पहला स्पर्श

   ये एक खुला पत्र है मेरे छोटे भाई के नाम,

Dear Sonu,

        शायद तुमको एहसास भी नहीं आज का दिन यानी 5 दिसंबर , कितना बड़ा और शुकुन देने वाला दिन है हमारे पूरे परिवार के लिए। आज से ठीक 30 साल पहले जब सर्दियां ज्यादा पड़ा करती थी। ना जाने कितनी मनौती और तपस्या के प्रभाव से तीन बहनों के बाद तुम्हारा जन्म हुआ था। मुझे वो दिन पूरी तरह से याद है । सुबह-सुबह लगभग 5 से 6 बजे के बीच का समय था। ठंडी का मौसम था। मैं लगभग 7-8 साल का था। घर में कुछ हलचल था सब लोग यहां वहां भाग रहे थे। पापा भी परेशान लग रहें थे। हमारे यहां हमारी मामी भी आई हुई थी। बड़े पापा अपने रेगुलर कार्य में व्यस्त थे। मैं भी अपने आदत के मुताबिक शांत रुम में बैठा हुआ था। तभी ज़ोर से थाली बजने आवाज़ आनी शुरू हो गई। बड़े पापा के मझले पुत्र जेपी भैय्या ज़ोर ज़ोर से लड़का हुआ है-लड़का हुआ है बोलकर, थाली बजाकर खुशी जाहिर कर रहे थे। मैं भी भागता हुआ आंगन में आ गया था। पूरे घर में एक गज़ब का पाज़िटिव एनर्जी का संचार हो रहा था। अचानक से सब लोग बहुत खुश हो रहे थे। दीदी मेरे पास भागते हुए आई और बोली बड़ी मां मुझे बुला रही है। मैं दीदी के साथ थोड़ा सहमते हुए उस कमरे में गया , कमरे में अंधेरा था। तभी बड़ी मां ने खाट पर बैठने के लिए बोला और कहां आओ तुम्हारे छोटे भाई का पीठ तुम्हारे पीठ से सहला देती हूं , जिससे तुम जीवन भर कभी लड़ाई नहीं करोगे, मिलजुल रहोगे और खुब तरक्की करोगे। मैं बहुत छोटा था इतना समझ नहीं पाया पर छोटे भाई का वो पहला स्पर्श और वो लाइन मुझे आज भी अच्छे से याद है। मैं भी बहुत खुश था अब मेरा भी छोटा भाई है।
           आज तुम तीस के साल के हो चुके हो। बहुत सारी कहानियां है तुम्हारी। बचपन में शायद तुम सबसे जिद्दी थे और वो ज़िद आज भी बरकरार है। परिवार में शुरूआती दिनों के संघर्ष के दौरान तुम एक दिन बाज़ार में घर के खेलते हुए रास्ता भटक गए थे, तब तुम लगभग तीन साल के रहे होगे। पापा पागलों की तरह तुमको ढुढने के लिए निकल पड़े थे। और शाम ढलने से पहले तुम पापा के गोद में थे। कितना अमुल्य हो तुम, इसका एक झलक मैंने उस समय महसूस किया था। बहनों के लिए तुम्हारा प्यार आज़ का नहीं है। एक बार वंदना या शायद रेखा का कान छेदने के दौरान जो हस्र तुमने कान छेदने वाले का किया था आज सोचते हैं तो हंसी छूट जाती है। थोड़ा सा भी दर्द नहीं बर्दाश्त कर सकते तो तुम अपनों के लिए। और बहनों से वो लगाव समय के साथ और बढ़ा है। पढ़ाई-लिखाई को लेकर पापा शुरू से ही हम सबको समझाते रहते थे और कभी भी हम सबको अपने पारिवारिक कार्यों से अलग ही रखते थे, जिससे हमारी पढ़ाई में बांधा ना पड़े। शायद तुम्हारा पांचवां जन्मदिन था या होली का त्यौहार पापा तुम्हारे लिए बहुत बढ़िया टी-शर्ट और जींस का फूल पैंट का पूरा सेट लेकर आए थे। और मैं अभी तक हाफ पैंट में ही काम चला रहा था। तब भी मुझे लगा पापा तुमको कितना मानते थे। तभी जब मैं कक्षा छ: में था , सैनिक स्कूल की तैयारी के लिए मुझे हास्टल में भेज दिया गया। और पहली बार घर और घरवालों से दूर मैं अपनी पढ़ाई कर रहा था। एक छोटे बक्से में दो-चार कपड़े और घर के अचार और चूड़ा और चना के भुजा के साथ घर से दूर मैं रह रहा था और तुम ये सब देख और सिख रहे थे। बचपन में तुम्हारे ज़िद के सामने सब नतमस्तक थे , एक और किस्सा याद आ रहा है। अम्मा तुमको लेकर मेरे हास्टल में आई हुई थी और हाल ही तुम्हारा जंघे के पास एक छोटा आपरेशन हुआ था। आपरेशन से पहले डाक्टर साहब का क्या हाल तुमने किया था अम्मा बता रही थी। और डाक्टर साहब आज भी तुमको उसी जिद्दी बच्चे की तरह जानते है। इसी दौरान तुम स्कूल जाना शुरू कर दिए थे।
         शुरुआती स्कूल के दौरान मैं तुम्हारे साथ नहीं था और जब हास्टल से वापस आया तो अपनी पढ़ाई में लगा रहता था। तुम बाज़ार में बहुत पापुलर थे। एक तरफ मैं बहुत ही कम बोलने वाला , बहुत कम दोस्ती, कम घुमना फिरना  और दूसरी तरफ तुम बहुत पापुलर, सबके चहेते थे। मुझे शायद ही याद है हम लोग एक साथ बैठकर पढ़ाई किए हों। मैं सुबह-सुबह उठ कर कोचिंग और फिर स्कूल और शाम को पढ़ाई यही दिनचर्या था। और तुम इस दौरान ये सब होते हुए देख रहे थे और सीख भी रहे थे। घर में जब भी चर्चा होती हम सब पढ़ाई की ही बात करते थे। इसका असर कहीं ना कहीं तुम्हारे दिमाग में तो हो ही रहा था, आज इस बात को अच्छे से समझ सकता हूं। जब मैं हाईस्कूल में प्रथम डिविजन से पास किया था तब अपने गांव के इतिहास में मैं पापा के बाद दूसरा छात्र था और इसकी चर्चा भी खुब हुई थी हमारे घर और गांव में। कुछ दिनों बाद मैं कानपुर चला गया और फ़िर घर से और ज्यादा कट गया, लेकिन तुम्हारी परवरिश में पापा का त्याग पूरा छलकता है। कुछ सालों बाद जब तुम हाईस्कूल की परीक्षा देकर मेरे पास आए हुए थे। हाईस्कूल का रिजल्ट मैंने ही देखा तुम्हारे साथ और रिजल्ट देखकर मैं अतिउत्साह से भर गया। जहां लोग एक सब्जेक्ट में डिक्टेंशन लेकर पागल हो जाते थे , तुम्हारे हर सब्जेक्ट के आग D  लिखा था, शायद एक को छोड़कर। और तुम हमारे गांव के इतिहास में सबसे ज्यादा पर्सेंट से पास होने वाले छात्र बनकर उभरे थे। घर पे पढ़ाई की बातों का क्या असर होता है उसका तुम बहुत बड़ा उदाहरण बनकर उभरे। यही वो क्षण था जब मुझे लगा कि तुम कुछ बड़ा करोगे। पढ़ाई में इतना लगनशील, सिरियस,सेल्फ मोटिवेटेड, शार्प माइंडेड इत्यादि तुममें वो सब कुछ था जो मेरे में बहुत कम था। इसके बाद इंटरमीडिएट की परीक्षा में और बड़ी सफलता ने आगे के सभी रास्ते खोल दिए।

Tough, Hard & Bold decisions

   इंटरमीडिएट अपियरिंग में तुमने पालिटेक्निक, IERT और इंजीनियरिंग की परीक्षा भी दिया था। पालिटेक्निक में तुम्हारा रैंक प्रदेश स्तर पर सौ के नीचे था, IERT में भी तुम्हारा रैंक बहुत अच्छा था। पर राष्ट्रीय और प्रदेश इंजिनियरिंग कॉलेज में रैंक बहुत अच्छा नहीं जिससे की सरकारी कालेज मिल सके। यहां डिसिजन की बारी थी। कम रिस्क लेने की आदत और फाइनेंशियल कारण की वज़ह से मैं और पापा ने तुम्हें IERT में एडमिशन के लिए सुझाव दिया। और तुमने इच्छा के विरुद्ध एडमिशन ले भी लिया, ये सोचकर चलो अगले साल फिर से यूपिसिट के लिए प्रयास किया जायेगा। एडमिशन के एक महीने में ही कालेज के माहौल और बच्चों के टैलेंट का लेवल देखकर तुम बहुत उदास हो गये थे। तुम्हारी बातों से ऐसा लग रहा था कि तुम एकदम खुश नहीं हो। फोन पर तुम्हारी बातों से लगता था ग़लत डिसिजन ले लिया है।एक साल तैयारी करके सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा ऐसा विश्वास तुम्हारी बातों से हो रहा था। ये देखकर फाइनली तुमने IERT छोड़ने का फैसला कर लिया। ये तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा, रिस्की और अहम निर्णय था। उसके बाद तुमने अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए कितना परिश्रम किया और वो भी अपने बल बूते पर मुझसे और पापा से ज़्यादा शायद ही कोई जानता है। तुमने पढ़ाई में अपने आप झोंक दिया था। तुम्हारी उस लगन से लगता था कोई भी मंजिल तुम पा सकते हो। और मुझे आज भी लगता है तुम अपने पोटेंशियल का बहुत कम प्रयोग कर पा रहे हों। तुमने अपने दम सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज लखनऊ में एडमिशन लिया और साबित किया कि अपने पर भरोसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। इंजिनियरिंग की पढ़ाई के दौरान शुरुआती संघर्ष में तुम बताते थे कैसे बड़े बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सामने , कक्षा में बोलने में तुम्हारा आत्मविश्वास हिल जाता था। लेकिन कुछ ही समय में तुम क्लास सबसे अच्छे स्टूडेंट्स में गिने जाने लगे थे। और मैं और पापा तुम्हें मोटीवेट करने की भरसक प्रयास करते रहते थे। बी-टेक के दौरान गेट के लिए कोचिंग करने का डिसीजन भी एक बड़े निर्णय में से एक था। पापा और मेरा का काम सिर्फ यही था कि तुम जो भी निर्णय लो पूरी तन्मयता से तुम्हें सपोर्ट और मोटिवेट करना है। बी-टेक के बाद क्या? एक समय ऐसा आया जब तुम बहुत तनाव में रहने लगे थे। आखिर बी-टेक के बाद क्या होगा। कैंपस हो नहीं रहा था। गेट में अच्छा रैंक के बाद फार्म तो हर जगह भरने के एलिजिबिलिटी थी पर सिट बहुत कम था। तुमने लगभग सभी जगह फार्म भर रखा था। और परीक्षा की तैयारी में लगे रहते थे। इसी दौरान भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई में इंटरव्यू देने का मौका मिला। मैं बहुत गौरवान्वित महसूस करता था और लोगों को बताया करता था। सेल, रेलवे,NPCL,NTPC और ना जाने क्या क्या। हर जगह से रिजल्ट का इंतज़ार और परिणाम से तुम तनाव में रहने लगे। इसी दौरान तुम मेरे यहां आए । तुम बहुत ज्यादा टेंशन में थे। और तुम्हें मोटीवेट करने का बहुत प्रयास करता था। जब कहीं से कन्फरमेशन नहीं आ रहा था तब हमलोग बैठकर बात किए और आगे Mtech किया जाए, निर्णय लिया गया। यह निर्णय भी तुम्हारा इच्छा के विरुद्ध था और मजबूरी में लिया गया फैसला था। गेट के रैंक के आधार पर IIT गुवाहाटी और तेलंगाना के टाप इंजिनियरिंग कॉलेज में एडमिशन का आफर मिला। हमलोग तेलंगाना में एमटेक में एडमिशन लेने के लिए निकल पड़े। रास्ते में चर्चा के दौरान इतना तो मैं समझ गया कि तुमने बहुत मेहनत किया है और किसी भी हाल में किसी ना किसी सरकारी विभाग में तुमको ज्वाइन करना है। एमटेक केवल टाइम काटने का जरिया था। तुम्हारा मन कहीं से एमटेक करने का नहीं था। शाम लगभग पांच बज रहे होंगे मैं और तुम एन आई टी तेलंगाना के एडमिशन हाल में लाइन लगा लिए थे और हमारे आग 5-6 लोग लगे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बातचीत के क्रम में एक लड़के ने बताया यहां ओरिजनल डाक्यूमेंट जमा करा लेते हैं और जरूरत पड़ने पर देंने में समस्या करते हैं। ये बातें सुनकर हमलोग फिर तनाव में आ गए , और सोचने लगे अब क्या करें। और हम तुम वहां के हास्टल में और स्टूडेंट्स से बातचीत की और अगले दिन एडमिशन ना लेने का एक और बड़ा निर्णय लिया। और इस बड़े डिसीजन के बाद चलो एक साल फिर तैयारी करेंगे तुम वापस लखनऊ चलें  गये। ये जुलाई का महीना था और अगले महीने UPPCL की परीक्षा थी। ये आखिरी परीक्षा देकर अगले सत्र की गेट के लिए तैयारी शुरू करना था। और आखिरी परीक्षा ने तुम्हारे जीवन को बदल के रख दिया।

        तुमने अभी तक के सफ़र में जो भी किया है वो अद्भुत है। तुम्हारी सोच काफ़ी उच्च स्तर की है। ग़रीबी तुमसे देखा नहीं जाता है। तुम बहुत भावुक इंसान हो दूसरों का कष्ट तुमसे देखा नहीं जाता है और अपने स्तर पर तुम बहुत कुछ करते रहते हों। ऐसे कई मौके आए जब हम लोग किसी बात पर विपरीत राय रखते हों, पर हमारी सोच एक ही है। पढ़ाई को लेकर तुम बहुत ही ज्यादा संवेदनशील हो और हमारी सबसे ज़्यादा बात एजुकेशन पर ही होती है। तुम बहुत कुछ करना चाहते हों  उनके लिए जो जरुरतमंद है और बहुत कुछ कर भी रहे हो तुम। बचपन में जो ज़िद तुम्हारी कमजोरी थी आज वो तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है। तुमने हमेशा अपने दिल की सुनी और सफल भी हुए। एक बड़े भाई होने के नाते मैं और पापा और पूरा परिवार तुम्हारे हर निर्णय के साथ था और आगे भी रहेंगे।

तुम्हारे जन्मदिन पर आज सुबह से थोड़ा ज्यादा ही भावुक हो गया हूं, मैं चाहता हूं कि तुम जीवन में हर वो मुकाम हासिल करो जो तुम चाहते हो। मैं, पापा और पूरा परिवार तुम्हारे साथ उस पहले स्पर्श की तरह हमेशा चट्टान की तरह खड़ा रहेगा। 

खुश रहो...


तुम्हारा भैय्या,
रवीन्द्र नाथ जायसवाल

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