लोकप्रीयता Vs विश्वश्नियता (Popularity Vs Credibility)

लोकप्रीयता Vs विश्वश्नियता

       
          "जो लोकप्रिय है क्या वो विश्वश्निय है" , ये सवाल मेरे मन में  बहुत दिनों  से है. इस सवाल का जवाब मैने अपने आस -पास के परिद्रिश्य और अपने अनुभव के आधार पर ढूढने की कोशिश कर रहा हू . मेरे हिसाब से इसका जवाब है "कोई ज़रूरी नहीं "ये कोई जरुरी नही है जो लोकप्रिय हो वो विश्वश्निय हो .हो सकता है की मेरा अनुभव इस सवाल का जवाब ढूढने के लिये कम हो लेकिन मेरे अभी तक अनुभव के आधार पर ये जवाब है .
           कोई भी व्यक्ति अपने बोल -चाल के ढंग, व्यक्तित्व ,और कर्मों के आधार पर लोकप्रिय हो सकता है लेकिन इसका कत्तई ये मतलब नही है की वो जो भी कार्य करे वो उसमे सेवा भाव, जनहित की भावना और नी:स्वार्थ भाव भी शामिल हो.अक्सर ये देखने को मिलता है कि लोग अपनी लोकप्रियता का फ़ायदा उठाकर अपना स्वार्थ साधने मे लगे रहते है .
          लोकप्रिय होना भी एक कला है,और इसकी महारथ कुछ खास लोगों में ही होती है। वो समय ,जगह,लोग ,परिस्थिति को भांपकर उसके हिसाब से अपने आपको प्रस्तुत करते है और लोगो के दिलों में एक खास जगह बना लेते . और इस लोकप्रियता का उपयोग अपनी सुविधा के अनुसार अपना हित साधने में करते हैं। आजकल हर क्षेत्र में कोई ना कोई लोकप्रिय है जैसे राजनीती,फ़िल्म जगत ,कला ,मीडिया के ना जाने कितने। पर क्या वो सारे विश्वश्निय है ?
         विश्वश्नियता हासिल करने के लिए आपको निःस्वार्थ होना होगा। और ये दुनियां का सबसे कठिन काम है। लोग आपके ऊपर भरोशा करे ये पाने के लिए आपको सबसे पहले आदर्श जीवन जीना होगा। आपको अपने कार्यो में ,विचार में ,व्यक्तित्व में ,बोल-चाल में पारदर्शिता लानी होगी तब जाकर आप कही विश्वशनीय हो पायेगे।

एक छोटे समूह में लोकप्रिय होना और सार्वभौमिक विश्वशनीय होने में जमीन आसमान का अंतर है। हमें लोकप्रियता के बजाये विश्वश्नियता हासिल करने पर ज़ोर देना चाहिए। 

यदि आपने विश्वश्नियता हासिल कर ली , तो लोकप्रियता झक मारकर आपके के पीछे पीछे होगी। 





आपका,
meranazriya.blogspot.com
         

           

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