हे भोले ...

हे भोले
कर दो कुछ
ऐसा इस सावन में,
मिट जाये लोगों के ,
कष्ट,ना रहे भूखा-प्यासा कोई ,
इस धरा पर ,
ना हो मौत किसी का ,
भूख से ,
जो उगाता है ,
वही भूखा है ,
और जो खाता है ,
वो तय करता उनकी नियति,
वाह क्या विडंबना है,

हे भोले
क्यों बनाया भिन्नता  ,
इंसानों के बिच,
कोई खा-खा के मर रहा,
कोई बिना खाये ही,
सो जाता है,
किसी के पास,
पहनने को कुछ भी नहीं ,
और किसी को पसंद का ,
रंग नहीं मिलता ,
कर दो ऐसा कुछ
इस सावन में भोले ,
भूखे को खाना मिल जाये ,
नंगे को ओढ़ने को मिल जाये ,

हे भोले
बहुत अशांति है अभी ,
दुनिया में,
क्यों प्यासे है खून के ,
एक दूजे  के,
क्यों मार -काट मची है ,
इस दुनिया में ,
रक्तरंजित हो रही धरा,
क्षीण हो रही मानवता है,
कर दो ऐसा कुछ
हे भोले की
शांत हो जाये धरा ,

हे भोले ,
क्या पाना चाहता इंसान ,
सब जानते हुए ,
अनजान क्यों है ,
जब समृद्धि ना हो तो अशांत ,
समृद्धि आ जाये तो असंतोष ,
आखिर मंज़िल तो एक ही  है,
फिर क्यों पड़ा है ,
चक्कर में ,
मिटा दो द्वेष भाव मन से ,
इस सावन में,
हे भोले।

हे भोले ,
करके तांडव ,
आ जाओ इस सावन में ,
मिटा दो दुखों के घना को ,
कर दो खुशहाल,
इस धरा को,
हे भोले।

हर -हर महादेव




















आपका ,
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