नव रियासतीकरण

नव रियासतीकरण

देश के सबसे अच्छे अस्पताल का नाम मेदांता नहीं एम्स है जो सरकारी है। सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम IIT है जो सरकारी है। सबसे अच्छे मैनेजमेंट कॉलेज का नाम IIM है जो सरकारी हैं। देश के सबसे अच्छे विद्यालय केन्द्रीय विद्यालय हैं जो सरकारी हैं। देश के एक करोड़ लोग अभी या किसी भी वक़्त अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए सरकारी रेल में बैठते हैं..., नासा को टक्कर देने वाला ISRO अम्बानी नहीं सरकार के लोग चलाते हैं..

  सरकारी संस्थाएँ फ़ालतू मे बदनाम हैं। अगर इन सारी चीज़ों को प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जाए तो ये सिर्फ़ लूट खसोट का अड्डा बन जाएँगी। निजीकरण एक व्यवस्था नहीं बल्कि नव रियासतीकरण है।

        अगर हर काम में लाभ की ही सियासत होगी तो आम जनता का क्या होगा। कुछ दिन बाद नव रियासतीकरण वाले लोग कहेगें कि देश के सरकारी स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों से कोई लाभ नहीं है अत: इनको भी निजी हाथों में दे दिया जाय तो जनता का क्या होगा।
  अगर देश की आम जनता प्राइवेट स्कूलों और हास्पिटलों के लूटतंत्र से संतुष्ट है तो रेलवे, बैंकों एंव अन्य सरकारी संस्थाओं को भी निजी हाथों में जाने का स्वागत करें।

  हमने बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकार बनाई है न कि सरकारी संपत्ति मुनाफाखोरों को बेचने के लिए। अगर प्रबंधन सही नहीं तो सही करे। भागने से तो काम नही चलेगा।

  एक साजिश है कि पहले सरकारी संस्थानों को ठीक से काम न करने दो, फिर बदनाम करो, जिससे निजीकरण करने पर कोई बोले नहीं, फिर धीरे से अपने आकाओं को बेच दो। जिन्होंने चुनाव के भारी भरकम खर्च की फंडिंग की है।

   याद रखिये पार्टी फण्ड में गरीब मज़दूर, किसान पैसा नही देता। पूंजीपति देता है। और पूंजीपति दान नहीं देता, निवेश करता है। चुनाव बाद मुनाफे की फसल काटता है।
       एक कटु सत्य और भी है कि बैंकों में रूपये जमा करके कोई अरबपति नहीं हुआ।बैंकों में सबसे ज्यादा रूपये मध्यमवर्गीय परिवार ही जमा करता है एवं उस पैसे का उपयोग अरबपतियों द्वारा किया जाता है जिसमें बैंक की भूमिका एक दलाल का है।और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि कमजोर से तो पैसे वसूल लिये जाते हैं परन्तु अरबपतियों का कर्ज एनपीए(सरकार यह मान लेती है कि यह पैसा अब नहीं मिलेगा एवं फाईल को बंद कर दिया जाता है) हो जाता है।

आइए,विरोध करें निजीकरण का। सरकार को अहसास कराएं कि अपनी जिम्मेदारियों से भागे नहीं। सरकारी संपत्तियों को बेचे नहीं। अगर कहीं घाटा है अपने इच्छाशक्ति को मजबूत करें एवं प्रबंधन को ठीक  करें।

देश हमारा है तो हमारा यह नैतिक दायित्व बनता है कि जिन सरकारों को हमने बनाया है अगर उनके फैसले आम जनता के हित में नहीं है तो हम उसका विरोध करें और सरकार को फैसला बदलने के लिए मजबूर कर दें।

आपका,
मेरा नज़रिया

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