सन्नाटा

ग़र सन्नाटा भी जी भर कर चीखने लगा ,
उनकी यादों के परिंदे ,
सिमट जायेंगे आग़ोश में ,
जहाँ वो दिखें वहीं ,
होता है जन्नत का पता ,
ताज़महल क्या वो चाहें तो ,
पूरी क़ायनात भी बना देंगे हम। 



आपका,
meranazriya.blogspot.com



No comments:

Post a Comment

वो आंखें..

वो आंखें...  वो आंखों में,  चित्कार है कसक है,  घर छुटने का ग़म है पराया होने का मरम है डर भी है, खौफ भी है वापस ना आने का दर्द है अपनों से ...