जब हमलोग अपने गाँव में रहते थे उस समय नाग पंचमी से कुछ दिन पहले से ही स्कूल के प्रांगण में बने आखाँडे में कुश्ती का प्रैक्टिस शुरू हो जाती थी. गाँव के कुछ होनहार लड़के बडे मज़े से मिट्टी मे को अपने पूरे शरीर पर मलते थे. शाम को रोज़ एक बार मैदान में जाना हो ही जाता था.अक्सर पैरों में चोट लग जाती थी और कही ना कही छिल जाना आम था. चारों तरफ़ खेतों में धान की बुआई अपने चरम पर रहता था. बडे लोग हमे बताते थे नाग पंचमी के दिन से त्योंहारों की शुरुवात होती है .
नागपंचमी के दिन पुरा गाँव ही स्कूल के मैदान में एकत्रित होता था.पुरी विधि -विधान से कुश्ती का कार्यक्रम आयोजित होता था, उसके बाद कबड्डी. प्रसाद वितरण के बाद प्रोग्राम का समापन होता था.
आज बहुत दिन हो गये इस तरह के आयोजन का हिस्सा बने हुए , पर आज भी बचपन की वो सारी यादें किसी फ़िल्म तरह दिलों-दिमाग में चलती रहती है.
ये हमारी परंपरा है जो हमे भूलनी नही चाहिये. ये हमें बहुत कुछ सिखाती भी है . आप सभी को 'नाग पंचमी' की हार्दिक शुभकामनाए.
आपका,
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