छठ की महीमा- निर्माण से निर्वाण तक का सन्देश है छठ पूजा

क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीर 


ये पंचतत्व से शरीर है 
इसी पंचतत्व की पूजा है (पानी मे रहकर आकाश की तरफ गर्दन किये हुए हाथ मे दीपक लेकर खुले हवाओं के बीच ज़मीन पर खडे रहकर प्रकृति की पूजा 

अंधकार से प्रकाश की तरफ उनमुख होने को प्रेरणा देता हुआ त्यौहार
(पहले शाम को अर्ध्य फिर सुबह )

दुःख और सुख मे सम्भाव रहने का सन्देश देता त्यौहार (शाम और सुबह दोनों मे सामान पूजा विधि )

व्रत की पूजा विधि मे केवल सात्विक भोजन करने की सीख होती है..

प्रसाद मे सभी प्रकार के उपलब्ध फल और सब्जी चढ़ाया जाता है..

इन्ही पंचतत्वों से शरीर का "सृजन" होता है..

इन्ही पंचतत्वों से और इनसे सृजित फल-सब्जी से शरीर का "पालन" होता है 

इन्ही पंचतत्वों मे "विलीन" हो जाना है

निर्माण से निर्वाण तक का सन्देश है छठ पूजा

सुख-दुःख, ख़ुशी -गम,उतार -चढाव,आदि -अंत, जय -पराजय,अंधकार -प्रकाश, जीवन -मरण, ये सभी द्वन्द जीवन के अकाट्य सत्य है जिनका प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे होना तय है...

छठ पूजा का स्वयं द्वय(dual )रूपों मे होना (संध्या अर्ध्य के बाद यह भरोसा होना कि सुबह की अर्ध्य भी नियत है) क्या यह अपने आप मे कम प्रमाण है कि अगर आप दुःख मे है तो सुख आएगा?
यह बताता है कि इन दोनों परिस्थितियों मे सम्भाव रहिये... दोनों ही परिस्थितिया नियति ने तय कर रखा है...आपका अपना मूल अस्तित्व ही एकमात्र सत्य है आदि भी वही है और अंत भी वही ....

दोनों एक ही अवस्था है...बर्फ-पानी-भाप के भौतिक प्रभाव अलग अलग हो सकते है परन्तु इनका आदि और अंत का मूल स्वरुप एक ही है। 


आपका, 
मेरा नज़रीया

अब पहले जैसा सुबह और शाम नहीं होता

अब पहले जैसा सुबह और शाम नहीं होती, 
वो पहली किरण के आने से पहले की, 
ठंडी-ठंडी हवा की सरसराहट नहीं दिखती, 
वो जेठ की दुपहरी की गर्माहट नहीं दिखती, 
वो पेड़ के नीचे  खटिया पर लेटे हूए, 
कड़क गर्मी की वो शीतलता नहीं दिखती, 
वहीं पेड़ के नीचे वो बड़े बुजुर्गों की ज्ञान की बातें
अब कहाँ चली गई? 
ना सुनने वाला कोई ना सुनाने वाला बचा है, 
ये कोन सा दौर है जो सब कुछ एक शीशे की सतह
सब कुछ उतारने की जद में है, 
कैसे एहसास कराओगे इन नये नस्लों को, 
बर्बाद होने से बचाओगे कैसे, 
ज़रा रुककर सोचो तो सही, 
क्या सच में अब पहले जैसा सुबह और शाम नहीं होती? 
या  सब कुछ वैसे ही है बस हमने देखना छोड़ दिया? 

आपका, 
©मेरा नज़रीया


भावनाएं

हाँ अब थोड़ा डरने लगा हुं 
सहमने लगा हूं
अपनो के लिए 
सब कुछ कर ना पाने का भाव
डराने लगा है
ऐसा नहीं कि ये पहली बार है
पहले भी ऐसा महसूस होता था
अब थोड़ा ज्यादा संजीदा 
होने लगा हुं 
क्या समय रहते सब कर पाऊंगा
जिम्मेदारी निभा पाऊंगा
बार-बार पुछता हूं खुद से
बढती उम्र के साथ
अपनों के खोने का डर 
सताने लगा है
होना तो है एक दिन
जानता हूँ, फिर भी
ना जाने ये
नहीं चाहता हूं मैं
खुद से ज्यादा इनका
ख्याल रहने लगा है
ये खुश रहें, कुछ अच्छा करें
चाहता हूँ, 
अच्छे संस्कार हो 

आपका, 
मेरा नज़रीया


बदलाव..


रिसोर्ट मे विवाह...
 नई सामाजिक बीमारी,
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है!
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ होने लगी हैं!
शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है।
आगंतुक और मेहमान सीधे वहीं आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं।
जिसके पास चार पहिया वाहन है वही जा पाएगा,
दोपहिया वाहन वाले नहीं जा पाएंगे। 
बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है।
और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है। 
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी हैं,
किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है !
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है !
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है!!
इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है!
सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है!!

महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं!

मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं
मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है लोअर केटेगरी का मानते हैं

फिर हल्दी की रस्म आती है 
इसमें भी सभी को पीला कुर्ता पाजामा पहनना अति आवश्यक है इसमें भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है ।
इसके बाद वर निकासी होती है 
इसमें अक्सर देखा जाता है जो पंडित को दक्षिणा देने में 1 घंटे डिस्कशन करते हैं 
वह बारात प्रोसेशन में 5 से 10 हजार नाच गाने पर उड़ा देते हैं ।
इसके बाद रिसेप्शन स्टार्ट होता है 
स्टेज पर वरमाला होती है पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला करवाते थे,,,,,, आजकल स्टेज पर  धुंए की धूनी छोड़ देते हैं 
 दूल्हा दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है 
बाकी सब को दूर भगा दिया जाता है 
और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं 
साथ ही नकली आतिशबाजी भी होती है ।

स्टेज के पास एक स्क्रीन लगा रहता है 
उसमें प्रीवेडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है 
जिसमें यह बताया जाता है की शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है और कितने अंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहन कर 
कहीं चट्टान पर 
कहीं बगीचे में 
कहीं कुएं पर 
कहीं बावड़ी में 
कहीं श्मशान में कहीं नकली फूलों के बीच अपने परिवार की इज्जत को नीलाम कर के आ गई है ।

प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं 
जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है!!
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं!
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!
रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं !
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं!
और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है !
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता !
वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है 
आपका पैसा है ,आपने कमाया है,
आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं,
पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं!

कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा!

जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है !

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए!

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

 धन्यवाद 🙏  
#फिजूलखर्ची #शादीसमारोह

वो तरसती आंखें....

प्रस्तुत कविता उस माँ की कहानी है जो भरे बाज़ार में सर्दी हो या गर्मी या बरसात हर मौसम में जमीन पर कुछ ताजे फल या सब्जी रखकर तरसती आंखों से ग्राहक का इंतजार करती है.
कभी कभी जरूरत ना भी हो तो खरीद लिया करो दोस्तों.. सुखद एहसास होगा... 

सर पर गठरी लादकर, 
निकल पड़ी है वो माँ, 
आंखों में उम्मीदें लेकर, 
दिलों में भरकर हसरतें, 
वो तरसती आंखें, 

सुबह की लालिमा से पहले, 
खेतों में खट कर , 
तैयार साग सब्ज़ी चुनती है वो माँ
पैरों में चुभते है कांटे, 
उफ ना करती है वो माँ 
है ये उस माँ की तरसती आंखें, 

कलयुगी कुपुतों ने छोड़ दिया उसे, 
बीच मझदार में, 
उन्होंने भी (पति) साथ छोड़ दिया, 
वो होते तो..हिम्मत होती, 
जो अब तक लड़ी थी ज़माने से, 
अब चित्कारती है वो माँ, 
उस माँ की तरसती आंखें, 

कुछ ना कहते हुए भी, 
बहुत कुछ कह जाती है, 
ऐ बेदर्द जमाना, 
ऐसा क्यों हो गया रे.. 
एक बार ही सही देख तो ले, 
ये तेरे लिए ही है..मान ले, 
इन तरसती आंखों के लिए

चेहरें पर पड़ी हुई झुर्रियों के बीच, 
ताकती वो तरसती आखें, 
कहती है...उसे जीना है, 
मत छोड़ उसे, 
जरूरत ना हो..तो भी ले ले, 
क्या फर्क पड़ेगा तुझे
एक पुण्य कमाने का मौका
मानकर, ना गवां इसे.. 

सहेजकर चार सिक्के, 
कमर में बांधकर रखती है वो माँ, 
सुनकर किलकारियां, 
खिल उठती है ं , 
वो तरसती आखें, 
सब कुछ लुटाना चाहती है, 
पर ऐसा कर ना पाती है वो माँ, 

भीगी पलकों से देखती है, 
वो तरसती आखें, 
कोई आए और कह दे, 
चल माँ, अब घर चल... 
सोचती है वो माँ.. 
वो तरसती आखें.. 


आपका, 
© मेरा नज़रीया

हवाओं का रुख बदला-बदला सा है

बदली हुई है हवाएं देश की, 
एक तरफ परिवारवाद की बाढ़ है
तो दुसरी तरफ़ पूरा देश ही, 
उसका परिवार है
इसे  साबित करें गलत कैसे, 
जनता का समर्थन और साथ, 
दोनों ही है इसके हाथ, 
कुछ बदला तो है ही, 
कैसे झुठलाए इसे, 
मंदिरों की विरासत हो, 
सड़कों का जाल हो
भगवा की बयार हो, 
मुछों पर ताव हो, 
दिख जाता है आजकल, 
अब तो आम आदमी के सवाल भी
कम हो गये हैं, 
पर ये ग़लत है, 
सवालों का कम होना, 
या कम होता हुआ दिखना, 
दोनों ही घातक है ं, 
मीडिया से भरोसा उठना,
सत्ता के बजाय विपक्ष से सवाल करना, 
कड़वी सच्चाई ना दिखाना
लोकतंत्र की हत्या के समान है, 
विपक्ष के हाथ काले इतने कि, 
बरसों लगेगें धोने में,
अब इनसे ना हो पायेगा, 
ये भी एक सच है, 
देशभक्ति का भाव जोड़ता है सबको, 
अब इसका बयार है, 
देश में हवाओं का रुख़ बदला-बदला सा है|

© मेरा नज़रिया


आको बांको की बेहतरीन लाइनें मेरी नज़र में

नमस्कार,
आखिरकार आज मैंने आको-बाको किताब की पूरी कहानियां पढ़ ली। दिव्य प्रकाश दुबे जी की इस पुस्तक में कुल 16 कहानियां हैं और यकीन मानिए इन 16 कहानियों को पढ़ने के बाद आपको कुछ नए शब्द नई लाइनें ने आपके दिमाग में रह जाएगी।इन लाइनों का आप के दिमाग पर खास तरह का असर होगा मैंने कुछ लाइनों को संग्रहित करने के लिए इस ब्लॉग में कहानी के के दौरान लिखे हुए कुछ लाइनों को संग्रह किया है।आप भी कहानी के हिसाब से लाइनों को पढ़ें और समझने का प्रयास करें कि इन लाइनों का उस कहानी में मतलब क्या होगा। यह लाइनें ही आपको पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए मजबूर करेगी ऐसा मेरा मानना है।


सुपर मॉम
याद समंदर की लहर के जैसे आई और पुराने दिनों की उम्मीद वह आकर ले गई याद रात के तारों की तरह आई नींद उड़ा कर चले गए याद हर तरीके से आई बस अच्छे याद की तरह नहीं आई।

जिंदगी के बड़े फैसले आराम से बैठकर नहीं बेचैनी से फूट-फूट कर रोते हुए पलों में लिए जाते हैं।

आदमी बदलता है तो उसकी महक भी बदल जाती है।

मैडम सही रास्ता मिलने के बाद भी उस पर चलना इतना आसान नहीं होता लेकिन मैडम मैं थकी नहीं हूं।

मैं खुद ही अपनी प्रेरणा हूं प्रेरणा अपने अंदर होती है।

पेन फ्रेंड
जिंदगी बिस्तर की सिलवट जैसी हर सुबह उलझी हुई मिलती है इसीलिए उलझी हुई सिलवट को वापस ठीक करने की कवायद में लोग जिंदगी के चार सिरे से खींच कर रोज उसको  संवारते हैं। जिंदगी का काम है उलझाना और आदमी काम है सुलझाना और उस सुबह का इंतजार करते रहना जिस दिन सिलवट नहीं मिलेगी।

खिलौना
आंसू छंटाक भर है लेकिन भारी बहुत है इतना भारी कि इस धरती पर सबसे बड़े फैसलों के पीछे कहीं न कहीं इस पानी का हाथ है।

यादें खो जाए तो जिंदगी आसान हो जाती है हम अपनी यादों से परेशान लोग हैं दुनिया तो बहुत बाद में परेशान करती है।

संजीव कुमार
उसके ठप्पे लगाने में एक रिदम था एक संगीत था जैसे चिट्ठियों पर ठप्पे लगाना इस दुनिया का सबसे खूबसूरत काम है।

हां इस दुनिया में इतने किरदार हैं कि हम वह किरदार बनते रहते हैं एक वही तरीका है कि हम जिससे अपनी असलियत से भाग सकते हैं।

पहला पन्ना
पहला पन्ना उन सभी शायरों और लेखकों के नाम जो कुत्ते की मौत मरे और मरते रहेंगे।

इस दुनिया को समझने की कोशिश जब भी हुई हर खोज यहीं पर आकर रुकी है कि दुनिया रहने लायक नहीं है, यहां आदमी आदमी बनकर नहीं रह सकता।

तुम लोगों पर बातों का कोई असर थोड़े होगा कबीर, नानक, गांधी की बातों का असर नहीं हुआ तो मेरी बातों का क्या होगा।

इस बदसूरत दुनिया में खूबसूरती वही तलाश सकता है जो इस दुनिया को एक डीएसएलआर कैमरे की नजर से देखें जो झोपड़पट्टी, गरीब के पांव, नाले तक में खूबसूरती ढूंढ सके।

दुनिया को सच बोलने का वादा चाहिए सच नहीं।

इस दुनिया को बच्चों की नजर से ही झेला जा सकता है शायद!

हर लेखक कभी न कभी खाली होता है लेकिन मानना नहीं चाहता खाली हो जाना मौत जितना बड़ा ही सच है।

डैडी आई लव यू
नदी पार करने वाले तीन तरह के लोग होते हैं पहले वो जो पार हो जाते हैं और पलट कर नहीं देखते, दूसरे वो जो पार होने के बाद दूसरों को पार कराते हैं और तीसरे वो जो नदी हो जाते हैं।

कविता कहां से आती है
कहानियां असल में वही पड़ी होती हैं जहां हम उनको रख कर भूल चुके होते हैं किसी अलमारी में बिछे अखबारों की तहो के नीचे, किसी किताब के मुड़े हुए पन्ने पर, किसी भी बिस्तर के बेचैन करवटों पर, किसी के जाने के बाद में बची हुई खाली जगह में।

हाले-गम उनको सुनाते जाइए शर्त ये है मुस्कुराते जाइए।

इसीलिए शायद हमारी जिंदगी के कई जरूरी जवाब एक थकावट की पैदाइश है जवाब ढूंढना बंद कर देना एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब लोग सवाल बदल कर अपने आप को छोटा-मोटा धोखा देते रहते हैं।

कविता जब आती है तो खुशबू वाले फूल जैसे होती है और जब बनाई जाती है तो उस फूल की प्लास्टिक कॉपी जैसी लगती है।

भूतनी
कुछ आत्माएं इतनी शापीत होती हैं कि उनको भूत बनने के लिए मरने की जरूरत नहीं पड़ती। जिंदा आदमी भूत से परेशान होता है लेकिन हमने यह नहीं सुना कि भूत किसी जिंदा आदमी से परेशान होता हो।

शुगर डैडी
प्यार को अगर समय के स्केल पर रखकर बांट दे तो मिलने से पहले और बाद का स्केल मैटर नहीं करता। मेरे बाद भी कोई मेरे प्यार में रहे, मैं इतनी बड़ी सजा किसी को नहीं देना चाहता।

पहले से तय कर लेना कि अब सच्चा प्यार नहीं होगा इस जीवन की असीम संभावनाओं का अपमान है।

कमरा
उसने अपने मन में घाव बना लिया वह घाव जो हर कोई कभी ना कभी बना लेता है समय के साथ  घाव भरता रहा।

60 सेकंड
आपके जैसा रोज़ कोई आता है और थोड़ी सी जिंदगी मेरे कटोरे में रख देता है।

आदमी के 'बिसात' ही कुछ ऐसी है कि वह उम्मीद नहीं छोड़ता । उम्मीद नहीं होती तो लोग सुसाइड लेटर लिखकर नहीं जाते। धीरे से चुपचाप मर जाते गुमनाम मर पाना हमारे समय की सबसे बड़ी लग्जरी है।

गुमशुदा
हर आदमी तभी तक नॉर्मल है जब तक इस समाज उसे पागल घोषित नहीं कर देता।

विंडो सीट
उसने अपने चेहरे पर एक प्लास्टिक स्माइल में तरफ दी मैंने स्माइल से थोड़ा सा प्लास्टिक कम करके स्माइल से वापस कर दे।

सुपरस्टार
असल में हम उसे ही अपना भगवान बनना चाहते हैं जिसको हम देख और छू सकते हैं फिर वह चाहे पत्थर ही क्यों ना इसीलिए शायद ना छू पाना भगवान होने की पहली शर्त है।

जो लोग खुद लेट होते हैं वह दूसरों को समय से पहले पहुंचा देते हैं।

खुश रहो
बेटे ने अपने बाप को जीते जी माफ कर दिया था वरना इतिहास गवाह है बाप को माफी मरने के बाद ही मिलती है पिता को माफ करना अपने आप को माफ करना होता है।

द्रोपदी
क्योंकि वह अपने शक को शक बने रहने देना चाहते थी उसको सच होते हुए नहीं देखना चाहती थी।

जितना मन करें उतना देखना अब फुर्सत से पति हो परमेश्वर नहीं।

इस ब्लॉग को लिखते समय मेरे जेहन में इस बात का ख्याल जरूर है कि मैं कहानी की आत्मा को बचा के रखूं और आपको कहानी पढ़ने के लिए विवश करु। इस पुस्तक के लेखक श्री दिव्य प्रकाश दुबे जी को बहुत-बहुत बधाई। पुस्तक में लिखी हुई हर कहानी अपने आप में शानदार हैं एक नया अनुभव है और एक नए पाठक के लिए और नये लेखकों के लिए बहुत कुछ सीखने का भी है।

बहुत-बहुत आभार धन्यवाद।


आपका,
मेरा नज़रिया

छठ की महीमा- निर्माण से निर्वाण तक का सन्देश है छठ पूजा

क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीर  ये पंचतत्व से शरीर है  इसी पंचतत्व की पूजा है (पानी मे रहकर आकाश की तरफ गर्दन किये हुए हाथ मे दीपक लेकर खुले ह...