टीवी डिबेट का गिरता स्तर

        आज शाम (20th Nov'18) को एक खाश न्यूज़ चैनल में जिस तरह डिबेट के दौरान देश की दो  मुख्य  राष्ट्रिय पार्टी के प्रवक्ताओं ने जिस घटिया स्तर की चर्चा की देखकर काफी हैरानी हुई। कैमरा के सामने बिना किसी के डर के आम जनता को या यूं कहिए अपने कार्यकर्ताओं को भड़का रहे हैं। दोनों तरफ से जिन्दाबाद मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं। महीलाओं को आगे आकर स्टेज पर आने के लिए ललकारा जाता है और उन्हें आक्रामक होने के लिए उकसाया जा रहा है और सब कुछ कैमरा के सामने। सवालों के जबाव जब आपके नहीं होते हैं तो शोरगुल का सहारा लेते हैं। ये दृश्य देखकर मुझे एक बात तो समझ आ गई अब वो दिन दूर नही जब आते दिन टीवी स्टूडियो में मारपीट भी होगी , इसका प्रमाण पिछले कुछ महीनों में देखा गया है। पिछले कुछ सालों में चुनावों में जैसे मीडिया मैनेजमेंट करके उसका फ़ायदा अपने वोट बैंक बढ़ाने में किया ये उसका विकृत स्वरूप सामने आ रहा है। जबरदस्ती अपनी बात मनवाने का जो दौर चला है मीडिया पर आतंकवादी हमला के समान है। 
               हर डिबेट में आम जनता अपने सवालों के जवाब का इंतजार करती रह जाती है और ठगा हुआ महसूस करती रह जाती है। और कार्यकर्त्ता भाई लोग ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद करके अपनी जिम्मेदारियों का भरपूर निर्वहन करने में ही अपनी शान समझते हैं। जिस टीवी मीडिया ने राजनीतिक पार्टियों के मुंह में चुनावी जीत का ख़ून लगा दिया है अब वो खुद भी इनके शिकार होने से नही बच सकते हैं। आज वो कुंठीत है ,व्यथित हैं वो चाह कर भी कुछ बोल नहीं सकता है। जो हाव - भाव मैंने एंकर का देखा उसे देख कर तो ऐसा ही लग रहा था। 
           आम आदमी असहाय,  नेताओं की नौटंकी देखने रहा है सोच रहा है क्या इन्हें इसीलिए चूना था। 
लोकतंत्र को डराकर धमकाकर जो चुनाव जीतने का जो दौर चला है ये ज़्यादा दिन चलेगा नहीं। 

आपका,
मेरा नज़रिया

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