आखिर वो चली ही गयी

कल न्यूज पेपर में एक मार्मिक, दिल को झकझोरने वाली खबर पढा और आज वो न्यूज टीवी और सोशल मिडिया पर खूब चली. बहुत दुख:द कहानी है . इस खबर ने बहुत सारे लोगों की आँखे खोल दी . पैसे के पिछे भाग रहा इंसान जाने या अनजाने में रोज़ मानवता की हत्यायें कर रहा है . हम आप भी इससे अछूते नही है . थोडा रुककर सोचने की ज़रूरत है .
उस बूढी माँ के उपर क्या बिती होगी और इंसान क्या से क्या हो गया , प्रस्तुत लेख वही बयान करता है :

कितना कष्ट हुआ होगा उस बूढी माँ को ,
इस दुनिया को छोड़ने से पहले ,
बेटे के इंतज़ार में ,आंखे हमेशा के लिये खुली रह गयी,
कितना निर्दयी हो गया है इंसान ,
क्यों इतना निष्ठुर हो गया तू ,
जिसने तुझे जन्म दिया ,
पाला-पोशा, खुद भूखे रहकर तुझे
खिलाया होगा , क्यों भूल गया तू ,
आखिर क्या माँग रही होगी वो तुझसे ?
वो तो बस तेरा साथ चाह रह होगी ,
क्यो कमा रहा है तू , क्या करना चाहते हो तुम ,
क्या तुम्हे एक बार भी याद नही आयी इन चार महीनों में , मेरी माँ अकेली है फ्लैट में ,
ज़रा सोच के देख तू  , क्या बिती होगी उस पर अकेले -अकेले ,
जब उसे भुख लगी होगी , कोई ना रहा होगा उसके साथ ,
पानी के लिये बिलबिला गयी होगी वो ,
और अंत समय में वो सिर्फ तेरे बारे में सोच रही होगी ,
तू बडा ही बदनसीब है दोस्त ,

काफ़ी भावुक मन से ये लेख लिख रहा हूँ , सिर्फ ये बताने के लिये कि " इंसान हो, मशीन ना बनों " , भावनायें हम इंसानो में ही है . रिश्तों की कद्र हर हाल में होनी चाहिये .

आपका,
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