संज़िदा

हाँ थोड़ा संज़िदा हूँ,
यू हीं मुस्कुराने की कला आती नही मुझे ,
शायद इसीलिए धोखा खा जाता हूँ,
चेहरे पे चेहरा रखना आता नही ,
नकली बनकर हँसाना भी नही आता,
थोडा धीर हूँ और गंभीर भी,
शायाद यही गच्चा खा जाता हूँ,
सच में भरोशा करता हूँ ,
झूठ कभी बोलता नही ,
छल कपट मुझे आता नही ,
शायद ये कर पाता तो राहें आसान होती ,
लेकिन खुद को ये समझा ना सका,
और ना ही समझा पाऊँगा ,
गलत राह पकड़कर कभी आगे बढूँगा नही ,
जो हूँ.... वही रहूँगा बदलूँगा कभी नही ,
ज़िद्दी भी हूँ, जो सोचा उसे पाने की ज़िद भी है ,
लोग कहते है "परिश्रम सफलता की कुंजी है "
भरोशा है मुझे इस लाईन पर,
सही साबित करूँगा ,है भरोशा खुद में




आपका,
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