क्षेत्रवाद
आजादी के 70 सालों बाद भी हमारे समाज में बहुत सारे अलिखित नियम और कानून है , जिसकी इजाजत हमें हमारा संविधान नही देता लेकिन फ़िर भी हम इसे मानते है . कुछ ज्वलन्त मुद्दे जो आजकल हमारे समाज में हावी है उनमें से कुछ मै यहाँ शेयर करता हूँ :-
1) राजनीति मे क्षेत्रवाद का हावी होना
2) सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियों मे क्षेत्रवाद का हावी होना
3) नक्सलवाद
4) दक्षिण भारत में राष्ट्रीय भाषा का उचित सम्मान ना होना
5) क्षेत्र के हिसाब से अच्छा या बुरा का पर्सेप्शन बना लेना
नक्सलवाद
नक्सलवाद अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है जो आज़ाद भारत के लिए एक अभिशाप है। इस समस्या के जड़ देखगे तो आपको 'क्षेत्रवाद' ही नज़र आएगा। घनघोर पिछड़े क्षेत्र में वहां के लोगो को अच्छे सपने दिखाकर उनका ही शोषण किया जाता है। आज कुछ प्रदेशों में ये समस्या बहुत बुरी तरीके से पैर पसार चुकी है जैसे झारखण्ड ,बिहार ,छत्तीसगढ़ ,आसाम ,नागालैंड ,उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से। वहां की सरकारें इस समस्या को ख़तम करने के लिए प्रयासरत तो है पर इच्छा शक्ति की कमी और अपने राजनीतिक फायदे के लिए पुरज़ोर तरीके से काम नहीं हो रहा है।
दक्षिण भारत में राष्ट्रीय भाषा का उचित सम्मान ना होना
आज़ादी के ७० सालों बाद भी हिंदी को राष्ट्रिय भाषा स्वीकार करने में लोग पहरेज करते है। इसकी बानगी दक्षिण भारत के किसी राज्य जाने से आपको महसूस होगा। मैं ये नहीं कहता कि लोगो को अपनी मातृ भाषा को भूलकर सिर्फ हिंदी में बात करना चाहिए बल्कि मेरा ये मानना है कि यदि कोई व्यक्ति गैर हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी में बात करे तो उसे ऐसा महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि वह किसी और ग्रह का प्राणी है। जो सम्मान हिंदी को पुरे देश में मिलना चाहिए वो नहीं मिला है खास तौर पर दक्षिण भारत में। यहाँ भी आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि "क्षेत्रवाद " ही इसकी जड़ में है।
क्षेत्र के हिसाब से अच्छा या बुरा का पर्सेप्शन बना लेना
अंत में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि आप अपने क्षेत्र की प्रशंशा करिये इसमें कोई बुराई नहीं है, पर साथ में आपके दिल में देश पहले आना चाहिए ना कि क्षेत्र।
आपका ,
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