मिडिया से नियंत्रित होता हुआ राजनीति

          आज सोशल मिडिया का ज़माना है।  किसी को कोई भी बात बतानी हो , दिखानी हो या सुनानी हो पलक झपकते दुनिया के कोने -कोने में फैल जाती है।  इसका प्रभाव हमारे समाज पर इस कदर हावी हुआ है कि आज कुछ भी इसके बिना आप सोच ही नही सकते है। ये प्रभाव शुरुवाती दौर में शहरों तक सीमित था परंतु आज धीरे-धीरे ये सुदुर गावों में भी अपना पैठ बना लिया है।  लोगों के बीच आसानी से अपनी बात पहुँचाने का एक अच्छा और सस्ता माध्यम साबित हो रहा है सोशल मिडिया। इसका सबसे पहले भारतीय राजनीति में प्रयोग गुजरात में किया गया जो पुरी तरह से सफ़ल साबित हुआ। और इसी से उत्साहित होकर सन 2014 में भारत के सबसे बडे चुनावी दंगल में इस मिडिया का प्रयोग आक्रमक तरीके से किया गया,जिसने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों बदल के रख दी।
              और यही से भारतवर्ष की राजनीति की एक नई दिशा की शुरूवात हो गयी। आज हर पार्टी में एक सोशल मिडिया विंग है जो उस पार्टी के एजेंडा को लोगों के सामने रखती है। जो पार्टी जितनी आक्रमकता से मिडिया को मैनेज करती है वो उतनी ही तेज़ी से अपना वोट बैंक बढने का उम्मीद करती है। पर अब इसका दुष्प्रभाव दिखने लगा है। अब पार्टियाँ लोगों को मिडिया के द्वारा भ्रमित करने का प्रयास करने लगी हैं। जिसका दुष्प्रभाव ये है की लोगों का धीरे -धीरे सोशल मिडिया और डीजिटल मिडिया से भरोशा खत्म होने लगा है। हर छोटी-छोटी घटना को मिडिया में इस तरह से पेश करना की ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है  और उस पर राजनीति करना कहाँ तक जायज़ है। और आज ये हर पार्टी अपने -अपने क्षमता के अनुसार कर रही है।
     मिडिया को मैनेज करने की जो कुप्रथा अभी सामने आयी है इसका विकराल स्वरुप अभी आना बाकी है। अभी हाल ही में देश के एक नामी न्यूज चैनल के मालिक का विडिओ सोशल मिडिया पर खूब वायरल हुआ जिसमे वो टीवी न्यूज चैनलों के स्याह पक्ष को सामने रखते हुए दिखते है। सुनकर एक आम आदमी के मन में मिडिया के प्रति  जो छवी बनी है वो कही से भी देश हित में नही है। पत्रकारिता को लोकतंत्र में चौथा स्तंभ माना गया है। इससे भरोषा उठना मतलब लोकतंत्र की हत्या है जो किसी भी हालत में ठीक नहीं है । 
            आज कल एक और दौर चला हुआ है 'पेड मिडिया' का। कभी -कभी तो ये समझ नहीं आता की जो हम प्राइम टाइम में न्यूज़ या डिबेट देख रहे हैं वो पेड है की अनपेड। जिस तरह चैनल बदलने से हमारी भाव -भंगिमाएं बदल रही है और एक ही मुद्दे पर अलग-अलग चैनल पर अलग-अलग विचार सामने आते है ,हैरत होती है पत्रकारिता पर। सोचता हूँ क्या सच में मिडिया पूरी तरह से मैनेज किया जा रहा है ? क्या पत्रकारिता ने चाटुकारिता की जगह ले ली है ? राजनितिक पार्टियों के एजेंडा को जनता के सामने प्रस्तुत करना ये कहाँ की पत्रकारिता है ? क्या टीवी मिडिया का उद्धेश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा कमाना रह गया है ?सामाजिक सरोकार भी तो इनकी ज़िम्मेदारी है।
                आज टी आर पी का ज़माना है ,हर दिन कोई ना कोई नंबर १ होगा ही। ज़्यादा रेटिंग के लिए न्यूज़ को बताने ज़्यादा न्यूज़ बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है जो पूरा एंटरटेनमेंट पैकेज होना चाहिए। आज राजनीति का पैठ मिडिया में इतना ज़्यादा हो गया है कि सरकार बनते ही पहले ३० दिन ,१०० दिन और फिर एक साल का रिपोर्ट अनिवार्य हो गया है। रिपोर्ट अच्छा या बुरा ,चैनलों को मिलने वाली मुद्रा पर आधारित होता है। पूरा का पूरा फोकस राजनितिक पार्टियों की छवि बनाने में  हो रहा है । इससे साबित हो रहा की आज भारत की राजनीती पूरी तरह से मिडिया से नियंत्रित है।



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