दुकानदार आस्वस्त हुआ।  पैसा भेजकर काफी राहत महसूस कर रहा था चलो अब फोन तो घर ले जा सकता हूं। फाइनली फोन लेकर घर आ गया और फोन को चालू कर दिया। फोन चालू होने के बाद मैंने सोचा अब तो सब ठीक-ठाक है। फोन से बात हो रहा है और फोन आ भी रहा है , शाम को फिर उस दुकान पर जा ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन मैं ग़लत था शाम को उस लड़के ने दुबारा फोन करके फोन और बाक्स साथ लेकर आने को कहा, साफ्टवेयर अपडेट करने के लिए। मैं बेमन से फिर शाम को उस दुकान पर गया और साफ्टवेयर अपडेट कराया, और घर वापस का गया।
            इस पूरी कहानी ने मुझे इतना जरूर सिखा दिया कि आप चाहें कितने भी मार्डन हो जाये, जानकार हो जाये, डिजिटल हो जाये, पर काम हमेशा देसी भारतीय स्टाइल में ही होगा। भारत सरकार को भी इस बात को समझ लेना चाहिए कि आपने सब कुछ आसान करने के चक्कर में लोगों को उलझा भी दिया है। सुप्रीम कोर्ट बोलता आधार अनिवार्य नहीं है पर जमीनी हकीकत ये है कि बिना आधार आपका कोई भी नहीं होगा। अंगुलियों के निशान और ओ टी पी के चक्कर में लोगों को राशन नहीं मिल रहा है। इंटरनेट की गति धीमी होने से गांव में किसानों को यूरीया भी नहीं मिल पा रहा है। गांव के बुज़ुर्ग महिलाओ और पुरुषों के लिए तो ये डिजिटल दुनिया आफत बनकर आया है , वो बैंको में जमा अपने पैसा को नहीं निकाल पा रहे है क्योंकि उनकी उंगलिया घिस गई है और सिस्टम उनको स्कैन नहीं कर पा है। सरकार कैशलेस का ख्वाब देख रही है और दुकानदार सरचार्ज की वजह से कार्ड के प्रयोग से आम लोगों से ज्यादा पैसे ले रहे हैं। छोटे दुकानदारों के लिए GST एक सिरदर्द के अलावा और कुछ भी नहीं है। GST फाइल करने के लिए CA को अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा देना पड़ रहा है जबकि सरकार के पास बहुत कम पैसा जा रहा है। किसान बिमा योजना का लाभ बड़े और दबंग टाइप के किसान उठा ले रहे है और वो भी बिना फसल ख़राब हुए।  और छोटे किसान मुँह देखते रह जा रहे है।
सरकार की सारी नीतियां अच्छी होते हुए भी अच्छे परिणाम नहीं आ रहे हैं। इसका कारण सिर्फ ये है कि सारी नीतियां इस आधार पर बनी है कि भारत की सभी जनता डिजिटल साक्षर है । पर हक़ीक़त ठीक इससे उलट है। आपने मान लिया है कि भारत का हर आदमी मोबाइल को अच्छे से समझ गया पर हक़ीक़त ऐसा नहीं है । आज जमीनी हकीकत ये है कि 40 साल से ऊपर के व्यक्ति ओ टी पी, पासवर्ड, मोबाइल बैंकिंग से डरता है, ठीक से मोबाइल भी आपरेट नहीं कर सकता है। अगर विश्वास ना हो तो अपने घरों में माता-पिता से बात करके, आप चेक कर लिजिए। जब शहर का एक जानकार आदमी एक मोबाइल खरीदने के चक्कर में इतना परेशान हो सकता तो गांव में जहां डिजिटल साक्षरता भी बहुत कम है, वहां कैसे लोगों को मूर्ख बनाकर पैसे ऐंठे जाते होंगे। यही सच्चाई है सरकार की नीतियां गलत नहीं है पर जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है। मुझे बता है एकदम से सब ठीक-ठाक नहीं होगा पर इस चक्कर में यदि आपकी सरकार चली जाये तो ये कहीं से भी देश के हित में नहीं होगा। डिजिटल साक्षरता की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, तब जाकर ही सही मायने में विकास और विश्वास दोनों हासिल होगा।

(नोट : भारत के आज के स्थिति को देखते हुए)

"डिजिटल लिटरेसी ज़रुरी पर डिजिटल डिपेंडेंसी नहीं"

फोटो सोर्स : गूगल 
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