कोई तो आयेगा खेवनहार

जब समन्दर ने नदी से पुछा ,
तू इतनी गंदी कैसे हो गयी,
नदी ने मर्मस्पर्शी जवाब दिया ,
आज मै बहुत दुखी हूँ,
क्योंकि मै आज माँ (गंगा)
के घर से नहा के आ रही हूँ,

मै पहले ऐसी नही थी,
आज मुझे अपनी जल से ,
नहाने का जी नही करता ,
आज मेरी माँ (गंगा) ,
कितनी बदनसीब हो गयी है ,
खुद के गंध से बिलबीला रही है ,

कोई तो आयेगा खेवनहार,
जो मुझे निर्मल जल से नहला देगा,
मै भी साफ़ हो जाऊ,
और उसे मीठा जल मिले,
सबके गले को तर कर दूँ,
ना रहे कोई प्यासा यहाँ ,

राजनीति तो खूब होती है ,
मेरे उपर , ऐसा लगता है
इस बार मै जी भर के नहा लूँगी ,
पर काश ऐसा होता नही , फ़िर वही
कश्मे वादे और कानून ,
राजनीति जीत जाती है ,
और मै हार जाती हूँ,

© मेरा नज़रिया

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