रास्ते में कांटे बिछाना ये पुरानी रीति है यारों,
अभी तो नुकिले कीलें बिछाने का दौर है।
नियत ठीक है पर करतूत ग़लत है,
ये कैसा दौर, अपनों से ही लगने लगा है डर,
लोगों को रोकने का इतना प्रबंध,
कुछ तो होगा सरकार से इनका संबंध,
लोग तो ऐसे ही रुक जाएं शायद,
विचारों को कैसे रोक पाओगे?
ये कैसा हठ है ?
आपका,
मेरा नज़रिया
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