हवाओं का रुख बदला-बदला सा है

बदली हुई है हवाएं देश की, 
एक तरफ परिवारवाद की बाढ़ है
तो दुसरी तरफ़ पूरा देश ही, 
उसका परिवार है
इसे  साबित करें गलत कैसे, 
जनता का समर्थन और साथ, 
दोनों ही है इसके हाथ, 
कुछ बदला तो है ही, 
कैसे झुठलाए इसे, 
मंदिरों की विरासत हो, 
सड़कों का जाल हो
भगवा की बयार हो, 
मुछों पर ताव हो, 
दिख जाता है आजकल, 
अब तो आम आदमी के सवाल भी
कम हो गये हैं, 
पर ये ग़लत है, 
सवालों का कम होना, 
या कम होता हुआ दिखना, 
दोनों ही घातक है ं, 
मीडिया से भरोसा उठना,
सत्ता के बजाय विपक्ष से सवाल करना, 
कड़वी सच्चाई ना दिखाना
लोकतंत्र की हत्या के समान है, 
विपक्ष के हाथ काले इतने कि, 
बरसों लगेगें धोने में,
अब इनसे ना हो पायेगा, 
ये भी एक सच है, 
देशभक्ति का भाव जोड़ता है सबको, 
अब इसका बयार है, 
देश में हवाओं का रुख़ बदला-बदला सा है|

© मेरा नज़रिया


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