तर्पण
अपने पुर्वजों के आत्मा की शांति के लिए संतान द्वारा श्राद्ध (पिंडदान) का समय पितृपक्ष का समय आ चुका है। हर साल अश्वनी मास के कृष्णपक्ष में पिंडदान को शुभ माना गया है। पिछले वर्ष मेरे दादाजी एवं पुर्वजों का पिंडदान पिताजी द्वारा 'गया' के पवित्र धरती पर दिया गया। पिंडदान के लिए 'गया' प्रस्थान के समय जो कर्मकांड हुए ,अभिभूत करने वाले थे। मैं इन सभी कर्मकांड का गवाह बना और ये महसूस किया कि सनातन धर्म में जो भी विधान बनाए गए हैं वो सब यूं ही नहीं है। कितना धनी है हमारा सनातन धर्म। कभी कभी कुछ अज्ञानी लोग आधुनिकता में आकर इन सब पुरातन कर्मकांडों को चुनौती देने लगते हैं। मैं इन सबसे कहना चाहता हूं बस एक बार इन सब कर्मकांड का हिस्सा बनिए जिंदगी भर इस अद्वितीय,अद्भुत,अविस्मरणीय क्षण को भुला नहीं पायेंगे। ऐसा मेरा स्वयं का अनुभव है।
आपका,
मेरा नज़रिया
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