पर क्या सिर्फ़ नारों या भाषणों से जमीनी सच्चाई को झुठलाया जा सकता है?
स्कूलों में बच्चों के शिक्षा का चौकीदार कौन होगा?
किसानों को उनके मेहनत का भुगतान करने की चौकीदारी कौन करेगा?
बेरोजगारों को रोजगार मिले, इसे कौन चौकीदार देखेगा?
मिनिमम बैलेंस के नाम गरीबों के गाढ़ी कमाई के करोड़ों की उगाही करने वाले बैंकों की चौकीदारी कौन करेगा?
नारों और भावनाओं को भड़का कर जरूरी मुद्दों की हत्याओं को रोकने की कोशिश कौन करेगा?
सोशल मीडिया के इतर जमीनी हकीकत को समझने का चौकीदार कौन होगा?
पूरे देश में बरगलाने का लहर निकल पड़ा है, देश का दुर्भाग्य है आज संविधान की चौकीदारी करने वाला कोई नहीं। संस्थाओं की स्वायतत्ता की आये दिन हत्या हो रही है चिंता किसी को नहीं। रोजगार के नाम पर लोगों को स्वावलम्बी बनाने का सपना दिखाया और सबको कर्जदार बना दिया, क्या है कोई चौकीदार?
देश में सोशल मीडिया के द्वारा हर घर में गुमराह करने वाले खबरों की बाढ़ है , कौन चौकीदार रोक लगायेंगा?
हर बात को तमाशा ना बने इसकी चौकीदारी कौन करेगा?
नाम के आगे चौकीदार लिख भर देने से यदि बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है, शिक्षा के स्तर में सुधार संभव है, देश का पैसा लूटने वाले देश छोड़कर का ना मांगे, बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सके तो,
आज मैं भी लिख देता हूं हां मैं भी हू चौकीदार। पर ऐसा संभव नहीं है।
देश में हर बात का तमाशा बंद होना चाहिए और जरूरी मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।
आपका,
मेरा नज़रिया
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