"छठ" की तैयारी : एक स्मृति २०२१

         पूरे साल की दीवाली का इंतजार खत्म हुआ। साफ-सफाई और प्रकाश का ये पर्व पूरे तामझाम और धुम धड़ाकों के साथ सम्पन्न हुआ। मौसम ने भी करवट बदलना शुरू कर दिया। हल्की हल्की ठंडी हवाएं अपने विकराल स्वरूप में आने का संदेश देने लगी है। बाज़ारों में भीड़ थोड़ी छट गई है। दुकानदारों में आनलाइन मार्केटिंग से हुए नफा नुकसान की चर्चाओं का बाजार गर्म है। साथ में राहत भरी सांस भी है, क्योंकि पिछले साल कोरोना महामारी ने पूरा धंधा ही चौपट कर दिया था। बाज़ार में इलेक्ट्रॉनिक दुकानों में बिकने से रह गई लड़ियां भी कुछ कहना चाहती है, कुम्हार के दीए के मन में भी ना बिक पाने टीस है। वो अपने मालिक की मायूसी को अच्छे से समझ सकतीं है। कहीं दूर से शारदा सिन्हा की मधुर आवाज़ कानों में एक सुकुन का अनुभव देेेे रही है। बाज़ार में आगे बढ़ते ही बड़े बड़े बैनर पर हाथ जोड़े हर लेवल के नेताओं की मुस्कुराती तस्वीरें एक साथ सभी त्योहारों की शुभकामनाएं देने को आतुर है। 

     छोटे गांव मुहल्ले के उभरते हुए बड़े नेताओं का का लोड बढ़ गया है। आसपास के लोगों में इस बात का सर्वे किया जा रहा है कि इस साल छठ कहां मनाया जाएगा। कोरोनावायरस की घटती रफ्तार और सर्वे के परिणाम से कि इस साल छठ , छठघाट पर ही मनाया जायेगा, युवाओं में एक खास तरह की उर्जा का संचार कर रहा है। शहरों में फैक्ट्रीयों में काम करने वाले कमासुत लोग जो दीवाली में काम के बोझ और छुट्टी ना मिल पाने से मायूस थे, अब घर जाने की तैयारी में इनके चेहरे खिले हुए। भले ही टिकट कन्फर्म नहीं हुआ, कोई बात नहीं, इस बार जनरल में ही जायेंगे। पर घर जाने का सुकुन है।

गांवों में बुजुर्ग महिलाओं का समूह शिवचर्चा के बहाने इस साल के छठ मनाने पर चर्चा की जा रही है। घरों में सास बहू छठ के बारे डिटेलिंग और विधि विधान के ज्ञान के चर्चा के दौरान एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है। इसी बीच सास को लगता है कि छठ की महत्ता और इसके विधि-विधान को ये नये जमाने के लोग क्या जाने। विस्तार में समझाने के लिए अपनी सासत्व का परिचय देते हुए पूरे परिवार के सामने एक व्यख्यान प्रस्तुत किया जाता है। और परिवार में सबको अपने बुजुर्ग मां और दादी के सामने दंडवत होकर इन विधि-विधान और संस्कार को मानने की शपथ ली जाती है।

         इधर युवाओं में छठ घाट पर बेदी बनाने को लेकर अतिउत्साह है। मुहल्ले में घर घर घूमकर छठ पूजन करने वाले परिवारों की लिस्ट बनाई जा रही। छठ घाट पर जाकर बेदी बनाने की जगह घेरने की जल्दी है। इस बार बहुत भीड़ होगा, इस हिसाब से बड़ा जगह घेरना होगा। कुछ शहरों में रहने वाले कमासुत लोग गांव आ गये है। नया नया फैशन वाला कपड़ा पहनकर गांव के युवाओं में भौकाल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। दिनभर ढेठ भोजपुरी में बतियाने वाला टिंकुआ अब अंग्रेजी में बोलकर लोगों को शहर का बड़ा चौड़ा रोड और साफ सफाई के बारे बता रहा है। और साथ में ये भी बोल रहा है कि गांव के लोग समझते ही नहीं है, इतना भयानक महामारी चल रहा है कोई मास्क पहनता ही नहीं है, बताइए सारा काम सरकार का है? आपको भी तो अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। चार पांच छुटके-छुटकी, भैय्या की बात बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। साथ वाले दोस्त एक दूसरे से कानाफूसी कर रहे हैं 'बहुत बड़का तेज हो गये है , दू साल पहले लोटा लेकर झाड़ा फिरने दूसरा के खेत में जाते थे और आज इहा आकर ज्ञान पेल रहे हैं।' इधर दूर से बाबा का आवाज़ आता है 'अरे यही बतियाते रहोगे की फरसा कुदाल लेकर घाट जाकर बेदी भी बनेगा?' बाबा के हूंकार के बाद सभी युवा घाट की तरफ कूच कर देते हैं। और विधिवत जमीन कब्जा करके बेदी बनाकर शाम को वापस आ गये।

        देखते देखते दीवाली बीते हुए तीन दिन हो गए। मां और दादी लोग छत पे गेहूं सुखा रही है। पूरे घर में साफ सफाई अपने चरम पर है। आज बाज़ार जाना है फल फूल लाने के लिए, भाभी जी अपने ए जी को सुनाते हुए देवर जी को बोल रही है। घर के छोटे-छोटे बच्चे बीच-बीच में दीवाली के बचे हुए पटाखों से माहौल में गरमी पैदा कर रहे हैं। एक विद्वान की भूमिका में कुछ मित्र पटाखों को बचा कर रखने और बाद में छठ घाट पर फोड़ने का सलाह देते हैं। मौसम खुशनुमा है, बाबा नहा धोकर हल्की धूप में सरसों तेल लगाकर अद्भुत आराम की मुद्रा में हैं। कुछ चार-पांच अधेड़ लोग चौकी पर बैठकर महंगाई की चर्चा कर रहे हैं। "बताइए इस साल सरसों तेल २०० रूपये को क्रास कर गया और पेट्रोल-डिजल तो पूछिए मत दोनों के दाम १०० के पार । इस बार तो छठ में फल फूल भी बहुत महंगा होने की संभावना है।" कुछ विशेषज्ञ टाइप के लोगों कहना है पेट्रोलियम पदार्थों की दामों में बढ़ोतरी में पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान का नाम आते ही चर्चा में गर्माहट आ जाती है और देखते ही देखते देश की सारी समस्याओं के पिछे पाकिस्तान का हाथ दिखने लगता है। फिर इसी बीच एक अवतार पुरुष की चर्चा शुरू होती है , हमारे देश के प्रधानमंत्री। "इनकी वजह से देश कहां से कहां चला गया , बताइए? विदेशी सरजमीं पर हमारे प्रधानमंत्री की जय जयकार हो रही है। ऐसा पिछले सत्तर सालों में कभी हुआ है बताइए? देश विकास की पराकाष्ठा पर है । अब क्या चाहिए।" चर्चा का अंत हिंदू मुसलमान पर जाकर खत्म हुआ, हाथा पाई की नौबत आ गई थी। त्यौहारों की दुहाई देकर हाथापाई को रोका गया। अब बाजार जाने की तैयारी है।

      पापा अपनी स्प्लेंडर निकाल लिए है। सेल्फ स्टार्ट करके बेटे को दो बोरी और झोला लेकर आने को बोलते हैं। जैसे तैसे बोरी और झोले का जुगाड़ करके पापा के साथ बाइक पर बच्चा बैठ जाता है। बाज़ार की तरफ जाने वाली उबड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए बच्चा बाजार पहुंच गया।

बाज़ार और छठ महापर्व की पूरी स्मृति अब अगले संस्करण में बताएंगे।


आपका,
मेरा नज़रिया

टीम संतृप्ति: एक मिशन 1 st Day

वाह....अद्भूत , अविश्वसनीय, अकल्पनीय किसी मिशन का पहला दिन और ऐसा जोश और भागीदारी , विश्वास नहीं होता, परन्तु ये बिल्कुल सही है। जी हां मैं बात कर रहा हूं "टीम संतृप्ति: एक मिशन" के बारे में। आज हमारी टीम अपने पहले मिशन पर थी , मकसद था जरूरतमंदो के बीच गर्म कपड़े वितरित करने का । टीम संतृप्ति के सदस्यों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और देखते ही देखते 6 बैग गरम कपड़ों से भर गया। हम सब स्टेशन के आसपास रहने वाले जरूरतमंद लोगों के पास पहुंचे और ख़ास तौर पर बच्चों के बीच गर्म कपड़ों का वितरण किया।
           इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में बच्चों के बीच गर्म कपड़े वितरित करके जो टीम के सदस्यों शुकून मिला शायद वो और किसी काम ना मिलता। हमारी टीम आगे भी ऐसे लोगों के लिए काम करती रहेंगी, क्योंकि हमारी टीम का एक ही उद्देश्य है "करो कुछ ऐसा जिससे आत्मिक ख़ुशी मिले"

टीम संतृप्ति: एक मिशन

पत्तों की जोर आजमाइश

ये जोर से चलती बयार है,
सब उड़ा ले जाने को आतुर,
पर चल रही है,
जोर-आजमाइश इन पत्तों की,
ना हार मानने की हिम्मत,
ना हारेंगे.. ये जज्बात भी,
ना जाने कितने बार,
हवा का ये झोंका,
रोकने की कोशिश करता है,
पर ये इन पत्तों की साख है,
जो टिका रहता है,
और हार मानकर हवा,
रुख मोड़ लेती है,
ये सलाम है,
और उम्मीद भी... की
ग़र हो दिलों में ख्वाइशें,
ना रोक सकता है कोई,
बस झंझावतों से लड़ने की बात है।

© मेरा नज़रिया

‘Einstein Classes’


              आइन्स्टाईन  क्लासेज 

'आइन्स्टाईन' नाम ही क्यों ?

जैसा की नाम से स्पष्ट है ये एक महान वैज्ञानिक का नाम है ,जिसे फिजिक्स के जनक के तौर जाना जाता है। 

इन्होने सापेक्षता के  सिद्धांत का आविष्कार  था।  

 

हमारा उद्देश्य :

१.  हमारे गांव के आस पास के बच्चों को शिक्षा के लिए बड़े शहरों जैसी सुविधाएं मिले।

२.  आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह पढ़ सके। 

३. आधुनिक तकनिकी का प्रयोग करके बच्चॉ के आत्मविश्वास को बढ़ाना। 

४. बच्चों को क्लास ८ से ही उनके कैरियर  के  लिए उचित सलाह देना। 

५. शिक्षा के लिए बच्चों के साथ साथ उनके माता पिता को भी प्रोत्साहित करना। 

६. बच्चों के टैलेंट को देखते हुए उन्हें पढाई के सही क्षेत्र का चुनाव करवाना जैसे : आर्मी , इंजीनियरिंग ,मेडिकल , डिफेन्स , इत्यादि। 

७. बच्चों में स्वस्थ प्रतिष्पर्धा का निर्माण करना।  


मुख्य आकर्षण : 

सप्ताह के सभी छः दिन नियमित  कक्षाएं। 

१०वीं  और १२वीं कक्षा के सभी विषयों के पढ़ाई। 

हर दूसरे रविवार को टेस्ट। 

हर महीने टेस्ट में प्राप्तांक के आधार पर टॉप -३  बच्चों के फ़ीस माफ़। 

एक कक्षा में अधिकतम ३० बच्चों का का बैच साइज़। 

अथिति अध्यापक के द्वारा परामर्श और मोटिवेशनल कक्षा। 

प्रतियोगी परीक्षाएं जैसे रेलवे , सेना , डिप्लोमा , इंजीनियरिंग , मेडिकल ,एसएससी , इत्यादि की निःशुल्क तैयारी 

बच्चो संपूर्ण शारीरिक विकास और सेना  भर्ती से सम्बंधित एक्सपर्ट द्वारा फिजिकल ट्रेनिंग। 


आप सभी से विनम्र निवेदन है आप हमारे साथ जुड़िये और हम आप मिलकर अपने सपने को है। 

किसी ने सच ही कहा है :

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों...


आपका,
मेरा नज़रिया



 

 

 

 

         

ये कैसा हठ है..

रास्ते में कांटे बिछाना ये पुरानी रीति है यारों,
अभी तो नुकिले कीलें बिछाने का दौर है।

नियत ठीक है पर करतूत ग़लत है,
ये कैसा दौर, अपनों से ही लगने लगा है डर,

लोगों को रोकने का इतना प्रबंध,
कुछ तो होगा सरकार से इनका संबंध,

लोग तो  ऐसे ही रुक जाएं शायद,
विचारों को कैसे रोक पाओगे?

ये कैसा हठ है ?


आपका,
मेरा नज़रिया

बारिश की बूंदों ने जंग छेड़ रखी है

आज बुंदों ने जंग छेड़ रखी है,
बिजली की कौंध,
डराती है,
काले घनेरें बादल,
बस टूट पड़ने को आतुर है,
हवाओं का रुख भी आज,
बदला - बदला सा है,
वाह क्या सुंदर नज़ारा है,
सब कुछ छुपा लेने की
पर ये पर्वत विशाल है,
बादलों को अपने आगोश में,
रखने की चाहत है,
हवाओं की सरसराहट,
डराने वाली है,
खिड़की से बुंदों की झर- झराहट
कुछ कहना चाहती है,
आज मैं आज़ाद हूं,
बताना चाहती हैं,
अब फिर से यात्रा की शुरुआत है,
नहरों नालों से होते हुए,
नदी मिलन को आतुर है,
फिर होगा सवेरा,
इस आस में जिंदगी से,
जंग छेड़ रखी है,
आज बुंदों ने फिर से जंग छेड़ रखी है।

© मेरा नज़रिया

99% बस!!

90% के ऊपर लाने बच्चों का सम्मान समारोह आयोजित करने वाले सामाजिक संगठनों के लिए मेरा खुला पत्र :

सर I'm sorry to say, मैं इस सम्मान समारोह के खिलाफ हूं। अनजाने में ही सही हम एक समाज के तौर पर अपने बच्चों में एक अनचाहा प्रेशर पैदा कर रहे हैं। और इस प्रेशर का असर क्या होता है, हममें से छुपा नहीं है।
कितना प्रेशर है बच्चों में ज़रा सोच के देखिए। दस साल के बच्चों में स्कूल लेवल में इतना प्रेशर? सबको सब कुछ सिखा देने की जल्दी है , आखिर क्यों?

अच्छे पर्सेंटेज वाले बच्चों को प्रोत्साहित करना अच्छी बात है। पर कम पर्सेंटेज वाले बच्चों को हतोत्साहित करना खतरनाक है। एक बार सोच के देखिए यदि सारे बच्चे 90% के उपर आ जाए। फिर क्या होगा? तो क्या सफलता की गारंटी 90% लाना ही है। यदि ऐसा ही तो देश के 70 फीसदी बच्चों का क्या?

मेरे हिसाब से हमें एक समाज के तौर हमें उन बच्चों के बारे सोचना चाहिए जिनके पर्सेंटेज कम है। क्या कमी है इन बच्चों की शिक्षा प्रणाली में इसका विष्लेषण किया जाए। फेल होने की स्थिति में डिप्रेशन के बजाए , कैसे सुधार किया जाए, इन सब बातों पर ध्यान दिया जाए। जो बच्चे तेजी से बाउंस बैक करते हैं उन्हें सम्मानित किया जाए।

ये पुर्णतया मेरे विचार है, यदि किसी को मेरे इस बात ठेस पहुंचती है, इसके लिए मुझे क्षमा करें।

मेरे सोच से मिलता - जुलता RJ नावेद का एक विडियो का लिंक साझा कर रहा हूं।

https://www.facebook.com/225430477471251/posts/3710538702293727/

आपका,
मेरा नज़रिया

देहावसान.... एक सच

पुरे हफ्ते की आपाधापी के बाद रविवार का दिन इस आशा के साथ कि दिनभर आराम करूँगा। सावन का महीना चल रहा है। लगातार बारीश से पुरा शहर अस्त व्यस्त...