तर्पण

तर्पण
अपने पुर्वजों के आत्मा की शांति के लिए संतान द्वारा श्राद्ध (पिंडदान) का समय पितृपक्ष का समय आ चुका है। हर साल अश्वनी मास के कृष्णपक्ष में पिंडदान को शुभ माना गया है। पिछले वर्ष मेरे दादाजी एवं पुर्वजों का पिंडदान पिताजी द्वारा 'गया' के पवित्र धरती पर दिया गया। पिंडदान के लिए 'गया' प्रस्थान के समय जो कर्मकांड हुए ,अभिभूत करने वाले थे। मैं इन सभी कर्मकांड का गवाह बना और ये महसूस किया कि सनातन धर्म में जो भी विधान बनाए गए हैं वो सब यूं ही नहीं है। कितना धनी है हमारा सनातन धर्म। कभी कभी कुछ अज्ञानी लोग आधुनिकता में आकर इन सब पुरातन कर्मकांडों को चुनौती देने लगते हैं। मैं इन सबसे कहना चाहता हूं बस एक बार इन सब कर्मकांड का हिस्सा बनिए जिंदगी भर इस अद्वितीय,अद्भुत,अविस्मरणीय क्षण को भुला नहीं पायेंगे। ऐसा मेरा स्वयं का अनुभव है।

आपका,
मेरा नज़रिया

अभी कल की तो बात है

अभी कल की ही तो बात है,
कितना ख़ुश थे हम,
जब पहली बार डरे सहमे,
प्लांट में आये थे,
अनजान जगह , अनजान लोग,
कैसे करेंगे काम,
मन में थे कई सवाल,
थोड़ा झिझकते, थोड़ा डरते,
लोगों से मिलते गए,
जो भी मिलता गया काम,
मन लगाकर सिखते गये,
काम करते गये,
बस कुछ दिन में ही ,
सबके चहेते बन गये,
प्लांट में कुछ पुराने लोग ,
करना है कैसे काम,
अंदर की बात बताने लगे,
लगा ये तो कुछ नया है,
शुरू में नहीं बताया था,
धीरे-धीरे सबकी सुनता गया,
और हां जहां जरूरत थी,
सुनाता भी गया,
समय बीतता गया,
कब कैसे इतना अनुभवी हो गया,
पता ही नहीं चला,
कुछ दिनों बाद फिर से,
नये चेहरे आने लगे,
उनमें अपना अक्स देखने लगा,
मैं भी उन्हें समझाने लगा,
क्या ठीक है ,क्या नहीं
बताने लगा,
धीरे-धीरे समय बीतता गया,
और मैं समय के साथ,
और जवान होता गया,
पर पहले जैसा अब,
ऊर्जा ना रहा,
मेरी कोशिश कम ना थी,
ज़माने के साथ चलने की,
पर कमबख्त ये शरीर,
धोखा देने लगा,
और आज तो हद ही हो गया,
वो लेटर भी गया,
जिसकी तलाश तो सब करते हैं,
पर चाहता कोई नहीं,
अब प्लांट से,
जाने का समय है,
खुश हूं बहुत मैं,
मुझे ये अवसर मिला क्योंकि,
देखा है मैंने बीच मझधार,
नैया डुबते हुए,
आज तो मेरे पास सब कुछ है,
ये इसी टाटा की बदौलत तो है,
बहुत सम्मान है मन में टाटा के लिए,
ये टाटा ना होता शायद,
मेरे पास कुछ भी ना होता,
नासमझी में मैंने भी,बोला होगा बहुत कुछ,
पर आज ऐसा लगता है,
इससे बढीया जगह दुनिया में ना होगी,
ग़र मिलेगा मौका फिर एक बार,
कर देंगे जीवन न्यौछार,
आप सभी को मेरा नमस्कार,
और प्रणाम ,
और इस उम्मीद के साथ की,
बना रहेगा आप सबका प्यार,

आपका,
मेरा नज़रिया

कभी याद करके देखिए उन्हें

कभी याद करके देखिए उन्हें,
फिर वही एहसास होगा,
अरसा बीत गया पर,
खयाल वही होगा,
यकीन ना हो तो,
आजमाकर देखिए,
थोड़ा रुक कर ,
ठहर कर को खो जाइए,
सपनों में एक बार बह जाइए,

आपका,
मेरा नज़रिया

संतृप्ति : एक मिशन

                      संतृप्ति : एक मिशन
                    Santripti : A Mission

      संतृप्ति शब्द संस्कृत से लिया गया है । इसका मतलब होता है 'पुर्णत: तृप्त होने का भाव'। संतृप्ति: एक मिशन जैसा की नाम से ही प्रतित हो रहा है, हम वही काम करेंगे जिससे हमारी अंतरात्मा को संतुष्टि मिलती है। समाज सेवा का कोई भी काम चाहे वो किसी रूप में हो हम एक मिशन के रूप में करेंगे और ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए हम सब प्रेरणास्रोत बनें ऐसा हमारा प्रयास होगा।

          एक छोटी टीम के साथ मिलकर आइए हम सब इस नेक काम में जुड़ते हैं और लोगों को अपने कार्य और कर्मठता से जितने का प्रयास करते हैं।

अभी वाट्सप ग्रुप के माध्यम से जुड़कर हम सब समाज सेवा के इस नेक कार्य में जुड़ेंगे। भविष्य में हम सब इसे और आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहेंगे।

वाट्सप ग्रुप सम्बंधी नियम:
1. ये ग्रुप official नहीं होगा, इसमें कोई सदस्य जो समाज सेवा का भाव रखता हो जुड़ सकता है।
2. हमारा उद्देश्य सिर्फ समाज सेवा है।
3. टीम में किसी को जोड़ने से पहले उनका सहमति लेना अनिवार्य है।
4. ग्रुप में किसी भी तरह की सांप्रदायिक बातें और राजनीतिक बातें नहीं होगी।
5. कोई भी कापी - पेस्ट (copy-paste) पूर्णत: वर्जित होगा।
6. समाज सेवा से संबंधित कोई भी सुझावों का हमेशा स्वागत होगा।
7. इस ग्रुप से संबंधित कोई भी कार्य करने से पहले टीम में चर्चा करनी होगी।

Mission :
"समाज में व्याप्त उपेक्षित और वंचितों के लिए आशा की किरण बनने का प्रयास करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।"
Our main objective is to try to become a ray of hope for neglected and deprived people in the society.

Vision:
" एक समाजसेवी टीम के तौर पर अगले दो साल में हम समाज में अपनी छाप छोड़े , और लोग हमें टीम संतृप्ति से पहचाने।"
"As a social worker team, we leave our mark in the society in the next two years, and people recognize us by team Santripti."

हमारा कार्य क्षेत्र:
1. Tata motors रिटायर्ड कर्मी जिसका कोई सहारा ना हो उन्हें सहारा देना।
2. एकाकी जीवन जी रहे बुजुर्गों की सेवा करना।
3. दिव्यांग और बेसहारा बच्चों की पहचान और उनकी मदद करना।
4. शिक्षा के क्षेत्र में जूनियर क्लास तक बच्चों को कापी,किताब और पेंसिल बाक्स इत्यादि का सपोर्ट करना।
5. अनाथालय, लेप्रोसी होम, वृद्धाश्रम में समय -समय पर जाना और उनके चेहरों पर मुस्कान लाना।
6. समाज में लोगों के लिए एक माध्यम बनना , जो समाज के वंचित लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं।
7. नशे के शिकार बच्चों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना।
8. अपने सहकर्मियों हर छोटी-बड़ी खुशी को सेलिब्रेट करना।
9. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए जरूरतमंद बच्चों की हर संभव मदद करना।
10. शिक्षा में पढाई के नाम पर छोटे बच्चों के मानसिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाना।

डिजिटल डिपेंडेंसी और डिजिटल लिटरेसी

       आज  फोन लेने का एक भयानक अनुभव हुआ। मैं अपने आपको एक डिजिटल साक्षर आदमी मानता हूं। अक्सर जितना हो सके डिजिटल मीडियम ही प्रयोग करता हूं। फिर भी आज का अनुभव बहुत कुछ सीखा गया। सुबह एक नामी मोबाइल शाप पर गया और दुकानदार से जियो मोबाइल दिखाने का आग्रह किया। मेरी जरूरत सिर्फ बात करने और सबसे सस्ता फोन की है मैंने दुकानदार से बोला। मुझे 1600 रूपए में एक कीपैड वाला एक मोबाइल दिखाया,  थोड़ा पुछताछ करके मैंने उसे एक्टिवेट करने के लिए बोल दिया। दुकानदार लड़के ने बोला आधार कार्ड लायें है ?, मैंने पर्स में देखा और संयोग से नही था। मैंने  कहा ड्राइविंग लाइसेंस है इससे हो जायेगा? लड़के ने बोला हो जायेगा देखते हैं। करीब 15 मिनट तक कुछ किया और बोला सिस्टम नहीं ले रहा है। आपको आधार देना होगा। मैं घर वापस जाकर लौटने को लेकर असमंजस में था । मैंने लड़के से कहा m aadhar   से आधार कार्ड डाउनलोड कर देता हूं, इससे हो जायेगा? लड़के ने बोला हमें ओरीजनल वाला चाहिए। मैंने बोला ये मोबाइल वाला ओरीजनल ही है । वो बोला ये चलेगा नहीं। मैंने काफी समझाने की कोशिश और बोला भाई ये सर्वमान्य है। इसमें कोई दिक्कत भी नहीं। वो बोला भैय्या जी नहीं चलेगा आपको प्रिंट लेकर आना होगा तभी हो पायेगा। मैं नजदीक में ही साइबर कैफे से प्रिंट लेकर आ गया। वापस जाकर फिर फोन चालू करने को बोले। दुकानदार लड़के फिर मना कर दिया ,बोला इसमें QR code  स्कैन नहीं होगा, आपको कलर प्रिंट लेकर आना तभी संभव है। मैंने m aadhar से QR कोड दिखाकर स्कैन करने को बोला, लड़का अड़ नहीं होगा भैय्या जी। मैं झक मारकर फिर उसी साइबर में गया और कलर प्रिंट करके लेमिनेशन करके देने को कहा। पूरी प्रक्रिया में अब तक दो घंटे हो चुके थे। धीरे-धीरे दिमागी पारा भी उपर चढ़ रहा था।मन में आ रहा था इतना डिजिटल होने का क्या फायदा सब कुछ तो हार्ड में ही चल रहा है तो? डिजिटल साक्षरता को लेकर भी मन में सवाल उठता रहा।हम देख पा रहे थे कितना गैप है टीवी की दुनिया और हकीकत की दुनिया में। खैर ये सब चल ही रहा था कि साइबर वाले ने मुझे एक नया आधार कार्ड बनाकर मुझे दे दिया। बदले में कुछ पैसे लिए जो की थोड़ा ज्यादा ही था। मैंने मन मारकर कार्ड लिया और मोबाइल शाप में दुबारा आ गया। लड़के से बोला भाई अब तो हो जायेगा? लड़के ने बोला हो जायेगा। उसने जियो के अपने आफिसीयल पेज डिटेल्स भरने लगा। लगभग 15-20 मिनट बाद मेरा फोटो लेने के लिए मुझे एक साइड आने को कहा। आंख स्कैन करने के लिए मुझे दो तीन अलग-अलग हिस्सों में खड़ा किया । बहुत ही इरीटेटींग था। फाइनली 10 मिनट में सारा फार्म भर , फोटो अपलोड कर दिया। फार्म भरने के दौरान उसने मुझे अलर्टनेट मोबाइल नंबर देने की बात बोली जो जियो का नहीं होना चाहिए, उस नंबर पे ओ टी पी आयेगा। संयोग से मेरे पास दूसरा नंबर भी जियो का ही था। अब एक और समस्या अब क्या किया जाए? अजीब दुविधा है जियो फोन के लिए आपके पास जियो के अलावा एक अलर्टनेट नंबर होना चाहिए। ये कैसी मार्केटिंग है? सोचिए किसी के पास मोबाइल फोन ही ना हो वो क्या करेगा? खैर मेरे पास एयरटेल का आफिसीयल नंबर था, मैंने उसे लिखने को बोला। पूरी प्रक्रिया में अब तक ढाई घंटे हो चुके थे। मैंने भी ठान रखा था आज फोन लेकर ही जाऊंगा। लड़के ने सब-कुछ करके बोला आपका काम हो गया। नया नंबर का डिटेल्स आपके अलर्टनेट नंबर पे आ गया होगा। मैंने बोला ठीक है भाई अब मैं इस नंबर से बात कर सकता हूं ना? लड़के ने बोला अभी नहीं? ये सुनकर मेरी दिमाग खराब हो चुका था। लड़के ने बोला एक दो घंटे में आपके दुसरे नंबर पर एक ओ टी पी आयेगा उसे लिखकर 1977 पर फोन करके टेलिभेरीफाई करना होगा तब जाकर आपका फोन चालू होगा। फोन चालू होने के बाद आप मेरे पास फिर आइयेगा । मैंने पूछा क्यों भाई? वो बोला साफ्टवेयर अपडेट करने के लिए, तभी आपका नया वाला काम करेगा। मैंने झक मारकर बोला ठीक है भाई । क्या मैं अब फोन घर ले जा सकता हूं, मैंने गुस्से में पूछा? लड़के बड़े आराम से बोला हां हां क्यों नहीं, 1600 रूपए जमा करके ले जाइए। मैंने कहा ठीक है। आदत के मुताबिक मैंने कार्ड से पैसे देने की बात कही। ये सुनकर उसके कान खड़े हो गए और वो अपने मालिक पूछा ये कार्ड से पेमेंट करेंगे , क्या करना है? मालिक ने बोला कोई बात नही 32 रुपए ज्यादा लगेंगे, उनसे बोल दो। मैंने सोचा चलो दो घंटे के बाद आना ही है, ए टी एम से निकाल कर आते समय पैसे भी दे देंगे और फोन भी चालू करा लेंगे। मैंने लड़के से कहा ठीक है तुम मोबाइल अपने पास ही रखो , मैं दो घंटे में आता हूं। सोचिए लगातार ढाई से तीन घंटे लगातार प्रयास के बाद भी फोन मेरे हाथ में नहीं था। मैं दुकान से बाहर आ गया , और घर जाने के बजाय मैंने सोचा चलो थोड़ा मार्केट में घूम कर टाइम पास कर लेते हैं और ए टी एम से पैसे भी निकाल लेंगे। ए टी एम गये पासवर्ड डालने के दौरान गड़ बड़ी हो गई , और फिर ए टी एम ब्लाक हो गया। अब एक और मुसीबत अब क्या करें? पर्स में पूरे पैसे नहीं और कार्ड ब्लाक हो गया। मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। लेकिन असहाय था। इसी बीच मैंने अपना फोन चेक किया , देखा ओ टी पी आ गया था। लगभग एक घंटे के बाद मैं उस दुकान में फिर गया और मेसेज के बारे में दुकान के मालिक को बताया। दुकानदार ने बताया लड़का घर चला गया है , ये सारे काम वही लड़का करेगा , आप पैसा जमा करके चले जाइए और शाम को आकर फोन चालू करवा लिजियेगा। मैंने दुकानदार से कहा आप अकाउंट नंबर दीजिए मैं नेट बैंकिंग से पैसा भेज देता हूं। वो बड़ा ही अजीब सा मुंह बनाते हुए कार्ड या कैश से पैसा जमा करने को बोला। मैंने उसको थोड़ा तेवर दिखाते हुए बोला भाई मेरा कार्ड ब्लाक हो गया है और पर्स में पूरे पैसे नहीं हैं। मेरे पास केवल यही माध्यम है पैसे जमा करने का। ये सुनकर बेमन से उसने अकाउंट नंबर दिया और मैंने पैसे भेज दिया। दुकानदार इस बात से टेंशन में था कि उसके मोबाइल में मेसेज नहीं आया था। वो बार-बार शक की निगाह से मुझे देख रहा था। मैंने  दुकानदार को बोला ठीक है भाई कभी-कभी मेसेज नहीं आता है , अपना अकाउंट चेक कर लेना। और मेरा मोबाइल नंबर लिख लो पैसा ना आया हो तो मुझे फोन कर लेना। तब जाकर दुकानदार आस्वस्त हुआ।  पैसा भेजकर काफी राहत महसूस कर रहा था चलो अब फोन तो घर ले जा सकता हूं। फाइनली फोन लेकर घर आ गया और फोन को चालू कर दिया। फोन चालू होने के बाद मैंने सोचा अब तो सब ठीक-ठाक है। फोन से बात हो रहा है और फोन आ भी रहा है , शाम को फिर उस दुकान पर जा ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन मैं ग़लत था शाम को उस लड़के ने दुबारा फोन करके फोन और बाक्स साथ लेकर आने को कहा, साफ्टवेयर अपडेट करने के लिए। मैं बेमन से फिर शाम को उस दुकान पर गया और साफ्टवेयर अपडेट कराया, और घर वापस का गया।
            इस पूरी कहानी ने मुझे इतना जरूर सिखा दिया कि आप चाहें कितने भी मार्डन हो जाये, जानकार हो जाये, डिजिटल हो जाये, पर काम हमेशा देसी भारतीय स्टाइल में ही होगा। भारत सरकार को भी इस बात को समझ लेना चाहिए कि आपने सब कुछ आसान करने के चक्कर में लोगों को उलझा भी दिया है। सुप्रीम कोर्ट बोलता आधार अनिवार्य नहीं है पर जमीनी हकीकत ये है कि बिना आधार आपका कोई भी नहीं होगा। अंगुलियों के निशान और ओ टी पी के चक्कर में लोगों को राशन नहीं मिल रहा है। इंटरनेट की गति धीमी होने से गांव में किसानों को यूरीया भी नहीं मिल पा रहा है। गांव के बुज़ुर्ग महिलाओ और पुरुषों के लिए तो ये डिजिटल दुनिया आफत बनकर आया है , वो बैंको में जमा अपने पैसा को नहीं निकाल पा रहे है क्योंकि उनकी उंगलिया घिस गई है और सिस्टम उनको स्कैन नहीं कर पा है। सरकार कैशलेस का ख्वाब देख रही है और दुकानदार सरचार्ज की वजह से कार्ड के प्रयोग से आम लोगों से ज्यादा पैसे ले रहे हैं। छोटे दुकानदारों के लिए GST एक सिरदर्द के अलावा और कुछ भी नहीं है। GST फाइल करने के लिए CA को अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा देना पड़ रहा है जबकि सरकार के पास बहुत कम पैसा जा रहा है। किसान बिमा योजना का लाभ बड़े और दबंग टाइप के किसान उठा ले रहे है और वो भी बिना फसल ख़राब हुए।  और छोटे किसान मुँह देखते रह जा रहे है।
सरकार की सारी नीतियां अच्छी होते हुए भी अच्छे परिणाम नहीं आ रहे हैं। इसका कारण सिर्फ ये है कि सारी नीतियां इस आधार पर बनी है कि भारत की सभी जनता डिजिटल साक्षर है । पर हक़ीक़त ठीक इससे उलट है। आपने मान लिया है कि भारत का हर आदमी मोबाइल को अच्छे से समझ गया पर हक़ीक़त ऐसा नहीं है । आज जमीनी हकीकत ये है कि 40 साल से ऊपर के व्यक्ति ओ टी पी, पासवर्ड, मोबाइल बैंकिंग से डरता है, ठीक से मोबाइल भी आपरेट नहीं कर सकता है। अगर विश्वास ना हो तो अपने घरों में माता-पिता से बात करके, आप चेक कर लिजिए। जब शहर का एक जानकार आदमी एक मोबाइल खरीदने के चक्कर में इतना परेशान हो सकता तो गांव में जहां डिजिटल साक्षरता भी बहुत कम है, वहां कैसे लोगों को मूर्ख बनाकर पैसे ऐंठे जाते होंगे। यही सच्चाई है सरकार की नीतियां गलत नहीं है पर जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है। मुझे बता है एकदम से सब ठीक-ठाक नहीं होगा पर इस चक्कर में यदि आपकी सरकार चली जाये तो ये कहीं से भी देश के हित में नहीं होगा। डिजिटल साक्षरता की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, तब जाकर ही सही मायने में विकास और विश्वास दोनों हासिल होगा।

(नोट : भारत के आज के स्थिति को देखते हुए)

"डिजिटल लिटरेसी ज़रुरी पर डिजिटल डिपेंडेंसी नहीं"

फोटो सोर्स : गूगल 
आपका,
मेरा नज़रिया

काशी प्रसाद जायसवाल - एक संक्षिप्त परिचय

काशी प्रसाद जायसवाल (जन्म- 27 नवम्बर, 1881, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 4 अगस्त, 1937) भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार एवं साहित्यकार थे। ये इतिहास तथा पुरातत्त्व के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान थे। काशी प्रसाद जायसवाल 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' के उपमंत्री भी बने थे। इन्होंने 'बिहार रिसर्च जनरल' तथा 'पाटलीपुत्र' नामक पत्रों का सम्पादन भी किया था। 'पटना संग्रहालय' की स्थापना में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। इतिहास और मुद्रा विषयक अनेक सम्मेलनों की अध्यक्षता काशी प्रसाद जी ने की थी।
परिचय:
काशी प्रसाद जायसवाल का जन्म 27 नवम्बर, 1881 ई. में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। उन्होंने मिर्जापुर के 'लंदन मिशन स्कूल' से प्रवेश की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इसके उपरान्त उच्च शिक्षा के लिये वे 'ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी' चले गये. जहाँ से इतिहास में एम. ए. किया। काशी प्रसाद जायसवाल ने 'बार' के लिये परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की। भारत लौटने पर काशी प्रसाद जायसवाल ने 'कोलकाता विश्वविद्यालय' में प्रवक्ता बनने की कोशिश की, किन्तु राजनैतिक आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। अन्तत: उन्होंने वकालत करने का निश्चय किया और सन 1911 में कोलकाता में वकालत आरम्भ की। कुछ वर्ष बाद 1914 में वे 'पटना उच्च न्यायालय' में आ गये और फिर यहीं पर वकालत करने लगे।
वे 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' के उपमंत्री भी बनाये गए थे। काशी प्रसाद जायसवाल के शोधपरक लेख 'कौशाम्बी', 'लॉर्ड कर्ज़न की वक्तृता' और 'बक्सर' आदि लेख 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' में छपे। इनके द्वारा लिखित प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
हिन्दू पॉलिसी
एन इंपीरियल हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया
ए क्रोनोलॉजी एण्ड हिस्ट्री ऑफ़ नेपाल
अंधकार युगीन भारत
शुक्लजी के समकालीन
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के 'सरस्वती' का सम्पादक बनते ही सन 1903 में काशी प्रसाद जायसवाल के चार लेख, एक कविता और 'उपन्यास' नाम से एक सचित्र व्यंग्य सरस्वती में छपे। काशी प्रसाद जी आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के समकालीन थे। दोनों कभी सहपाठी और मित्र भी रहे थे, किन्तु बाद में दोनों में किंचिद कारणवश अमैत्री पनप गयी थी।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सहयोग से काशी प्रसाद जायसवाल ने 'इतिहास परिषद' की स्थापना की थी।
'पटना संग्रहालय' की स्थापना में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
भारत के इस प्रसिद्ध इतिहासकार का निधन 4 अगस्त, 1937 को हुआ।


लेख सौजन्य: शिक्षा भारती नेटवर्क
आपका,
मेरा नज़रिया

कहां जा रहे हैं हम?

ये कैसी दौड़ है,
जहां सिर्फ भाग रहे हैं सब,
क्या पाना है, क्यों पाना है,
क्या जाना है सब?
ये अंध दौड़,
कहां ले जाएगी,
क्या किसी ने सोचा है?
बस भाग रहे- बस भाग रहे,
भागम भाग मचा रहे,
एक बार ठहर जा,
थोड़ा रुक कर,
पुछ ना इंसान खुद से,
कितने तो छुट गये,
और कितनों को छोड़ेगा तू?
क्या यही पाने के लिए,
दौड़ रहा तू?
ज़रा गौर से देख,
कहां निकल गया है तू,
कहीं तू अकेला ही तो
नहीं खड़ा है मंजिल पे,
खुश तो बहुत होगा,
पर खुशियां बांट ना सकेगा तू,
तू जब मंजिल पर होगा,
तूझे याद आयेंगे वो लोग,
जिनको तुमने,
छोड़ दिया था बीच राह,
ये वही लोग थे ,
जिनके साथ होने से,
खुश बहुत रहता था,
तू सोच रहा होगा
क्यो दौड़ रहा था अब तक,
अब पछता रहा होगा,
क्यो दौड़ रहा था अब तक,

आपका,
मेरा नज़रिया

देहावसान.... एक सच

पुरे हफ्ते की आपाधापी के बाद रविवार का दिन इस आशा के साथ कि दिनभर आराम करूँगा। सावन का महीना चल रहा है। लगातार बारीश से पुरा शहर अस्त व्यस्त...