दिखावा संस्कृति

आज हर क्षेत्र में दिखावा संस्कृति हावी है . ये दिखावा संस्कृति है क्या और क्यों मुझे इस पर लिखने की आवश्यकता पडी. इस बारे में बताने से पहले क्या आपने कभी इसे महसूस किया है .
       इस संस्कृति के मूल में अपने लिये फ़ायदा निहित है . और जहाँ तक मेरा अनुभव है इस संस्कृति की शुरुवात हम सबके अपने घर से होती है . उदाहरण के तौर पे बच्चा अपने माता-पिता को खुश करने के लिये पढने बैठ जाता है या वो कार्य करने लगता है जो उन्हे पसंद हो , पति या पत्निया एक दूसरे के पसंद-नापसंद के हिसाब से व्यवहार करने लग जाते है .आप यदि गौर करेंगे तो पायेगे ये दिखावा संस्कृति किस कदर हमारे दैनिक कार्यों में घुस गया है की इससे बाहर आने की कोई सम्भावना ही नही दिखती .कुछ क्षेत्र जहाँ ये संस्कृति ज्यादा पैठ बना चुकी है मैं आपको बताता हूँ :-
1) आफिस में काम करने वाले कर्मचारियों में 
2) अपने आस-पास के पड़ोसियो में 
3) बच्चे और बच्चियों में 
4) दोस्तों और रिश्तेदारों में 
5) पति और पत्नियों में 
6) दुकानदारों में
7) अपने-अपने प्रोफेशन में 

           इसके अलावा ना जाने कितने ऐसे क्षेत्र है जहाँ ये संस्कृति पुरी तरह से हावी है . ये सही है या गलत इसका विश्लेशण समय और परिस्थिति के अनुसार किया जा सकता है .मेरा इस मुद्दे पे लिखने का सिर्फ एक कारण है कि दिखावा के चक्कर में आप अपने आपको ना भूलें,

 "आप वही दिखें जो आप है ,नही तो पोल खुलते देर नही लगती." 

"खोखले आडम्बर थोडी देर तक आपको ढक तो  सकते है , पर बारिश की हल्की बूँदों से ही भरभरा कर गिर जाते है ."

उदाहरण : 1
         एक उम्दाsoftware कम्पनी के आफिस में दो कर्मचारी A और B अपने -अपने काम में लगे हुए थे. दोनो कर्मचारियों एक भिन्न्ता थी, A अपने कार्य को लेकर काफ़ी निष्ठावान था और हमेशा टास्क को बडी ही गंभीरता से निपटाता था वही दूसरा कर्मचारी B हमेशा रिलैक्स रहता था और काम तभी करता था जब उसका बौस उसके सामने या आस-पास हो. बौस की नज़र में कर्मचारी B का काफ़ी अच्छा रेप्यूटेशन बनने लगा वही दूसरी ओर कर्मचारी A हमेशा टेन्शन में और परेशान रहता था. काम के दबाव में A का हमेशा दूसरो से लडाई हो जाती और वो चिड़चिडापन का शिकार हो गया ,इसी बीच उसका बौस से लडाई कर बैठा. B हमेशा की तरह रिलैक्स और काम के प्रति कोई गंभीरता नही सब मज़े ले रहा था.A का इमेज बौस की नज़र में खराब हो गया था. टास्क का टाइमलाइन पुरा होने के बाद A अपना टास्क पुरा कर चुका था और B टास्क पुरा होने के आस-पास भी नही था.टास्क का अवलोकन करने के बाद बौस ने A का ट्रान्स्फर कर दिया B को काम पूरा करने के लिये और समय दे दिया. आफिस में अटकलबाज़ी का दौर शुरू हो गया 'इतना sincere होने का क्या फ़ायदा जब बिना काम किये भी जौब सुरक्षित है' . और जो लगन से काम करता है उसे और काम दिया जाता है. जो काम के अलावा बाकी सब कुछ करता है उसका रेप्यूटेशन भी बहुत अच्छा है .
          कुछ दिनों बाद बौस का तबादला हो जाता है. नया बौस को काम करने वाले लोग पसंद थे.आदत के अनुसार A और B वैसे ही व्यवहार करने लगे. इस तरह 10-12 साल गुजर गये, हमेशा कोई ना कोई नया बौस आता और अपने हिसाब से पर्सेप्शन बनाता और चलता बना. लेकिन A और B ने अपना आदत नही बदला. जब दोनों ने अपना कैरियर ग्रोथ का विश्स्लेश्ण किया तो पाया की A अपने सहकर्मी से B से आगे था.
        सारांश ये है की दिखावा से हो सकता है कि आपको क्षणिक फ़ायदा हो लेकिन दीर्घ काल में आपको नुकसान ही होगा.

उदाहरण 2:
             आजकल एकल परिवार का चलन है ,सम्बध्ध परिवारों का चलन शहरों में ना के बराबर है. इन एकल परिवारों में दिखावा संस्कृति विकराल रुप धारण कर लिया है .तथाकथीत अपना लिविंग स्टैंडर्ड बढाने के अनावश्यक खर्चों का बाढ आ गया है.कभी कभी तो दिखावा के चक्कर में लोग अपने मासिक तनख्वाह से ज्यादा खर्च एक दिन में कर जाते हैं .दूसरों के लिये अपना लाइफ कठिन करते जा रहे हैं ,ये गलत है .ये टेंडन्सी मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास फैमली मे ज्यादा देखने को मिल रहा है. मैं ये नही कहता की आप अपने लिविंग स्टैंडर्ड में बदलाव ना लावो, मेरा आपत्ति दिखावा में अंधे ना हो जाओ .यदि आप अपने आपको अच्छी तरह से जानते हो तो दूसरों के चक्कर में अपनी जिन्दगी नर्क मत बनाओ.

उदाहरण 3:
            जब आप अपनी प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रहे है तो वहा दिखावा संस्कृति फ़ायदेमंद हो सकती है .आपका प्रोडक्ट दूसरे से अच्छा दिखे इसके लिये आप इस संस्कृति का प्रयोग करें बिजनेस के लिये ठीक होगा परंतु उसमे क्वलिटी की स्पर्धा होनी चाहिये. क्योंकि जब तक आप उच्च क्वलिटी के प्रोडक्ट नही बनायेगे दिखावा बहुत देर तक आपको मार्केट में सस्टेन नही कर पायेगी .
         
        ऐसे ना जाने कितने उदाहरण है जो इस संस्कृति से संबंध रखते है और कही ना कही हम सब इसके शिकार है.हमे इससे बाहर आना होगा.







आपका,
meranazriya.blogspot.com
             





No comments:

Post a Comment

बदलाव..

रिसोर्ट मे विवाह...  नई सामाजिक बीमारी, कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओ...