टीवी डिबेट का गिरता स्तर
Statue of Unity : एकता की मूर्ति
नि:संदेह सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा पूरे विश्व में ना केवल अपनी ऊंचाई के लिए जाना जाएगा अपितु सरदार पटेल के ऊंचे विचारों से भी लोगों को अवगत करायेगा। यहां तक ठीक है । पर क्या सही में सरकार की नियत सरदार पटेल की मूर्ति और विचारों को माध्यम बनाकर प्रतिको राजनीति में नहीं है? यदि ऐसा नहीं होता तो,भारत के हर कोने से आये लोग आज नर्मदा के किनारे जय जयकार लगा रहे होते।
चौकीदार उवाच
'अब अन्नदाता बनेगा ऊर्जादाता' - कब?
'अब खेतों में फसलों के अलावा बिजली भी पैदा होगा' - कैसे?
'अपनी जरूरतें पूरी करने के बाद किसान बिजली बेच भी सकेगा' - ओके
'बीज से बाजार तक व्यवस्था में सुधार' - कब?
'बिजली पंप नहीं अब सोलर पंप' - कब से?
'हरित क्रांति के बाद अब सफेद व नीली क्रांति से आगे मीठी क्रांति की ओर बढ़ता क़दम'- बाप रे बाप इतनी क्रांति हो गई
'खेती मे कोई भी चीज निकम्मी नहीं होती' - बिल्कुल नई बात है सर
'कचरा से कंचन' - गज़ब का तुकबंदी है भाई
वाह .............जी वाह।
आपका,
मेरा नज़रिया
पंजाब : दशहरा दुर्घटना
बहुत ही दुःखद घटना । नवरात्रि की सारी खुशियां एकदम से ग़म में बदल गया। लोगों के चित्कार , करूण क्रंदन से लोगों का कलेजा फट गया। ऐसा जान पड़ा मानो हर किसी के घर से कोई न कोई गया हो। अब दुर्घटना के बाद पोस्टमार्टम शुरू हो गया है। किसकी गलती है, ऐसा क्यों था, वैसा कैसे सम्भव है, शासन -प्रशासन की ग़लतियां निकाली जा रही है।
इस दु:खद क्षण में मैं कुछ सवाल उठाना चाहता हूं:
१) क्या आयोजनकर्ता इसकी जिम्मेदारी लेंगे?
२) क्या देश की ये इस तरह की पहली घटना है?
३) क्या पिछली घटनाओं से हमने सीख लिया है?
४) क्या प्रशासन से ऐसे आयोजन की अनुमति थी?
५) और अनुमति थी भी तो क्या सारे प्रावधानों का पालन किया गया था?
६) क्या रेलवे की तरफ से कोई रोक लगाई गई थी?
७) क्या इस जगह पर इससे पहले भी कोई घटना हुई थी?
ये तो शासन-प्रशासन की बात। अब हमारी बातें जो थोड़ी कड़वी तो है पर सच है,
१) देश भर में ना जाने कितने आयोजन ऐसे होते हैं जिनके लिए कोई अनुमति नहीं ली जाती है।
२) हम स्वयं भी कितना गंभीर है , दुर्घटनाओं के प्रति।
३) शासन-प्रशासन की सुझाई बातों का कितना हम अनुकरण करते हैं?
४) हम रेलवे ट्रैक पर खड़े होकर ये बोल रहे हैं कि जिम्मेदारी रेलवे की है।
५) हर जगह बाजारों में अतिक्रमण करके बैठे हुए लोग बोलते हैं सब प्रशासन की गलती है।
६) जो नियम बनाए गए हैं उन्हें तोड़ने में अपनी शान समझते हैं।
७) चलती हुई ट्रेन के छत पर खड़े होकर सेल्फी लेने वाले बोलेंगे सरकार कहां है।
८) हम कभी अपने नेताओं से नहीं पुछेंगे की वो अपने कार्यकाल में आम जनता की सुरक्षा के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं।
हमारी संस्कृति में ही कुछ कमियां हैं जो हमेशा दुर्घटना के बाद पोस्टमार्टम करती है। Proactive approach नहीं है हमारी संस्कृति में। और यदि कोई कुछ लोग कहने की कोशिश भी करता है तो उसे कोई सुनता नहीं। प्रशासन को आपकी सुरक्षा के लिए हेलमेट , सीट बेल्ट आदि के लिए कानून बनाना पड़ता है। ये दुर्भाग्यपूर्ण है।
मैं तो ये मानता हूं कि कुछ ना कुछ दैवीय शक्तियां हैं इस देश में क्योकि इतने सारे कमीयों के बावजूद हम सब सुरक्षित है। यकीन ना हो तो कभी शहरों के जाम में फंसे और विष्लेषण करें आप पायेंगे यकीनन दैवीय शक्तियां हैं। कोई भी कुछ भी करता है , सबको जल्दी है। सब नियम ताक पे रखकर निकल जाना चाहता है। ऐसा नहीं है कि कुछ ख़ास वर्ग के लोग ऐसा करते हैं । हर वर्ग के लोग पढ़ा-लिखा , अनपढ़ सब एक ही ढर्रे पर होते हैं। रेलवे में बेतहाशा भिड़ में सीट के लिए मारामारी, टिकट लेने के लिए मारामारी, रेलवे क्रासिंग पर बाइक को टेढ़ा करके निकालने की कला सिर्फ़ हम ही जानते हैं, क्षमता से दुगुनी सवारी ढोने वाली हमारी रेलवे के बारे में क्या कहने। सरकारों द्वारा दिये गये facility का बैंड तो हम एक हफ्ते में बजा देते हैं, उदाहरण आये दिन मिलता रहता है। जहां मन में आया थूक दिया , पेशाब कर दिए , सड़क पर कुंडों का अंबार लगा देंगे। और बोलेंगे जिम्मेदारी सरकार की बनती है। हम पुरी तरह से पाक-साफ है।
हम हमारी जिम्मेदारी क्यो नही लेते? ये बहुत बड़ा सवाल भी है और सुझाव भी। हर घटना के लिए सरकार, शासन-प्रशासन को दोष देने से अच्छा है आत्ममंथन करें और देंखे आप पायेंगे हममे से ही कोई न कोई दोषी होगा।
पंजाब: दशहरा दुर्घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
ॐ शांति।।
आपका,
मेरा नज़रिया
गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हमला-एक प्रतिक्रिया
अतुल बाबू द्वारा दिए वक्तव्य पर मेरी प्रतिक्रिया
एक तरफा हकीकत बा अतुल बाबू,
जो
जे आपन घर-बार छोड़ के दिल्ली, मुंबई , गुजरात और चेन्नई में काम कर..ता , ओकरा कंपनी खोले के हैसियत ना होला।
केतना लोग कंपनी खोली और के - के नौकरी देई ऊ। तोहरा के जमीनी हकीकत मालूम होखे के चाही अतुल बाबू।
पूरा देश के हर कोना में हमनी UP और बिहार के लोग जाइल जाई , जरूरत के हिसाब से नौकरी भी कईल जाई और नौकरी देहल भी जाई। केहू के बपौती ना ह गुजरात, मुंबई, चेन्नई , दिल्ली।
रहल बात हमनी UP, Bihar में राजनीतिक हालात के , सबके मालूम ही बा केतना होनहार लोग राज करत आ रहल बा पिछला कई सालों से। उद्दोग , कल कारखाना खोले खातिर राजनीतिक इच्छाशक्ति चाही। सब त जाति - धर्म में बरगालावता ,सब ओ..ही में घुम्मता । आज पूरा मेट्रो शहरों-कस्बों का लाइफ लाइन हई हमनी UP -Bihar के लोग। एकरा कौनो सबुत का ज़रूरत नइखे आज।
आज जवन गुजरात में होता, दु:खद बा , एंकर इ मतलब ना भइल की हमनी के केहु के रहमो करम पे बानी जा। योग्यता बा और जागरूकता बा तब जा इहा टिकल बानी जा।
कुल मिलाकर इहे कहब अपना योग्यता के दम पर हम हर जगह (पूरे भारत ही नहीं पूरे विश्व भर में) काम करेंगे भी और काम देंगे।
आपका,
मेरा नज़रीया
मन की बात- यदि मै उपायुक्त होता
यदि मै उपायुक्त होता तो मेरी प्राथमिकता शहरों में रह रहे घरविहीन लोगों को घर दिलाना और उन्हें मुख्य धारा में लाने की पूरी कोशिश करता। शहर और गांव में साफ-सफाई के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता, और इस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वालों को सम्मानित करता। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को संविधान सम्मत उनके सही जगह ज़रूर भिजवाता । और हर आम-ओ-खास लोगों में कानूनी सुरक्षा भाव का एहसास कराता। बुजुर्गो लोगों के लिए एक खुला विचारशाला खुलवाने की कोशिश करता जहां आकर शहर के रिटायर्ड लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करते।सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए इनके विचारों को ज़मीनी स्तर पर लाने की कोशिश करता। शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कोई कमी ना हो इसके लिए कार्य करता, जिससे हमारे बच्चों का भविष्य ख़राब ना हो। शहर की गलियों और बाजारों में किसी भी तरह का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करता। समाज के हर तबके का लोग मुझसे सीधे संपर्क कर सके इसके लिए एक तंत्र विकसित करता जिससे इनकी समस्याओं को दूर किया जा सके। सरकारी विभागों में कार्यरत सभी सदस्य अपने कार्य ईमानदारी से करें और ज्यादा से ज्यादा समय का प्रयोग वो सभी अपने-अपने कार्यों का करने में बिताए, इसके लिए उन्हें प्रेरित करता। और अच्छे परिणाम देने वाले कर्मियों को पब्लिक प्लेटफार्म पर उन्हें सम्मानित करवाता।
आपका,
मेरा नज़रीया
*बढ़ते हुए पेट्रोल और डीज़ल के दाम पर आम आदमी और नेताओं की चुप्पी और सरकार के रवैए पर, 'मेरा नज़रीया'*
अत्यंत दु:खद है। पर मैं आपको एक बात दावे के साथ कह सकता हूं , लोकतंत्र में वोट का बहुत महत्व है। जनता को सब समझ आ रहा है। जनता भले ही अभी चुप है , डर से मीडिया बोल नहीं रहा, पर मुझे विश्वास है यही जनता और मीडिया की चुप्पी सरकार की बखिया उधेड़ देगी अगले चुनाव में। और इसकी शुरुआत आप राज्यों के चुनाव में देखेंगे। जनता की चुप्पी सरकार के लिए काल साबित होगी। कितनों को डराओगे और कब तक डराओगे? आज हर आम आदमी व्यथित हैं, ठगा हुआ महसूस कर रहा है,। चुप है , कैसे आवाज उठाये, सहमा हुआ है, इतने बड़े विश्वासघात की उम्मीद उसे ना थी। सरकार से इतना उम्मीद था कि शुरुआती दिनों जो लोग आपस में सरकार के लिए लड़ जाते थे आज वो कैसे शांत हो गया है? उसे समझ नहीं आ रहा है अब वो किस मुंह से सरकार के खिलाफ कुछ बोले। ये सारी बातें हर उस आम आदमी के मन में ज्वाला की तरह धधक रही है । अब यही आम आदमी आने वाले चुनावों में चुपके से बोलेगा और इसकी गूंज दूर तक जायेगी, ऐसा मुझे विश्वास है।
फोटो : गूगल से लिया गया है।
आपका,
मेरा नज़रीया
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