नोटबंदी -एक रिस्की निर्णय
नोटबंदी के 15 दिन होने को है। देश के विभिन्न शहरों से बहुत सारी प्रतिक्रियाये सुनने और देखने को मिली। कुछ ख़ुशी देने वाली और कुछ दुःख देने वाली भी। और ये स्वभाविक था। हमें ख़ुशी है की हम एक ऐसी ऐतिहासिक घटना के प्रत्यक्षदर्शी है जो आने वाले समय में बहुत लंबे समय तक याद किया जायेगा।
मैं यहाँ एक बात कहना चाहता हू कि इस निर्णय से आम जनता को क्या मिला ? क्या आम आदमी को परेशानी के अलावा और कुछ मिला ? उनके पास जो पैसा था वो आज भी है ,लेकिन अपने पैसे को पाने के लिए तंग जरूर होना पड़ा। इस एक्शन से आम आदमी को फायदा तो नहीं हुआ लेकिन खास लोगो का नुकसान ज़रूर हुआ है इसमें कोई शक़ नहीं है।
इतने बड़े और कठोर निर्णय के बाद जनता ने जितनी ईमानदारी से मोदी सरकार का साथ दिया उतनी ही ईमानदारी से सरकार को भी कुछ ऐसे फैसले लेने होंगे जो ना केवल सीधे आम आदमी के हित में बल्कि बहुत जल्दी हों। ज्यादा देर होने से जो आम आदमी मोदी सरकार के पूर्ण समर्थन में है अभी , विरोध करने में ज्यादा देर नहीं लगाएगी ।
मोदी सरकार के लिए 30 दिसम्बर के बाद बहुत बड़ी चुनौती है आम आदमी को ये भरोसा दिलाना की नोटबंदी के फैसले के बाद जो भी पैसा सरकार के ख़जाने में आये है उसका पाई -पाई जनता की सेवा में खर्च किया जायेगा। मुझे प्रधानमंत्री मोदी जी के विज़न में कोई संदेह नहीं है ,लेकिन समय बहुत तेजी से गुजर रहा है। समय रहते सरकार को हमें भरोसा देना होगा कि "ये निर्णय जनहित में था ". इसीलिए मैं कहता हूँ "नोटबंदी-एक रिस्की निर्णय " .
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