प्रस्तुत कविता उन लोगों को समर्पित है जो पिछले दो दिनों से लाकडाउन के बाद भी अपने घरों की ओर निकल पड़े है। कहीं ना कहीं वो देश सेवा के अभियान में भागीदारी से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। सिर्फ घर में रह कर आज जो देश सेवा में अपनी बहुत बड़ी भूमिका निभाई जा सकती है।
ऐ नादान परिंदे,
रुक जा.......
ठहर जा अभी..रूक जा
बस कुछ दिनों की बात है-2
ना ये बड़ी बात है....
रुक जा...रुक जा...
सब कुछ तो तेरे पास है,
ना कर नादानी तू अभी,
रुक जा......रुक जा....
ठहर जा अभी,
माना की है ,कुछ दिक्कतें
कुछ पास है...
कुछ दूर है,
कर ले दिलासा आज अभी,
आखिर है तेरे पास ही,
रुक जा.....रुक जा....
ठहर जा अभी,
ग़र ना रुका...तू अभी,
कुछ ना बचेगा ये सही,
फ़िर तो बहुत पछताएगा-2
ये बात जान ले सही,
रुक जा....रुक जा...
ठहर जा.... अभी.....
रुक जा.......
ठहर जा अभी..रूक जा
बस कुछ दिनों की बात है-2
ना ये बड़ी बात है....
रुक जा...रुक जा...
सब कुछ तो तेरे पास है,
ना कर नादानी तू अभी,
रुक जा......रुक जा....
ठहर जा अभी,
माना की है ,कुछ दिक्कतें
कुछ पास है...
कुछ दूर है,
कर ले दिलासा आज अभी,
आखिर है तेरे पास ही,
रुक जा.....रुक जा....
ठहर जा अभी,
ग़र ना रुका...तू अभी,
कुछ ना बचेगा ये सही,
फ़िर तो बहुत पछताएगा-2
ये बात जान ले सही,
रुक जा....रुक जा...
ठहर जा.... अभी.....
आपका,
मेरा नज़रिया
मेरा नज़रिया
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