मेरे गुरु जी -त्याग,संघर्ष और सफ़लता की कहानी

                  आज गुरुपूर्णिमा के दिन मै आपको एक ऐसे शख्श की कहानी बताऊंगा जिनका पूरा जीवन त्याग ,तपस्या ,संघर्ष और सफ़लता की कहानी से परिपूर्ण है। और इनका मेरे और मेरे परिवार पर गहरा प्रभाव है। एक ऐसा शक्श जिसका पूरा जीवन ही संघर्ष से भरा हुआ है। वो हैं मेरे गुरु जी जिन्होंने ने सिर्फ़ मुझे और मेरे भाई को ही नहीं मेरे पापा को भी पढ़ाया है। उनके द्वारा शेयर किये गए बातों के आधार पर मै एक कहानी बताता हूँ।
                    आज़ादी के बाद जब हमारा देश बदल रहा था उस समय उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर ज़िले के एक छोटे से गाँव गंगौली में एक ग़रीब मुस्लिम परिवार में एक  बच्चे का जन्म हुआ। बच्चे की ख़ुशी में पूरा परिवार बेहद खुश था। धीरे -धीरे जब बच्चा बड़ा होने लगा परिवार की ख़ुशी अचानक ग़म में बदलने लगी। उनके ग़म का कारण था बच्चे का पोलियो से ग्रसित होना , बच्चा अपने दोनों पैर से विकलांग हो गया था। वो अपने दोनों पैरों से चल पाने में अक्षम था। परिवार में मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। सभी लोग बच्चे के भविष्य को लेकर काफ़ी चिंतित थे। गांव , मुहल्ला, रिश्तेदार सब मिलने आते थे और बच्चे को तरस भरी निगाहों से देखते हुए कहते थे "अब इनका क्या होगा " , छोटा बच्चा ये सुनते और देखते हुए बड़ा हो रहा था। और बच्चे के में मन में एक बात घर करती जा रही थी कि वो कुछ कर नहीं पायेगा। भगवान ने उसे एक बहुत बड़ी चीज़ दी थी और वो था तेज़ दिमाग़। समय बीतता जा रहा था जब बच्चा मिडिल स्कूल में था उसी गांव के प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य ने उस बच्चे की प्रतिभा को देखते हुए उसके बारे में परिवार से कहा, ये और कुछ तो नहीं लेकिन टीचर बन सकता है। बच्चा ये सब सुन रहा था और उसने उस कच्ची उमर में सुनी हुई बात को अपने दिलों -दिमाग़ में बैठा लिया और ये मान लिया वो कम से कम टीचर तो बन सकता है। और यही से शुरू हुई एक बच्चे के टीचर बनने की कहानी।
               जिस ज़माने में ट्रांसपोर्ट का समुचित व्यवस्था नहीं था उस समय एक विकलांग बच्चे का अपने गांव से दूर निकल पाना आसान नहीं था। उस बच्चे ने अपने आत्मबल और इच्छाशक्ति से कभी अपने कमज़ोरी को हावी नहीं होने दिया। कक्षा में अव्वल आना अब उसकी आदत बन गई थी और उससे मिलने वाली छात्रवृति से अपने पढाई को आगे बढ़ाते रहा। समय बीतता गया और उस बच्चे ने हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास किया। इंटर में अच्छे अंक लाने से सारे लोगों ने उसे किसी बड़े यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग करने की सलाह दी , परन्तु बच्चे के मन में तो कुछ और ही चल रहा था। अपने प्रधानाचार्य की कही हुई बात "ये और कुछ तो नहीं पर टीचर ज़रूर बन सकता है", उसके दिलों-दिमाग़ में गूँज रही थी। यही सोचकर वो बच्चा जो अब किशोर हो गया था , BHU  यूनिवर्सिटी में बीएससी में दाख़िला ले लिया। दोनों पैरों से विकलांग एक किशोर लड़के को अपने गांव से 100 किलोमीटर दूर बनारस आने -जाने में कितनी जद्दोजहत करनी पड़ती होगी ये सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है। बहरहाल उस किशोर लड़के ने अपनी अपनी स्नातक की पढाई प्रथम श्रेणी में पास की। और अपने जूनून को पाने की ज़िद ने उस किशोर को उत्तर प्रदेश में सरकारी विद्यालय में टीचर के रूप स्थापित कर किया।
                अध्यापक बनने के बाद उनका सिर्फ एक लक्ष्य था, उनके सानिध्य में आने वाले बच्चे क़ाबिल बने। और इस प्रोफेशन को प्रोफेशन ना मानकर समाज में शिक्षा को लेकर अलख जलाने का जो कार्य इन्होंने किया वो काबिलेतारीफ़ है। इन्होने ने कक्षा में क्लास लेने की पारम्परिक विधाओं में बदलाव किये और वो शैली विकसित किया जिससे बच्चों को पढाई में मज़ा आने लगे। वो कहते थे पढाई को मज़े लेके पढ़ो तो सब समझ आएगा। और उन्होंने अपने कार्यकाल में इसे साबित भी किया। और उनका नाम है श्री समीउल्लाह सर।
                आज समीउल्लाह सर रिटायर हो गए है  परन्तु आज भी वो अपने उसूलों के पक्के है। आज जिस तरह से शिक्षा का बाज़ारीकरण हो रहा है इससे उनकी आत्मा को काफ़ी ठेस पहुँचती है।  वो कहते कि आज रटने की प्रवृति विकसित की जा रही है , समझने की नहीं, जो की घातक है। और चलकर ये बेरोज़गारी को बढ़ावा देती है। उनके द्वारा कहे बातों की एक लम्बी फेहरिस्त है। जो मै आपको अपने किसी और ब्लॉग में शेयर करूंगा। आज गुरुपूर्णिमा के दिन गुरु जी को शत -शत नमन।



 


















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मिडिया से नियंत्रित होता हुआ राजनीति

          आज सोशल मिडिया का ज़माना है।  किसी को कोई भी बात बतानी हो , दिखानी हो या सुनानी हो पलक झपकते दुनिया के कोने -कोने में फैल जाती है।  इसका प्रभाव हमारे समाज पर इस कदर हावी हुआ है कि आज कुछ भी इसके बिना आप सोच ही नही सकते है। ये प्रभाव शुरुवाती दौर में शहरों तक सीमित था परंतु आज धीरे-धीरे ये सुदुर गावों में भी अपना पैठ बना लिया है।  लोगों के बीच आसानी से अपनी बात पहुँचाने का एक अच्छा और सस्ता माध्यम साबित हो रहा है सोशल मिडिया। इसका सबसे पहले भारतीय राजनीति में प्रयोग गुजरात में किया गया जो पुरी तरह से सफ़ल साबित हुआ। और इसी से उत्साहित होकर सन 2014 में भारत के सबसे बडे चुनावी दंगल में इस मिडिया का प्रयोग आक्रमक तरीके से किया गया,जिसने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों बदल के रख दी।
              और यही से भारतवर्ष की राजनीति की एक नई दिशा की शुरूवात हो गयी। आज हर पार्टी में एक सोशल मिडिया विंग है जो उस पार्टी के एजेंडा को लोगों के सामने रखती है। जो पार्टी जितनी आक्रमकता से मिडिया को मैनेज करती है वो उतनी ही तेज़ी से अपना वोट बैंक बढने का उम्मीद करती है। पर अब इसका दुष्प्रभाव दिखने लगा है। अब पार्टियाँ लोगों को मिडिया के द्वारा भ्रमित करने का प्रयास करने लगी हैं। जिसका दुष्प्रभाव ये है की लोगों का धीरे -धीरे सोशल मिडिया और डीजिटल मिडिया से भरोशा खत्म होने लगा है। हर छोटी-छोटी घटना को मिडिया में इस तरह से पेश करना की ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है  और उस पर राजनीति करना कहाँ तक जायज़ है। और आज ये हर पार्टी अपने -अपने क्षमता के अनुसार कर रही है।
     मिडिया को मैनेज करने की जो कुप्रथा अभी सामने आयी है इसका विकराल स्वरुप अभी आना बाकी है। अभी हाल ही में देश के एक नामी न्यूज चैनल के मालिक का विडिओ सोशल मिडिया पर खूब वायरल हुआ जिसमे वो टीवी न्यूज चैनलों के स्याह पक्ष को सामने रखते हुए दिखते है। सुनकर एक आम आदमी के मन में मिडिया के प्रति  जो छवी बनी है वो कही से भी देश हित में नही है। पत्रकारिता को लोकतंत्र में चौथा स्तंभ माना गया है। इससे भरोषा उठना मतलब लोकतंत्र की हत्या है जो किसी भी हालत में ठीक नहीं है । 
            आज कल एक और दौर चला हुआ है 'पेड मिडिया' का। कभी -कभी तो ये समझ नहीं आता की जो हम प्राइम टाइम में न्यूज़ या डिबेट देख रहे हैं वो पेड है की अनपेड। जिस तरह चैनल बदलने से हमारी भाव -भंगिमाएं बदल रही है और एक ही मुद्दे पर अलग-अलग चैनल पर अलग-अलग विचार सामने आते है ,हैरत होती है पत्रकारिता पर। सोचता हूँ क्या सच में मिडिया पूरी तरह से मैनेज किया जा रहा है ? क्या पत्रकारिता ने चाटुकारिता की जगह ले ली है ? राजनितिक पार्टियों के एजेंडा को जनता के सामने प्रस्तुत करना ये कहाँ की पत्रकारिता है ? क्या टीवी मिडिया का उद्धेश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा कमाना रह गया है ?सामाजिक सरोकार भी तो इनकी ज़िम्मेदारी है।
                आज टी आर पी का ज़माना है ,हर दिन कोई ना कोई नंबर १ होगा ही। ज़्यादा रेटिंग के लिए न्यूज़ को बताने ज़्यादा न्यूज़ बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है जो पूरा एंटरटेनमेंट पैकेज होना चाहिए। आज राजनीति का पैठ मिडिया में इतना ज़्यादा हो गया है कि सरकार बनते ही पहले ३० दिन ,१०० दिन और फिर एक साल का रिपोर्ट अनिवार्य हो गया है। रिपोर्ट अच्छा या बुरा ,चैनलों को मिलने वाली मुद्रा पर आधारित होता है। पूरा का पूरा फोकस राजनितिक पार्टियों की छवि बनाने में  हो रहा है । इससे साबित हो रहा की आज भारत की राजनीती पूरी तरह से मिडिया से नियंत्रित है।



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बढ़ते चले जाओ

होते हैं अतीत की यादें ,
कुछ खट्टे,कुछ मीठे ,
यही तो ज़िंदगी है ,
मत रुको अये दोस्त ,
उन कड़वे यादों में खो कर,
बस बढ़ते चले जाओ मुस्कुराते हुए ,
अपनी मज़िल की ओर ,
मिल ही जाएगी मंजिल ,
विश्वास रखो ख़ुद में ,
बस सीखते जाओ ,
अपने अतीत से। 



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Bold Decision (बड़ा फ़ैसला )

बड़ा फ़ैसला 

"taking bold decision is easy but live with the decision is very tough" it's needed patience.

"So take the decision & live with them" & keep patience for good result.


"बोल्ड फैसले लेना आसान है, लेकिन निर्णय के साथ जीना बहुत मुश्किल है" इसके लिए धैर्य की आवश्यकता है

"तो निर्णय लें और उनके साथ रहें" और अच्छे परिणाम के लिए धैर्य रखें


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अब ज़ी लेने दे मुझे

जब उछाल दिया
अपने अकेलेपन को आसमाँ में ,
फ़िर क्या अकेलापन ,
मिल गया साथ
करोड़ों सितारों का मुझे,
अब नहीं कोई गिला अये ज़िंदगी,
बस अब ज़ी लेने दे मुझे भी ,
अब खुले आसमाँ में



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सन्नाटा

ग़र सन्नाटा भी जी भर कर चीखने लगा ,
उनकी यादों के परिंदे ,
सिमट जायेंगे आग़ोश में ,
जहाँ वो दिखें वहीं ,
होता है जन्नत का पता ,
ताज़महल क्या वो चाहें तो ,
पूरी क़ायनात भी बना देंगे हम। 



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शिक्षा और पैसा (Education & Money)

            आज हमारे देश में दो तरह की दुनिया है एक वो जिनके पास बहुत पैसा है और दूसरा वो जिनके पास कुछ भी नहीं है। जिनके पास पैसा है उनके पास ज्ञान की कमी है और जिनके पास नहीं है वो बहुत कुछ कर सकते है। पैसे वाले परिवारों को लगता है वो पैसे से कुछ भी पा सकते हैं यहाँ तक ज्ञान भी। परन्तु ऐसा नहीं है, हर साल आपको हज़ारों उदाहरण मिल जायेंगे जो बिना पैसों  के भी लाइफ़ में सफल हुए हैं । बहुत ज़रूरत है तो एक सही मार्गदर्शन की ,जो हमारे इसी समाज बहुत से लोग हैं जो इस काम को बखूबी निभा रहे है और जिनके जीवन का सिर्फ़ एक मकसद है 'समाज सेवा'.
             आजकल शिक्षा-अर्जन को पैसे से जोड़ दिया गया है। पर क्या कभी शिक्षा पैसों से खरीदी जा सकती है ? पर ये भी सच है की शिक्षा से पैसा बहुत कमाया जा सकता है इसमें  कोई शक़ नही है।  ऐसे देश में ढेरों उदाहरण मिल जायेगे जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाया और सफ़ल हुए है। अभी हाल ही में IIT और UPSC के  परिणाम घोषित हुआ। पूरे देश से ढेरों कहानियाँ सामने आयी जैसे कि कैसे एक सामान्य घर का लड़का या लड़की ने अपने दम पर देश की सबसे कठिन परीक्षा को पास किया। कैसे एक गाँव में रहने वाला किसान, मज़दूर ,रिक्शा वाला ,मिस्त्री के बच्चों ने अपना अलग मुकाम बनाया।  ये बातें साबित करती है कि शिक्षा किसी खाश सूख-सुविधाओं की मोहताज़ नही होती। जो भी बच्चे देश के इन कठिन परीक्षाओं में पास हुए है चाहे वो अमीर हो या गरीब ,ख़ास हो या आम,एक बात दोनों में कामन होगी वो है "कठिन परिश्रम और लगन", बिना मेहनत और लगन के कोई ये कहे कि शिक्षा पैसों से खरीदी जा सकती है तो वो सरासर झूठ बोल रहा है और अपने आप और समाज दोनों को धोखा दे रहा है। जैसा कि आजकल प्रचारीत किया जा रहा है यदि आप फलाँ कोचिंग में जायेगे तो निश्चित रुप से सफलता आपके कदम चूम लेगी। पर हक़िकत में ऐसा नही है। मै यहाँ कोचिंग का विरोध नही कर रहा हूँ  मेरा विरोध धोखा देंने वाले मार्केटिंग टैगलाईन से है। जो शिक्षक इन बडे संस्थाओं में पढा रहे है वो काफ़ी जानकार हैं  और वो कभी भी सफलता का कोई शोर्ट आपको नही बतायेगे क्योंकि उन्हे भी इस पढाई का मर्म पता है। 
          आज देश में प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने के लिए बहुत सारे कोचिंग संस्थाए खुल चुकी हैं और वो कारगर भी साबित हो रही है। इन संस्थाओ ने वैज्ञानिक तरीके से अपने कोर्स को तैयार किया है जो कि प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत लाभकारी सिद्ध हो रही है। आज युवा और अनुभवी अध्यापकों का एक मिला -जूला प्रयोग कोचिंग  संस्थाओ में दिख रहा है। एक तरफ युवा तकनिकी का सहारा लेकर नित नए प्रयोग कर रहे हैं वही दूसरी ओर अनुभवी अध्यापक पारम्परिक तरीके से ज्ञान देने में लगे है। 
        "शिक्षा और पैसा" ये शीर्षक जो मैंने लिया है इसके पीछे ये साबित करना है कि शिक्षा ही एक ऐसा मंत्र है जो बिना इन्वेस्टमेंट के आपको ज़मीन से आसमान पे पहुँचा सकती है। शर्त यही है कि आपको "कठिन परिश्रम और लगन"करना होगा। 

"शिक्षा पैसों से नहीं खरीदी जा सकती , पर शिक्षा से पैसा बहुत कमाया जा सकता है "

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देहावसान.... एक सच

पुरे हफ्ते की आपाधापी के बाद रविवार का दिन इस आशा के साथ कि दिनभर आराम करूँगा। सावन का महीना चल रहा है। लगातार बारीश से पुरा शहर अस्त व्यस्त...