अख़बार (फ़ेरी ) वाले का विश्लेषण

            आज प्रात: घर की सफाई के क्रम में श्रीमतीजी ने पेपर वाले को बुलाया। मैंने भी सोचा चलो इससे कुछ देश और सरकार के बारे में बात करते है। वो शख़्स जो रोज़ पुराने अख़बार इकठ्ठा करने के लिए घर से सुबह-सुबह निकल जाता है,उसके विचार सुनकर मै हैरान था। आज देश में जो कुछ भी हो रहा है उसका सटीक विश्लेषण जो उसने किया वो किसी न्यूज़ चैनल पर बैठे उन तथाकिथत ज्ञानी महापुरुषों के होश उड़ा दें। एक अनपढ़ और दिखने में सामान्य कद काठी वाला व्यक्ति का देश और सरकार के बारे में राय जानकर मै भी हैरान था। उसके कुछ अंश आपको बताता हूँ :

मेरा सवाल : कहाँ घर है आपका ?
अख़बार वाला : सर ग्राम किशनपुर जिला - गोरखपुर 
मेरा सवाल : कितने दिन से ये काम कर रहे हो ?
अख़बार वाला : सर 10 साल हो गए यही काम करते -करते। 
मेरा सवाल : परिवार का गुजारा हो जाता है इसमें ?
अख़बार वाला : कहाँ सर तीन बच्चे है ,स्कूल जाते है ,एक रूम किराये पर लिए है, घर का खर्चा पूरा नहीं हो पाता है , इसीलिए वाइफ भी घरों में काम करती है। बहुत मुश्किल हो जाता है। पढ़ा -लिखा भी तो नहीं हूँ ना। अब कोशिश करता हूँ की बच्चों को पढ़ा -लिखा दूँ किसी तरह से। 
मेरा सवाल : यही काम करना है तो गाँव क्यों छोड़ दिये ? कम से कम वहां रूम का किराया तो नहीं देना पड़ेगा। 
अख़बार वाला : कहाँ सर गाँव में क्या बचा है अपनी तो खेती भी नहीं है ऊपर से छोटी जाति का होने से दबंगों का अपना आतंक रहता है ,स्कूल भी गाँव से दूर है , माँ-पिता जी का देहांत हो गया है , अनपढ़ हूँ , कोई इज़्ज़त नहीं है हमारी। यही सोचकर गाँव छोड़कर शहर आ गया सोचा यहाँ जी तोड़ मेहनत करुँगा ढेर सारा पैसा कमाकर अपने बच्चों को पढ़ाऊंगा। 
मेरा सवाल (अपनी भावनाओं को दबाते हुए ) : अच्छा ये बताओ पेपर क्या भाव ले रहे हो ?
अख़बार वाला : सर आठ रूपये लगा देंगे आपको। 
मेरा सवाल : अरे पिछली बार तो  दस रूपये लिये थे अभी कम क्यों ?
अख़बार वाला : अरे सर क्या बताएं जबसे जी यस टी (G S T) लागू हुआ है पूरा धंधा चौपट हो गया है। 
मेरा सवाल : क्यों भाई ? (यहीं से राजनितिक चर्चा की शुरुवात हो गयी )
अख़बार वाला : जबसे  G S T लागू हुआ है कोई माल बाहर नहीं जा रहा है। सब गोदाम में जमा हो गया है। व्यापारी माल नहीं ले रहे है और खरीदने का रेट भी कम कर दिए है। जानकारी नहीं होने से ट्रांसपोर्टर भी भाड़ा बढ़ा दिए है। समझ नहीं आ रहा है क्या करें किसके पास जाये। हमारा तो यही काम है ना, घरों से पुराने अख़बार लेना और व्यापारी को बेच देना। जब व्यापारी खरीदेगा ही नहीं तो हम लोग कहाँ जाये। हमलोगों का तो बुरा हाल है ही बहुत सारे फैक्ट्री बंद हो जाने से मेरे कुछ साथियों का भी यही हाल है। दो -दो महीने से पगार नहीं मिला है। 
मेरा सवाल : अच्छा..... तो इसका मतलब मोदी बढ़िया काम नहीं कर रहा है ?
अख़बार वाला : नहीं सर मोदी बहुत बढ़िया काम कर रहा है। वो तो बिलकुल सही काम कर रहा है बड़े -बड़े व्यापारी लोग जो इतना पैसा कमाते है सरकार को कोई टैक्स देता है क्या और जो थोड़ा बहुत देता भी वो क्या ईमानदारी से पूरा टैक्स देता है? अभी तो G S T नया -नया है धीरे -धीरे सब ठीक हो जायेगा , कोई भी नया काम में थोड़ी दिक्कत तो होती ही है ना सर l
     अभी पिछले साल नवंबर में 500 -1000  के नोट बंदकर मोदी बहुत बड़ा काम किया जितना लोग चोरी का पैसा थाकी लगा -लगा के रखे थे सब बाहर हो गया। अभी जो भी लोग गलत ढंग से पैसा कमायेगा वो चैन से नहीं रह पायेगा। कम से कम इतना भरोशा तो है। हाँ एक बात तो है जब देश में चोरी करने वाला ज्यादा और पकड़ने वाले कम है तो ऐसे में सरकार को बड़े और शख्त कदम तो उठाना पड़ेगा ही जिससे लोगों में एक मेसेज जाये। 
मेरा सवाल : आपको क्या फ़ायदा हुआ है अभी तक ?
अख़बार वाला : देखिये सर हम लोगो को कोई खाश फ़ायदा नहीं हुआ है हम पहले भी गरीब थे और आज भी गरीब है। हम लोग दिहाड़ी मज़दूर है ,दिनभर काम करते है तो शाम का खाना नसीब होता है। अब कोई सरकार हमको बैठा के थोड़ी ना खिलाएगी। लेकिन हाँ एक फ़ायदा हुआ है अब हमारे बच्चे अरहर की दाल अब रोज़ाना खाते है,  सस्ता हो गया है ना, पहले लगभग दो सौ रूपये हो गया था अब तो ६०-७० में ही एक किलो मिल जाता है। हमरा घर में मिट्टी के चूल्हा पर खाना बनता था,लकड़ी और कोयले से बड़ी परेशानी होता था  अब हमको फ्री का एलपीजी सिलिंडर मिल गया है उसी पर खाना बनता है। 
आधार कार्ड बनवा लिए है और बैंक में अपना अकाउंट भी खोलवा लिए है। हर महीना कुछ पैसा बचाकर बच्चों के भविष्य के लिए और अपना घर बनाने के लिए बचा रहे है। 
मेरा सवाल : आजकल आये दिन गोरक्षा , बीफ़ , हिन्दू -मुस्लिम  जो चल रहा है , क्या ठीक है ?
अख़बार वाला (उल्टा सवाल करते हुए ) : तो क्या ये सब का मोदी कर रहा है ? ये सब ठीक नहीं है। सबको एक साथे ना रहना है जी , आपस में लड़कर कौन किसको हराना चाहता है। भला अपनों से जीत कर कौन सुख पा लेंगे आप। पर एक बात कहेंगे आप से ,हम सबको एक दूसरे के धर्म का सम्मान करना चाहिए। और मोदी भी तो यही बोलता है 'सबका साथ और सबका विकास '.क्या है....एतना बड़ा देश में ढेर सारा पार्टी है ,सबको राजनीती तो करना ही है इसलिए कुछ भरमाने वाली बात फैलाई जाती है। हम लोग तो गली -गली घूम रहे है ,देखते रहते है हर जगह क्या -क्या हो रहा है। 
           आजकल एक बात और ठीक नहीं हो रहा है हर छोटी -छोटी बात पर आदमी लोग किसी की जान ले लेते है। आपको तो याद ही होगा कुछ दिन पहले बच्चा चोर के नाम 4 -5 लोग मार दिए गए थे। पुलिस का डर तो लोगों में होनी ही चाहिए नहीं तो सब ख़राब हो जायेगा। 
आजकल टीवीया वाले भी पगला गए है जब भी सोचता हूँ थोड़ा अपना यहाँ गोरखपुर का कुछ समाचार देखू टीवी चालू करते ही खाली मोदी ,योगी ,गाय ,हिन्दू -मुस्लिम ,कश्मीर में आतंक यही सब चल रहा होता है और तो और दो -चार चामुंडा टाइप के लोग बैठ कर अपनी -अपनी पेलने में लगे रहते है और जो न्यूज़ बताने वाला एंकर होता है उसको लड़ाने में ही पूरा मज़ा है। इसीलिए आजकल अपना काम पे ध्यान देते है इन सबको सुनने का फालतू का टाइम कहाँ है अपने पास।
        अच्छा सर थोड़ा लेट हो रहा है ज़रा चलता हूँ। मौसम भी ठीक नहीं है ,बड़ी गर्मी है और कभी भी बारिश हो जा रही है। सुबह-सुबह कुछ काम हो जायेगा तो ठीक है। जाते -जाते एक बात आप से पूछेंगे कि मुझसे ये सब बात आप क्यों पूछ रहे है ? वो क्या है की हमलोगों से ज्यादा कोई बात नहीं करता है ना। लोग ख़ाली पेपर का भाव पूछकर और रेट बढ़ाने का ही मोल -तोल करते है। 
मेरा जवाब : बस ऐसे ही आपसे पूछा। समझने की कोशिश कर रहा हूँ समाज को। आज कल हमारे देश में कई प्रकार की दुनिया एक साथ चल रही है ,
राजनीती की दुनिया,
कॉर्पोरेट की दुनिया ,
गाँव और शहरों की अपनी दुनिया 
एजुकेशन 
लॉ एंड आर्डर 
धर्म की दुनिया 
सरकारी और प्राइवेट कर्मियों की दुनिया 
पुरुषवाद और महिलावाद 
अमीरी -ग़रीबी 
आतंकवाद 
विदेश निति 
सोशल मिडिया 
बुद्धजीवी लोगों की दुनिया 
बचपन ,जवानी और बुढ़ापे की दुनिया 
किसान और विज्ञान 
टेक्नोलोजी की दुनिया 
पर्यावरण 
मनोरंजन 
और ना जाने क्या -क्या। 
           इन सबको जानने की कोशिश कर रहा हूँ। 
अख़बार वाला : अच्छा सर चलते है फिर मुलाकात होगी आप से। बहुत - बहुत धन्यवाद। 

               उम्मीद है आपने मेरा अख़बार वाले के साथ चर्चा को ध्यान से पढ़ा होगा। सीमेंट से बने पत्थर के बड़े घरों में  AC की ठंडी हवाओ में चाय और कॉफी के साथ  ग़रीबी की चर्चा करना जितना आसान है। ग़रीबी में जीना उतना ही कठिन। टीवी चैनलों पर बैठकर राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाना जितना आसान है राष्ट्रवादी होना उतना ही कठीन। आज वो अख़बार वाले जैसा ना जाने कितने किसान,मज़दूर, जो मुफ़लिसी में जीने को मज़बूर है उनकी राष्ट्रीयता उन टीवी में भाषण देने वालों से कही ज्यादा होती है। इसीलिए मेरा मानना ये है, राजनीति देशहित में होनी चाहिए चाहे वो कोई भी पार्टी क्यों ना हो। हम ही सही है इससे काम नहीं चलने वाला। सरकार को सबका सुनना होगा और जो देशहित में है वो निर्णय सरकारों को लेना होगा। 
आपसे अनुरोध है इस चर्चा को देशहित फैलाये (शेयर करें ) और लोगों को जागरूक करे । 

धन्यवाद। 


आपका ,
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meranazriyablogspotcom.wordpress.com 
              

2 comments:

  1. अच्छे विचार,अच्छे कार्यों की प्रेरणा देते हैं और अच्छे कार्य सदैव अच्छे परिणाम लाते हैं|
    बहुत खूब रविन्द्र जी |

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