पूछता है हाल चाल
जब महीनों बाद
देखता है आपको
खिलखिलाता है,
घर की खिड़कियां,
और उसमें लगे जाले,
शिकायत करते हैं,
और कहते हैं,
बाबू थोड़ी जल्दी आया करो,
कहते हैं पापा की उम्र बढ़
रही है, अब बुढ़े हो रहें हैं
तुम्हारी जरूरत है उनको
अब पहले की तरह सफाई
हर कोने में नहीं होती है
अम्मा भी थकने लगी है,
मायूस रहती है
सब सोचकर,
कभी इस घर में
भीड़ हुआ करती थी,
शोर शराबा और खुशहाली थी,
अब सब चले गए
पराए होने लगे हैं
छुटने लगा है सब
घर का हर कोने से
आवाजें आती है, बुलाती है
और दीवारें शांत रहती
ढाढस देती है,
इस विश्वास के साथ की
वो अपना छोड़ेगा नहीं मुझे,
आखिर घर के देवता यही तो है ं
कहाँ जाएगा आना तो पडे़गा
ये आदेश है मेरा,
ये सारी बातें घर बोलता है।
आपका,
मेरा नज़रीया
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