"पर्सेप्शन (छवि)" बनाने की राजनीति

"पर्सेप्शन (छवि)" बनाने की राजनीति


       आजकल गजब का एक दौर चला हुआ सोशल मिडिया पर 'पर्सेप्शन' बनाने का. ये केवल भारतीय राजनीति मे ही नही बल्कि कोर्परेट जगत मे भी यही हाल है . आप यदि किसी को लाइक नही करते हो तो उसके खिलाफ़ घटिया मार्केटिंग करे, नकारात्मक बाते करे, किसी नये आदमी से और ज्यादा नकरात्मक बाते करे जिससे की उसका नज़रीया उस व्यक्ति के खिलाफ़ शुरू से ही शुरू हो जाये. ये कुछ हद तक कारगर होता है ,लेकिन लंबी अवधी के लिये ये ज्यादा कारगर नही है .
       मोदी का सत्ता मे आना उनकी अपनी मेहनत, गुजरात मे किये गये उनके विकास के कार्य,उनका व्यक्तित्व और सोशल मिडिया पर जबर्दस्त "पाजिटिव पर्सेप्शन" की उपस्थिति ने लोगो के बीच एक ऐसा माहौल बनाया कि यही वो शक्स है जो देश को बदलने का माद्दा रखता है. "पर्सेप्शन" का असर इस कदर हावी हुआ कि सुदुर गाव मे रहने वाला एक छोटा बच्चा भी "अबकी बार मोदी सरकार" का नारा लगाते हुए खेलता था.आज वो देश के प्रधामन्त्री है और अपनी छवि के मुताबिक आज वो विकास के कार्य मे लगे हुए है . ये सकरात्म्क 'पर्सेप्शन' का नतीजा है .
          नकारात्म्क पर्सेप्शन का असर ये होता है कि आज काँग्रेस के एक युवा नेता को 'पप्पू', दिल्ही मे 'खुजली' जैसे नामो की खूब चर्चा होती है . 
          काफ़ी हद तक पर्सेप्शन आदमी के अपने कार्यो से बनती है जो अमिट होता है . कुछ हद तक उसे बार-बार बोलकर मेनिपुलेट किया जा सकता है लेकिन वो क्षणिक होता है. 
           'पर्सेप्शन' बनाना कुछ हद तक सही भी है कुछ हद तक गलत.यदि पर्सेप्शन द्वेष की भावना से बनाया जाये तो वो गलत है और यदि देशहित या समाज हित मे हो तो वो सही.
            जो व्यक्ति पोपुलर होता है वो अच्छा और सच्चा होता है ये 'पर्सेप्शन' बनाया जाता है . ये जरुरी नही की जो पोपुलर हो वो सच्चा और अच्छा भी हो , ये उस व्यक्ति की कार्यशैली ऐसी है की वो हर स्थिति मे दूसरो को संतुष्ट कर पाता है.
            एक उदाहरण याद आ रहा है,एक क्लास मे कोई बच्चा पढने मे बहुत तेज़ होता है ,और कोई बच्चा बोलने मे .परीक्षा मे टोप, पढने वाला बच्चा करता है जबकि स्कूल के फंक्शन मे बेस्ट पर्फोर्मर का अवार्ड बोलने वाले बच्चे को मिलता है . बोलने वाला बच्चा ज्यादा 'पोपुलर' होता है , इसका मतलब कत्तई ये नही है की वो जानकार है लेकिन "पर्सेप्शन" ये बनता है कि वो सब जानता है जबकि सच्चाई कुछ और होती है. कौन सही है और कौन गलत ये फ़ैसला आप करिये ,लेकिन दोनो तरह के लोग समाज मे होते है ये सच्चाई है.
            Moral of the story ये है कि आप जो हो वही दिखो , अपने आप को दूसरो के नकारात्म्क 'पर्सेप्शन' के आधार पे ना बदलो .

आपका,
meranazriya.blogspot.com

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