ये कैसा हठ है..

रास्ते में कांटे बिछाना ये पुरानी रीति है यारों,
अभी तो नुकिले कीलें बिछाने का दौर है।

नियत ठीक है पर करतूत ग़लत है,
ये कैसा दौर, अपनों से ही लगने लगा है डर,

लोगों को रोकने का इतना प्रबंध,
कुछ तो होगा सरकार से इनका संबंध,

लोग तो  ऐसे ही रुक जाएं शायद,
विचारों को कैसे रोक पाओगे?

ये कैसा हठ है ?


आपका,
मेरा नज़रिया

बारिश की बूंदों ने जंग छेड़ रखी है

आज बुंदों ने जंग छेड़ रखी है,
बिजली की कौंध,
डराती है,
काले घनेरें बादल,
बस टूट पड़ने को आतुर है,
हवाओं का रुख भी आज,
बदला - बदला सा है,
वाह क्या सुंदर नज़ारा है,
सब कुछ छुपा लेने की
पर ये पर्वत विशाल है,
बादलों को अपने आगोश में,
रखने की चाहत है,
हवाओं की सरसराहट,
डराने वाली है,
खिड़की से बुंदों की झर- झराहट
कुछ कहना चाहती है,
आज मैं आज़ाद हूं,
बताना चाहती हैं,
अब फिर से यात्रा की शुरुआत है,
नहरों नालों से होते हुए,
नदी मिलन को आतुर है,
फिर होगा सवेरा,
इस आस में जिंदगी से,
जंग छेड़ रखी है,
आज बुंदों ने फिर से जंग छेड़ रखी है।

© मेरा नज़रिया

99% बस!!

90% के ऊपर लाने बच्चों का सम्मान समारोह आयोजित करने वाले सामाजिक संगठनों के लिए मेरा खुला पत्र :

सर I'm sorry to say, मैं इस सम्मान समारोह के खिलाफ हूं। अनजाने में ही सही हम एक समाज के तौर पर अपने बच्चों में एक अनचाहा प्रेशर पैदा कर रहे हैं। और इस प्रेशर का असर क्या होता है, हममें से छुपा नहीं है।
कितना प्रेशर है बच्चों में ज़रा सोच के देखिए। दस साल के बच्चों में स्कूल लेवल में इतना प्रेशर? सबको सब कुछ सिखा देने की जल्दी है , आखिर क्यों?

अच्छे पर्सेंटेज वाले बच्चों को प्रोत्साहित करना अच्छी बात है। पर कम पर्सेंटेज वाले बच्चों को हतोत्साहित करना खतरनाक है। एक बार सोच के देखिए यदि सारे बच्चे 90% के उपर आ जाए। फिर क्या होगा? तो क्या सफलता की गारंटी 90% लाना ही है। यदि ऐसा ही तो देश के 70 फीसदी बच्चों का क्या?

मेरे हिसाब से हमें एक समाज के तौर हमें उन बच्चों के बारे सोचना चाहिए जिनके पर्सेंटेज कम है। क्या कमी है इन बच्चों की शिक्षा प्रणाली में इसका विष्लेषण किया जाए। फेल होने की स्थिति में डिप्रेशन के बजाए , कैसे सुधार किया जाए, इन सब बातों पर ध्यान दिया जाए। जो बच्चे तेजी से बाउंस बैक करते हैं उन्हें सम्मानित किया जाए।

ये पुर्णतया मेरे विचार है, यदि किसी को मेरे इस बात ठेस पहुंचती है, इसके लिए मुझे क्षमा करें।

मेरे सोच से मिलता - जुलता RJ नावेद का एक विडियो का लिंक साझा कर रहा हूं।

https://www.facebook.com/225430477471251/posts/3710538702293727/

आपका,
मेरा नज़रिया

प्रवासी मजदूर

कौन हैं ये? अपने ही देश में प्रवासी हो गये। गांव का खुलापन छोड़ कर , शहरों में कैद होने वाले आखिर ये कौन लोग हैं? क्यों इस महामारी के दौर में इन्हें अपने गांव में जाने की ज़िद है। दम घुटने वाले इस लाकडाउन में अपनी जान जोखिम में डालकर ये बस घर पहुंचना चाहते हैं। इन्हें पता है अपने चाहे कुछ भी हो भुखे नहीं मरेंगे। शहरों के इस काल कोठरी में दम घुटने का डर हमेशा इनके जेहन में बना हुआ है। शायद यही वजह है अपने घर पहुंचने की।

आपका,
मेरा नज़रिया

#Gocorona

https://twitter.com/jais_ravi29/status/1246450609437343747?s=20

कहां गये वो लोग...

प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा देश में सम्पूर्ण लाकडाउन की घोषणा के सात दिन खत्म होने के बाद मेरे कुछ सवाल:

1. कहां गये वो लोग जिन्हें बहुत जल्दी थी?

2. आज ही होना चाहिए, नहीं चलेगा जैसे डायलाग कहां गये?

3. Urgent, urgency, today itself, very fast, very important, commitment, failure of commitment,do it now,not acceptable,why, unhappy,need to be discussed,not good,should be more productive,running time जैसे शब्द आजकल कहां हैं?

4. बहुत तेज चलने वाले लोग कहां हैं?

5. भीड़ में अपने को अलग दिखाने वाले लोग कहां हैं?

प्रकृति हमें बहुत कुछ बहुत कम समय में सिखा देती है।
ये क्षण स्वयं में स्वयं को ढूंढने का है। अपने आप से मिलने का है। भागम भाग के इस दौर में बहुत अच्छा मौका है खुद से मिलने का, महसूस करने का,तब और अब का अध्ययन करने,आत्ममंथन करने का, कहां पहुंच गए कहां जाना था,विचार करने का और तो और संतुष्ट होने का भी।

आपका,
मेरा नज़रिया

ठहर जा अभी

प्रस्तुत कविता उन लोगों को समर्पित है जो पिछले दो दिनों से लाकडाउन के बाद भी अपने घरों की ओर निकल पड़े है। कहीं ना कहीं वो देश सेवा के अभियान में भागीदारी से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। सिर्फ घर में रह कर आज जो देश सेवा में अपनी बहुत बड़ी भूमिका निभाई जा सकती है।


ऐ नादान परिंदे,
रुक जा.......
ठहर जा अभी..रूक जा
बस कुछ दिनों की बात है-2
ना ये बड़ी बात है....
रुक जा...रुक जा...
सब कुछ तो तेरे पास है,
ना कर नादानी तू अभी,
रुक जा......रुक जा....
ठहर जा अभी,
माना की है ,कुछ दिक्कतें
कुछ पास है...
कुछ दूर है,
कर ले दिलासा आज अभी,
आखिर है तेरे पास ही,
रुक जा.....रुक जा....
ठहर जा अभी,
ग़र ना रुका...तू अभी,
कुछ ना बचेगा ये सही,
फ़िर तो बहुत पछताएगा-2
ये बात जान ले सही,
रुक जा....रुक जा...
ठहर जा.... अभी.....



आपका,
मेरा नज़रिया

देहावसान.... एक सच

पुरे हफ्ते की आपाधापी के बाद रविवार का दिन इस आशा के साथ कि दिनभर आराम करूँगा। सावन का महीना चल रहा है। लगातार बारीश से पुरा शहर अस्त व्यस्त...